Monday, December 7, 2015

बतकही /चंचल
मेरी खूबसूरती का राज है ......
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       .......तुन्नी बम्मई कमा के लौटा है .बीबी बच्चा समेत आया है . दीवाली मनाने . पूरे घर में औ गाँव में हर कमासुत पूत की कद्र होती है . तुन्नी अपने पूरे परिवार की इज्जत बढाने में लगा रहता है . ... तुन्नी की बीवी जब बिआह के आयी तो उसका नाम उसके गाँव के साथ  जोड़ कर गोह्रराया  जाने लगा . आठवीं तक पढ़ी रामरत्ती यहाँ 'परानपुर वाली ' हो गयी ,लेकिन वही परानपुर वाली जब कमाऊ भतार के साठ बम्मई से वापस आयी तो उसका नाम भी बदला हुआ मिला ,अब वह पिंकी है .एक एक साल के अंतर पर पैदा हए तीनो बच्चे बंटी , सनी और स्वीटी बोले जाते हैं . एक दिन तुन्नी के घर कोहराम मच गया क्यों कि बंटी छैला गया है कि वह चिप्स खायेगा . तुन्नी के बाप लम्मरदार जो अभी ज़िंदा हैं ने जब चिप्स सुना तो उसनाता खा गए . ई चिप्स का होता है भाई ? खदेरन कहांर ने बताया - ये भी नहीं जानते ये एक तरह का नमकीन है जिसे सेफ अली खाता है टीवी पे नहीं देखे हैं ? बगल में लडकियां रहती हैं ,बहुते कम कपड़े में . हम खाए तो नहीं हैं लेकिन टीवी पे देखा है . राम लाल की दूकान पे जरूर मिल जायगा . लम्मर दार ! अब ज़माना बदल गया है शहर का कोइ भी समान हो गाँव तक आ गया है . जाओ और खरीदो . नकद . और वही लम्मर दार राम लाल की दूकान से लौट रहे हैं ,एक हाथ में बांस का डंडा दूसरे हाथ में चिप्स का पाकेट लिए ,लफारक़दमों से घर की ररफ भागे जा रहे हैं .काहे से कि बंटी रो रहा होगा . लेकिन बीच डगर में उमर दरजी टकरा गए - सलाम साहेब ! कहीं दूर तक गए रहे का ? लम्मरदार रुके , तरेर कर उमर दरजी को देखा - सुन बे उमर ! हम बीस बारे बोले हैं कि टोका टोकी मत कियाकर लेकिन तै अपनी आदत से बाज नहीं आएगा . तेरी माँ की ..... . उमर ने फिस्स से हंस दिया - ऐसा तौवा रहे हो जैसे नाती की बरात लेकर जा रहे हो , सीधे सीधे जवाब भी देते नहीं बनता . ई का साबुन खरीदे हो का ? अबे ई साबुन दिख रहा है का ? ई चिप्स है . उमर ने पाकेट हाथ में ले लिया - ई चिप्स का होता है ? लम्मरदार जानते हैं उमर उन्हें छेड़ने की गरज से बतिया रहा है . सो लम्मरदार ने उमर के हाथ से पैकेट खींच लिया और भद्दी सी गाली देते हुए आगे बढ़ गए . यहाँ गाली गाँव की रवायत का एक हिस्सा है . जाति , मजहब , उंच नीच , औरत मर्द सब अपनी जगह लेकिन गाँव में हर कोइ हर किसी का कुछ न कुछ लगता है . इस रवायत में लम्मरदार उमर दरजी के बाप लगते हैं इसलिए धडल्ले से उमर की माँ के साथ  रिश्ता जोड़ लेते हैं . लम्मरदार चिप्स लेकर अपने घर चले गए लेकिन उमर ने चिप्स कीकहानी को चौराहे पर बिखेर दिया - सुनो हो पंचो ! लम्मरदार अब चिप्स का नाश्ता करते हैं .
       विकास के नाम पर जब से गाँव में सड़क आयी है , हर गाँव के पड़ोस में एक चौराहा बन गया है जहां चाय की दूकान एकाध सैलून , मोबाइल की दूकान कपड़ा प्रेस करने का खोखा आदि आदि सज गए हैं और इसी चौराहे पर आसपास के गाँव के लोग आ जुटते हैं और चाय के साथ जरूरी और गैर जरूरी बातों के किस्से खुलते हैं . आज लम्मरदार का चिप्स जेरे बहस है . बात की शुरुआत भिखई मास्टर ने की - भाई बहुत दिन हुए थे अरहर की डाल खाए हुए . कल पेंशन मिली तो सबसेपहले अरहर की डाल खरीदा . दो सौ रुपया किलो ... पचास रूपये का पाव भर लिए . ज़माना कहाँ से कहाँ गया . ई महगाई तो जीते जी मार देगी . सरसों का तेल , गुड़ , का चीज सस्ती है ? उमर ने टुकड़ा जोड़ा - किसने कहा डाल खाओ , चिप्स खाओ . पांच रूपये में एक पैकेट . यह बात उमर ने लम्मरदार को देख कर कहा जो चिप्स पहुंचा कर वापस चौराहे पर आ गए रहे और लाल साहेब के चाय की दूकान पर पैर ऊपर किये बेंच पर बैठे रहे . चिप्स सुनते ही लम्मा दार जामा के बाहर हो गए - देख उमर ! मुरप्पन मत कर . अबे हम्मे का मालुम कि चिप्स का होता है उतो तुन्नी के लडिका वास्ते ले गए रहे .आज के जमाने में पांच रूपये की कीमत ही का ? बात के बीच में राहुल आ गए . राहुल परधान क लडिका है , बनारस से पढ़ी के वापस गाँव आ या है , कह रहा है नौकरी नहीं करेंगे , गाँ में ही काम करेंगे . खादी पहनता है और हर बात को उलटता रहता है . इसीलिए लोग उसे पगलेट बोलते रहे , लेकिन जब से उसने गाँव में आये छोटे जिलाधिकारी को हडका के उसकी बोलती बंद कर डी है तब से उसकी बात सुनी जाने लगी है . राहुल ने कहना शुरू किया - एक बात जान लो सड़क और बिजली गाँव के विकास का मापदंड नहीं है . उसकी उपयोगिता से विकास नापा जाता है . गांधी की मंशा थी गाँव को मजबूत करो उसका विकास करो ,इसके तहत सड़क और बिजली आयी लेकिन नतीजा देखो . जिस सड़क से गाँव का सामान मंडी तक जाना था वो तो हो नहीं पाया ,अलबत्ता शहर का कूड़ा इस सड़क से गाँव में आ गिरा . बिजली आयी थी कि गाँव में खेती के साठ कुटीर उद्योग लगे . छोटे मोटे कारखाने लेंगे . लेकिन गाँव में बिजली का उपयोग का हो रहा है ? घर घर में टीवी लग गयी . टीवी ने क्या दिया ? तुम्हारी आदत बदल दिया . भांति भांति के कचड़े टीवी पर बिकने लगे . गाँव का उत्पाद मरा . गाँव का पुश्तैनी पेशा मरा . प्लास्टिक के दोनापत्तल चले , प्लास्टिक की गिलास और पुरवा चलन में आ गए . किसका हाथ कटा ? लोहार कुम्हार सब मारे गए .
... राहुल और  बोलता लेकिन इसी बीच एक मोटर साइकिल आ गयी और राहुल उठ कर उधर बढ़ गया .लेकिन जाते जाते चिप्स के बारे में खड़े खड़े बोलता रहा . सात ग्राम चिप्स की कीमत पांच रुपया है , हिसाब लगाओ एक किलो चिप्स कितने का होगा ? सात सौ चौदह रूपये अट्ठाईस पैसा. लेकिन उस पर चर्चा नहीं होगी कि कारखाने के माल पर कितना मुनाफा आ रहा है ?  कल बात होगी इसके आगे , अब वक्त है कि इनका बहिष्कार करो और .....

Saturday, November 14, 2015

चिखुरी / चंचल
लाजिम है कि हम देखेंगे
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      ' पटना देखने का मन है .
    - अचानक ... पटना कहाँ से आ गया .
-पटना देखे का मन इसलिए बना है कि बहुत दिनो बाद देश का जवान जनतंत्र बिहार में तन कर खड़ा हुआ है .
-जवान जनतंत्र ?
-तो ऐसा बोलो कि गांधी मैदान क जलसा देखने का मन है .?
- न्ना बरखुरदार बहुत जलसा देख चुका हूँ . जनता का मन देखने का मन है .
- तो आज है चौदह नवंबर
- क्या चौदह नवंबर ? सुनते ही कयूम मियाँ चौंके . मियाँ भले वक्त पर याद दिला दिया वरना बहुत बड़ा गुनाह हो जाता . आज पंडित जवाहर लाल नेहरु का जन्म दिन है . आप चलिए चौराहे पर  हम आते हैं . कयूम मियाँ ने अपने मझले लड़के सोहराब को आवाज दिया . सोहराब नमूदार हुए . नवल उपाधिया जाते जाते रुक गए क्यों कि साइकिल की चैन उतर गयी रही .नवल ने सोहराब से मदद माँगा कि भाई थोड़ी मदद करदो चेन चढ़ा दो लेकिन कयूम ने रोक दिया - कत्तई नहीं पहले जरूरी काम सुन लो और इसे फटा फट करो , बक्से में अचकन है वह ....पजामा .... खादीवाली गांधी टोपी ... ये निकाल लाओ और नहा के आते हैं . दालान में पंडित नेहरु की जो तस्वीर लगी है उसे उतार कर पोंछ डालो . और तहमत सम्हालते कयूम मियाँ मस्जिद की ओर निकल गए जहां सरकारी नल गड़ा है . इंडिया मार्का . नवल बगैर चैन चढाये पैडल ही साइकिल ठेलते चौराहे कि ओर बढ़ गए . थोड़ी देर बाद गाँव और गाँव के बाजार ने देखा कि लबे सड़क मौलाना  अबुल कलाम आजाद चले आ रहे हैं पीछे पीछे बच्चे भारत माता की जय बोल रहे हैं और बीच बीच में पंडित नेहरु की जय हो रही है . कयूम मियाँ जब इस सुराजी लिबास में उतरते हैं तो जनता उनके नाम को बदल कर मौलाना आजाद बना देती है और साल में कई बार कयूम मियाँ मौलाना हो जाते हैं . बड़े बूढ़े जवान सब कयूम मियाँ को आदाब , जय हिंद ,. बंदगी ,सलाम सब मिलता जा रहा है. नयी नवेली बहुए घूँघट की आड़ से कयूम के इस रूप को देखती जा रही हैं . और मियाँ लफार क़दमों से चौराहे तक आ ही गए . लाल साहब चाय की दूकान पर जमी मजलिस ने कयूम मियाँ का स्वागत किया .नीम के इकलौते पेड़ के नीचे जहां टुटही मेज पर ररा नाई का न्युबाम्बे सैलून चलता है ,आज बंद है क्यों कि आज शनीचर है और शनीचर को सैलून बंद करने का रिवाज है उस मेज पर चदार बिछाई गयी . पंडित नेहरु की तस्वीर तने से सटाकर लगा दी गयी . कयूम मियाँ ने सलामी दी . राष्ट्रगान हुआ और सब ने एक एक कर के तस्वीर पर फूल चढाया . अकेले चिखुरी थे जिन्होंने फूल नहीं चढाया बंदी के चोर खीसे में हाथ डाल कर एक घुंडी सूत निकाले और उसे फैला कर नेहरु की तस्वीर पर चढ़ा दिये . चिखुरी ने बच्चों के लिए बतासा मंगाया .`इस तरह देश के प्रथम प्रधानमंत्री को गाँव ने याद किया .
कयूम मियाँ ने सोहराब को बा बुलंद आवाज में बोला - बरखुरदार ! वो तहमत और बंडी हमें दे दो और ये कपडे सम्हाल कर बक्से में रख देना . इस तरह लबे महफ़िल कयूम मियाँ मौलाना आजाद से अपने मूल पर आकर कयूम मियाँ बने और चर्चा चली गयी पटना तक .
नवल ने डोर ढील दी- चचा कयूम का मन है पटना देखने का . उस जलसे को देखना चाहते हैं जिसमे नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जायगी .
मद्दू पत्रकार ने बीच में टोक दिया - क्या कयूम मियाँ अब ज़माना कहाँ से कहाँ जा पहुंचा है , घर बैठे रहिये टीवी खोल लीजिए और देखिये पटना नीतीस्साब आपके सामने .
कयूम ने लंबी सांस ली - नहीं भाई !हम नेता को देखने की ललक नहीं रखते , हम तो बिहार की जनता और उस जनता के चेहरे को देखना चाहते हैं कि वह क्या चाहती है इस सरकार से , जिसे उसने बहुत जद्दोजेहद के बीच बनायी है . इस सरकार से वह क्या चाहेगी ? गाँव के इस सदन में सन्नाटा छा गया . चिखुरी मुस्कुराए .हम बताते हैं गौर से सुनो .बिहार में यह पहला प्रयोग हुआ है कि गांधी का समूचा बिखरा हुआ परिवार अडतालीस के बाद एक हुआ है . नीतीश , लालू , शिवानंद तिवारी समेत तमाम समाजवादी अपने पुराने घर को जोड़ने में सफल हुए हैं .जिस काम को पंडित नेहरु नहीं कर सके कि समाजवादी जो कांग्रेस छोड़ कर अलग हुए थे वापस अपने घर आ जांय , सरकार और संगठन दोनों की जिम्मेवारी लें लेकिन वे सफल नहीं हो पाए
दूसरी पीढ़ी तक आते आते बिहार ने वह काम कर दिखाया है . आँख बंद करके देखिये तो जब सोनिया गांधी ,लालू और नितीश एक मंच पर थे तो लग रहा था पंडित नेहरु ,जेपी और डॉ लोहिया का मंच लगा है . यह तो हुयी काया की बात . अब इसकी आत्मा को जगाना है . तीनो मिल कर तय करें .तीन बिंदु . ये तीनो पंडित नहरू और डॉ लोहिया के बीच हुए सहमती के बिंदु हैं . एक -बिहार देश को डगर दिखाए कि अब सरकार और संगठन दो अलहदा संस्थान हैं . जो सरकार में होंगें वे संगठन में कोइ ओहदा नहीं रखेंगे . संगठन को पूरा अधिकार होगा कि वह सरकार की आलोचना कर सके और उसके गलत नीति के खिलाफ आवाज उठा सके . संगठन का जनता से सीधे संवाद होगा और उसकी समस्या को सरकार और संगठन मिल कर हल करेंगे . .... लेकिन भिखई मास्टर ने लेकिन लगाया - बिहार में बेरोजगारी , पिछडापन , खस्ताहाल सड़कें , महगाई इस पर क्या होगा ? चिखुरी संजीदा हो गए - सब का इलाज है बस जोखिम लेना होगा . बेरोजगारी इस लिए है कि बिहार में रोजगार नहीं है , रोजगार के लिए बिहार की सरकार और जनता मिल कर लड़े. यह काम क़ानून से नहीं सड़क से शुरू करो . जो उत्पाद छोटी जगहों से , छोटी पूंजी से शुरू हो सकते हैं लेकिन उस पर बड़े घरानों का कब्जा है जनता उसका बहिस्कार करे बिहार की जनता को नौजवानों को प्रोत्साहित किया जाय खुले गाँव गाँव लाधूद्योग . महगाई का इलाज आपके पास है . 'धाम बाँधो ' . पूरा देश देख रहा है बदले हुए चेहरों को नहीं , उन नीतियों को जो कल बिहार शुरू करेगा . महफ़िल संजीदा न हो इसलिए नवल ने मुह खोल दिया . असल हकदार तो महिलायें हैं जिन्होंने बढचढ कर हिस्सा लिया और जमूरों को रास्ता दिखाया . .... मन्नाडे को सुना जाय ... काशी हीले , पटना हीले .....
नहीं बूझोगे तो गच्चा खा जाओगे पासवान और माझी माफिक . देश में हुए अब तक के सारे चुनावों से यह एक अलहदा चुनाव रहा जिसे जनता ने लड़ कर लिया है . 

