Wednesday, September 21, 2016

chanchal: मंडी हॉउस .गुजिस्ता खुशबुवों के दिन थे , तजकिरा य...

chanchal: मंडी हॉउस .
गुजिस्ता खुशबुवों के दिन थे , तजकिरा य...
: मंडी हॉउस . गुजिस्ता खुशबुवों के दिन थे , तजकिरा ये हुश्न से रोशन रहे वो दिन जब हम मंडी हाउस  की सड़कों पर कहकहे लगाते पुरनूर  रंगीन सपने ब...

मंडी हॉउस .
गुजिस्ता खुशबुवों के दिन थे , तजकिरा ये हुश्न से रोशन रहे वो दिन जब हम मंडी हाउस  की सड़कों पर कहकहे लगाते पुरनूर  रंगीन सपने बुना करते थे
और बाज दफे यह भूल भी  जाते कि रात गहरी हो गयी हैं ,संजीदा और समझदार लोग सोने जा चुके होंगे हम जब सहमते हुए कुण्डी खटखटाएंगे
 तो मकान मालिक पर क्या गुजरेगी . लेकिन करना पड़ता था . हमारे मकान मालिक जैन साहब थे , रेल में मुलाजमत करते थे उनकी दोनों बेटियाँ
सर्वेश्वर जी की बेटियों विभा और शुभा की सहेली थी . यह परिवार सर्वेश्वर जी की वजह से इतना सब कुछ झेल रहे था  , दूसरी एक वजह और रही जो हमे
बाद में पता चला  कि गर  जैन साहब इस बात को  पहले से  जानते  होते कि हम जार्ज फर्नांडिस से भी जुड़ें हैं तो शायद जैन साहब मकान की चाभी
 देने की जगह , एक अदद बहाना पकड़ा दिए होते . लेकिन उन्हें तब यह मालुम हुआ जब हम अपना सर सामान लिए हाजिर हुए उस समय  हमारे
 साथ लैला जी
भी दिखाई पड़ गयी . जैन साहब का पूरा परिवार डाइनिंग टेबुल पर चला गया , खुसुर फुसुर के बाद उनकी बेटी अलका चाय की ट्रे लेकर आयीऔर
 चाय देने के बाद  बहुत सकुचाते हुए  सर्वेश्वर जी से  बोली - अंकल ! पापा बहुत घबडाये  हुए हैं , जार्ज साहब उनके नेता हैं जब उन्हें पता चलेगा कि
पापा ने  उनके आदमी को किराए पर मकान दिया है ....अलका के बात को सर्वेश्वर जी ने बीच में काट कर जोर से बोले - जार्ज आज  रेल नेता हैं ,
कल रेलमंत्री बनेगे तब तुम अपने लिए मकान मांग लेना , तुम भी तो रेलवे में लग गयी हो ? उसी साल वह रेलवे में बुकिंग क्लर्क की नौकरी पर लगी थी .
इत्तफाक देखिये जार्ज जब रेल मंत्री बने और हम उनके सिपहसालारों में से एक हुए तो एक दिन वही लडकी अपने पति के साथ आयी और बड़े अधिकार
के साथ कहा कि अब आप हमे मकान दीजिये .
  इस तरह हम बंगाली मार्केट में भटक रही भांतिभांति की आत्माओं में शामिल हो गया . रंग मंच , संगीत , कला के जीते  जागते  , चरित्रों के साथ
 उठना बैठना शुरू हो गया . इनमे हम सबसे ज्यादा जुड़े थे रंगमंच की गतिविधियों से , उसकी एक वजह यह भी रही की हम उन दिनों  सारिका में
रंगमंच पर नियमित कालम लिख रहे थे . रंगमंच के दो हिस्से होते हैं . एक मंच पर घटित होता है जिसे दर्शक प्रेक्षक देखता है .लेकिन एक निहायत
दिलचस्प होता है वह है नेपथ्य का . दिल्ली रंगमंच का नेपथ्य देखना हो तो मंडी हाउस चले जाइए . मंडी हाउस का फुटपाथ , नाथू स्वीट , बंगाली  मार्केट
रिफूजी मार्केट , बहावल पुर हाउस ,  ......... ओम शिवपुरी और उनकी पत्नी सुधा शिवपुरी का एक नाम नाथू स्वीट के बैरों ने रख छोड़ा था . गाठिया .
गाठिया एक तरह की नमकीन होती है .विस्तार अगली पोस्ट में -

Monday, September 19, 2016

chanchal: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ; कभी किसी को बख्से ना .चं...

chanchal: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ; कभी किसी को बख्से ना .
चं...
: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ; कभी किसी को बख्से ना . चंचल      तमाम वाकयातों से घिरे इस तस्वीर के हर टुकड़े को जोड़ दिया जाय तो वह सर्वेश्वर दया...
हिन्द पाक रश्ते -
उरी में हुए  आतंकी हमले के बाद युद्ध उकसावे का उफान आ गया है . हर की जबाबी कार्यवाही के मांग कर  रहा है .और यह गलत नही है
इसी तरह के बयानात के  बदौलत देश को एक नालायक और नाकारा सरकार मिली है . विदेश नीति के सवाल पर तो कतई जाहिल . आज
भारत किसी भी मुल्क को अपना दोस्त कहने की स्थिति में  नहीं है . अब जरा भारत पाक सरकारों की उस नेति को झाँक कर देखिये की  आतंक वाद
इनकी सोच क्या  है . पाकितान अपने शुरुआती  दिनों  से ही इस्लाम के नाम पर पनपने वाले आतंकी हरकतों का हामी  रहा है .
 वहां  आतंवाद और सैनिक ताकत एक होकर अवाम की चुनी हुयी सरकार को दबा कर अपनी मुट्ठी  में ले   लिया है . दो - कोइ भी  सरकार जब अपने
अंदरुनी मसायल को नही  हल कर पाती तोतो अपनी नालायकी  छुपाने के  लिए , बाहरी खतरा दिखा कर  राष्ट्र प्रेम पैदा करती है .भारत का अतीत
इस सोच से अलहदा रहा . कांग्रेस  के कार्यकाल में देश और सरकार दोनों इस बात पर मुतमइन रहा की पाकिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है , और हर
मायने में हमसे बहुत पीछे है . सैन्य शक्ति में तो हम पाकिस्तान से बीस  गुना ज्यादा हैं . इसके बावजूद जितनी भी  बार पाकिस्तान ने युद्ध के लिए
 उकसाया उसे उसका जवाब भी  मिल गया . भारत  पाक सीमा का उलझा हुआ मसला भी श्रीमती इंदिरागांधी केसिमला समझौते में ही सुलझा
 लिया गया था . अब दोनों देशों के लिए यह जरुरी था की वे मिल बैठ कर अपने मसायल हल करें और युद्ध खर्च को विकास की और मोड़ें .
 मनमोहन सरकार तक आपसी बातचीत की नीति चलती रही . लेकिन  नई सरकार के आते ही नई नीति बन गयी . आयर भारत पाक के रास्ते पर
 चल पडा . उनके यहाँ इस्लाम के नाम पर आतंकवाद पनपा तो यहाँ हिन्दू के नाम पर आतंकी कारनामे होने लगे . यहाँ की भी सरकार इस हिन्दू आतंक
को सरक्षण देने लगी . इस नई सरकार ने आधिकारिक रूप से बातचीत का रास्ता बंद कर दिया और लगे बन्दर घुडकी देने . लेकिन जमीनी सच्चाई
 यह रही कि हम खुफिया तंत्र में कत्तई असफल रहे . दो - जिस तरह पाकिस्तान के अन्दर का आतंकवाद न केवल भारत के के लिए सरदर्द है बल्कि
पाकिस्तान के लिए भी एक बड़ी समस्या है . वही स्थिति अब भारत में भी बन रही है . लेकिन थोड़ा सा फर्क है . पाक आतंकवाद जाहिलों को वर्गला कर
मजहब के सहारे खुद्कुसी तक पहुंचा दे रहा है और सपना दिखाता है की अगर शहीद हुए तो जन्नत में ७२ हूरें मिलेंगी . और वे आतंकवादी यह मान कर प्रवेश
लेते हैं की मरना तो तय ही है . लेकिन यहाँ का हिन्दू आतंकवाद इतना नुकीला नही है . बहादुर तो कत्तई नही , यह कायरों की जमात है . इनका
 खून खराबा अपनी ही जमीन पर होगा . कई उदाहरण हैं वे सब आपके सामने है .
    इस समस्या का हल केवल बातचीत से ही होगा . और आतंकवाद को केंद्र में रखना होगा . इस दिशा में अगर सरकारें फेल होती हैं तो अवाम
 को सामने आकर दबाव बनाना पडेगा .

