Wednesday, December 12, 2012

शुभ यात्रा पंडित जी !

 पंडित रवि शंकर के निधन का समाचार हमें यात्रा में मिला . ' शिशिर जी ' से . उनकी कामयाबी , उनकी बुलंदी . और उनकी उम्र देखते हुए उनके निधन की खबर दुःख नहीं देती लेकिन एक कमी खटकती रहेगी . संगीत की दुनिया का एक बेताज बादशाह अलविदा कह रहा है लेकिन उसकी झंकार सदियों तक समूची कायनात में गूंजती रहेगी . इंसानी सभ्यता लित्नी बार करवट लेगी सितार का एक तार जरूर झंझनायेगा . काशी अदब का एक प्रकाशपुंज और गया . उनकी समूची शख्सियत का खाका खीचना बहुत आसान नहीं है . उनके पास भैरवी की रुनझुन बयार है तो भीम  पलासी और यमन की लयकारी . उनके तार और उँगलियों के रिश्ते को अभिव्यक्ति नहीं किया जा सकता उसे महसूस किया जा सकता है और सारी दुनिया ने उसे महसूस किया है . पंडित जी ! जब भी कोइ परिंदा किसी भी भाव में  चहकेगा आप याद आयेंगे .
      पंडित जी बनारसी  ठाट , ठसक और रंग के बेजोड इंसान रहें . उनके ठहाके , उनकी मुस्कान सब जगह संगीत बजता था .
   काशी संगीत की दुनिया है  एक से बढ़ कर एक . उसमे पंडित रविशंकर थोड़ा अलग रहें . काशी ने उनके  जीते जी वो प्यार , मनुहार और आदर नहीं दिया जितना उनके हिस्से में आता था . यह काशी की अपनी ठसक है . लेकिन आज उनके न रहने पर सबसे ज्यादा अगर कहीं बेचैनी होगी तो काशी में . पंडित जी को पुष्पांजलि अर्पित करता हूँ .

2 comments:

  1. सन 1957 में बनी अर्न सक्‍सडॉर्फ की स्‍वीडिश फिल्‍म के प्रदर्शन से बस्‍तर, गढ़ बेंगाल निवासी दस वर्षीय बालक चेन्‍दरू अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर प्रसिद्ध हुआ। फिल्‍म का नाम 'एन डीजंगलसागा' ('ए जंगल सागा' या 'ए जंगल टेल' अथवा अंगरेजी शीर्षक 'दि फ्लूट एंड दि एरो') था। फिल्‍म में संगीत पं. रविशंकर का है, उनका नाम तब उजागर हो ही रहा था। इस फिल्‍म के बाद उनकी चर्चा आम हुई.

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  2. I could never listen to him live. His recordings are rarely available on-line. On the other hand, recordings of his contemporaries like Ustad Vilayat Khan and Pandit Nikhil Banerjee are available aplenty. What to infer from this?
    He became a celebrity when George Harrison of 'Beatles' fame suddenly became his disciple. It was called 'The Sitar Explosion'. I guess from that day on, he spent more time in USA than in India. He was the first global Indian Classical Musician. After him, there have been many.
    Varanasi may not have given its love to him, but he too decided very early to leave Varanasi for good.
    My friend Vinod Lele, who is a well known Tabla player occasionally talks about Panditji.
    He learnt Classical Music, so he must have been a great soul.

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