Wednesday, November 11, 2015

चिखुरी / चंचल
राजनीति इतनी बदजुबान हो गयी ?
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....नवल उपाधिया हडबड़ी में आये , नीम के नीचे जहां ररा नाई का न्यू बाम्बे  सैलून लगता है , साइकिल टिका कर दोनों हाथ कमर पर रख कर खड़े हो गए . अचानक जोर से चीखे - अबे उमर के बच्चे जहां कहीं भी हो तुरत सामने आओ , तुम्हारे जैसे बहुत से लफड़ झंडूस देखे हैं .सुनो हो पंचो ! कीन कह रहे थे कि कल तुम रामलाल के दूकान से पटाखा खरीद रहे थे ? ये हिम्मत . एक एक कर के देश निकाला कर देंगे . सुना है तुम भी पटाखा दगाओगे ? जानते नहीं हो , कीन उपाध्याय को ... लाल साहब की दूकान पर चाय के इन्तजार में जमी संसद नवल को देख रही है . लखन कहार ने धीरे से जवाब दिया - को नहीं जानत है जग में ... ' लेकिन कीन समझ गए कि लखन क्या कह रहा है .अपने चिचुके मुह और खोपड़ी के पीछे लटक रही मोटी चोटी पर कई लोग बानर तक कह चुके हैं .लेकिन लखन ने हनुमान चालीसा उठा लिया ,अब इसका विरोध तो हो नहीं सकता . कीन अंदर ही अंदर मसोस कर रह गए .उस समय  कीन एक पैर पर खड़े थे एक पैर मोड़ कर पीछे खड़ी दीवार पर टिकाये अखबार बांच रहे हैं गो कि अभी आज का ताजा अखबार आया नहीं है . कीन पुराने से ही काम चला रहे हैं . यहाँ इस चौराहे का अलिखित नियम है कि अखबार उम्र , पद और गरिमा के हिसाब से पढ़ने को मिलता है ,और कीन का नंबर जब तक आता है सांझ हो जाती है यह नहीं कि लोग दिन भर वहीं बैठे रहते हैं , लेकिन आखिर चाय की दूकान है न , लोग केवल चाय पीने ही थोड़े आते हैं ... अखबार देखेंगे , आबो हवा बदलेंगे वरना उनको घर पर चाय नहीं मिलेगी क्या ? दुकानदार का पहला फर्ज है कि वह अपने ग्राहक का ख़याल रखे समझे कीन ? वहीं अपनी दूकान से झाँक लिया करो , जब यहाँ कोइ न रहे तो आकर पढ़ लिया करो . कीन जानते हैं लाल साहेब पुराण मुरहा है ,औ गाहक ? तो ससुरे दिन भर आते ही रहते हैं . तब से कीन एक दिन . कभी तो तारीख भी नहीं देखते पुराना अखबार बांचने लगे हैं .उमर दरजी ने कीन को उकसाया का लिखा है कीन गुरु ? आज के अखबार में . कीन मुस्कुराए - वही लिखा है जो नवल उपाधिया बोल रहे थे , बुलाय के पूछि लो . तब तक नवल हाजिर हो गए . उमर ने नवल को घुड़का - का बोल रहे थे हमरे बारे में . देखो नवल ! रहना हो तो तमीज से रहो वरना इतनी मार खाओगे कि मुह औ जूते में फर्क गायब हो जायगा समझे . नवल उमर को सुन रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं - और बोल . जितना बोलते बने बोल ले फिर बताते हैं . उमर एक कदम आगे बढ़ के नवल के नजदीक आ गया - सुन पंडित हीरामन उपाध्याय के सुपुत्र !तू अगर अपने आपको न सुधारा तो
- तो कर लेबे ?
- कनपटी पे दो कंतास देंगे और चले जायंगे अपनी दूकान पर .
नवल कीन की तरफ मुड़े - नवल भाय ! इसको पाकिस्तान भेज देते तो गाँव सुधर जाता . उमर मुस्कुराया - पाकिस्तान तोरे बाप बसाए रहे कि कीन के बाप ? और चाय के हांका लगते ही संबाद रुक गया . चुंकी नवल उस समय खैनी मल रहे थे चुनांचे उमर दरजी ने नवल की चाय भी दूसरे  हाथ में पकड़ कर नवल के बगल खड़े रहे . गाँव में यह यह रोज मर्रा की जिंदगी है . पता नहीं कब से चला आ रहा है . इस रवायत की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं इनको उखाडना अब आसान नहीं है . अखबार आ गया . चिखुरी के सामने . चिखुरी ने अखबार उठा कर मद्दू पत्रकार की तरफ बढ़ा दिया - देखिये आज कौन सा बवाल है ? मद्दू नेअख्बार उठाया - बिहार में अगर हम हारे तो .पाकिस्तान में पटाखे छूटेंगे . अमित शाह ने रक्सौल में बोला है . चिखुरी ने गर्दन ऊपर उठाया . - कहाँ कहाँ से पकड़ कर लाया है ... बेतुकी बात . बदजुबानी . न कोइ मर्यादा न तमीज ... बिहार ने तो इन्हें नंगा कर दिया एक एक कर के इनकी असलियत जनता के सामने खुलती जा रही है . चुनाव इतनी गिरी जुबान में कभी नहीं हुआ . दुर्भाग्य देखो कि जिनके हाथ में मुल्क की बागडोर है वह इतना नीचे जा चुका है . कल उसी बिहार में एक लड़की मीसा के बारे में जो बोला गयावह सड़क छाप लफंगे भी बोलने के पहले अगल बगल जहां लेते हैं कि कोइ बुजुर्ग तो नहीं सुन रहा है , और इधर ये मुखिया महोदय हैं कि सरे आम महफ़िल में लाउड स्पीकर से चीख चीख कर बोल रहे हैं . बिहार में ही नहीं देश में और दुनिया के हर कोने में हमारी तुक्का फजीहत हो रही है . यह हमारा मुल्क है ? यहीं पर गांधी , लोहिया , जे पी , कर्पूरी ठाकुर , किस किस ने राजनीति नहीं किया . एक दूसरे के विरोध में रहे लेकिन दुश्मन नहीं थे . मत भेद और मन भेद का मर्म जानते थे . इसी मुल्क में पंडित नेहरु ने राजनीति की उनकी दिली  मंशा थी कि संसद में डॉ लोहिया और कृपलानी जैसे लोग आयें . सैधांतिक बहस चले . वही मुल्क आज सियासत को संदुक्चियों और बन्दुक्चियो के हाथ सौंप दिया है . लेकिन जो रपट बिहार से आ रही है , लगता है शुभ होगा और बिहार देशग को नयी डगर दिखायेगा . ... एक चाय और ? लाल साहेब ने बीच में ही टोक दिया . बात रुक गयी और चाय हाथों में . तब तक ररा नाई चीखा - भाई सैलून में साइकिल किसने दाल दिया ...जोर का ठहाका लगा . करि  अवा कुकुर दूसरे कुत्ते को देख कर गुर्राया . नवल ने साइकिल उठाया और जगाते हुए आगे बढ़ गए मोरा सैंया गवन लिए जायं हो करौना की छैयां छैयां ......