Thursday, September 15, 2016

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ; कभी किसी को बख्से ना .
चंचल
     तमाम वाकयातों से घिरे इस तस्वीर के हर टुकड़े को जोड़ दिया जाय तो वह सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हो जाता है .लेकिन कोइ मुगालता मत पालिए कि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बस इतना ही है . यह तो वह
अक्स है जो हमारे हिस्से में आया . हमारे जैसे और भी बहुत हैं जिनके पास भी सर्वेश्वर जी हैं लेकिन थोड़ा अलहदा होंगे  . हम जिस हिस्से को जोड़ रहे हैं उसमे उनकी रचना नही है , न कविता , न कहानी ,आलोचना
भी  नही . सर्वेश्वर जी का यह हिस्सा साहित्यानुरागियों के पास है . हम तो उस सर्वेश्वर की शख्सियत की तस्वीर बना रहे हैं जिसे हमने देखा है , गो की वे जाने गये हैं साहित्य की ही वजह से . थोड़ा और
गाढा कर दूँ तो उनका साहित्य आमजन के सरोकार को उठाये गुर्राता हुआ  एक बयान रहा है और आज तक उसी सिद्दत के साथ दर्ज है . गाहे ब गाहे आज भी वह बयान मौकये वारदात पर किसी मजलूम
के समर्थन में उठ कर खडा हो जाता है और शोषक की आस्तीन पकड लेता है . इस वाजिब सोच को , कई आलोचकों ने विद्रोही कवि कह कर पल्ला झाड़ने की कोशिश की है लेकिन सर्वेश्वर के पास
कई और भी तरह के रंग हैं . उन पर अभी बहुत खोज होगी . बहुत कुछ मिलेगा . हमने तो सीधे तौर पर शुरू में ही कह दिया है हम सर्वेश्वर जी के उस हिस्से को उठा रहे हैं जिसे हमने नजदीक से देखा ही नही
बल्कि जिया है . बाज दफे आपको लग सकता है कि हम विषय से हट रहे हैं और अपनी कथा  सुना रहा हूँ लेकिन ऐसा नही है यह हमारी मजबूरी है . क्यों कि हम न तो जीवनी लेखक हैं , न ही मुकम्मिल
इतिहास बता रहे हैं , हमने जितना कुछ सर्वेश्वर जी को जाना , उसी का खुलासा कर रहा हूँ .
     ७१ में हम पूर्वी उत्तर पादेश के एक गाँव से उठकर देश के सबसे बड़े शिक्षण संस्थान काशी विश्वविद्यालय पहुंचे थे .सर्वेश्वर जी या किसी भी जीवित रचनाकार को नही जानते थे , इकी वजह हम नही रहे ,
हमारी शिक्षा प्रणाली रही जिसमे हमे कब्रिस्तान की सैर करने के अलावा जीवित वर्तमान में जाने ही नही दिया जाता . काशी में अड्डेबाजी एक स्थायी भाव है . हम भी उसी में उतरे और उतारते चले गये .
इसमें हमारे दो अभिन्न रहे . और दोनों अपने मूल काम से इतर अतिरिक्त काम भी करते थे , वह थी कविता . उन दिनों नरेंद्र नीरव कुशुम लता से मोहब्बत कर रहे थे , और बाद बाकी बचे समय में
 कविता लिखते थे  , दुसरे धूमिल जी थे आई टी आई में लोहारी सिखाते थे और खाले समय में कविता . तीसरा यह खादिम रहा जो शहर के खौफ में खडा मुह बाए हर हरकत को देख भर रहा था और
चित्रकारी सीख रहा था , इसी अड़ी पर पहली दफा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जेरे बहस हुए और हमने जाना कि कोर्स की किताबों से अलहदा भी कई लोग हैं जो कविता , लेख , कहानी , निवंध या व्यंग
लिख कर शख्सियत के मालिक हैं . एक सांझ जब हम अड़ी पर बैठे हजारी चाय की दूकान पर ,कविता के उधेड़ बन पर खींच तान कर रहे थे तो अचानक हमने एक प्रस्ताव रख दिया /क्यों न कविता को लेकर
एक चित्र प्रदर्शनी की जाय . धूमिल जी संजीदा हो गये लेकिन नीरव जी जोर से उछले - कमाल का गुरु ! शुरू हो जा . धर्मवीर भारती , विजयदेव नारायण शाही , सर्वेशाव्र दयाल सक्सेना , जगदीश गुप्त धूमिल
और नरेंद्र नीरव की कविता पर हमने पहली कविता पोस्टर प्रदर्शनी लगाई . मन हुचुर हुचुर कर रहा था की कहीं अदालती कार्यवाही न हो जाय क्यों की जिन कवियों की कविता हमने सजाई थी ,उनकी इजाजत
तो दूर की बात रही , उन्हें सूचित तक नही किया गया था . किसी तरह प्रदशनी ख़त्म हुयी और हम भूल गये . एक हफ्ते बाद ' दिनमान ' का एक पूरा पन्ना हमारी प्रदर्शनी से भरा मिला .लेखक की जगह
लिखा था . स द स . . यह रही सर्वेश्वर जी से पहली मुलाक़ात बगैर चेहरा देखे . ब हैसियत चित्रकार  के  हम ताड़ पर चढ़ गये . रचना के दो विधाओं के मिलन पर सर्वेश्वर जी की सोच और प्रस्तुति अद्भुत थी .
उस दिन से हम दोनों के बीच एक रिश्ता बना और आखीर तक कायम रहा . हम पंडित जी हो गये और वे भाई साहब .
      ८२ में हमने बनारस छोड़ा और दिल्ली चले गये . इन दस सालों में हम कलम और ब्रश के सहारे स्वावलंबी होने लगे थे . धर्मयुग , सारिका . दिनमान , पराग , हिन्दुस्तान , कादम्बनी में छपने लगे थे .
बहुत दिनों तक हम जार्ज  साहब के साथ उनके घर पर रहे . एक दिन सर्वेश्वर जी कहा रुको तुम्हारे लिए एक सस्ता सा मकान किराए पर इंतजाम करता हूँ . ह जिम्मेवारी उन्होंने अपनी दोनों बेटिओं को
सौंप दी . बंगाली मार्केट के बगल रेल लाइन के उस पार महावत खां रोड पर रेलवे कालोनी के एक मकान में एक कमरा किराए पर ले लिया .सुबह शाम बे नागा सर्वेश्वर जी से मुलाकात होती .
एक दिन दिल्ली के बारे में हमे समझाने लगे . -देखो पंडित ! यह दिल्ली है , इसकी अपनी कोइ तमीज नही है , इसके पास अपनी कोइ रवायत नही है , यहाँ कोइ दिल्ली का बासिन्दा नही है , यहाँ जो भी
मुछ पर ताव दिए घूमते मिलेंगे , सब अपनी जड़ों से उखड कर यहाँ आ गिरे हैं कोइ उत्तर प्रदेश से है तो कोइ बिहार या राजस्थान से गरज यह की यहाँ पाकिस्तान से चलकर आये हुए लोग हैं
तुम इनकी नकल मत करना , न भेष भूषा में न ही भोजन में , जिस गाँव से आये हो उसे यहाँ ज़िंदा रखना .होटल का खाना तो कटती नही खाना . खुद बनाओ , खुद खाओ . दुसरे दिन दफ्तर से लौटते हुए
एक डिब्बा लहसन का अचार लेते आये . साथ में लंबा सा प्रवचन जो लहसन के अचार को चावल के साथ खाने के बारे में था . दिल्ली छूटा लेकिन सर्वेश्वर जी की दी हुयी सीख अभी साथ में है . हम बाजार
की कोइ भी चीज कत्तई नही खा पाते . 'खूंटियों पर टंगे लोग 'सर्वेश्वर जी की अद्भुत कृति है . भाषा और कर्म के बीच कम से कम तर दूरी पर चलना सर्वेश्वर जी की जीवन यात्रा है .
   एक दिन अल सुबह दफ्तर जाते समय सर्वेश्वर जी आये और बोले - पंडित जी ! आज टाइम्स दफ्तर में जाकर पर्सनल डिपार्टमेंट में एक लड़का है रवि , उससे मिल लेना . हमने कुछ जानना चाहा तो रोक दिए
बोले - बस जो कह  रहा हूँ . हम  टाइम्स हाउस गये . रवि से मिले . उसने कहा बैठिये आज आपका इंटरवियु है . हम चौंके . किस बात का ? उसने कहा हमे कुछ नही मालुम साधे ग्यारह पर आपको ऊपर
जी यम के कमरे में जाना है . कह कर रवि ने एक फ़ार्म हमे दिया की इसे भर दीजिये . हमने सब पूरा क्र दिया . उसमे एक कालम था , अनुमानित वेतनमान . हमने उस जगह पर छः हजार लिख दिया
 वक्त पर हम पहुंचे . वहाँ कुल चार लोग बैठे थे . पहली बहस तो तान्खाह पर ही हो गयी .  किसी ने कहा इतनी तो सम्पादक को नही मिलती . हमने कहा - इससे ज्यादा तो हम टाइम्स हाउस से ही ले लेते हैं
फ्रीलांसिंग कर के . अचानक एक साहब तने और बोले अपनी डिग्री दिखाइये . हमारे पास ओ कुछ था ही नही . इतने में जी यम   रमेश चन्द्र जैन मुस्कुराए बोले लाल साहब ! ये विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट भी रहे हैं
कहकर रमेश जी फोन उठा लिया और सर्वेश्वर जी से बोले - ये तो तैयार ही नही हो रहे हैं . कह कर रमेश जी ने फोन हमारी तरफ बढ़ा दिया . सर्वेश्वर जी ने अधिकार के साथ कहा कि
 पंडित जी ! हामी भर दो . जहां कहें दस्तखत करके चले आइये . और हम मुलाजिम हो गये . उस दिन सर्वेश्वर जी अपनी एक कविता सुनायी - ' इब्ने बतूता , पहन के जूता ' 'सर्वेषर जी बच्चों के लिए
लिखते ही नही थे . ताउम्र उनका बचपन उनके साथ रहा .
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अज्ञेय जी और सर्वेश्वर  जी रिश्ते /
सर्वेश्वर जी ' पराग ' का अम्पादन कर रहे थे , क अंक में अज्ञेय जी की एक छोटी से कविता प्रकाशित हुयी .लक्ष्मी चाँद गुप्त उप सम्पादक थे . वही पारिश्रमिक लगाते थे . अज्ञेय जी को क्या पारिश्रमिक लगे
इस सवाल को हल करने के लिए गुप्त जी सर्वेश्वर जी के पास गये . सर्वेश्वर जी मुस्कुराए . स्केल निकाले . कविता नापे और गुप्त जी बोले दो रूपये सैतीस पैसा . गुप्त जी भौंचक .सर्वेश्वर जी ने गुप्त जी को
कहा इतना ही होगा , लीजिये आप नाप लीजिये . दो रूपये सैतीस पैसे का  पेमेंट बन गया . एक दिन बंगाली मार्केट में जहां सर्वेश्वर जी रहते थे हम दोनों बैठे  थे . इतने में अज्ञेय जी आ गये . आते ही
सर्वेश्वर जी ने अज्ञेय जी से पूछा - कविता का पेमेंट मिल गया ? ठीक तो था ? अज्ञेय जी मुस्कुराए बोले - पेमेंट गलत बना था , तीन पैसे ज्यादा दिए हो .हमने नाप कर देख लिया है .और जोर का ठहाका लगा .
एक परम्परा खुल कर विस्तार में चली गयी .दिनमान में जब अज्ञेय जी सम्पादक थे तो नापकर भुगतान करने की परम्परा अज्ञेय जी ने इ शुरू की थी .

       

Friday, February 19, 2016

chanchal: चिखुरी / चंचलपढ़ोगे -लिखोगे , होगे खराब----------...

chanchal: चिखुरी / चंचल
पढ़ोगे -लिखोगे , होगे खराब
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: चिखुरी / चंचल पढ़ोगे -लिखोगे , होगे खराब -------------------------------------------------------------------------------------------------...
चिखुरी / चंचल
पढ़ोगे -लिखोगे , होगे खराब
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       - ई जनेऊ का बवाल का है , फलाने ? लखन कहार के सवाल पर नवल उपाधिया को हंसी आ गयी . जनेऊ ? जनेऊ के बारे में कीन उपधिया को ज्यादा जानकारी होगी , क्यों कि वे इसके घोर समर्थक हैं , दिन में जितनी बार भी उन्हें लघु शंका सताती है , उतनी बार ये इसे बंदी में हाथ डाल कर निकालते हैं और कान को पकड़ कर बांध देते हैं फिर लघुशंका कर्ण भागते हैं . क्यों भाई  कीन सही कहा न ? कीन मुस्कुराए , वे जानते हैं ये जितने भी गैर संघी हैं सब के सब किसी न किसी बात पर हम्मे लापेंटँगें ही , चुनांचे इनसे बच के ही रहना चाहिए . लाल साहेब जो अब तक भट्ठी सुलगा रहे थे ,ने नया जुमला फेंका - लघुशंका मतलब यही न ? कहते हुए उन्होंने दाहिने हाथ की कँगुरिया खड़ी कर दी . नवल ने तस्दीक कर दिया , हाँ वही भाई जो हम लोग बचपन में स्कूल मास्टर को दिखा कर , भाग जाते थे झाडी की तरफ . लाल साहेब ने अब दुसरा सवाल ठोंका - एक बात बताओ गुरु ! कान क्यों बाधते हो ? कि इधर से न निकल जाय ? कीन गुस्सा हो गए - ये तो हद्द है , किसी का मजाक ऐसे उडाया जाता है ? यह हमारा धर्म है . हिंदू धर्म . भिखई मास्टर ने सवाल को ऐसा टेढ़ा किया कि उसका जवाब कीन के पास नहीं था - मत्लाब्जो जनेऊ न पहने वह हिंदू नहीं है ? मद्दू पत्रकार को मौक़ा मिल गया - ये अज्ञानी है , कीन . इसे माफ कर दो भाई , किसी जमाने जब समाजवादियों ने जनेऊ तोडो आंदोलन शुरू किया तो , ये हाफ पैत्वालों ने जम्मू की एक सभा में जे पी पर हमला कर दिया था . चिख्री जो अब तक अखबार में उलझे थे उन्हें कोइ आहत मिली - ये अचानक जनेऊ कहाँ से आ गया ? मामले को सम्भाला लखन कहार ने - आप तो जानते ही हैं दादा ! जिस दिन से आपने कहा कि अखबार बिक गए हैं , हमने पढ़ना और टीवी देखना दोनों ही बंद कर दिया ,लेकिन ससुरा मन नहीं मानता. बिल्लुआ से पूछ लेटा हूँ , वह जो बता देता है वही समझ लेता  हूँ . आज दो दिन से वह एक ही बात बोल रहा है - जनेऊ का बवाल . कयूम मियाँ चौंके - जनेऊ का बवाल ? मद्दू पत्रकार ने ठहाका लगाया . जे बात ! भाई वो जनेऊ नहीं है , जे यन यू है . जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी .
 इस्स्स ! कह कर लखन कहार ने गर्दन झुका  ली . बस इतना सुनना था कि , कीन उपाधिया पार्टी लाइन पर आ गए - बवाल नहीं जे सब सच है , वहाँ राष्ट्रद्रोही रहते हैं , भारत माता के खिलाफ नारे लगाते हैं , पाकिस्तान जिन्दावाद बोलते हैं , पाकिस्तान के झंडे फहराते हैं , इन्हें तो गोली मार देनी चाहिए . नवल भड़क गए - कौनो पनही ना पहने अहे रे , मार तो चार पनही उही मुह पे , के कहत रहा बे कि हुआँ इ सब होता है ? मद्दू पत्रकार ने रोका - रुको , शान्ति , शांत ... असल बात जे है कि उस विश्वविद्यालय में ज्यादा तर छात्र और अध्यापक कम्युनिस्ट विचार के हैं . यह बात संघी घराने को कत्तई नहीं पसंद है . तो जब सरकार में आ गए तो लगे उसके खिलाफ  षड्यंत्र करने . इसके लिए अपने ही लोगों से देश बिरोधी नारे लगवाए और नाम डाल दिये छात्र संघ अध्यक्ष कन्हया कुमार का .और लगे हाथ गिरफ्तार भी कर लिए . इतना ही नहीं घर मंत्री ने ताबक तोड़ हाहिज सईद के समर्थन का भी ऐलान कर दिये .
- कयूम मियाँ ने पूछा - ये हाफिज कौन है भाई ?
यह दुनिया का माना हुआ आतंकी है , इसके बारे में अपने घर्मंत्री ने बोल दिया कि इसने विश्वविद्यालय के अलगाववादी ताकतों का समर्थन किया ,जो कि गलत साबित हुआ . इस तरह तो अपनी सरकार चल रही है . और जेल में जलालत झेल रहा एक बेगुनाह कन्हैया कुमार .
- ये कन्हैया कुमार क्या है ?
- कन्हैया कुमार की कई गलतिया हैं . एक - कन्हैया कुमार बिहार का है . उसी बिहार का जिस बिहार ने अभी हाल के चुनाव में सरकारी पार्टी को घर का रास्ता दिख दिया था . सरकार को लगा कि बिहार डिल्ली में आकर मुह चिढा रहा है . दो - कन्हैया जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष बना , और यह बिश्व्विद्यालय खुदा न  खास्ता डिल्ली में है , बिहार या उत्तर प्रदेश में होता तो कोइ बात नहीं लेकिन दिल्ले में आकर चुनौती देगा ? तीन - कन्हैया कम्युनिस्ट भी निकला . कम्युनिस्ट नाम सुनते ही संघ का खून खुल जाता है . इन तीन खामियों के अलावा और भी कई बाते हैं जो इन्हें नहीं पचती . चुनांचे सरकार को पूरा हक है कि जो उससे सहमत न हो उसे उसकी मरम्मत कर दे . कन्हैया को इसी फेर में फंसा कर
तीनो सजा दी जाय . एक - जेल , दो - यातना . तीन अपने लोगों को खुली छूट कि उसे अदालत के सामने शारीरिक धुलाई की जाय . और वही हुआ .
नतीजा का रहा ? लखन कहार का जवाब दे रहे हैं चिखुरी . - होना क्या था , सब खेल उजागर हो गया , नारा लगानेवाले संघी , पुलिस में शिकायत करनेवाले संघी , गिरफ्तारी करने वाली पुलिस संघ की मेहर . अब कह रही है गलती हो गयी . घर मंत्री की एजेंसी कह रही है कन्हैया निर्दोष है . सारा देश कुनमुना गया . आज कन्हैया के लिए देश के सबसे बड़े वकील सोली सोराब जी वकालत करने को तैयार हैं .
नवल ने सवाल उठाया - तो ये लोग ऐसा करते क्यों हैं  ?
- माहौल बिगड़े , तनाव बढे , अभी बीजा पुर में संघ के छ लड़के पकडे गए हैं जिन्होंने पाकिस्तानी झंडा , तहसील की इमारत पर चुपचाप लटका आये थे . पकडे गए हैं . इसका जवाब देश की सरकार नहीं दे पा रही है . यह हैः गुजरात माडल .
- हूँ . तो ये है गुजरात माडल ? कहके नवल ने कीन की ओर देखा और फगुआ गाते हुए आगे निकल गए -
   