Sunday, November 1, 2015

चिखुरी / चंचल
राजनीति इतनी बदजुबान हो गयी ?
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....नवल उपाधिया हडबड़ी में आये , नीम के नीचे जहां ररा नाई का न्यू बाम्बे  सैलून लगता है , साइकिल टिका कर दोनों हाथ कमर पर रख कर खड़े हो गए . अचानक जोर से चीखे - अबे उमर के बच्चे जहां कहीं भी हो तुरत सामने आओ , तुम्हारे जैसे बहुत से लफड़ झंडूस देखे हैं .सुनो हो पंचो ! कीन कह रहे थे कि कल तुम रामलाल के दूकान से पटाखा खरीद रहे थे ? ये हिम्मत . एक एक कर के देश निकाला कर देंगे . सुना है तुम भी पटाखा दगाओगे ? जानते नहीं हो , कीन उपाध्याय को ... लाल साहब की दूकान पर चाय के इन्तजार में जमी संसद नवल को देख रही है . लखन कहार ने धीरे से जवाब दिया - को नहीं जानत है जग में ... ' लेकिन कीन समझ गए कि लखन क्या कह रहा है .अपने चिचुके मुह और खोपड़ी के पीछे लटक रही मोटी चोटी पर कई लोग बानर तक कह चुके हैं .लेकिन लखन ने हनुमान चालीसा उठा लिया ,अब इसका विरोध तो हो नहीं सकता . कीन अंदर ही अंदर मसोस कर रह गए .उस समय  कीन एक पैर पर खड़े थे एक पैर मोड़ कर पीछे खड़ी दीवार पर टिकाये अखबार बांच रहे हैं गो कि अभी आज का ताजा अखबार आया नहीं है . कीन पुराने से ही काम चला रहे हैं . यहाँ इस चौराहे का अलिखित नियम है कि अखबार उम्र , पद और गरिमा के हिसाब से पढ़ने को मिलता है ,और कीन का नंबर जब तक आता है सांझ हो जाती है यह नहीं कि लोग दिन भर वहीं बैठे रहते हैं , लेकिन आखिर चाय की दूकान है न , लोग केवल चाय पीने ही थोड़े आते हैं ... अखबार देखेंगे , आबो हवा बदलेंगे वरना उनको घर पर चाय नहीं मिलेगी क्या ? दुकानदार का पहला फर्ज है कि वह अपने ग्राहक का ख़याल रखे समझे कीन ? वहीं अपनी दूकान से झाँक लिया करो , जब यहाँ कोइ न रहे तो आकर पढ़ लिया करो . कीन जानते हैं लाल साहेब पुराण मुरहा है ,औ गाहक ? तो ससुरे दिन भर आते ही रहते हैं . तब से कीन एक दिन . कभी तो तारीख भी नहीं देखते पुराना अखबार बांचने लगे हैं .उमर दरजी ने कीन को उकसाया का लिखा है कीन गुरु ? आज के अखबार में . कीन मुस्कुराए - वही लिखा है जो नवल उपाधिया बोल रहे थे , बुलाय के पूछि लो . तब तक नवल हाजिर हो गए . उमर ने नवल को घुड़का - का बोल रहे थे हमरे बारे में . देखो नवल ! रहना हो तो तमीज से रहो वरना इतनी मार खाओगे कि मुह औ जूते में फर्क गायब हो जायगा समझे . नवल उमर को सुन रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं - और बोल . जितना बोलते बने बोल ले फिर बताते हैं . उमर एक कदम आगे बढ़ के नवल के नजदीक आ गया - सुन पंडित हीरामन उपाध्याय के सुपुत्र !तू अगर अपने आपको न सुधारा तो
- तो कर लेबे ?
- कनपटी पे दो कंतास देंगे और चले जायंगे अपनी दूकान पर .
नवल कीन की तरफ मुड़े - नवल भाय ! इसको पाकिस्तान भेज देते तो गाँव सुधर जाता . उमर मुस्कुराया - पाकिस्तान तोरे बाप बसाए रहे कि कीन के बाप ? और चाय के हांका लगते ही संबाद रुक गया . चुंकी नवल उस समय खैनी मल रहे थे चुनांचे उमर दरजी ने नवल की चाय भी दूसरे  हाथ में पकड़ कर नवल के बगल खड़े रहे . गाँव में यह यह रोज मर्रा की जिंदगी है . पता नहीं कब से चला आ रहा है . इस रवायत की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं इनको उखाडना अब आसान नहीं है . अखबार आ गया . चिखुरी के सामने . चिखुरी ने अखबार उठा कर मद्दू पत्रकार की तरफ बढ़ा दिया - देखिये आज कौन सा बवाल है ? मद्दू नेअख्बार उठाया - बिहार में अगर हम हारे तो .पाकिस्तान में पटाखे छूटेंगे . अमित शाह ने रक्सौल में बोला है . चिखुरी ने गर्दन ऊपर उठाया . - कहाँ कहाँ से पकड़ कर लाया है ... बेतुकी बात . बदजुबानी . न कोइ मर्यादा न तमीज ... बिहार ने तो इन्हें नंगा कर दिया एक एक कर के इनकी असलियत जनता के सामने खुलती जा रही है . चुनाव इतनी गिरी जुबान में कभी नहीं हुआ . दुर्भाग्य देखो कि जिनके हाथ में मुल्क की बागडोर है वह इतना नीचे जा चुका है . कल उसी बिहार में एक लड़की मीसा के बारे में जो बोला गयावह सड़क छाप लफंगे भी बोलने के पहले अगल बगल जहां लेते हैं कि कोइ बुजुर्ग तो नहीं सुन रहा है , और इधर ये मुखिया महोदय हैं कि सरे आम महफ़िल में लाउड स्पीकर से चीख चीख कर बोल रहे हैं . बिहार में ही नहीं देश में और दुनिया के हर कोने में हमारी तुक्का फजीहत हो रही है . यह हमारा मुल्क है ? यहीं पर गांधी , लोहिया , जे पी , कर्पूरी ठाकुर , किस किस ने राजनीति नहीं किया . एक दूसरे के विरोध में रहे लेकिन दुश्मन नहीं थे . मत भेद और मन भेद का मर्म जानते थे . इसी मुल्क में पंडित नेहरु ने राजनीति की उनकी दिली  मंशा थी कि संसद में डॉ लोहिया और कृपलानी जैसे लोग आयें . सैधांतिक बहस चले . वही मुल्क आज सियासत को संदुक्चियों और बन्दुक्चियो के हाथ सौंप दिया है . लेकिन जो रपट बिहार से आ रही है , लगता है शुभ होगा और बिहार देशग को नयी डगर दिखायेगा . ... एक चाय और ? लाल साहेब ने बीच में ही टोक दिया . बात रुक गयी और चाय हाथों में . तब तक ररा नाई चीखा - भाई सैलून में साइकिल किसने दाल दिया ...जोर का ठहाका लगा . करि  अवा कुकुर दूसरे कुत्ते को देख कर गुर्राया . नवल ने साइकिल उठाया और जगाते हुए आगे बढ़ गए मोरा सैंया गवन लिए जायं हो करौना की छैयां छैयां ......

Wednesday, October 28, 2015

बतकही / चंचल
गांधी ,नेहरु , जे पी . लोहिया को  पढ़ कर का करेंगे
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          ई राजेन्द्र चौधरी कौन है ?
- सच्ची बोलें ? तोर बाप है . चोर , बनडोल , डकैत , चमचोर ,बलात्कारी औ लुटेरों क इतिहास तुम्हरी जबान पर है , औ पूछि रहा है राजेन्द्र चौधरी कौन है ? तुम्हारी गलती नहीं है , पिछले कुछ सालों से बयार ही ऐसी चली है कि जो जितना बड़ा अपराधी ,उतना ही बड़ा उसका लावाजिमा और उतनी ही बड़ी पूजा . कल तक रहा कि अगर कोइ अपराध में पकड़ा गया तो क़ानून बाद में सजा देता रहा , समाज पहले ही टाट बाहर कर देता रहा औ हुक्का पानी सब बंद . राजिंदर के सवाल पर लम्मरदार का इस तरह भडकना लोगों को अजीब लगा , क्यों कि लम्मरदार जल्दी उबलते नहीं . लेकिन लगता है कहीं और से बौखलाए हुए आये हैं . लाल साहेब ने सम्भाला - बैठिये लम्मरदार ! आज अदरख की चाय बना रहा हूँ . का बात है आज सुबहे उखड गए ? लम्मरदार ने लाठी बगल दीवार पर टिकाया और तख़्त पे जम कर बैठ गए .लंबी सांस ली और बोलना शुरू किये . पूरे गाँव में का अगल बगल हर जगह चर्चा है कि एक ठेठ गाँव में लोगों को पढ़ने के लिए , उठने बैठने के लिए , और अपने पुरखों के बारे में जानने के लिए ' दस्तावेज ' बनाया जारहा है ....... बात पूरी हो इसके पहले ही उमर दरजी ने टोका - काका ! आज वाकई बहकी बहकी बात कर रहो  हो कुछो , कुछो ना समझ में आय रहा बा , एंटीना से ऊपर निकल जा रहा है ? लम्मरदार मुस्कुराए .बताता हूँ .परधान क लडिका पढ़ लिख के गाँव आवा . कुछ दिन तो यूँ ही गाँव गाँव घूमता रहा . पता नहीं का सनक सवार हुयी कि बोला - अब गाँव में एक पुस्तकालय की जरूरत है , एक बाजार की जरूरत है जहां गाँव में बनने वाले पुश्तैनी रोजगार को फिर से स्थापित किया जा सके ,इस समय समूचे देश को इन दो चीजों की बहुत जरूरत है वरना आगे आने वाली पीढ़ी तो और भी निकम्मी  निकलेगी . अपनी कुल पूंजी लगा कर उसने पुत्कालय तो खोल दिया , अब उसे और आगे बढ़ाना था . जहां एक जगह वे सारे दस्तावेज मुहैया हो सकें जिन्हें हमारी पीढ़ी नहीं जानती . गांधी , नेहरु , डॉ लोहिया , जे पी . आज की पीढ़ी के लिए यह जरूरी है कि इन पुरखों के बारे में गंभीरता से जाने . उस हिस्से का नाम रखा गया है दस्तावेज . इसी के बगल में एक कतार से छोटी छोटी दुकाने बनाने का इरादा है जहां लोहार , कुम्हार , धरिकार , रंगरेज . धुनिया वगैरह अपने पुश्तैनी पेशे के साथ इज्जत के साथ ,अपना काम करे और उसे देश दुनिया देखे . इस आयोजन के लिए राजेन्द्र चौधुरी ने अपने निधि से मदद किये . और इसकी चर्चा चारों ओर है . क्यों कि अब तक जो होता रहा कि सांसद और विधायक अपने निधी से जो भी मदद करते रहे , पहले उसका कमीशन ले लेते रहे . यहाँ एक भी पैसे का लेन देन नहीं हुआ है . इसकी वजह जान लो चौधरी राजेन्द्र निहायत ईमानदार नेता है और खुत्थड समाजवादी . औ ई बकलोल पूछ रहा है कि कौन हैं राजेन्द्र चौधरी ? अजीब हालत में समाज पहुँच चुका है . न नेक काम की चर्चा , न नेक नाम की जानकारी . इस लिए गुस्सा आ गया . कल का किस्सा सुने ? बनारस हवाई अड्डे पर कुछ देर के लिए मुलायम सिंह यादव रुके . बिहार से वापस आ रहे थे . गणेशी परम्परा के समाजवादी वहाँ पहुँच गए . मुलायम सिंह से कहा गया कि बनारस में डॉ लोहिया की एक प्रतिमा लगवा दीजिए .मुलायम सिंह ने बहुत माकूल जवाब दिया . - डॉ लोहिया पर सेमीनार भी किये हो कभी ? जे पी और आचार्य नरेंद्र देव को पढ़े हो ? समाजवादियों में आपस में ही तू तू मै मै शुरू हो गयी और मुलायम जी बगैर विश्राम किये अपनी यात्रा पर चले गए . लेकिन एक सवाल तो छोड़ ही गए - मूर्ती पूजा और विचार में किसको पकडना है ? और किसके विचार ?
   - तो इस दस्तावेज में कौन कौन से लोग आयेंगे ? कीन उपाधिया ने कुटिल हंसी के साथ पूछा क्यों कि जब से यह पुस्ताकलय शुरू हुआ है कुछ नौजवान गांधी लोहिया आचार्य , पंडित नेहरु के बारे में जानने लगे हैं और संघियों के झूठ का जवाब भी देने लगे हैं ,कीन उपाधिया को यह खटकता है क्यों कि ये पुराने संघी हैं और अब तक जो कुछ भी झूठ फुर बोलते थे पब्लिक मुह बाए सुनती थी . उनके प्रचार को धक्का लगा है . लम्मरदार ने कीन को देख कर हँसे -  बकलोल ! एक साल से भी ज्यादा हुए केन्द्र में तुम्हारी सरकार है . चुनाव हुए और हो रहे हैं . कहीं एक भी जगह अपने किसी नेता का नाम सुना कि उनके नाम पर वोट माग रहे हों ? हेडगवार , गोलवरकर , अटल या अडवानी किसी का नाम आया ? कभी गांधी , कभी पटेल , अब डॉ लोहिया , जे पी .. ? बोल ! सच है न . और जब गांधी लोहिया जे पी के विचार से मुठभेड़ होगी तब क्या करोगे ? अब भी वक्त है तू ' दस्तावेज में बैठना शुरू कर . वहाँ तुम्हारी भी किताबें मिलेंगी जिसमे तुमने नफरत के पाथ पढाएं हैं , उन्हें पढ़ कर तुम्हे शर्म आयेगी . पूछों न अपने नेता से कि बंच आफ थाट कहाँ है / बच्चू कोइ न कोइ समाजवादी ज़िंदा रहेगा और वह ठोस धरातल बनाएगा ही . परम्परा मिटनेवाली नहीं है . राजेन्द्र चौधरी उसकी एक मजबूत कड़ी हैं . उनके पास न मकान है , न बख्तर बंद गाड़ियों का काफिला , न बन्दूक है न संदूक लेकिन आज वह उत्तर प्रदेश का एक मजबूत शख्स है जिसके पास उसकी सबसे बड़ी तिजारत है इमानदारी और वैचारिक प्रतिबद्धता . चल वक्त हो तो दस्तावेज चलो .

Friday, October 16, 2015

बतकही / चंचल
गांधी ,नेहरु , जे पी . लोहिया को  पढ़ कर का करेंगे
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          ई राजेन्द्र चौधरी कौन है ?
- सच्ची बोलें ? तोर बाप है . चोर , बनडोल , डकैत , चमचोर ,बलात्कारी औ लुटेरों क इतिहास तुम्हरी जबान पर है , औ पूछि रहा है राजेन्द्र चौधरी कौन है ? तुम्हारी गलती नहीं है , पिछले कुछ सालों से बयार ही ऐसी चली है कि जो जितना बड़ा अपराधी ,उतना ही बड़ा उसका लावाजिमा और उतनी ही बड़ी पूजा . कल तक रहा कि अगर कोइ अपराध में पकड़ा गया तो क़ानून बाद में सजा देता रहा , समाज पहले ही टाट बाहर कर देता रहा औ हुक्का पानी सब बंद . राजिंदर के सवाल पर लम्मरदार का इस तरह भडकना लोगों को अजीब लगा , क्यों कि लम्मरदार जल्दी उबलते नहीं . लेकिन लगता है कहीं और से बौखलाए हुए आये हैं . लाल साहेब ने सम्भाला - बैठिये लम्मरदार ! आज अदरख की चाय बना रहा हूँ . का बात है आज सुबहे उखड गए ? लम्मरदार ने लाठी बगल दीवार पर टिकाया और तख़्त पे जम कर बैठ गए .लंबी सांस ली और बोलना शुरू किये . पूरे गाँव में का अगल बगल हर जगह चर्चा है कि एक ठेठ गाँव में लोगों को पढ़ने के लिए , उठने बैठने के लिए , और अपने पुरखों के बारे में जानने के लिए ' दस्तावेज ' बनाया जारहा है ....... बात पूरी हो इसके पहले ही उमर दरजी ने टोका - काका ! आज वाकई बहकी बहकी बात कर रहो  हो कुछो , कुछो ना समझ में आय रहा बा , एंटीना से ऊपर निकल जा रहा है ? लम्मरदार मुस्कुराए .बताता हूँ .परधान क लडिका पढ़ लिख के गाँव आवा . कुछ दिन तो यूँ ही गाँव गाँव घूमता रहा . पता नहीं का सनक सवार हुयी कि बोला - अब गाँव में एक पुस्तकालय की जरूरत है , एक बाजार की जरूरत है जहां गाँव में बनने वाले पुश्तैनी रोजगार को फिर से स्थापित किया जा सके ,इस समय समूचे देश को इन दो चीजों की बहुत जरूरत है वरना आगे आने वाली पीढ़ी तो और भी निकम्मी  निकलेगी . अपनी कुल पूंजी लगा कर उसने पुत्कालय तो खोल दिया , अब उसे और आगे बढ़ाना था . जहां एक जगह वे सारे दस्तावेज मुहैया हो सकें जिन्हें हमारी पीढ़ी नहीं जानती . गांधी , नेहरु , डॉ लोहिया , जे पी . आज की पीढ़ी के लिए यह जरूरी है कि इन पुरखों के बारे में गंभीरता से जाने . उस हिस्से का नाम रखा गया है दस्तावेज . इसी के बगल में एक कतार से छोटी छोटी दुकाने बनाने का इरादा है जहां लोहार , कुम्हार , धरिकार , रंगरेज . धुनिया वगैरह अपने पुश्तैनी पेशे के साथ इज्जत के साथ ,अपना काम करे और उसे देश दुनिया देखे . इस आयोजन के लिए राजेन्द्र चौधुरी ने अपने निधि से मदद किये . और इसकी चर्चा चारों ओर है . क्यों कि अब तक जो होता रहा कि सांसद और विधायक अपने निधी से जो भी मदद करते रहे , पहले उसका कमीशन ले लेते रहे . यहाँ एक भी पैसे का लेन देन नहीं हुआ है . इसकी वजह जान लो चौधरी राजेन्द्र निहायत ईमानदार नेता है और खुत्थड समाजवादी . औ ई बकलोल पूछ रहा है कि कौन हैं राजेन्द्र चौधरी ? अजीब हालत में समाज पहुँच चुका है . न नेक काम की चर्चा , न नेक नाम की जानकारी . इस लिए गुस्सा आ गया . कल का किस्सा सुने ? बनारस हवाई अड्डे पर कुछ देर के लिए मुलायम सिंह यादव रुके . बिहार से वापस आ रहे थे . गणेशी परम्परा के समाजवादी वहाँ पहुँच गए . मुलायम सिंह से कहा गया कि बनारस में डॉ लोहिया की एक प्रतिमा लगवा दीजिए .मुलायम सिंह ने बहुत माकूल जवाब दिया . - डॉ लोहिया पर सेमीनार भी किये हो कभी ? जे पी और आचार्य नरेंद्र देव को पढ़े हो ? समाजवादियों में आपस में ही तू तू मै मै शुरू हो गयी और मुलायम जी बगैर विश्राम किये अपनी यात्रा पर चले गए . लेकिन एक सवाल तो छोड़ ही गए - मूर्ती पूजा और विचार में किसको पकडना है ? और किसके विचार ?
   - तो इस दस्तावेज में कौन कौन से लोग आयेंगे ? कीन उपाधिया ने कुटिल हंसी के साथ पूछा क्यों कि जब से यह पुस्ताकलय शुरू हुआ है कुछ नौजवान गांधी लोहिया आचार्य , पंडित नेहरु के बारे में जानने लगे हैं और संघियों के झूठ का जवाब भी देने लगे हैं ,कीन उपाधिया को यह खटकता है क्यों कि ये पुराने संघी हैं और अब तक जो कुछ भी झूठ फुर बोलते थे पब्लिक मुह बाए सुनती थी . उनके प्रचार को धक्का लगा है . लम्मरदार ने कीन को देख कर हँसे -  बकलोल ! एक साल से भी ज्यादा हुए केन्द्र में तुम्हारी सरकार है . चुनाव हुए और हो रहे हैं . कहीं एक भी जगह अपने किसी नेता का नाम सुना कि उनके नाम पर वोट माग रहे हों ? हेडगवार , गोलवरकर , अटल या अडवानी किसी का नाम आया ? कभी गांधी , कभी पटेल , अब डॉ लोहिया , जे पी .. ? बोल ! सच है न . और जब गांधी लोहिया जे पी के विचार से मुठभेड़ होगी तब क्या करोगे ? अब भी वक्त है तू ' दस्तावेज में बैठना शुरू कर . वहाँ तुम्हारी भी किताबें मिलेंगी जिसमे तुमने नफरत के पाथ पढाएं हैं , उन्हें पढ़ कर तुम्हे शर्म आयेगी . पूछों न अपने नेता से कि बंच आफ थाट कहाँ है / बच्चू कोइ न कोइ समाजवादी ज़िंदा रहेगा और वह ठोस धरातल बनाएगा ही . परम्परा मिटनेवाली नहीं है . राजेन्द्र चौधरी उसकी एक मजबूत कड़ी हैं . उनके पास न मकान है , न बख्तर बंद गाड़ियों का काफिला , न बन्दूक है न संदूक लेकिन आज वह उत्तर प्रदेश का एक मजबूत शख्स है जिसके पास उसकी सबसे बड़ी तिजारत है इमानदारी और वैचारिक प्रतिबद्धता . चल वक्त हो तो दस्तावेज चलो .

Tuesday, September 15, 2015

चिखुरी / चंचल
बिहार खुदे एक जाति है भइये g
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                    '.....जब से इ मुआ आवा है, सब उलटा पुल्टा हो रहा बा .और त और अबकी बार मुह झौंसा बदरा भी दगा दे रहा हउ . भला बताओ सावन भादों में धूल उड़े औ दिन मे दुआरे दुआरे सियार फेकरै . ... बटुली में करछुल डाल कर जन्तुला ने उसे दो तीन बार खड खड़ाया और लगी महगाई को गरिआने .- दाल रोटी पे जिंदगी कटत रही , न उधो क लेना न माधो क देना कोइ बात की फिकर ना रहत रही . इहौ छिनार जा के आसमान पे बैठी है , भला बताओ कभी सोचा रहा कि डेढ़ सौ रुपिया में सेर भर दाल बिकी ? जारे जमाना ! तोर नास होय . पियाज देखो ... हरामी बिसुनाथ बनिया न गाँव देखत बा , न समाज ! सौदा -सुल्फी लेय गयी रही परबतिया क अंगुली छू के फंसावत रहा कि चल कोठरी में तुमका  सेर भर पियाज देब ... महगाई पर जन्तुला चालु रहती लेकिन चूल्हे ने रोक दिया . वह फूंक मार कर आग जलाने के लिए झुकी ही थी कि झबरा ने मौके का फायदा उठाया और थाली से एक रोटी खींच लिया .जन्तुला ने भांप लिया कि झबरे ने रोटी उठा लिया है . जन्तुला ने  अधजली लकड़ी का चैइला उठाया और झबरे पे दे मारा . रोटी वहीं जमीन पे गिर गयी और झबरा पों पों करते भागा .जन्तूला महगाई भूल गयी और लगी कुकुरों को कोसने - मुआ इ दुनो जब से आये हैं जीना हराम कर दिये हैं .. पूरे गाँव क नीद हराम किये बा ....एकरी दाढ़ी में ....उधर से खैय्नी मलते आ रहे नवल उपाधिया ने जन्तूला को सलाम करके खड़े हो गए . गाँव के रिश्ते में जन्तूला नवल उपाध्याय की बुआ लगती हैं ,इस रिश्ते दोनों में खुल कर मजाक होता है . शुरुआत नवल के दुअर्थी सवालों से होता है और जब जन्तुला सवालों से घिर जाती हैं तो सीधे सीधे नवल की माँ बहन अंग प्रति अंग की बनावट से लेकर वह सब कुछ शुरू कर देती हैं जो भारतीय समाज में गोपनीय कर्म मान लिया गया है . गरज यह कि जब जन्तूला शुरू होती हैं तो उसे नवल नहीं सुनते , वो कब के मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए होते हैं उसे सुनते है उमर दरजी ,रामलाल तेली .कनुयी भक्तिन चुन्नी लाल की बकरी नीम की फुनगी . आज फिर वही मौक़ा आ गया . नवल रुके - किसे गरिया रही हो बुआ ? जन्तुला ने फुकती को ठीक किया - इहै दुनो कुकुर एक करिअवा औ एक इ झबरा . इ दुनौ  हलाकान मचाये हैं . आग न देखें न पीछ .. जो भी दिखेगा , मार के  झपट्टा चलि देहें .... नवल और भी सुनते लेकिन आज उन्हें जल्दी है चौराहे पर सब उनका इन्तजार कर रहे होंगे - तो आज कौन रहा बुआ ? झबरा कि करिअवा ? औ कहाँ मारिस ह झपट्टा , आगे कि ...बस इतना काफी था जन्तुला नवल की माँ पर चढ़ बैठी . लगी बखान करने , लेकिन नवल तो जा चुके थे . नवल मुस्कुराते हुए बढे जा रहे थे कि अचानक उनकी टकराहट बहिर दुबे से हो गयी जो हबीब की दूकान पर खड़े चड्ढी सिलवा  रहे थे . बहिर दुबे सुनते कम हैं लेकिन देखने में कोइ कोताही नहीं करते . आधी बात वे सामनेवाले के हाव भाव से जान लेते हैं ,जो नहीं जान्पाते उसे पूछ लेते हैं . - नवल ! का हुआ उधर जन्तुला काहे उखाड़ी हाउ ? झबरा जन्तुला क रोटी लेके भाग्गयल . बहिर दुबे चौंके - कहाँ भोजपुर कहाँ भागलपुर ? इसकी ससुराल तो भोजपुर रही ,एक बार लड़ के आयी तब से यहीं है इसे का मालुम भागल पुर की बात ? नवल धीरे से बुदबुदाए - अब इ बहिर राम के के समुझावे . भाग गयल के भागलपुर समझ लिए हैं .
       नवल जब चौराहे पर पहुचे तो सदन शुरू हो चुका था .चाय की केटली भट्ठी पर , और भट्ठी काले धुएं से घिरी पडी है लाल साहेब बेना हौंक रहे हैं . नवल का स्वागत लखन कहार ने किया - आओ हो नवल भाय कौनो खबर ? काहे नहीं बा , हम कहत रहे झबरा रोटी लेके भाग गयल औ बहिर दुबे लगे भागल पुर पे प्रबचन देने ,किसी तरह से निकल पाए . नवल यह जानते थे कि वे भागलपुर से निकले नहीं हैं ,अब भागलपुर जा रहे हैं . और हुआ वही भागलपुर जेरे बहस हो गया . कीन उपाधिया ब कलम खुद 'पदैसी संघी हूँ ' भागल पुर सुनते ही उछले - भीड़ देखा ? इसे कहते हैं रैली . आया समझ में . उमर ने चिढाया - पटना देखा , इसे कहते हैं रेला . सुनते ही जोर जोर का ठहाका लगा . मद्दू पत्रकार ने संजीदगी से बोलना शुरू किया . इस बार बिहार की लड़ाई आर पार की है . साम्प्रदायिकता और समाजवादियों के बीच . फैसला बिहार को करना है . ... कें ने सवाल उठाया - और कांग्रेस भी तो है . दूसरी बात नीतिश और लालू तो जातिवादी पार्टी चलाते हैं ? चिखुरी जो अब तक चुप थे कीन को घुडकी दी - कुछ जानते भी हो कि बकवास ही करोगे ?कांग्रेस सबदा कौन समाजवादी है . उसकी रसीद देखो सबसे पहले उसमे यही लिखा है समाजवादी समाज के प्रति प्रतिबद्धता .जे पी . डॉ लोहिया . आचार्य कृपलानी , आचार्य नरेंद्र देव बगैर इनके कांग्रेस का इतिहास ही नहीं पूरा होगा . और सुन कीन अपना यह भ्रामक प्रचार बंद कर कि बिजार में जातिबादी राजनीति होती है . यहाँ अगर जातिबादी राजनीति होती तो इसी बिहार से कृपलानी , जार्ज , मधुलिमये यहीं से जीतते रहे हैं यह प्रचार वही करते हैं जो खुद सिकुड़े हुए मन के हैं . दिल्लीमे पूर्वोत्तर राज्यों के बच्चे पर हमला करेंगे . बंबई में बिहारी मारे जांएगे , उन्ही के साथ मिल कर राजनीति करने वाले बिहार पर आरोप लगाएंगे ? बिहार किसी भ्रम में नहीं है . देश का जनतंत्र ज़िंदा रहे यह उसकी कामना है . देखा नहीं उस दिन पटना का रेला ? छल कपट बंद करो समझे कीन .? कीन समझें या न समझे लेकिन नवल समझ गए और गाते हुए निकले मोसो छल किये जाय .... सैयां बेईमान ...