Monday, February 8, 2016

बतकही / चंचल
पैसा फेंको ,तमाशा देखो
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               'इ भाई बिहार तो कमाल की जगह है , पता नहीं यहाँ की पानी में का सिफत है कि जहां भी हाथ डालेगा ,कुछ न कुछ ' डैमेज ' करके ही छोडेगा . ...कीन अभी शुरू ही हुए थे कि उमर दरजी ने टोक दिया - क्या डैमेज हुआ , उपाध्याय जी ? कीन पलटे , मन ही मन बुदबुदाए ,कीन जानते हैं कि ,उमर जब भी बे वजह अतिरिक्त इज्जत देता है ,तो इसके मतलब उसमे कुछ बदमाशी जरूर है . और ऐसेमे जब से कीन परधानी हारे हैं ,उमार चोट करने से बाज नहीं आता . जिस दिन नतीजा घोषित हुआ , सब को मालुम हो गया कि कौन जीता है कौन हारा है ? लेकिन दूसरे दिन सुबह लाल्साहेब की दूकान पर जहां परधानी के सारे उम्मीदवार एक जगह एक साठ बैठे मिले वहाँ भी उमर दरजी का मुर्हप्पन कम नहीं हुआ . नतीजा जानते हुए कि कीन उपाधिया चुनाव हार गए हैं ,  उमर ने तपाक से कीन को गले लगाया और काफी देर तक चिपका खड़ा रहा - गुरु बधाई !हम माला फूल लाना भूल ही गए ,  इस नतीजे ने तो पुरे गाँव को बचा लिया... वरना कोइ ताकत नहीं कि इस गाँव को डूबने से कोइ रोक पाता .... बहुत अच्छा हुआ .. जो होता है ,अच्छा ही होता है . शपथ कब होगा भाई उपाधय जी ?
          कीन को करेंट लगा . समझ गए कि उमर कहाँ चोट कर रहा है . तुरत अपने को अलग किये , गमछे से मुह पोछे , और लोंगों के मुस्कुराते चेहरे को देखे और चुपचाप बैठ गए ये कहते हुए कि - हम सब जानते हैं उमर , ...... वो नहीं हैं ... .लाल साहेब ने चटकी काटा .- ये किसने कहा कि आप ओ नहीं हैं .. ? आप ओ न  होते तो चुनाव कैसे लड़ते . ई का हो रहा बा भाई ! इहाँ कीन हार गए , डिल्ली में हारे , बिहार ने पतली गली से निकल जाने का रास्ता दिखा ही दिया . सुना है गुरात में लोकल बाड़ी के चुनाव में भी मुह के बल पटखनी खा चुके हैं ,यह हाल है गुजरात माडल का ? अब सुना है कोइ कीर्ती आजाद हैं , उन्होंने बता दिया कि डिल्ली क्रिकेट बोर्ड में बहुत लंबा घपला हुआ है कई सौ करोड डकारे गए हैं ? भिखई मास्टर जो अबतक अखबार देख रहे थे ,उसे सामनेवाले को देते हुए बोले - आज अखबार में है उन्हें पार्टी से निष्काषित कर दिया गया है . निकाल दिया ? लखन कहार ने खैनी मलते हुए , मुस्कुराए - का का बताए भाई ? बहुत कुछ बताए ,अब बारी मद्दू पत्रकार की थी - ठेका दिया गया , निर्माण कार्य का . जितने में दिया गया उससे दुगना बढ़ा दिया गया , खरीद फरोख्त में घपला और तो और बीस हजार में मिलनेवाले कम्प्यूटर को सोलह हजार रूपये प्रतिदिन के हिसाब से किराए पर लिया गया . इसी को कीर्ती आजाद ने सबके सामने बोल दिया .
          - तो इसके लिए पार्टी क्यों बौखला गयी ? उन्होंने ये तो कहा नहीं कि पार्टी ने चोरी की है ,तो पार्टी से क्यों निकाला ?कोलाई डूबे का वाजिब सवाल रहा . चिखुरी मुस्कुराए . - हुआ यूँ है कि जिस समय ये घपले हुए उसके सर्वे-सर्वा अपने अरुण जेटली रहे , चोट सीधे अरुण जेटली को लगी ,अरुण जेटली के पास कोइ जवाब तो रहा नहीं ,चुनांचे एक ही रास्ता बचा रहा कि उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाय . उमर दरजी मुस्कुराए - तो एक विकेट और गिरा ?
   अभी देखते जाओ कितने और छटके गें . ये सरकार ही नाबालिगों की फ़ौज लगती है जिसने तोप का मुह अपनी तरफ कर रखा है और कह रहे हैं दुश्मनों को सफा करके ही दम लेंगे .
कीन से नहीं रहा गया ,अपनी हार भूल गए ,लगे अपने सरकार की तरफ से बोलने - यह सब कांग्रेस का खेल है . आप कीर्ती आजाद को नहीं जानते ? लेकिन उमर से नहीं रहा गया - कीन ! ऐसा बोल रहे हो जैसे कीर्ती आजाद नहीं भये , सनलाईट साबुन हो गए है ? मजाक नहीं , सुनो जो बोल रहा हूँ , कीर्ती आजाद  कांग्रेस के रहे भागवत आजाद उनके लड़के हैं ,वह खून का असर तो जायगा नहीं और फिर बिहारी . कोलाई डूबे ने टोका - इसमें बिहारी का मतलब ? कीन संजीदा हो गए - बिहार ने कम किया है , देश दुनिया में भाजपा की ऐसी की तैसी करके रख दी . पहले यशवंत सिन्हा फिर शत्रुघ्न सिन्हा , अब कीर्ती आजाद . एक एक करके सब पैतरा बदल रहे हैं .और यह सब कांग्रेस के इशारे पर हो रहा है .   चिखुरी जोर का ठहाका लगाए - सुन कीन ये सही है ये तीनो ही संघी नहीं हैं . मूलतः ये ये दिल और दिमाग से बड़े लोग हैं संघ की मजबूरी थी कि समाज में चेहरा दिखाने के लिए कुछ ऐसे चमकदार और समझदार लोगों लोंगों को भाजपा में लाया जाय . यशवंत सिन्हा चंद्रशेखर के साथी हैं , शत्रुघ्न जे पी से प्रभावित रहे हैं , कीर्ती आजाद का सुन ही रहे हो . तुम्हारे पास जो अपने लोग हैं उनके बारे में मुह मत खुलवाओ . कोइ किसी से कम नहीं . इत्ते में नवल उपाधिया नयी खबर लेकर नमूदार हुए - कुछ सुना पंचो ! देश के खनन मंत्री ने क्या खोदा ? एक गाड़ी होती है फार्चून . बीस लाख के ऊपर की है . वह खरीदी गयी थी उड़ीसा के जंगलों को देखने के लिए , उसेमंत्री जी लेकर घूम रहे हैं डिल्ली में ...... गोलमाल .. गोलमाल है सब गोलमाल है ... रुके नहीं , गाते हुए आगे बढ़ गए .... 

chanchal: चिखुरी / चंचलचलो झूठ बोला जाय ,'अमी तोमा के भालोब...