Wednesday, September 9, 2015

बतकही / चंचल
अपन त मंसूबे में ही कंगाल हैं .
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 होत भिनसार    लम्मरदार के दरवाजे पर ,बाप बेटे में बतकही चालू हो गयी और बढते बढते कबाहट तक पहुँच गयी .चूंकी लखन कहार का सदर मोहारा उत्तर तरफ है और उत्तर लम्मरदार क दुआर बिलकुल सामने है इस वजह से लम्मरदार के दरवाजे पर जो कुछ भी होता है उसमे लखन कहार बतौर प्रेक्षक शामिल हो जाते हैं . हूँ हाँ करते कराते सारी खबर लखन को मुफ्त में मिल जाती है . अब उनकी दिक्कत हैं कि उन्हें दो चीज नहीं पचती एक बात और दूसरी बतासा .गरज यह कि ये दोनों ही लखन के प्रिय पदार्थ हैं . होत भिनसार जब सो के उठते हैं तो दो ठो बतासा खायेंगे और लोटा भर पानी पीकर ,लोटा भर पानी लेकर  'मैदान ' चल देते हैं . और गाँव गिराँव की कोइ खबर हो उसे लखन अपने ढंग से पचाते हैं और अपने ढंग से निकालते हैं . आज लम्मरदार के घर की खबर लेकर लखन चौराहे पहुंचे हैं .चौराहे पर बनी लाल साहेब की चाय की दूकान गाँव  की संसद है .कोइ कहीं से भी ,किसी भी जुबान में , कुछ भी बोलने की आजादी रखता है . यहाँ कोइ निष्कासन नहीं है . उमर दरजी ने लखन कहार को उकसाया - आज किस बात पे लम्मरदार उखड़े रहे ? यही तो चाह रहे थे लखन . चालू हो गए .- लम्मरदार को किसी से लोहे की कमानी मिल गयी है . लम्मरदार ने अपने बेटे बोग्गा को कहा कि यह कमानी ले लो और लोहराने ले जाकर एक  कुदाल और दो खुरपी बनवा लो . बम्मई कमा के लौटा बोग्गा बहस पे उतर गया . - दस किलो की कमानी ... कंधा कट जायगा . .. फिर गाँव में इतना हल्बा हथियार कहाँ से मिलेगा कि दो इंच मोटा लोहा कट जाएगा ? बनी बनायी कुदाल ले लो हम पैसा दे देंगे . इसी बात पे कबाहत हो रही है . लम्मरदार का कहना है कि सवाल पैसे का नहीं है पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही रवायत का है . और उससे बड़ा सवाल है जब गाँव के लोहार से किसी किसान का वास्ता ही नहीं रह जायगा तो कृपाल लोहार इस उम्र में कहाँ  जांयगे ?  लखन अभी अपनी रौ में थे कि एक एक करके लोग आना शुरू हो गए . यथोचित अपने अपनी जगह पर बैठ गए और सदन की कार्यवाही राम कृपाल लोहार और उनके उद्यम पर चल पडी . मद्दू पत्रकार ने लम्बी सांस ली . और बोलना शुरू कर दिये . - बहुत बड़ा सवाल है पता नहीं यह मुल्क स्साला कैसे इतने दिन तक ज़िंदा रहता जा रहा है जिस मुल्क के निजाम में उत्पादन करनेवाली जातियों की उपेक्षा हो , अन्हे अछूत तक मान लिया जाय वह देश वह कौम वह उनका अर्थशास्त्र जाहिर है गर्त में जायगा . और पहुच गया है . बाबू साहेब , पंडित जी , सबसे नाकारा बिरादरी लेकिन ये सबसे ऊपर हैं . पंडित जी जूते की दूकान खोलेंगे रीबाक ,उड्लैंड बेचेंगे लेकिन सीताराम मोची का छुआ पानी नहीं पियेंगे . इसी क्रम में लोहार , सुनार , धोबी , कुम्हार , नाई , मुसहर , धरिकार वगैरह आते हैं . लेकिन सब फेल , क्यों कि सरकार की नजर इधर नहीं है . क्यों  कि सरकार आँख नौकरशाही है और आधी  नौकरशाही रतौंधी में है और बाद बाकी दिन अंधरा के मरीज हैं . यहाँ जो जन प्रतिनिधी हैं उन्हें चाहिए कि नौकरशाही के सामने सीधी सदी बात सामने रख कर कहें कि यह करना है , उदाहरण के लिए इससमय एक जुमला बाहर फेंका गया है - स्मार्ट सिटी .सरकार जानती है कि क्या होती है इस्मार्ट सिटी ? नहीं मालुम . नौकरशाही को भी नहीं मालू,म .लेकिन वह कलाम में लग जायगा . दूसरी बात देखो - इस्मार्ट सिटी किसके लिए ? धनपशुओं के लिए , भ्रष्ट नेता के लिए , लुटेरे नौकर के लिए . उस स्मार्ट सिटी में गरीबों का प्रवेस वर्जित रहेगा . वहाँ ठेले नहीं चलेंगे , रिक्से नहीं चलेगे , सब कुछ बना बनाया . बैगन से लेकर बच्चा तक .
-बच्चा ? यह भी स्मार्ट सिटी में बिकेगा . ? लाल साहेब की आँख गोल हो गयी . मद्दू पत्रकार ने ज्ञान आगे बढ़ा दिया - इसे टेस्ट ट्यूब बेबी बोलते हैं . हिंदी में लोटे में गर्भाधान से गुजरे बच्चे की आमद होने लगी है . तुम जिस रूप , रंग , दिमाग ,चाल चलन , चरित्र वाले बच्चे को पसंद करो दूकान पर भी जाने की जरूरत नहीं है सब आन लाइन . लखन कहार ने लंबी सांस खीची - ज्जा रे ज़माना . उस शहर में कुकुर भी होंगे ? सवाल टेढ़ा लगा . मद्दू ने यह कह कर सवाल को बगल कर दिया कि पूछ के बताते हैं . तब तो हम हिंदी पट्टी वाले बहुत पीछे हो जांयगे ? उमर दरजी का सवाल चाय के साथ आ गया . सुराजी कयूम मियाँ से यह सब बर्दास नहीं हुआ तो वे सामने आ गए - इस्मार्ट सिटी के नाजायज नालायक औलादों ! हम देश की आजादी की लड़ाई लड़ते समय यह कहे रहे कि अब मुल्क के साथ गाँव आजाद होगा . यह गांधी का सपना था , कांग्रेस का सपना था . नेहरु, डॉ लोहिया , आचार्य नरेंद्र देव और जे पी का सपना था लेकिन कमबख्त नौकरशाही ने सब बराबाद कर दिया . अभी भी वक्त है उत्तर प्रदेश सरकार इस स्मार्ट सिटी का जवाब दे कि हम सूबे में स्वावलंबी गाँव बनाएंगे . आओ देखो इसे मुल्क कहते हैं . इस गाँव की परिकल्पना नौकरशाही नहीं करेगी . राजनीति तय करके नौकरशाही को कहेगी अब इसेचला कर दिखाओ . हर ब्लाक में एक माडल बनाओ गाँव में जितनी भी पुश्तैनी पेशे से जुड़ी जातिया हैं सब को मुफ्त का आवास , उनके पेशे से जुड़े औजार और सुविधांए . गाँव की जरूरी जरूरियात की चीजे उनके घर में पैदा हों . वही उत्पादक हो और वही विक्रेता और वही खरीद दार . गाँव की मजबूती वहाँ है . देश नहीं दुनिया आयेगी उसे देखने . करना कुछ नहीं है बस पर्यटन , खादी . लघु उद्योग , और सड़क मंत्री बैठ कर सब फैसला कर लें . एक सूबा है राजस्थान उसकी आमदनी बस दो पर टिकी है पर्यटन पर और गाँव पर . याता यात को मुख्य सड़क से थोड़ा कम करके उसे गाँव से शुरू कर दो . यह जवाब होगा इस्मार्ट सिटी का .. नाम लखन देयिया ,मुह कुकुरी का ? अकल से गायब इस्मार्ट सिटी बना रहे हैं ? नवल उपाधिया आँख बंद करके घोखते रहे फिर बुदबुदाए - अह्ने यहाँ विकास की परिभाषा ही गलत चलाई गयी है , कहो मद्दू ? बिलकुल सही .. इस पर कल . 

Thursday, August 27, 2015

आज भाई ब्रज खंडेलवाल फंसा दिया . अपनी पोस्ट में ब्रज भाई लिखते हैं कि भारतीय समाज की आदर्श  स्त्री सीता नहीं द्रौपदी है . यह कथन है डॉ लोहिया का . इस कथन पर घोचुओं , कम अक्ल पोंगापंथियों की त्योरी चढ़ जायगी और लगेंगे पोंगा काटने .मजे की बात इस कथन को विस्तार देने की जिम्मेवारी ब्रज भाई ने हमारी तरफ बढ़ा दिया .फेस बुक के मित्रों और वैचारिक विरोधियों को यह भी मालुम है कि हमारा नाम देखते ही गिरोही लगता है उछल कूद करने . फिर भी जोखिम तो लेना ही पड़ेगा , अब तो आदी हो चुका हूँ .चलिए शुरुआत करते हैं भारतीय जन मन से . उसके मनोविज्ञान से . हर समाज दो खाने में बंटा है . हीन भावना , कुंठित सोच , और परावलम्बी चेतना में जीनेवाला समाज एक तरफ है ,जो जालिमाना हरकत को सहन कर जालिम को जुल्म करने का मौक़ा देता चलता है .दूसरा हिस्सा है जो जुल्म के खिलाफ आवाज उठाता है , जालिमाने सोच को चुनौटी देता है और अपने हक और हुकूक के खातिर जंग का ऐलान करता है . सीता के प्रचलित जीवनी को देखा जाय तो उस पर जम कर अन्याय हुए हैं मिथक कथा के अनुसार सीता की मृत्यु तो और भी भयानक सवाल छोड़ जाती है जब एक धोबी सीता पर इल्जाम लगाता है . और सीता को अग्नि परिक्षा देने को विवस किया जाता है . इसके बरक्स द्रौपदी आती है . ध्रितराष्ट्र सुतों ने द्रौपदी के पिता को अपमानित किया , द्रौपदी उसका बदला लेने  और कौरव को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा करती है . समूचे महा भारत को सलीके से पढ़ा जाय जो इस कथा की नायिका द्रौपदी है और नायक कृष्ण है .दोनों में सखा सखी का सम्बन्ध है . द्रौपदी कृष्ण से प्यार करती है . जब वह कृष्ण को शादी के लिए कहती है तो कृष्ण ने द्रौपदी को समझाया है - अगर तुम हमसे शादी करोगी तो तुम अपने पिता के अपमान का बदला नहीं ले पाओगी तुम पांडू पुत्र से शादी रचाओ . हस्तिनापुर राज्य के उत्तराधिकार का प्रश्न सामने आ रहा है . कौरव और पान्दुपुत्र आमने सामने होंगें . द्रौपदी खुल कर अपने प्यार का इजहार करती है . द्रौपदी का आदर्श रूप युद्ध के दौरान दिखाई देखा देता है जिसपर डॉ लोहिया ने विस्तार से लिखा है . कौरव और पाण्डु पुत्रों के पूज्य भीष्म पितामह मृत्युशैया पर हैं . दिन भर युद्ध लड़ने के बाद सांझ को दोनों भीष्म पितामह के सामने आते हैं और भीष्म उन्हें नीति की शिक्षा देते हैं . एक सांझ भीष्म नीति पर बोल रहे थे . कि अचानक द्रौपदी हंस पडी . ठहाका लगा कर हंसी थी . पूरा कुल सदमे में . अर्जुन गुस्से में द्रौपदी की तरफ दौड़े . हस्तिनापुर का कुल गौरव मौत को वरण कर रहा है और तुम हंस रही हो ? कृष्ण बीच में आ गए . अर्जुन को रोका . बोले - अर्जुन पहले यह तो जान लो कि द्रौपदी क्यों हंसी ? फिर द्रौपदी ने भीष्म से सवाल पूछा है . पितामह ! आप और आपकी नीति कहाँ थी जब हस्तिनापुर राज्य के असल राजा पांडू पुत्र को उनके राज्याधिकार से वंचित किया गया . पाण्डु पुत्रों को लाक्षा गृह में जलाने की योजना बनी . ? भरी सभा में आपकी उपस्थिति में चीर हरण किया गया ? ..... बहुत सारे सवाल उठाये हैं द्रौपदी ने . भारतीय समाज में एक औरत अपने हक और हुकूक की बात करती है . तन कर खड़ी होती है . भीष्म ने जो उत्तर दिया है वह आज भी सम सामयिक है . याद रखिये सवाल द्रौपदी का है . भारत की आदर्श नारी का है , जिसका उत्तर भीष्म दे रहे है - बेटी हम 'अन्न दोष 'से ग्रषित रहे .अब आपे सब तय करोकिस तरह की नारी चाहिए इस्पुरुष प्रधान समाज को .?
चिखुरी / चंचल
दाना न पानी , खरहरा दूनौ जून ?
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.... ' पानी बरसे दरभंगा में , छाता खुले दुबई में ? इ सब कसा होय रहा है , न हम्मे मालुम है न उसको जो हररोज नया फरमान जारी किये जाय  रहा बा .किसमे दम है कि कह  दे कि राजा ढांक लो , नीचे नंगे हो . आपन घर फूंक के , दूसरे क दालान बनाय  रहा है ? पंडा बिहार में , मंदिर बनी दुबई में ? कहो फलाने जे सुनी ऊ का कही ? नवल उपधिया बौखलाए हैं . एक साथ , एक सांस में कई सवाल दाग दिये . यह देश की संसद थोड़े ही है कि एक साथ कई सवाल पूछना वर्जित है और अगर पूछ दिये तो संसद से बाहर . उनका निजाम कहता है कि कुछ लोग अधिक को हलाकान नहीं कर सकते . लेकिन यह तो गाँव की संसद है . जित्ता चाहो सवाल उठाओ तरतीब हो कि न हो , कुछ भी बोलो कितना भी भदेस बोलो कोइ रोक नहीं . कीन उपाधिया समझ गए कि नवल जो भी कह रहा है वह कीन के खिलाफ या फिर कीन की पार्टी के खिलाफ ही बोलेगा यह उसकी हिस्ट्री है . उसे पता नहीं क्यों ' दिया ' से नफ़रत है . चुनांचे कीन ने नवल को रोका - इ पंडा बिहार में ही होते हैं काशी मथुरा में नहीं ? नवल कुछ सोच समझ के बोला करो . नवल ने आँख गोल करके कीन को देखा , मुह खोले नहीं लेकिन उसे भरपूर ढंग से कान की तरफ ले गए जितना ले जा सकते थे . नवल के इस हरकत से कीन को दिक्कत होती है ,उन्हें लगता है कि यह उन्हें चिढ़ाने के लिए किया जा रहा है ,क्यों कि कीन के मुह का आकार प्रकार कुछ इसी तरह का है .बीच में कयूम मियाँ आ गए - अकल के गरीबो ! रुख ताल देख कर बोला करो , जैसे देश का नेता बोलता है . बोले जा रहा है . नवल ने फिर टोंका - कहाँ बोले जा रहा है , संसद में तो कुछ नहीं बोला . कयूम मुस्कुराए - बरखुरदार यह भी नहीं जानते बोलने कि एक तरकीब होती है और यह तरकीब देश काल और परिस्थिति पर निर्भर करती है . अब मेढक औए झींगुर को देखो बज्र गर्मी में कभी इन्हें बोलते सुने हो या सर्दी के समय मोर की आवाज को सुनते हो ? नहीं न ? तो ऐसा ही समझ लो . जो बात दिल्ली में बोली जाती है वही बिहार में नहीं . संसद में केवल बोला ही नहीं जाता सुनना भी पड़ता है ,और हमारे नेता को सुनने की आदत नहीं है बस .दूसरी बात याद रखो कब कहाँ क्या बोलना है उसे समझा करो . पिछले चुनाव में इसी बिहार में तुम्हारे नेता ने नया इतिहास नए तरह से बोला . जनता जनार्दन ने ताली पीटा . जनता भदेस बात पर ताली पीटी या खुश होकर कि चलो अब अब तक्षशिला जो बटवारे में पाकिस्तान में ही फंसा रह गया था , अब नालंदा तो आ गया . जनता को कौन भांप पाया ? केवल 'बक्सा ' ने उसे दिखाया और बताया कि जनता हर बात पर ताली पीट कर स्वागत करती रही . देश ने डिब्बे की बात तो मान ली लेकिन भीड़ में हरखू झा की आवाज दबी ही रह गयी जब उन्हों ने कहा हुजूर तक्षशिला बिहार में नहीं है पाकिस्तान में है . हरखू जी की आवाज को डिब्बे ने नहीं सुना . क्यों कि हरखू के पास न तो दो करोड़ का मंच था , नही आठ करोड़ की लागत से प्रायोजित जलसा के लिए रकम थी . आया समझ में . नयी बात सुन लो बिहार में ठीक चुनाव के एन मौके पर्कहा जा रहा है कि बिहार को कई लाख करोड़ का पैकेट दिया जायगा . अब गणित देखो लिखा है ४०,००० करोड़ +१.२५ करोड़ = १६५००० करोड़ . यह नया गणित है . अब लगाते रहो कि कितने शिफर आते हैं इतनी रकम में ? उत्तर देगा वजीरे खारिजा जेटली कि सरकार ने थोड़े ही कहा कि इतनी रकम बिहार को जायगी वह तो चुनाव की बात थी . दूसरा रफूगर बोलेगा यह तो जुमला था . इसे कहते हैं आज की राजनीति . और यही राजनीति जनता को पसंद है तो हम का करें ? चिखुरी जो जो अब तक इस बात को चुपचाप सुनते रहे बीच में आ गए - सुनो जनता पर आरोप मत लगाओ . वह झांसे में आ गयी लेकिन कितनी बार आयेगी . अब वह वह अपने हक और हुकूक को सामने रख कर नेता को तौलेगी . वह भी बौखलाई हुयी है . सब को देख चुकी , हर फरेब से रु ब रु हो चुकी है . दो परस्पर बिरोधी बातें मत करो . एक तरफ तो सरकार कहती है , हमे खाली खजाना मिला है और दूसरी तरफ खैरात बंट रही है . तो जो लाखों करोड़ बाँट रहे हो अपनी जेब से देबांत रहे हो ? सही बात तो बोलना ही पड़ेगा . यह संसद नहीं है बिहार है और बिहार ठोंक बजा कर चलेगा . नया जुमला फेंक रहे हो दुबई में मंदिर बनेगा . अपने यहाँ मस्जिद गिरा कर उनके आँगन में मंदिर बनाओगे ? तुम्हारी अंतर्राष्ट्रीय समझ कितनी है यह यह सारी दुनिया देख ही नहीं है , हमे तनहा भी करती जा रही है आज अमरीका , रूस , जापान फ्रांस कोइ तो होगा जो हमारे साथ होगा . आज एक भी मुल्क अपने साथ नहीं है . दस लाख का परिधान पहन कर ओबामा ओबामा करते रह गए यह भी भूल गए कि एक ऐसा भी महात्मा था जो एक धोती पहन कर बर्तानिया निजाम को बदलवा दिया और अपने ही भारतीय लिबास में पूरे अंग्रेज कौम का पसंदीदा मेहमान बन गया . .एक बात गौर से सुन लो इस मुल्क को अगर कोइ बना सकता है तो वह गांधी ही है दूसरा नहीं . उमर दरजी ने पूछा -लेकिन बिहार में कांग्रेस ....? चिखुरी मुस्कुराए - कम्युनिस्ट और संघ को छोड़ कर बाद बाकी जितने भी हिंदी पट्टी में हैं सब गांधी की ही औलादे हैं . इस बार बिहार में गांधी ही लड़ेगा . रूप कुछ भी हो . चम्पारण फिर इतिहास लिखने जा रहा है . लड़ाई हिटलर और गांधी के बीच है . हिटलर की झूठ , उसकी चमक दमक , रथ और विमान सब द्वस्त होगा जब बिहार उठ खड़ा होगा . नवल आज बगैर किसी गाने को उठाये किसी विचार में मग्न होकर चलते बने .
बतकही / चंचल
... कुछो कहो हम  रहेंगे उत्तर प्रदेश ही .
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  '... ऊपरवाला झूठ न बुलवाए, बात खरी कहता हूँ , किसी को हजम हो या दौड़ा के पोंगा काट ले लेकिन जे बात सही है कि उत्तर प्रदेश में एक साफ़ सुथरा मुख्यमंत्री है अखिलेश यादव . ... कयूम मियाँ अभी शुरू ही हुए थे कि अखिलेश का नाम सुनते ही पुराने संघी जूते सिंह हत्थे से उखड गए . ( भला कोइ लायक बाप या दयावती दादी अपने बच्चे का नाम जूते रखेगी ? कत्तई नहीं असल नाम  है -तेज बहादूर सिंह , पहला घपला उनकी अपनी दादी ने किया कि नाम को काट कर छोटा कर दिया तेज बहादुर से तेजू हो गए . यह तेजू जब शाखा जाने लगे और बाप की दी हुयी फुल पैंट को काट कर हाफ किये तो गाँव के हमजोलियों ने नाम को ही उलट दिया और वह चल गया .जूते सिंह . )क्या ख़ाक ईमानदार है ? एक जाति के लोग मंत्री से लेकर सिपाही तक बैठा दिये गए हैं ... लाल साहेब ने जूते सिंह को घुडकी दी - ओम प्रकाश सिंह , राजा भईया, गोप .. सब अहीर हैं ? सूबे में जब खुल्लम खुला जाति की राजनीति शुरू हुयी और कांशी राम ने हरिजनों को इकट्ठा कर के एक नेता  मायावती दे दिया  तो बाकी जातियों में भी अपने नेता की तलाश शुरू हो गयी . मुलायम सिंह समाजवादी थे और रहेंगे वे जातिवादी नहीं हैं लेकिन उनकी बिरादरी ने खुल कर उनकी मदद करनी शुरू कर दी तो इसमें मुलायम सिंह का का दोख ? इतने हल्के में मत भागा करो . आज  मुलायम का इतिहास देखोगे तो खोपड़ी झन्ना जायगी . वहाँ जनेश्वर मिश्रा हैं , हनुमान सिंह है , ब्रजभूषण तिवारी हैं आजम खां हैं शिव कुमार बेरिया हैं .मामला संजीदा होत देख कयूम मियाँ ने लाल साहेब को अपनी बुजुर्गी से रोका - बरखुरदार ! ये जो तेज बहादुर सिंह वगैरह हैं ,ये अफवाह में जीते हैं . नफरत फैलाते हैं शुक्र है मियाँ कि हम सब गाँव में हैं वरना अगर हम शहर में होते और तेज बहादुर को जूते बोल देते तोदंगा हो जाता लेकिन यहाँ सब चलता है क्यों बेटा तेज बहादुर ? तेज बहादुर जब अपना नाम सही ढंग से सुनते हैं तो उनका सीना छप्पन इंच का हो जाता है गरज यह कि पूरा गाँव उन्हें जूते ही बोलता है यहाँ तक कि उमर दरजी भी . बेचारे खिसिया के रह जाते हैं लेकिन कुछ बोलते नहीं .कारण बस एक है - जन्म क मुरहा है , गुरभाई है .दर्जा आठ तक साथ में पढ़ा है . का करें ? तेज बहादुर ने कयूम मियाँ को उकसाया - हाँ चचा आप सरकार केव बारे में बता रहे थे . देखो बरखुरदार ! जब हम किसी सरकार को नापते हैं हैं तो सबसे पहले यह देख लो कि नापनेवाला कौन है ? आज के जमाने अगर तुम चाहो कि सूबे या मुल्क की गद्दियों पर पंडित नेहरु , डॉ संपूर्णानंद , लाल बहादुर शास्त्री , पंडित कमलापति त्रिपाठी , कर्पूरी ठाकुर जैसे तपे तपाये लोग दिखाई पड़ेंगे तो भ्रम में हो . लाल बहादुर शास्त्री देश के गृहमंत्री थे , मुला खुद उनके पास घर नहीं था . राज नारायण जब संसद में नहीं थे और रेल यात्रा करते थे तो टी टी  से ही चन्दा मांग कर टिकट बनवाते थे . जनेश्वर मिश्रा बार बार मंत्री बने लेकिन उनका दरवाजा सब के लिए खुला रहता था . जार्ज के घर पर गेट ही नहीं था उन्होंने खुद उसे निकलवा दिया था . कहाँ मिलेंगे ऐसे लोग . लेकिन अभी भी उनके लोग हैं . अभी इसी सरकार में देख कर लौटा हूँ . जा कर देख आओ . राजेन्द्र चौधरी , राम गोविन्द चौधरी . ओम प्रकाशसिंह . इनकी सादगी और इमानदारी पर कभी उंगली नहीं उठी . एवज में और सूबों को देख आओ . कितनी बेशर्मी से सरकार चला रहे हैं ये चाल चरित्र और चेहरे की दुहाई देते हैं. शवराज को देखो .घपला घोटाला कैसे होता है उससे सीखो . कई लाख सौ करोड़ का घपला ही नहीं हुआ डाक्टरी और इन्जीय्न्रिंग पेशे तक को बधिया कर दिया है . गुनाह छिपाने के लिए पच्चासों लोगों का क़त्ल हुआ है . गवाह मुह न खोल पाए उसे क़त्ल कर दो यह नयी चाल है . अनाप सनाप बोलनेवालों को संसद में बिठा दिया गया . कोइ साधू है कोइ सधुआइन हैं लेकिन भाषा ? कसाई भी शर्मा जाय . ये भाई ! सब जगह घपला है बोलते बोलते कयूम मियाँ हाफाने लगे . नवल बीच में आ गए . -
  -... लेकिन अब तो संसद ही जाम है . ?
महंथ दुबे कश्मसाए और उठ कर बैठ गए . -एक तरफ भ्रष्टाचार का खुला आरोप लगा पड़ा है . एक साहेब चार देवियाँ घेरे में हैं . सरकार के पास कोइ जवाब नहीं है कांग्रस को सडन से बाहर कर दियाजाता ही कहते हो साकार नहीचालने दे रहे कांग्रेस के लोग ? इनसे कोइ पूछे कि क्या कांग्रेस वहा साफ़ सफाई के लिए गयी है ? उस्काकाम है सवाल पूछना . और वह सवाल देश का सवाल है क्यों नहीं पूछेगी कांग्रेस ? दुबे जी को बीच में रुकना पड़ा क्यों कि लंगूर की शक्ल में सज धज कर तेज बहादुर सिंह का मझिला लडिका बोल बम् की यात्रा पर निकलने के लिए बाप से खर्च मांगने आकर खड़ा हो गया -ये बाऊ ! एक हजार ..
- का करबे एक हजार बे ?
- दोस्तन के बीयर पार्टी माने अही .
-तेज बहादुर सिंह का चेहरा देखने काबिल था .भीड़ में ठहाका था . नवल उपाधिया चकाचक बनारसी की कविता सुनाते हुए आगे बढ़ गए -दिन में बोले राम राम / औ रात में सौ सौ ग्राम 