chanchal: चिखुरी / चंचल
चलो झूठ बोला जाय ,'अमी तोमा के भालोब...
: चिखुरी / चंचल चलो झूठ बोला जाय ,'अमी तोमा के भालोबासी -------------------------------------------------------------------------------...
चिखुरी / चंचल
चलो झूठ बोला जाय ,'अमी तोमा के भालोबासी
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...'राजनीति का होती है , इस सवाल को जड़ी कोइ हल करदे तो हम उसे पाइथागोरस से भी बड़ा बिद्वान मान लेंगे . नवल उपाधिया जब भी ऐसा सवाल पूछते हैं तो पूछ कर त्रिभंगी मुद्रा में हो जाते हैं ,गर्दन बायीं तरफ झुक जाती है , कमर दाहिनी तरफ और दोनों पैर एक दुआसरे के साथ कैंची मार लेते है .आँख सिकुड़ जाती है मुह ऊपर से नीचे की तरफ चिपक जाता है और भरपूर ढंग से कान तक बढ़ जाता है थिल वैसे लगता है जैसे सावन में सूखा पड़े से जमीन में दरार . सवाल सदन में है ,उस पर लोग सोचें , इधर नवल व्यस्त है खैनी मलने में . मद्दू पत्रकार को नवल की यह ' हरकत ' कत्तई नहीं पसंद है .नवल का इस तरह तीन टेढ़े का टेढ़ होना नहीं , न ही उसका मुह बनाना , मुह उसका है कमबख्त जैसा चाहे बनाए हमसे का लेना , लेकिन उसका इस तरह से खैनी बनाना ? उफ़ ! देखिये न कितना वीभत्स लगता है , पूरा लुच्चा लगता है बायीं मुठ्ठी में गदोरी पर खैनी और चूना रख कर मुत्थ्थी बंद करके उसमे अंगूठे के बगल वाली बड़ी उंगली दाल कर ऐसे रगड़ता है कि ... ' आपकी खैनी बन गयी हो तो उसे उंगली समेत मुह में डाल लीजिए और बैठ जाइए ' नवल जानते हैं ,मद्दू जब आप जोड़ कर किसी से बात करते हैं तो उसका मतलब क्या होता है . नवल ने फिस्स से हंस दिया .कयूम मियाँ डीएम साढ़े बैठे थे , जुम्बिश हुयी - बरखुरदार ! आपका सवाल है तो बहुत माकूल . पर पेचिंदा भी है .उमर दरजी ने बीच में ही रोका - ई पेठा गोरस है , कि पेठा गोरख है ? कीन उपधिया को मौक़ा मिल गया - जाहिल के जाहिल ही रहोगे , आठवीं ने नहीं पढ़ा था त्रिभुज के तीनो कोणों का योग दो समकोण के बराबर होता है . ? इसे कहते हैं पैथ्गोरस का सिद्धांत . लेकिन तुम्हे इससे का लेना देना , कैंची चलाओ और सुथने की मियानी बनाओ . उमर की आँख गोल हो गयी - अहिये अब हाफ पैंट ठीक कराये , उमर अभी कुछ और बोलते तब तक लखन कहार ने पूछ लिया - राजनीति पर बात शुरू हुयी थी ,,,, भिखई मास्टर ने अखबार रख दिया - यह एक कुटीर उद्योग है , जो घर घर में चलता है इसे झूठ , प्रपंच , लफ्फाजी , लालच से चलाया जाता है , जिससे एक काठ की कुर्सी निकलती है पर उसको आम भाषा में ओहदा बोला समझा जाता है , इस कुर्सी में एक छेद होता है , कुर्सी को जितना बेहुर्मत करोगे छेद से उतना ही पैसा गिरेगा . पहले इसे भर्ष्टाचार माना जाता रहा लेकिन अब यह रसूख है और रवायत है .चिखुरी बड़े गौर से भिखई मास्टर को सुनते रहे . भिखई मास्टर समझ गए कि अब चुप हो जाना चाहिए , और चुप हो गए .
            भिख्यी मास्टर ने जो कुछ भी कहा उसे सबने अपने अपने खांचे के हिसाब से नापना शुरू कर दिया . लखन कहार ने गाँव के परधान को सामने रख कर मन ही मन छीलने लगे . मनरेगा . सरकार की कितनी बड़ी सोच . गंवई मजदूर , बेरोजगार मजूर , सब को उनके अपने गाँव में रोजगार मिले . शहर की तरफ हो रहे पलायन को रोका जाय . बैंक में खाता कहने एक दिन में दस करोड़ लोग इस योजना से जुड़े . लेकिन हो क्या रहा है , परधान जी के रोजनामचे में ऐसे ऐसे लोग दर्ज हुए जिन्होंने कभी फावड़ा को छुआ तक नहीं है. वो बैठे दूकान चला रहे हैं , सब्जी बर्च रहे हैं , तहसील में राजनीति करने जाते हैं . किसी काम के नहीं है सब कार्ड धारक हो गए. उनके नाम पर रोजगार गारंटी के नामपर सरकार भुगतान कर रही है खाते से पैसा निकल रहा है , सौ रूपये कार्ड धारक को सोलह सौ परधान के खीसे में . खुश दोनों है - घर बैठे एक दस्तखत से अगर आपको सौ , दो सौ मिल जाय तो हर्ज का है ? लम्मरदार के घर से मुख्य सड़क तक तीन तीनबार सड़क बनती है . लाखों का बजट .खानेवाले भी तो कम नहीं , परधान है , सचिव है इंजीनियर है जो सड़क पास कर्त्या है . फिर कागद तो ब्लोक अधिकारी ही आगे बढ़ाएगा न , सब का हिस्सा बंधा हुआ है कितना साफ़ सुथरा बँटवारा होता है किसी को कोइ टेंशन नहीं .राहीव गांधी ने सही कहा था केन्द्र दस रुपया भजेगा तो गाँव तक पहुँचते पहुँचते आठ आना हो जाता है . सब जगह यही हाल है . लूट हमारी राष्ट्रीय मान्यता में दर्ज हो गयी है . गाँव प्रधान से शुरू होता है ऊपर ऊँची कुर्सी तक बढ़ता चला जाता है . और बड़ी बेहयाई के साथ . तर्क सुन लीजिए - ऊपर भी तो यही हो रहा है ' भइये ये सब राजनीति में है .
      चाय की भट्ठी सुलग चुकी है इसलिए लाल साहेब भी अब खाली हैं बोलने के लिए - एक बात बताया जाय , क्या बगैर ओहदे के राजनीति नहीं हो सकती , ? यस सवाल और भी टेढ़ा होकर सामने आया . चुनांचे सदन में सन्नाटा छा गया , चिखुरी मुस्कुराए . - होती थी , कारगर तरीके से होती थी अब उसका रिवाज खत्म हो गया . वह पुरुषार्थ की राजनीति थी आज जो राजनीति चल रही है यह अनुदान की राजनीति है , बगैर ओहदे की राजनीति करनेवाले आज भी चमक रहे हैं . इतिहास में वही मिलेंगे . मोहन दास करमचंद गांधी . जे पी . लोहिया , आचार्य नरेंद्र देव और भी बहुत से नाम हैं . इनकी हर बात पर जनता भरोसा रखती थी .क्यों कि इनकी बात जन हिट की होती थी . इसमें नेता का अपना कोइ स्वार्थ नहीं रहता था . और आज देखो हर कदम पर झूठ , फरेब , ओट के लिए कुछ भी कह सकते हैं ,और बाद में उसी गति मुकर भी जाते हैं बड़ी बेशर्मी के साथ और कहेंगे यह तो ' जुमला ' था . देखना इसी बंगाल में आएगा मदारी . लाव लस्कर के साथ . बा बुलंद आवाज में बोलेगा - की रे की खबोर . आमी तोमार बंधू , तुमी आमार मीत , आमी तोमार के भालोबासी . बउ डी कोहनी से झुम्पा को झाक्झोरेगी - देखून ! की बालो मानुष . लेकिन अब नहीं चलेगा . चोलबे ना . नवल को याद आया गेहूं के खेत में पानी खोल कर आये हैं . भागे . गाते गाते - जदी केऊ डाक सुने ना तोर , एकलएकला चलो ..

Wednesday, February 3, 2016

राज नारायण /चंचल
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राज नारायण , नेता जी , लोकबन्धु सब एक ही शख्सियत का बयान है . जवान होते ही भिड पड़े अंगेजी हुकूमत से .महात्मा गांधी  ने एक सबक पढ़ा दियाकि किसीपर हाथ मत उठाना , ताउम्र उसका निर्वहन करते रहे , अगर कहीं ज्यादा जरूरत पडी तो  कुहनी से दबा देते थे , या फिर कुबरी जिसके सहारे चलते थे उसे सामने वाले के मुह की तरफ ऐसा लगाते थे जैसे वह बांस का डंडा न होकर बोफोर्स की नली हो . और बापू को लगेहाथ याद भी कर लेते थे ' जाओ , बापू ने कसम दिलाया है कि हाथ मत उठाना .... नहीं तो / राम बचन पांडे जैसा कोई खांटी समाजवादी मिल जाता तो चुनौती भी मिल जाती थी -नहीं तो क्या कर लेते ? और नेता जी फिस्स से हंस देते . गरज यह कि नेता जी एक अहिंसक सिपाही थे . राजनीति में थे , चुनाव लड़ते थे . उत्तर प्रदेश की विधान सभा में नेता समाजवादी रहे . प्रवेश करते थे अपने पैरों से निकलते थे मार्शल के मार्फ़त . लेकिन कब तक , चुनांचे लखनऊ छोड़ कर जब डिल्ली की तरफ रुख किये तो लगे देश को हिलाने . दुनिया की सियासत में इस तरह का कोइ दूसरी नहीं मिलेगा जिस मुकाम को नेता जी ने बनाया . खुद डेढ़ चुनाव जीते लेकिन तीन तीन प्रधान मन्त्रीको उनकी कुर्सी से बे दखल किया . श्रीमती इंदिरा गांधी , मोरारजी रणछोंड जी भाई देसाई , और चौधरी चरण सिंह . इसे सीधा कर दिया जाय तो ऐसा भी कहा जा सकता है कि कुल डेढ़ चुनाव जीतने वाले नेता जी ने तीन प्रधान मंत्री ही नहीं एक राष्ट्रपति भी बनाया . राय बरेली से श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ और हार गए . इस चुनाव को उन्होंने न्यायालय में पहुचाया और श्रीमती गांधी का चुनाव रद्द हो गया . देश में आपात काल लगने के जो कई कारण थे ,उसमे एक कारण राजनारायण भी रहे . आपातकाल के बाद जब चुनाव की घोषणा हुयी तो नेता जी सीधे रायबरेली पहुंचे और चुनाव में श्रीमती गांधी को हरा कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किये . जनता पात्री बहुमत से आयी लेकिन प्रधानमंत्री के कई दावेदार रहे , चौधरी चरण सिंह , जगजीवन राम और मोरार जी भाई . नेता जी ने यहाँ भी एक खेल खेला . समाजवादी पार्टी बाबू जगजीवन राम के पक्ष में थी लेकिन संघ और कांग्रेस ओ नहीं चाहते थे कि राम को प्राइम मिनिस्टर बनाया जाय . नेता जी उन दिनों चरण सिंह के साथ थे , एक नया फार्मूला निकाले कि मोरारजी भाई को प्रधान मंत्री बनाया जाय चौधरी चरण को गृह मंत्री और बाकी मुख्य विभाग संघ को सौंप दिया जाय , साथ ही यह भी तय हो गया कि आगामी विधान सभाओं के चुनाव के बाद हिन्दी पत्ती के जो छ राज्य हैं जहां जनता पार्टी का आना तय है उसमे तीन चरण सिंह को और तीन संघ संघ को सौंप दिया जाय . और यही हुआ . इस कहानी से सब वाकिफ हैं . अब दूसरा हिस्सा सुनिए जो शोध का विषय है -
       राजनारायण ने मोरार जी भाई की सरकार क्यों गिराई ?
कुछ लोंगो ने नेता जी पर यह आरोप लगाने की कोशिश किया है कि नेता जी और संजय गांधी के बीच कुछ समझौता हुआ था . लेकिन यह सरासर गलत है . नेता जी पैसे के लोभीकभी नहीं रहे वे आजीवन सत्ता, संपत्ति और संतति से दूर रहे . जमींदार परिवार से ताल्लुकात रखनेवाले नेता जी ने समाजवादी राजनीति अपनाते ही सबसे पहले अपनी सैकडो बीघा जमीन हरिजनों को बाँट दिया  था . नेता जी का खेल दूसरी जगह से चल रहा था . अब उस हिस्से को देखिये जब जनतापार्टी से सांसद शपथ ग्रहण कर रहे थे , उस एन वक्त पर जे पी इंदिरागांधी के घर पर थे . जे पी के साथ कुमार प्रशांत जी भी थे . जे पी को देखते ही श्रीमती इंदिरा गांधी जे को पकड़ कर उनके कंधे पर सिर रख दिया और रोने लगी . जे पी भी अपने को नहीं रोक पाए दोनों लोग रोते रहे , फिर जे पी ने कहा था - घबड़ाओ मत इंदु सब ठीक होगा . क्या नेता राजनारायण इसी ' सब ठीक होगा ' के तहत काम तो नहीं कर रहे थे ? दो एक बार और पीछे चलिए . जे पी ने आंदोलन को जेल तक क्यों पहुचाया ? डॉ लोहिया अस्पताल में थे उनकी देख रेख में जे पी और उनकी पत्नी अस्पताल में ही रहते थे . श्री मती गांधी प्रधान मंत्री थी और बगैर नागा सुबह शाम डॉ लोहिया को देखने जाती थी . एक दिन डॉ लोहिया ने प्रभावती से कहा - जे पी को कहना कि अगर इतिहास में ज़िंदा रहना है तो एक बार जेल चला जाय . एक तरह से डॉ लोहिया समाजवादी आंदोलन की कमान जे पी को सौंप रहे थे . और वही हुआ . यहाँ यह भी मान लेना चाहिए कि कांग्रेस और समाजवादी आंदोलन के बीच तमाम आंदोलनों और लड़ाइयों के बावजूद खटास कभी नहीं रही , और समाजवादी कभी भी नहीं चाहते रहे कि कांग्रेस सत्ता से बाहर जाय , लेकि वह एकाधिकार की तरफ भी न जाय . यही कारण है कि जब ज्ब्कान्ग्रेस एकाधिकार वाद्की तरफ बढ़ी है उसकी नक्लेल समाजवादी आन्दोलन ने ही पकड़ी है . समाजवादी आंदोलन कांग्रेस का परिमार्जन करती रही है . इसका अंदरूनी हिसा भी खोला जा सकता है   आजादी के बाद , सरदार पटेल की मृत्यु के बाद पंडित नेहरु कांग्रेस संगठन को ही समाजवादियों के हाथ सौपना चाहते थे लेकिन उनके सामने दो बड़ी दिक्कतें थी , एक संगठन पर पतेल्वादियों की पकड़ और दूसरा उनका अपने कार्यकाल में कांग्रेस का टूटना , नहीं देखना चाहते थे . कालान्तर में उनकी बेटी श्री मती इंदिरा गांधी ने वह जोखिम उठाया और पार्टी ने उन्हें कांग्रेस से बाहर निकाल दिया . उनके साथ बाहर निकलनेवाले पांचो ही समाजवादी थे जिन्हें युवा तुर्क के नाम से जाना गया . इसमें चंद्रशेखर , मोहन धारिया , रामधन , कृष्ण कान्त और अर्जुन अरोड़ा  थे . तो जब मोरार जी भाई प्रधान मंत्री बने समाजवादी एक बार फिर यथास्थित वादियों जिसमे मोमोरार जी भाई , नीलम संजीव रेड्डी , यस के पाटिल निजलिंगप्पा आदि आदि रहे के खिलाफ लामबंद होने लगे और उन्हें याद आया , इन्हें सब के दबाव के चलते तो समाजवादी कांग्रेस से बाहर आये थे . उन्हें स्थापित होते कब देख सकते थे ये समाजवादी . ?यह रहा नेता का इतिहास जो देश  का भी इतिहास है . 

Tuesday, February 2, 2016

चिखुरी / चंचल
ह्त्या अपराध नहीं है , चुनाव सामग्री है .
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    '........ हम कहाँ से चले थे , कहाना जाना था , अचानक एक मोड़ आया और हम इंसान की बुनियादी पहचान से ही कन्नी काटने लगे . हमारी आजादी की नीव में सत्य है और अहिंसा है . दुनिया का शायद ही कोइ निजाम होगा जो बेहतर  हुकूमत के साथ एक शांतप्रिय समाज का भी ढांचा बुनते चले थे ,लेकिन अचानक एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़े हो गए जहां काठ की अल्पजीवी कुर्सी के लिए बहुत सारे जरायम पेशे में लग गए और बेशर्मी की हद तब टूट गयी जब ह्त्या जैसे जालिमाने हरकत को वाजिब ठहराने लगे .अभी दादरी के के एक छोटे से गाँव में कायर ,दब्बू और सोच से अपाहिज एक खेल रचा गया कि अख़लाक़ नामन एक स्सख्स के घर में गाय का मांस बना है .बगल के मंदिर में जहां कीर्तन चल रहा था लाउड स्पीकर लगा था ,उससे घोषणा हुयी कि अख़लाक़ के घर में गो मांस बन रहा है . बस . इतना काफी था . भीड़ टूट पडी . अख़लाक़ का घर तोड़ा गया , बेरहमी से सब को मारा पीटा  गया अख़लाक़ की मौत मौकये वारदात पर हो गयी , उनका लड़का अस्पताल में मौत से लड़ रहा है . जिन लोंगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया उनके बचाव में खुल्लम खुल्ला तमाम हिंदू गिरोह एक जुट होने लगे हैं और कह रहे हैं यह एक ' स्वाभाविक ' प्रतिक्रया है .केन्द्रीय मंत्री तक बचाव में उतर आये हैं .आजादी के साथ साल बाद हम घूम कर बर्बर समाज की ओर बढ़ने लगे हैं .कह कर चिखुरी ने लंबी सांस ली और दूर अनंत में उनकी आँखे थम गयी . लाल साहब की चाय की दूकान जो गाँव की संसद बन चुकी है पर जुटे तमाम सदस्यों ने अरसे बाद चिखुरी को इतना संजीदा और दुखी देखा .कयूम मियाँ सर झुकाए बैठे रहे . उमर दरजी जो कभी भी अपने को असुरक्षित नहीं समझता ,बड़ी बेबाक जिंदगी काट रहा है थोड़ा चिंतित दिखा . नवल उपाधिया ने यह भांप लिया - देख उमर अगर तैं हमरे साथे न पढ़े रहते औ पधत वक्त एकै गठरी में बैठ के चबैना न खाए रहित तो तोको आजै मुलुक निकाला दे देइत् समझे .उमर दरजी दादरी से निकल आये और गाँव के उस माहौल में खड़े हो गए जहां इस तरह की तू तू मै मै होती रहती है निहायात ही बेलाग , बेलौस और संभ्रांत शहरी समाज जिन बिंदुओं पर टकराकर अलग अलग खांचे में खड़ा हो जाता है , उसके बरक्स यहाँ गाँव में इस तरह की बतकही का अंत जिस ठहाके पर आता है ,वह ठहाका सारी दीवारों को भासका कर समतल कर जाता है . सदियों से यह गाँव अपने इस तमीज को जीता आ रहा है . उमर ने बढ़ कर नवल की गर्दन पकड़ लिया - इ अकेल्ले तोरे बाप का मुल्क है का ? इ मुल्क मरहूम हीरामणि उपाध्याय वल्द विद्याधर उपाध्याय बना के गए हैं का कि नवल जब मन करे किसी को भी मुल्क बदल कर देना ? सुन नवल इ मुल्क बनावे में जितनि मेहनत तै किहे अहे ओसे ज्यादा हमार है , समझे ? पूछो हमार ज्यादा कैसे ? पूछो तो बता ता हूँ . तीन कलम के आगे त पढ़े ना , का जानबे इ सब . गाजीपुर में एक गाँव है गंगौली  उहाँ एक लेखक पैदा भये रहे राही मासूम रजा .जे महाभारत लिखे रहे टीवी वास्ते . एक बार किसी पत्रकार ने पूछा रहा उनसे यही सवाल जो तुम बोल रहे हो . जवाब का रहा मालुम है, जवाब रहा - सुन हिंदू के बच्चे ! मुल्क बटवारे के समय हमारे सामने दो 'आप्सन ' थे हम हियाँ रहते या फिर पाकिस्तान जाते . हमने यहीं रहने का फैसला किया . तुम्हारे सामने कोइ आप्सन ही नहीं था तुम्हे तो यहीं रहना ही था . देश से मोहब्बत करनेवाले हम हैं कि तुम ? समझे नवल . औ ज्यादा बोलबे त नोटा .... और सारा माहौल बदल गया . कीन उपाधिया जन्म के संघी , जब कुछ नहीं पाते तो गोधरा पहुच जाते हैं लेकिन अब वह रिकार्ड इतना घिस गया है कि कोइ सुनने को राजी नहीं . चुनांचे बात चली गयी बिहार .
         मद्दू पत्रकार ने अपने पसंदीदा विषय को उठा लिया . - चिखुरी काका ! कितने कमअक्ल लोग आ गए और इतनी बेशर्मी के साथ कि धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने के लिए कितना भी गिर जायगें लेकिन शर्म नहीं लगेगी . गुजरात माडल का चुनाव कराना चाहते हैं . दृविकरण . हिंदू एक तरफ हो जाओ , मुसलमान एक तरफ . एक झटके में गुजरात में तो चल गया लेकिन काठ की हांडी अब नहीं चढ़ने वाली . यह बिहार है .राजनीति में सांस लेता है , उसी में उठता बैठता है . उसी में झूमर और सोहर गाता है . उसे ये काली दाढ़ी और सफ़ेद दाढ़ी नहीं समझ पाए हैं न ही आखीर तक समझ पायेंगे . अब बताईये मांस का एक लोथडा उनकी चुनाव सामग्री बन रही . गो मांस . इन कमबख्तों को इत्ता भी नहीं मालुम यह प्रतिबंधित नहीं है . यह मुल्क इसका बड़ा निर्याता है . इस सरकार यह निर्यात बढ़ा भी है . पश्चिमी देशों की यह प्रिय पदार्थ है . एक तरफ उन्हें गले लगाओगे , उनके लिए बिछे पड़े रहोगे .दूसरी तरफ एक अफवाह को उड़ा कर क़त्ल जैसे घटिया काम में लग जाओगे . पूर्वोत्तर राज्यों को देखो , उनसे बात तो करो . गोवा में जाकर देखो वहाँ तो तुम्हातुम्हारी ही सरकार है  . जाओ क़त्ल कर के देखो . .... नवल से नहीं रहा गया - एक बात बता बकरे का मांस और गो मांस का फर्क करेगा यह पुजारी जिसने बदअमनी फैलाई है .? चू ... मुर्गी और मुर्गे के मांस में तो फर्क करी नहीं सकते चले हैं गो मांस पहचानने ? हम तो एक बात कह रहे हैं डंके की चोट पे सुन ले कीन .. बिहार पहले भिगोये , फिर धोबिया लदान मारे , निचोड़ के सुखेवास्ते दारा पे डालदेई कि कलकता की डगर भूल जाबे . समझे ? कहकर नवल गाते हुए आगे बढ़ गए - लागा झुलनिया क धक्का , बलम ... 
चिखुरी / चंचल
कहाँ रखे थे ,ये लाखैरे
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     तीब्र गति , और उमर दरजी की माने तो बुलेट ट्रेन की स्पीड से नवल उपाधिया आते दिखाई दिये . पूरा भार साइकिल की हैंडिल पर ,दोनों गोलार्ध जो सीट पर रहता है वह ऊपर उठा हुआ , भरपूर गति से साइकिल लाल साहेब की दूकान पर  आयी . जोर का ब्रेक लगा तो कयूम मियाँ थोड़ा चिहुंक कर खसक गए , उन्हें लगा कि अब नवल साइकिल समेत ऊपर आ गिरेगा . बहरहाल ब्रेक लगा और नवल कूद कर लाल साहेब की दूकान पर ,भरी महफ़िल के सामने आकर खड़े हो गए .लोंगो को मालुम है कि  नवल ऐसी हरकत तब करते हैं जब कोइ नायाब ' मसाला ' उनके खीसे में रहता है और मुह के रास्ते बाहर आना चाहता है . चुनांचे लोग चुप हो जाते हैं और नवल के लिए मौक़ा दे दिया जाता है . भिखई मास्टर ने यह ताड़ लिया और उंगली के इशारे से उकसाया - बोलिए नवल जी कुछ खास ? नवल ने आँख गोल की . फिर पूरी संसद को देखा . एक चिखुरी को छोड़ कर बाद बाकी सब नवल से मुखातिब रहे . नवल अखबार में धंसे पड़े रहे . नवल ने मंडल को बगल खिस्काय्सा और बेंच पर बैठ गए . - देखिये मास्स साब ! हम वक्त के पहले पैदा हो गए रहे ....कयूम को मौक़ा मिल गया ,धीरे से फुसफुसाए - पैदा कहाँ भये रहे ? खींच तान के बाहर निकालना पड़ा था ... नवल चूक गए - देखो चचा ! मामला गंभीर है मजाक मत करो सुनो - हम इस लिए जे कह रहे हैं कि अगर आज का ज़माना रहा होता होता तो हम मिडिल स्कूल न फेल भये रहते . गणित औ नागरिक शास्त्र दोनों में इकट्ठे फेल हो गए थे .गणित तो गणित रहा नागरिक शास्त्र में एक विषय पर निबंध लिखना था लिखह भी मुला फेल . काहे से कि हमने सही लिखा था कापी जांचने वाला अगर लोकल रहा होता तो पास भी हो जाते लेकिन वो गैर जिले का जांचनेवाला था ,गधे ने फेल कर दिया . लखन कहार ने पूछा किस विषय पर निबंध लिखा था ? नवल ने विस्तार से बताना शुरू किया - सवाल था आजादी का अर्थ बताओ और देश ने किस तरह से आजादी हासिल किया . बस  इतना .सच्ची बताऊँ , आजादी का होती है अभी दू घंटा पहले तक ना मालुम रहा सो उस वक्त की तो बात ही छोड़िये , हम सीधे उतर गए कि आजादी कैसे मिली और हमने पूरा बिबरन लिख डाला कि देश को आजादी दिलानेवाले हरी उपधिया रहे . आगे आगे हाजो दुबे घोड़ी पे बैठे ,पीछे बलई कहार और हरी उपाधिया होत भिनसार निकल गए नारा लगाते हुए भारत माता की जय , गान्ही बाबा की जय औरतों ने तिलक दिया , गाँव की सरहद तक गाते बजाते पूरा गाँव गया ,तब तो हम बच्चे रहे . पूरे गाँव में चर्चा रही कि हाजो दुबे , हरी उपाधिया औ बलई कहार आहादी लेने जा रहे हैं यही सब लिखा रहा और जे भी लिखा कि कीन उपाधिया क बाप जो कि संघी रहे ,पूरे खेत्ता में अफवाह फैला दिये कि ये तीनो जेल चले गए हैं बहादुर अंग्रेज बहादुर से भिडना इत्ता आसान है का ? पर एक दिन आजादी आ गयी . गान्ही चबूतरे पर तिरंगा फहरा पर ये तीनो महीने भर बाद वापस आये . यही लिखा रहा . फिर भी फेल . लेकिन अभी तक नहीं समझ पाए रहे कि आजादी होती का है . अभी डू घंटा पहले पता चला कि आजादी का होती है . मद्दू पत्रकार मुस्कुराए - तो लगे हाथ यह भी बता दो कि आजादी होती का है ? नवल उठ कर खड़े हो गए खीसे से एक पर्ची निकाले ,तह को खोला - सुना जाय ! वस्त्र विहीन घूमना ही आजादी है . ब कलम खुद म ला ख . आजादी के बारे में .