Friday, August 7, 2015

चिखुरी / चंचल
यह राजनीति है भाई , जमूरों का जमावडा नहीं .
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       -... ये भाई ! ये बिहार कहाँ है ? लखन कहार का सवाल चौराहे की संसद को सन्नाटे में ला दिया . नवल उपाधिया की आँखे गोल हो गयी , - पटना सुने हो ,? उसे ही बिहार कहते हैं . बुडबकों की तरह बात करते हो .बिहार नहीं बूझते . ? लखन मुस्कुराए - तो चुनाव पटना में हो रहा है बाद बाकी आरा मुगेर भागल पुर , मोतिहारी और औराही हिंगना वगैरह में नहीं ? नवल गच्चा खा गए . गो कि नवल  और लखन कहार कलम एक से लेकर कलम आठ तक एकय साथ पढ़े रहे ,बस इतना फरक आवा है कि लखन बगैर नागा हर रोज अखबार बांचता है और नवल साइकिल उठाये गाँव गिराँव की खबर वहाँ से उठाते हैं और चौराहे पर ला कर कुरय देते हैं . जनता जनार्दन दिन भर उसे धान की तरह कूटती पछोरती  रहती है. आज नवल के समझ में आवा कि अखबार कितने काम की चीज है . तो एक बात बताओ लखन भाई ! जब बिहार जानते रहे तो फिर काहे पूछे ? लखन ने गौर से नवल को देखा फिर कीन उपधिया को झकझोरा - अखबार बताता है ,हम नहीं कहते , पिछले कुछ दिनों से देश का इतिहास और भूगोल दोनों बदला जा रहा है . कहो कीन कुछ गलत कहा का ? पिछली दफा कीन के नेता ने बिहार में तक्षशिला में ला दिया था . लोग बताते हैं कि वो अभीतक तक्षशिला वहीं है . बोरिंग कैनाल रोड की खुदाई हो तो तक्ष शिला साछात मिलेगी . मद्दू पत्रकार से नहीं रहा गया - इन्हें इतिहास और भूगोल दोनों ही बाहुत सालता है . होता क्या है कि ऐसे में जब भी इन्हें उछल कूद करनी पड़ती है तो उधार की तरफ भागते हैं . इन्होने एक नयी परम्परा डाली . प्रायोजित कार्यक्रम . नहीं समझोगे . इसे ऐसे समझो . तुम्हे चुनाव लड़ना है तो सभा जुलूस निकालोगे . कार्यकर्ताओं को पहले लगना पड़ता था , भीड़ जुटाने के लिए , पोस्टर पर्चा बाटने के लिए अब ऐसा कुछ नहीं है अब देश और विदेश में नयी नयी कंपनियां खुल गयी हैं जो एक मुस्त पैसा लेकर सारा काम कर देती हैं . लॉस स्पीकर , रोशनी . अखबार , डिब्बा यहाँ तक की भीड़ भी . ' भीड़ का चरित्र ' कैसा होना चाहिए . कितनी बुर्के वाली औरतें होनी चाहिए . कितने तहमत , कितनी टोपियां वगैरह सब का इंतजाम एक कम्पनी करती है यहाँ तक कि क्या बोलना है . और किस जगह ताली बजाना है . सब प्रायोजित रहता है .इसे कहते हैं गुजरात माडल . सुना है यही माडल अब कई और लोग भी ला रहे हैं बिहार में . ......
 - इससे का होगा ? कयूम ने सवाल पूछा .
- इससे यह होगा कि एक बार फिर जनता झांसे में फंसेगी ...कहते हुए मद्दू ने चिखुरी की ओर निहारा और फिर अपनी बात से मुकर गए - लेकिन बिहार में यह नहीं चल पायेगा . यह बिहार भइये . इसने बहुत कुछ देखा है बहुत कुछ दिखाया भी है . अब चिखुरी की बारी थी - झूठ फरेब , छल प्रपंच एक ही बार चलता है . अब तो पूरा देश ही समझ गया है . जिन बातों को जोर देखर जनता को उकसाया और उसे मोह में फंसाया उसी से पलटी मार रहा है .कोइ कहता है जुमला था , कोइ सफाई देता है हमने तो चुनाव में बोला था ,सरकार में आने के बाद तो नहीं बोला . ? बोलो क्या कर लोगे ? अब देखो संख्या की ताकत और सत्य की ताकत . किसान की जमीन लेने के सवाल पर सरकार को झुकना पड़ा है . यह उसकी ताकत थी कांग्रेस ने झुकाया . संसद से बाहर निकाल कर सरकार ने लोकतंत्र के पेट में चाकू भोंका है . इसका जवाब तो जनता मागेगी न ?
  - हाँ ये तो हम भूले ही गए थे कि कांग्रेस ने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया रहा कि उसे संसद से बाहर निकाल दिया गया ? और तो और ऐसे भी सांसदों को भी बाहर निकाला गया जो सडन में मौजूद भी नहीं थे ? इस बातको भाजपा नेता भी कह रहे हैं . ?चिखुरी संजीदा हो गए - इस सरकार से सवाल मत पूछो . मध्य प्रदेश में व्यापम घपला हुआ कई लाख करोड़ का . कई पीढ़ियों की जिंदगी का . उसे छिपाने के लिए अब तक पचास लोग कम से कम मारे जा चुके हैं . यह सवाल मत पूछो . भारत का वित्त मंत्रालय एक अपराधी को पकड़ने लिए वारंट जारी करता है ,उसीसर्कार का विदेश मंत्रालय उसे बचाता है यह सवाल मत पूछो .राजस्थान की सरकार उस भगोड़े से लंबी रकम लेकर अपने निजी उद्योग में लगाती है यह भि मत पूछो . छातिसगढ़ की सरकार गरीबों का चावल खा जाती है यह मत पूछो . यही तो पूछा था कांग्रेस ने . उनको निकाल कर बाहर कर दिया . अब जब बिहार यह सवाल पूछेगा तो कौन किसको निकालेगा यह देखना है ? जे बात है . लाल साहेब ने अब समझा . लेकिन लखन ने क्यों पूछा बिहार कहाँ है ? कहकर लाल साहेब मद्दू पत्रकार की तरफ मुखातिब हुए . मद्दू ने बताया - सुनो यह सवाल उठाने का एक नायाब तरीका है जो बहुत चोख होता है .एक किस्सा सुनो समझ में आ जायगा .