- ई मलाख का है भाई ? मद्दू ने जिज्ञासा जाहिर की .
चिखुरी जो अब तक अखबार में धंसे पड़े थे ,अखबार को एक तरफ बढ़ाया - मलाख . ऐसय है जैसे मद्दू . महंथ दुबे से मदु और मदु से मद्दू . मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री हरियाणा . अपने प्रधानमंत्री के पुराने सहयोगी . दोनों जब प्रचारक थे तो रात को दोनों की खिचड़ी पकती थी .मौक़ा मिला तो मुख्यमंत्री बन गए . कह रहे हैं - अगर भारतीय औरतों को आजादी चाहिए तो वे वस्त्रहीन क्यों नहीं घूमती ? ' कह कर चिखुरी मुह घुमा लिए - कोइ मर्यादा नहीं , कोइ सलीका नहीं , औरतों के बारे में ये राय ? लखन कहार ने टुकड़ा जोड़ा - सब उनचास हाथ . एक से बढ़ कर एक हैं . दादरी का देख लो अख़लाक़ को मारा गया , दंगा भड़काने की कोशिश हुयी . बात में पता चला उनका अपना ही विधायक सोम गीत अलीगढ़ में बूचडखाना चलाता है और सरकार से परमीसन माँगा है किउसकी फक्ट्री को एक दिन में पचास हजान जानवर काटने का पमीसन मिले . ये सब जिम्मेदार लोग हैं . उसना मंत्री , उनके सांसद क्या क्या बोल रहे हैं कोइ सुनने वाला नहीं है . कयूम ने एक लंबी सांस ली - बिहार में इनकी हाल बिगड़ी है . पनडुब्बी डूबे चार हाथ , पनडुब्बी क बच्चा बारह हाथ . अब ऊँट पहाड़ के नीचे आया है . इनका जवाब लालू दे रहे हैं . उन्ही की भाषा में . अब घिघी बंध गयी है कहरहे हैं लालू की जमानत खारिज करो और जेल भेजो . यह हमें पिशाच बोल गया. चिखुरी हत्थे से उखड गए - क्यों , कुछ गलत बोला क्या ? गुजरात में जो कुछ भी हुआ देश के माथे पर कलंक है . शाव्राज के जमाने में क्या हो रहा है ? व्यापम के नाम पर पचासों लोग मारे गए हैं . कई हजार लोग जेल में हैं , कई लाख लोगों की जिंदगी खराब हुयी पडी है . नवल ने जुमला जोड़ा - और भी कुछ सुना ? बापू , अम्बेडकर , वगैरह की तस्वीर खरीदी गयी . ग्यारह रूपये की फोटो तेरह सौ तिरपन के हिसाब से खरीदी दिखाई गयी . चलो बच्चू ! बिहार जवाब देगा . और नवल गाते हुए चलता बने - तोर बोलिया सुने कोतवाल तूती बोलेला ..... 
राज नारायण /चंचल
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राज नारायण , नेता जी , लोकबन्धु सब एक ही शख्सियत का बयान है . जवान होते ही भिड पड़े अंगेजी हुकूमत से .महात्मा गांधी  ने एक सबक पढ़ा दियाकि किसीपर हाथ मत उठाना , ताउम्र उसका निर्वहन करते रहे , अगर कहीं ज्यादा जरूरत पडी तो  कुहनी से दबा देते थे , या फिर कुबरी जिसके सहारे चलते थे उसे सामने वाले के मुह की तरफ ऐसा लगाते थे जैसे वह बांस का डंडा न होकर बोफोर्स की नली हो . और बापू को लगेहाथ याद भी कर लेते थे ' जाओ , बापू ने कसम दिलाया है कि हाथ मत उठाना .... नहीं तो / राम बचन पांडे जैसा कोई खांटी समाजवादी मिल जाता तो चुनौती भी मिल जाती थी -नहीं तो क्या कर लेते ? और नेता जी फिस्स से हंस देते . गरज यह कि नेता जी एक अहिंसक सिपाही थे . राजनीति में थे , चुनाव लड़ते थे . उत्तर प्रदेश की विधान सभा में नेता समाजवादी रहे . प्रवेश करते थे अपने पैरों से निकलते थे मार्शल के मार्फ़त . लेकिन कब तक , चुनांचे लखनऊ छोड़ कर जब डिल्ली की तरफ रुख किये तो लगे देश को हिलाने . दुनिया की सियासत में इस तरह का कोइ दूसरी नहीं मिलेगा जिस मुकाम को नेता जी ने बनाया . खुद डेढ़ चुनाव जीते लेकिन तीन तीन प्रधान मन्त्रीको उनकी कुर्सी से बे दखल किया . श्रीमती इंदिरा गांधी , मोरारजी रणछोंड जी भाई देसाई , और चौधरी चरण सिंह . इसे सीधा कर दिया जाय तो ऐसा भी कहा जा सकता है कि कुल डेढ़ चुनाव जीतने वाले नेता जी ने तीन प्रधान मंत्री ही नहीं एक राष्ट्रपति भी बनाया . राय बरेली से श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ और हार गए . इस चुनाव को उन्होंने न्यायालय में पहुचाया और श्रीमती गांधी का चुनाव रद्द हो गया . देश में आपात काल लगने के जो कई कारण थे ,उसमे एक कारण राजनारायण भी रहे . आपातकाल के बाद जब चुनाव की घोषणा हुयी तो नेता जी सीधे रायबरेली पहुंचे और चुनाव में श्रीमती गांधी को हरा कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किये . जनता पात्री बहुमत से आयी लेकिन प्रधानमंत्री के कई दावेदार रहे , चौधरी चरण सिंह , जगजीवन राम और मोरार जी भाई . नेता जी ने यहाँ भी एक खेल खेला . समाजवादी पार्टी बाबू जगजीवन राम के पक्ष में थी लेकिन संघ और कांग्रेस ओ नहीं चाहते थे कि राम को प्राइम मिनिस्टर बनाया जाय . नेता जी उन दिनों चरण सिंह के साथ थे , एक नया फार्मूला निकाले कि मोरारजी भाई को प्रधान मंत्री बनाया जाय चौधरी चरण को गृह मंत्री और बाकी मुख्य विभाग संघ को सौंप दिया जाय , साथ ही यह भी तय हो गया कि आगामी विधान सभाओं के चुनाव के बाद हिन्दी पत्ती के जो छ राज्य हैं जहां जनता पार्टी का आना तय है उसमे तीन चरण सिंह को और तीन संघ संघ को सौंप दिया जाय . और यही हुआ . इस कहानी से सब वाकिफ हैं . अब दूसरा हिस्सा सुनिए जो शोध का विषय है -
       राजनारायण ने मोरार जी भाई की सरकार क्यों गिराई ?
कुछ लोंगो ने नेता जी पर यह आरोप लगाने की कोशिश किया है कि नेता जी और संजय गांधी के बीच कुछ समझौता हुआ था . लेकिन यह सरासर गलत है . नेता जी पैसे के लोभीकभी नहीं रहे वे आजीवन सत्ता, संपत्ति और संतति से दूर रहे . जमींदार परिवार से ताल्लुकात रखनेवाले नेता जी ने समाजवादी राजनीति अपनाते ही सबसे पहले अपनी सैकडो बीघा जमीन हरिजनों को बाँट दिया  था . नेता जी का खेल दूसरी जगह से चल रहा था . अब उस हिस्से को देखिये जब जनतापार्टी से सांसद शपथ ग्रहण कर रहे थे , उस एन वक्त पर जे पी इंदिरागांधी के घर पर थे . जे पी के साथ कुमार प्रशांत जी भी थे . जे पी को देखते ही श्रीमती इंदिरा गांधी जे को पकड़ कर उनके कंधे पर सिर रख दिया और रोने लगी . जे पी भी अपने को नहीं रोक पाए दोनों लोग रोते रहे , फिर जे पी ने कहा था - घबड़ाओ मत इंदु सब ठीक होगा . क्या नेता राजनारायण इसी ' सब ठीक होगा ' के तहत काम तो नहीं कर रहे थे ? दो एक बार और पीछे चलिए . जे पी ने आंदोलन को जेल तक क्यों पहुचाया ? डॉ लोहिया अस्पताल में थे उनकी देख रेख में जे पी और उनकी पत्नी अस्पताल में ही रहते थे . श्री मती गांधी प्रधान मंत्री थी और बगैर नागा सुबह शाम डॉ लोहिया को देखने जाती थी . एक दिन डॉ लोहिया ने प्रभावती से कहा - जे पी को कहना कि अगर इतिहास में ज़िंदा रहना है तो एक बार जेल चला जाय . एक तरह से डॉ लोहिया समाजवादी आंदोलन की कमान जे पी को सौंप रहे थे . और वही हुआ . यहाँ यह भी मान लेना चाहिए कि कांग्रेस और समाजवादी आंदोलन के बीच तमाम आंदोलनों और लड़ाइयों के बावजूद खटास कभी नहीं रही , और समाजवादी कभी भी नहीं चाहते रहे कि कांग्रेस सत्ता से बाहर जाय , लेकि वह एकाधिकार की तरफ भी न जाय . यही कारण है कि जब ज्ब्कान्ग्रेस एकाधिकार वाद्की तरफ बढ़ी है उसकी नक्लेल समाजवादी आन्दोलन ने ही पकड़ी है . समाजवादी आंदोलन कांग्रेस का परिमार्जन करती रही है . इसका अंदरूनी हिसा भी खोला जा सकता है   आजादी के बाद , सरदार पटेल की मृत्यु के बाद पंडित नेहरु कांग्रेस संगठन को ही समाजवादियों के हाथ सौपना चाहते थे लेकिन उनके सामने दो बड़ी दिक्कतें थी , एक संगठन पर पतेल्वादियों की पकड़ और दूसरा उनका अपने कार्यकाल में कांग्रेस का टूटना , नहीं देखना चाहते थे . कालान्तर में उनकी बेटी श्री मती इंदिरा गांधी ने वह जोखिम उठाया और पार्टी ने उन्हें कांग्रेस से बाहर निकाल दिया . उनके साथ बाहर निकलनेवाले पांचो ही समाजवादी थे जिन्हें युवा तुर्क के नाम से जाना गया . इसमें चंद्रशेखर , मोहन धारिया , रामधन , कृष्ण कान्त और अर्जुन अरोड़ा  थे . तो जब मोरार जी भाई प्रधान मंत्री बने समाजवादी एक बार फिर यथास्थित वादियों जिसमे मोमोरार जी भाई , नीलम संजीव रेड्डी , यस के पाटिल निजलिंगप्पा आदि आदि रहे के खिलाफ लामबंद होने लगे और उन्हें याद आया , इन्हें सब के दबाव के चलते तो समाजवादी कांग्रेस से बाहर आये थे . उन्हें स्थापित होते कब देख सकते थे ये समाजवादी . ?यह रहा नेता का इतिहास जो देश  का भी इतिहास है . 
बतकही / चंचल
पैसा फेंको ,तमाशा देखो
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               'इ भाई बिहार तो कमाल की जगह है , पता नहीं यहाँ की पानी में का सिफत है कि जहां भी हाथ डालेगा ,कुछ न कुछ ' डैमेज ' करके ही छोडेगा . ...कीन अभी शुरू ही हुए थे कि उमर दरजी ने टोक दिया - क्या डैमेज हुआ , उपाध्याय जी ? कीन पलटे , मन ही मन बुदबुदाए ,कीन जानते हैं कि ,उमर जब भी बे वजह अतिरिक्त इज्जत देता है ,तो इसके मतलब उसमे कुछ बदमाशी जरूर है . और ऐसेमे जब से कीन परधानी हारे हैं ,उमार चोट करने से बाज नहीं आता . जिस दिन नतीजा घोषित हुआ , सब को मालुम हो गया कि कौन जीता है कौन हारा है ? लेकिन दूसरे दिन सुबह लाल्साहेब की दूकान पर जहां परधानी के सारे उम्मीदवार एक जगह एक साठ बैठे मिले वहाँ भी उमर दरजी का मुर्हप्पन कम नहीं हुआ . नतीजा जानते हुए कि कीन उपाधिया चुनाव हार गए हैं ,  उमर ने तपाक से कीन को गले लगाया और काफी देर तक चिपका खड़ा रहा - गुरु बधाई !हम माला फूल लाना भूल ही गए ,  इस नतीजे ने तो पुरे गाँव को बचा लिया... वरना कोइ ताकत नहीं कि इस गाँव को डूबने से कोइ रोक पाता .... बहुत अच्छा हुआ .. जो होता है ,अच्छा ही होता है . शपथ कब होगा भाई उपाधय जी ?
          कीन को करेंट लगा . समझ गए कि उमर कहाँ चोट कर रहा है . तुरत अपने को अलग किये , गमछे से मुह पोछे , और लोंगों के मुस्कुराते चेहरे को देखे और चुपचाप बैठ गए ये कहते हुए कि - हम सब जानते हैं उमर , ...... वो नहीं हैं ... .लाल साहेब ने चटकी काटा .- ये किसने कहा कि आप ओ नहीं हैं .. ? आप ओ न  होते तो चुनाव कैसे लड़ते . ई का हो रहा बा भाई ! इहाँ कीन हार गए , डिल्ली में हारे , बिहार ने पतली गली से निकल जाने का रास्ता दिखा ही दिया . सुना है गुरात में लोकल बाड़ी के चुनाव में भी मुह के बल पटखनी खा चुके हैं ,यह हाल है गुजरात माडल का ? अब सुना है कोइ कीर्ती आजाद हैं , उन्होंने बता दिया कि डिल्ली क्रिकेट बोर्ड में बहुत लंबा घपला हुआ है कई सौ करोड डकारे गए हैं ? भिखई मास्टर जो अबतक अखबार देख रहे थे ,उसे सामनेवाले को देते हुए बोले - आज अखबार में है उन्हें पार्टी से निष्काषित कर दिया गया है . निकाल दिया ? लखन कहार ने खैनी मलते हुए , मुस्कुराए - का का बताए भाई ? बहुत कुछ बताए ,अब बारी मद्दू पत्रकार की थी - ठेका दिया गया , निर्माण कार्य का . जितने में दिया गया उससे दुगना बढ़ा दिया गया , खरीद फरोख्त में घपला और तो और बीस हजार में मिलनेवाले कम्प्यूटर को सोलह हजार रूपये प्रतिदिन के हिसाब से किराए पर लिया गया . इसी को कीर्ती आजाद ने सबके सामने बोल दिया .
          - तो इसके लिए पार्टी क्यों बौखला गयी ? उन्होंने ये तो कहा नहीं कि पार्टी ने चोरी की है ,तो पार्टी से क्यों निकाला ?कोलाई डूबे का वाजिब सवाल रहा . चिखुरी मुस्कुराए . - हुआ यूँ है कि जिस समय ये घपले हुए उसके सर्वे-सर्वा अपने अरुण जेटली रहे , चोट सीधे अरुण जेटली को लगी ,अरुण जेटली के पास कोइ जवाब तो रहा नहीं ,चुनांचे एक ही रास्ता बचा रहा कि उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाय . उमर दरजी मुस्कुराए - तो एक विकेट और गिरा ?
   अभी देखते जाओ कितने और छटके गें . ये सरकार ही नाबालिगों की फ़ौज लगती है जिसने तोप का मुह अपनी तरफ कर रखा है और कह रहे हैं दुश्मनों को सफा करके ही दम लेंगे .
कीन से नहीं रहा गया ,अपनी हार भूल गए ,लगे अपने सरकार की तरफ से बोलने - यह सब कांग्रेस का खेल है . आप कीर्ती आजाद को नहीं जानते ? लेकिन उमर से नहीं रहा गया - कीन ! ऐसा बोल रहे हो जैसे कीर्ती आजाद नहीं भये , सनलाईट साबुन हो गए है ? मजाक नहीं , सुनो जो बोल रहा हूँ , कीर्ती आजाद  कांग्रेस के रहे भागवत आजाद उनके लड़के हैं ,वह खून का असर तो जायगा नहीं और फिर बिहारी . कोलाई डूबे ने टोका - इसमें बिहारी का मतलब ? कीन संजीदा हो गए - बिहार ने कम किया है , देश दुनिया में भाजपा की ऐसी की तैसी करके रख दी . पहले यशवंत सिन्हा फिर शत्रुघ्न सिन्हा , अब कीर्ती आजाद . एक एक करके सब पैतरा बदल रहे हैं .और यह सब कांग्रेस के इशारे पर हो रहा है .   चिखुरी जोर का ठहाका लगाए - सुन कीन ये सही है ये तीनो ही संघी नहीं हैं . मूलतः ये ये दिल और दिमाग से बड़े लोग हैं संघ की मजबूरी थी कि समाज में चेहरा दिखाने के लिए कुछ ऐसे चमकदार और समझदार लोगों लोंगों को भाजपा में लाया जाय . यशवंत सिन्हा चंद्रशेखर के साथी हैं , शत्रुघ्न जे पी से प्रभावित रहे हैं , कीर्ती आजाद का सुन ही रहे हो . तुम्हारे पास जो अपने लोग हैं उनके बारे में मुह मत खुलवाओ . कोइ किसी से कम नहीं . इत्ते में नवल उपाधिया नयी खबर लेकर नमूदार हुए - कुछ सुना पंचो ! देश के खनन मंत्री ने क्या खोदा ? एक गाड़ी होती है फार्चून . बीस लाख के ऊपर की है . वह खरीदी गयी थी उड़ीसा के जंगलों को देखने के लिए , उसेमंत्री जी लेकर घूम रहे हैं डिल्ली में ...... गोलमाल .. गोलमाल है सब गोलमाल है ... रुके नहीं , गाते हुए आगे बढ़ गए .... 
बतकही / चंचल
सवाल मत पूछो , लकीर को छोटी करो
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         .... कीन उपाधिया फंस गए हैं , जन्तुला , रामदेई , फेफना क माई सब घेरे हैं कीन को . एक बात बताओ पंडित जी चुनाव के बख्त त बड़ी लंबी हांके रहे , कौन धन रहा , जौने को काला सफ़ेद बोले रहा कि ऊ आयी त सब के खाते में डेढ़ डेढ़ लाख डाल दीन जाई . इही चक्कर में फंस के बबुल्वा कर्नाटक क नौकरी छोड़ के पगलान घूमत बाय . उहो मुआ पागल भाया रहा तोहरे पीछे कि रुपिया मिली तो एक खोखा बनवाके उसमे सब्जी की दूकान खोलूँगा . नद्दी क गाडू बर् बख्त कागद कलम लिए आलू पियाज क भाव लिखत लिखत पगले गयल मुला न पैसा आवा न भाव गिरा . देख दाल क कीमत .कौन चीज सस्ती हुयी ? रामलाल की दूकान पर मसाला खरीदने आये कीन उपाधिया ऐसे फंस जायंगे उन्हें उम्मीद नहीं थी , लेकिन अब तो फंस ही गए हैं , मन ही मन सरकार को घुन्सियाते हुए बुदबुदाए - अगर ई ससुरा ऐसे ही चलता रहा तो गाँव छोड़ के परदेस भागना पड़ेगा मुह छुपाने की कोइ जगह तक नहीं बची है . कीन को घिरता देख सलीम ने चुटकी ली - पंडित जी जिसके लिए वोट माँगा उससे क्यों नहीं कहते ई सब ? कीन को थोड़ी राहत मिली - मिले रहे भाई , लेकिन नतीजा वही गोल रहा , अब पूछोतो बोलता है कि हमारी सुनता कौन है , सूबे में अखिलेश की सरकार है ,समाजवादी है , समाजवादियों को संघी लोग एक आँख नहीं सुहाते , उनकी बात सुनेंगे ? औ केन्द्र जहां अपनी सरकार है वहाँ और भी पतली हाल है जब घर मन्त्रीको नहीं सुना जाता तो हमारी कौन सुनेगा ? जन्तूला गरिआते हुए चली गयी अपनी बकरी को देखने , नवल उपाधिया नमूदार हुए , उन्हें देखते ही कीन जल भून जाते हैं दोनों में छतीस का आंकडा है आते ही आते नवल ने गुगली मारा - का हो जुमला भाय ! का हाल बाय ? कीन के लिए इतना काफी था , - जुमला का मतलब भी जानते हो कि चले आये मुह उठाये ? लफंगा कहीं का . नवल ने फिस्स से हंस दिया . उमर दरजी ने मशीन रोक दी . ई जुमला कौन हैं भाई ? अब बात नवल और उमर के बीच जा कर फंस गयी और कीन समझ गए कि अब इ दोनों मिल कर पूरी राजनीति की भद्द पीटेंगे इससे अच्छा है चुपे रहा जाय .
नवल ने आँखे गोल की - जुमला नहीं बूझते ? इसे समझो . यह राजनीति का एक खेल है जो सन चौदह से लागू हुआ है , ठीक वैसय जैसे सन पचास की छब्बीस जनवरी को देश के आजादी दिलानेवाली कांग्रेस ने संविधान लागू किया था , उसी तर्ज पर सन चौदह में एक ऐसी सरकार आयी जिसने जुमला लागू किया . अब यह देश के पैमाने पर चलाया जायगा . बस सीखने की देर है . कहो कीन भाई ! उमर ! सुनो हम बताते हैं . जैसे हमने उमर को कुतिया छाप मारकीन दिया पूरे दो गज , और कहा कि उमर भाय अगर तुम कल तक इसको चड्डी बना कर दे दो तो हम तुम्हे डेढ़ मन मकई , खांची भर  भूसा , और चूल्हा में लगाए वास्ते बबूल की एक पूरी थाह देगें . तुमने पूरे मन से मारकीन की चड्ढी सिल दिया , मियानी समेत . और हम चड्ढी लेकर चलते बने . अब तुम क्या करोगे ?
तगादा करूँगा और क्या करूँगा .
अगर हम तब भी नहीं मकई , भ्हूसा और लकड़ी नहीं द्दिये तो ?
जनता जनार्दन को बुलाऊंगा , और मामले को पंचाईट में रखूंगा
तो इससे क्या होगा ?
तुम्हारी इज्जत जायगी , चारों ओर ठू ठू होगा और क्या , काठ की हांडी एक ही बार चढ़ती है
एक बात बताओ उमर , इज्जत महगी है कि मकई और भूसा ? इज्जत जाय भाड़ में मकई तो बच गयी , रही बात हांडी कि तो एक बार तो चढ़ गयी न . फिर देखा जायगा .
अगर पकड़ कर जलील करना शुरू करूँ तो .?
बच्चे इस नए निजाम से हम बच निकलेंगे और बोल देंगे गंगा में खड़े होकर कि यह तो जुमला था . इसे कहते हैं जुमला . नए निजाम का नया नुस्खा वायदा करो और फिर बोल दो वह वायदा नहीं था , जुमला था .
नवल अब कीन से मुखातिब हुए - पंडित परसू के पुत्र कीन कान खोल कर सुन लो , तुम्हारे जैसे जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए ही सरकार ने यह जुमला दिया है . जब भी कोइ वायदे की याद दिलाए एक लाइन बोल दिया करो , वह तो जुमला था .समझे ? कीन कुछ जवाब देते उसके पहले ही उमर दरजी ने कहा पंचो सुन लो , यह जुमला जनता जनार्दन भी जानती है अगली दफा उसी जमले से लैस होकर जनता भी स्वागत करेगी .  

Friday, January 22, 2016

चिखुरी / चंचल
चलो स्टार्ट किया जाय
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      '..... बैताली क नाती ,ससुरा गले तक कर्जा में डूबा है ,मुला हरकत से बाज नहीं आता . पूरा परवार अपने को रामायणी कहता है ,साधू संतों को बुला बुला कर खातिरदारी  करता है, देसी घी की पूड़ी छंनव्वायेगा और ससुरा अपना परिवार मकुनी की रोटी पर रात काट लेगा . पूजा पाठ का सौकीन है इसलिए राजनीति में वह कीन उपाधिया के साथ है . कहते हैं कि जब से देश में कीन की पार्टी सरकार में आयी है , कीन  पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों का प्रचार उतनी तेजी से करते हैं जितने मन से जेटली नहीं करते होंगे . और करना कुछ नहीं होता बस दुपहरिया में जब चौराहा सुनसान हो जाता है लाल साहेब के चाय की दूकान बरामदे से उठ कर शटर के अंदर हो जाती है , बोफोर्स नाई की न्यू बाम्बे शैलूँन जो नीम के पेड़ से लटके शीशे के नीचे पडी वजनदार कुर्सी पे चलता है , शीशे का मुह घुमा कर पलट दिया जाता है और किस्बत लेकर बोफोर्स अपने घर दाना पानी लेने चला जाता है तो इसी एन मौके पर कीन बहादुर परधान क तख्ता लाकर चौराहे पर रख देते हैं .इसी बीच बैताली क नाती सतिराम अपना डीजे , भोंपा , बांस बाली लगा कर हेलो हेलो बोलने लगे तो समझ  जाइए डिल्ली से कोइ इस्कीम चल पडी है जिसे सबसे पहले कीन ने पाया है और आज उसी का प्रचार होगा . वही आज भी हो रहा है .
     दो बजते बजते , ज्यों ज्यों लोग बाजार की तरफ बढ़ना शुरू किये भोपे की आवाज भी बढ़ती गयी . तखत पर तीन पुजारियों के साथ सतिराम मैक से बोल रहा है - भाइयो और बहनों याद रखिये आज यहाँ चौराहे पर एक बहुत बड़ी सभा होने जा रही है ,इसमें सरकारी स्कीम बताया जायगा . उसके पहले फैजाबाद से पधारे बहुत बड़े संत कमंडल दास जी महराज सत्संग कहेंगे . एक बार जोर से बोलो भारत माता की .. तखत के सामने जुटे बच्चों ने अलग अलग सुर में बोले 'जय हो ' कई लोगों का ही हुआ . अब नंबर आया ' नाश ' होने का . सतिनारायं जोर से चीखा - म्लेच्छों का .. सामने आवाज आयी - जी हो . एक साधू से नहीं रहा गया एक लड़के के पीठ नीचे एक चिमटा दे मारा . .. लड़का बिल बिला  गया . दूसरे ने समझाया - बोलो नास हो . सतिराम बोला - धर्म का ... बच्चों ने दो गुनी आवाज में नारा दिये - नास हो . कमंडल दास ने दाढ़ी पर हाथ फेरा - कहाँ से ये हूस बच्चे पैदा हो गए भाई ? बंद करो यह नारे बाजी लाओ तब तक प्रवचन करता हूँ .
  कीन उपाधिया जब पहुंचे तब तक भीड़ भी आ चुकी थी , और प्रवचन ' ब्रिंदाबन ' की गोपियों तक पहुंचा था - बरसो घनस्याम इसी बन में .... फुदुक्की तेवारी को अपनी बिरादरी के घनश्याम तिवारी की याद हो गयी , बोफोर्स की कुर्सी पर कब्जा किये हरी तेली से फुदुक्की ने पूछ ही लिया - अपने तेवारी वाले घनश्याम की बात हो रही है का ? ऊ तो फरार चल रहा है .... एक एक करे लोग आते गए . दुकाने सजने लगी . उधर मैक पर सतिराम ने ऐलान किया भाइयो और बहनों ! लखन कहांर से नहीं रहा गया - ससुर बहिनों कहा है यहा ? सब भाइयो और भाइयो ही तो आये हैं . गनीमत थी यह आवाज तख़्त से दूर लाल्साहेब की दूकान तक ही रह गई लेकिन हंसी का फौवारा तो छूटा ही . कीन भांप गए लेकिन मसोस कर रह गए . सतिराम आगे बढ़ा - तो आप जिसका इन्तजार कर रहे थे वह छन आ गया है , हमारे प्रिय नेता पंडित शारदा प्रसाद उपाध्याय उर्फ कीन उपाध्याय आ चुके हैं अब आप के बीच हम का बोलेंगे , अब अपने प्रिय नेता  जी को सुनिए . और कीन शुरू हो गए - गमछे से मुह पोछा . आँख बंद करके किसी कि स्तुति किये फिर चालू हुए- बहनों और भाइयो ! समया अभाव क चलते हम बहुत कम बोलूंगा . अपनी सरकार ने आप लोंगो के लिए नयी स्कीम बनायी है स्टार्ट अप . अपनी कम्पनी खोल लो . तीन साल तक न कोइ सरकारी जांच होगी , न टैक्स लगेगा जितना मर्जी उतना कमा लो . इसे कहते हैं स्टार्ट अप . बस . धन्यवाद और सभा विसर्जित हो गयी . पब्लिक की राय जाना भी तो जरूरी होता है , सो कीन जनता में धंस गए .लेकिन लाल साहेब के दूकान में जमे चीड फाड़ करनेवालों से कैसे बच सकते थे . लेकिन जब तक कीन दूकान में पहुचते कई सवाल पहले से ही मुह बाए खड़े मिले - स्टार्ट उप की हिन्दी का होती है . ? पैदा होते ही हिंदी हन्दू हिन्दुस्थान चीखते रहे , सरकार में आते ही सारे चालू नारे अंगरेजी में फूटने लगे . मेक इंडिया , इंडिया टीम , अब स्टार्ट अप ? चिखुरी संजीदा हो गए - एक बात बताओ कीन ? यहाँ इतने लोग बैठे हैं , उमर दरजी हैं , कयूम मियाँ , लखन कहार हैं बोफोर्स नाई है , या तुम खुद अपने को ही लेलो , कोइ कम्पनी खोल सकते हो ? या कम्पनी का मतलब भी बूझते हो  ? जो हाल यहाँ इन सब की है यही पूरे देश की हैं . तो कम्पनी खोलेगा कौन ? कम्पनी वही खोलेगा जो जो अब तक कम्पनी खोलता रहा , उससे खेलता रहा , टैक्स की चोरी करता रहा काला धन जमा करता रहा , यह मौका उसे दिया जा रहा है कि नयी कम्पनी खोलो , तीन साल तक कोइ कुछ भी नहीं पूछेगा काले धन को इस कम्पनी का मुनाफ़ा दिखा कर सफ़ेद कर  लो . .. तीन साल बाद चुनाव है अगर चाहते हो कि आगे पांचसाल तक तुम्हे कमाई करने का मौक़ा मिले तो चुनाव में हमे उसी तरह जिताओ जैसे इस बार जिताए हो . नहीं तो सरकार बदलते ही तुम जानो तुम्हारा काम जाने . यह है स्टार्ट अप . इतना सुनते ही नवल उठ गए कीन को मुह बिराते हुए .  

Saturday, January 9, 2016

चिखुरी / चंचल
चोलबे ना , मिक्खुनव भर चोलबे ना ....
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              हिन्दी पट्टी,बड़े खौफ में जीती है . भेष-भूषा , खानपान , रहन सहन और तो और बोली भाषा में भी वो अपने को हीन समझती है . सैकड़ों  साल से लदी अंगरेजी और अंग्रेजियत ने इसे बीमार करके रख दिया है . काम की तलाश में यह जहां कहीं भी छिटक कर जाता है, उसे परदेस कहता है और अपने गाँव को मुलुक कहता है . इस मुलुक के छोरे पर परदेस का रंग ऐसा चढता है कि महीनों वह अपने मुलुक में इसे भुनाता रहता है . ललुआ केवट कल सरे आम पंडित राजमणि डूबे से चार कुबरी मार खा गया . बहुत बीच बचाव के बाद तो मामला शांत हुआ . हुआ यूँ कि लालू ;नकदी ' कमाने की गरज से लुधियाने चला गया रहा ,और जब लौटा तो पंजाब को ओढ़े हुए आया . चारखाने की तहमत , ऊपर आधे बांह की बंडी ,कलाई में स्टील का चमकदार कड़ा , सातवी लाइन न बोलनी हो तो पूरा पंजाबी लगता है . रमेश की दूकान पे खड़ा लवंगलता खा रहा था इसी बीच कहीं से घूमते घामते राजमणि डूबे आ गए . आते ही आते डूबे ने लालू से कहा , अच्छा हुआ मिल गए लालू भाय , कल सुबह आते तो चार गो गड्ढा खोदना है , सरकार की तरफ से आम का पेड़ मिला है ,लगवा दूँ , बाल बच्च्ओं के काम आएगा . खायेंगे और तुम्हे असीसेंगे . आधी लवंगलता अभी मुह में ही थी कि ,कि लालू ने बड़ा सा मुह खोल कर बोला - बहन ... और चो सुनते ही डूबे जी गरमा गए , अबे भागेलुआ के सारे तोर ई हिम्मत कि हम्मे गाली देबे ? और दनादन चार कुबरी लालू के कटी क्षेत्र पर धर दिये , रामलाल तेली बताय रहा था कि - भईया ओ तो और मार खाता लेकिन इसी बीच पंडित जी के पैर के नीचे पिलई आ गयी , उसकी पूंछ दब गयी और वह ऐसे चीखी कि पंडित जी खुदे पानी के गच्चे में जा गिरे . बाद में पता चला कि पंजाब में हर बात की शुरुआत बहन ... से शुरू होती है और बीच बीच में चलती रहती है . गरज यह कि अपने मुलुक में कई परदेस घूमता टहलता , हंसी मजाक करता जी रहा है .
    लाल साहेब की दूकान पर लगनेवाली संसद बैठ चुकी है . लाल्साहेब बेना से भट्ठी को हवा दे रहे हैं ,और भट्ठी छापर को धुवां से भर रही है . संसद में राजनीति तली जा रही है , ठाकुर प्रसाद टटके परदेस कमा के लौटे हैं कलकत्ते के बरन कम्पनी में फिटर हैं मामूली बात है क्या ? नवल उपधिया ने आखन देखी बताए - दो दिन पहले की बात है , हम बाजार गए रहे अंगरेजी दवा लेने , बिकास को पेचिस पकड़ लिया है . अब उसकी दवा तो यहाँ अपने बाजार में मिलती नहीं सो बड़ी जगह जान पड़ा . दवा ले के लौट ही रहा था ,तब तक अठबजवा गाड़ी के सभी पसिंजर उतर के आय रहे थे , उसी में अपने ठाकुर प्रसाद भी रहे . गाड़ी के धुवाँ से कपड़ा ,लत्ता मुह शरीस सब करिअये रंग से सना . हम तो पहचान ही नहीं पाए . लेकिन उन्होंने हमे पहचान लिया . रिक्शे पर दो बोरिया समान , एक बाल्टी , एक छाता . मिलते ही बजुत खुश हुए . चलो अच्छा , जदी  मना कि अपुन को अपन जन मिल जाय तो खूब भालो लागे जे . रिक्शा रुका . ठाकुर प्रसाद न्युबाम्बे सैलून में गए . दाढ़ी बनी . चम्पी अलग से . महकवाला तेल लगा . कपड़ा बदलान . नयी धोती , कमीज , निकली . पम्प जूता निकला . आगे आगे छाता लिए ठाकुर परसाद , पीछे हम . उसके पीछे रिक्सा . जिधर से हम चलें जनता हमारी तरफ देखे ,काहे से कि उनके पैर में चिपका पम्प शु चुन चू बोल रहा था . तीन कोस हम पैदल  पार कर गए , पता ही नहीं चला . रस्ते भए कलकत्ते की राजनीति बोलते रहे हम सुनते रहे ... ' तो बोले का ? ' कयूम मियाँ ने टुकड़ा जोड़ा . कीन उपाधिया ने सूचना दी - का बोले , नवल का बताएँगे , वो तो खुद साछात आय रहे हैं . लोगों ने पलट कर देखा सजे धजे ठाकुर प्रसाद खुद चले आ रहे हैं . कमीज धोती पम्प . एक हाथ में छाता दूसरे हाथ से धोती की फुक्ती पकडे चले आ रहे हैं . चिखुरी मुस्कुराए - ई ठाकुर परसाद तो बिलकुले भद्रलोक होय गए हैं . ठाकुर प्रसाद आये , उन्हें इज्जत के साठ बिठाया गया . आज की चाय पेसल हो गयी . मेहमान ने जुबान खोला - लाल साहेब ! पियोर दूध की पेसल चाय ,जदी मना कि अपुन की तरफ से .कयूम मियाँ ने बात की शुरुआत सीधे सियासत से शुरू कर दी . एक बात बताया जाय बाबुसाहेब कि बंगाल में चुनाव होए वाला है , किसकी सरकार बनेगी ? ठाकुरप्रसाद किसी जमाने में सिद्धार्थ दादा के प्रशंसक रहे हैं राजनीति पर बोलते समय उन्ही की मुद्रा अपनाते हैं . पहले गंभीर हुए .दोनों होठों को चिपका कर मुह को कान की तरफ खींचे फिर बोले - गोल माल . जदी मना कि कुछो नहीं कहा जा सकता . लड़ेगा सभी लोग . का कौम्निष्ट , का फूल वाला , का पत्तीवाला .अबकी बार हाथ का पंजा भी जोर मारेगा .मुला एक बात तो त्य है कि जड़ी मना कि तीन पत्तीऔर हाथ मिल जाय तो भद्र लोग किसी को घुसने नहीं देगा बिहार माफिक . तीन पत्ती ? उमर दरजी को कुतूहल हुआ . चिखुरी  ने बताया -  तीन पत्ती मतलब तीन पंखुड़ी वाला फूल यानी ममता बनर्जी की पार्टी का चुनाव चिह्न . और हाथ का मतलब कांग्रेस का पंजा . और यह सही है दोनों अगर मिलते हैं यह सबसे बड़ी जीत हासिल होगी . कम्युनिस्ट जद हो चुके हैं एक जगह पर ख्गदे खड़े कदमताल कर रहे हैं .केन्द्रीय नेतृत्व तो और भी जड़ है . अगर बंगाल के भद्रजनों के हाथ में संगठन डे दिये होते तो आज कुछ और ही मजा होता . लेकिन इतना तय है कि बंगाल केन्द्र के साथ नहीं जायगा