   कभी कभी भरी भीड़ में स्वर्गीय राज नारायण जी उठा दिये करते थे . उस परम्परा पर कल्पनाथ राय चले , लालू यादव अक्सर चल देते हैं . ये सवाल तीखे और बेचैन करनेवाले होते हैं . एक उदाहरण सुन लीजिए . ७७ में देश की सरकार पलट गयी थी . कांग्रेस सत्ता से बाहर हुयी थी . कई हस्तियाँ कांग्रेस से बाहर होकर जनता पार्टी में शामिल हुयी थी . उनमे से एक थे इंद्र कुमार गुजराल . जो जमाने तक कांग्रेस के साथ रहे और इंदिरा गांधी के निहायत ही विस्वसनीय रहे . रूस में भारत के राजदूत रहे . जंतर मंतर में जनता पार्टी की बैठक चल रही थी . राज नारायण जी थोड़ा देर से पहुचे , उस वक्त गुजराल साब कुछ बोल रहे थे . नेता जी अंदर घुसते ही व्यवस्था का सवाल उठा दिये . चंद्रशेखर जी अध्युक्ष रहे . नेता जी सीधे अध्यक्ष जी से मुखातिब हुए - ' अध्यक्ष जी ! ये कौन साहब  बोल रहे हैं ? पूरे हाल में सन्नाटा . गुजराल  साहब बैठ गए . अध्यक्ष जी समझ गए कि इस सवाल का अंदरूनी हिस्सा क्या है . मधु जी (स्वर्गीय मधु लिमये ) जी उठे और बोले - कोइ नहीं बोल रहा है अब आप बोलिए .समझे ? नवल ने कहा- जी!  बहुत समझे  .

Sunday, July 19, 2015

१८ जुलाई / संस्मरण
काका ; कहीं से  निकल आये जनमों के नाते
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० चंचल
           '.....बाबू मोशाय ! हमसब रंग मंच की कठपुतलिया हैं , हमारी डोर ऊपर वाले के हाथ में है .. कौन कब .....और आनद खामोश हो गया हमेशा के लिए ऋषी दा पर्देपर एक सन्नाटा बुनते हैं .अचानक आनंद ठहाका लगाता है हा हा हा कैमरा टेप रिकार्डर को मिडल शाट में लेता है और टेप टूट जाता है .जानीवाकर जिनकी मौजूद्गी ही दर्शक को हँसा देती रही ,वही जानी वाकर आज सब को रुला गया . फिल्म खत्म होती है दर्शक बाहर निकल रहे है हर एक की आँख गीली है . लोग चुप चाप निकल जाते . १८ जुलाई १२ को वही आनंद हमेशा के लिए विदा ले लेता है ,इसबार परदे पर नहीं असल जिंदगी से . जिसने जहां से सुना वहीं से भागा चला जा रहा है कार्टर रोड मुम्बई . उनका सुपर स्टार जा रहा . ऐसा प्यार और किसी को नहीं मिला इसके गवाह हैं लाखों वे लोग जिन्होंने काका को परदे पर देखा था . इस तरह फ़िल्मी दुनिया का एक अध्याय खत्म हुआ . एक दिन हम वसंत कुञ्ज के उनके आवास पर बैठे थे . बात गांधी पर चल निकली . हमने कहा -काका भाई आपने एटनबरो की गांधी देखी ? बड़े मासूमियत से बोले . पूरी फिल्म नहीं देख पाया हूँ साहिब .अचानक बच्चे की तरह कूदे अभी देखा जाय . साथ में बैठे जुनेजा जी और मामू थोड़ा दुखी लगे . - अच्छा अब आप लोग फिल्म देखिये ,हम लोग चले कुछ काम कर लें . और हम लोग फिल्म देखने बैठ गए . रात में दो बजे तक फिल्म चली . कई बार रोये . छुप कर . अंत में बोले वाकई कितना बड़ा आदमी था साहिब. क्यों मारा संघियों ने ? हमने कहा डर की वजह से . और बात खत्म हो गयी . दूसरे दिन फिर गांधी आ गए . साहिब ! आपको याद है इसी गांधी ने हम दोनों को मिलवाया . हमने एक टुकड़ा और जोड़ा - न मिले होते तो हम आपके नाम पर ब्लैक से टिकट खरीदते होते और आपको जय जय शिवशंकर गाते हुए मुमताज की बांहों में देख कर खुद को राजेश खन्ना समझ रहे होते और और आप दिल्ली की गलियों में वोट के लिए न भटक रहे होते . जो होना होता है वह होता है आज हम उसी काका के साथ बैठ कर गिलास भिडाये पड़े हैं . काका थोड़ी देर चुप रहे . फिर बोले - आप पहले क्यों नहीं मिले साहिब ? हमने हँसते हुए जवाब दिया - वक्त को यह नहीं मंजूर था की आप वक्त के पहले ही बिगड जाय . हम दोनों मिल कर पहली मुलाक़ात को साझा करते रहे . वह आप भी जान लीजिए .
        जिन्हें हम बार बार जुनेजा जी बोल रहे हैं वे बड़े कमाल के आदमी है . पहले फिल्म बितारक थे बाद में उसे छोड़ कर अपना नसिंग होम बनाया . बहुत अच्छा चलता है . उनकी शगल है खाना - खिलाना , दोस्ती और मस्ती . काका को जब राजीव गांधी राजनीति में लाये तो जुनेजा जी ही उनके संरक्षक बने . उनका मकां , उनकी गाड़ी , उनका ड्राइबर , उनका कुक सब कुछ जुनेजा ने दिया . एक दिन जुनेजा जी का फोन आया की आज शाम घर पर पार्टी है भाई साहब आ जाइयेगा . उनके घर पहुंचा तो देखाबहुत भीड़ है . विदेशी ज्यादा दिखे . तमाम दूतावासों के लोग .हम अंदर पहुंचे ही थे की हमे कहा गया आप बेड रूम में चले जाइए . बेड रूम भरा हुआ था . डाक्टर , फिल्म बितारक और कई फ़िल्मी लोग . सन्तर प्वाइंट बने हुए थे संतोषानंद जी . मनोज कुमार की फिल्मो के गाना लेखक . घोषित कांग्रेसी . बाद बाकी अधिक तर संघी ,और सब मिल कर गांधी के सवाल पर संतोषानंद को घेरे हुए थे . हमें देखते ही संतोषानंद ने कहा - आओ भाई अब तुम संभालो .हमने पूछा की क्या मामला है तो पता चला की गांधी महान है यह मुद्दा जेरे बहस है . हमने कहा आपको सियासत समझाने में वक्त लगेगा आइये एक और बात बाताते है - हमने जो बोला उसका लुब्बे लुबाब यह रहा की ' गांधी दुनिया का सबसे बड़ा पोस्टर डिजाइनर है . जिस पर कोइ भी सरकार प्रतिबन्ध लगा ही नहीं सकती , क्यों की वह उत्पादन का जरिया भी है . और वह पोस्टर है चरखा . एक सन्नाटा छा गया . इतने में पीछे से आवाज आयी - साहिब हम देर से आये हैं एक बार फिर इसे बटा देंगे ? सब लोग चौंक गए . यह आवाज थी राजेश खन्ना की . फिर हमे पकड़ कर दूसरे कमरे में लेकर चले गए . यह थी हमारी पहली मुलाक़ात . उसी पहली मुलाक़ात को हम दोनों मिल कर साझा करते रहे और हँसते रहे . काका नयी दल्ली संसदीय सीट से भाजपा उम्मेदवार शत्रुघ्न सिन्हा को हरा कर ससद में पहुचे नरसिंहा राव की सरकार थी और राव साहब काका को .बच्चे की तरश प्यार करते थे . एक रात हमसे बोले की यह जो आपकी अदालत का रजत शर्मा है हमे अदालत ले जाना चाहता है . हमने उन्हें सावधान किया - रजत से हमारे बहुत अच्छे रिश्ते हैं लेकिन वह एक संघी है और अपनी आदत से बाज नहीं आयेगा . खूब तैयारी के साथ आपको जाना चाहिए . काका का हर काम फिल्म के अनुशासन की तरह होता था .तय हुआ की तीन लोग बैठेंगे . दो हम एक बी आर इशारा जी . बी आर बंबई से आये और ठीक आठ बजे तैयारी शुरू हुयी . हमने कहा आप पर जो निगेटिव चीजे हैं उन पर क्या बोलना है उसे जान समझ लीजिए , तैयारी मुकम्मिल हो गयी . ' आपकी अदालत में यह पहला प्रिग्राम था जब रजत को पसीने आ गए थे . दो तीन सवाल सुनिए . रजत ने पूछा आप अद्वाने के खिलाफ चुनाव लड़े और अडवानी जी जीते .  काका ने रोका . - नहीं ! रजत जी इसे दुरुस्त कर लीजिए . अखबारों ने लिखा राजेश खान्ना चुनाव हारे . अडवानी जीते , किसी ने नहीं लिखा सब ने लिखा राजेश खन्ना चुनाव हारे . . आपको समझाता हूँ, वाटर लू की लड़ाई में नेपोलियन बोनापार्ट हारा . इसे सब जानते हैं जीता कौन था ? आप बता  दीजिए . रजत खामोश . अंततह रजत ने हामी भरी नहीं हमें नहीं मालुम  तब काका ने अपने अंदाज में कहा - हमे भी नहे मालुम . दर्शक दीर्घा में जो जनता बैठी थी  उसने जम कर ताली बजायी . रजत ने एक और विवादित सवाल पूछा - आप पर आरोप है की आप के सम्बन्ध कई महिलाओं से हैं .? काका मुस्कुराए बोले - किसी ने कोइ शिकायत की है ? नहीं न ? हाँ सम्बन्ध हैं . डॉ लोहिया ने कहा है ' वायदाखिलाफी और बलात्कार छोड़ कर औरत और मर्द के सारे रिश्ते जायज हैं . हम तो इसे मानते हैं साहिब . दर्शक दीर्घा से तालियाँ बजती रही . जज की कुर्सी पर बैठी मृणाल पांडे भी उसमे शामिल हो गयी .
      काका की जीवन शैली अपने आपमें कई स्क्रिप्ट है . १८ जुलाई १२ को उनकी मृत्यु के तीन हफ्ते पहले हमारी उनसे आख़िरी मुलाक़ात हुयी . हम बनारस से दिल्ली पहुंचे . अचानक जुनेजा जी का फोन आया . की भाई साहब हमतो अभी बंगलौर में हैं काका के सेक्रेटरी का फोन आया था की दो दिन से उन्होंने कुछ खाया नहीं है नौकरों को और सेक्रेटरी को मारपीट कर घर से बाहर निकाल दिया है . दो रात से सोये भी नहीं हैं ,लगातार पिए जा रहे है . आप दिल्ली में हैं तो जाकर संभाल लीजिए . जुनेजा जी ने काका को भी फोन करके बटा दिया की हम पहुँच रहे हैं . दिन के दो बजे हम जब घर पहुंचे तो दरवाजा खुला था आहत पाते ही बोले आ जाइए . अंदर गया तो उन्होंने उस कुर्सी की तरफ इशारा किया जो हमारे लिए आरक्षित थी . बैठ ही बोले चीयर्स . तब हमने बगल की टेबुल पर देखा गिलास बना कर पहले ही रख चुके थे . दो पेग हुआ तो हमने कहा काका भाई हमे तो भूख लगी हैं कुछ है किचेन में ? क्यों नहीं , आइये देखते हैं बड़ा सा टिफिन बाक्स खुला . हमने एक प्लेट में खाना निकाला और काका से बोला की इसे खाकर देखिये बहुत अच्छा बना है . बच्चे की तरह मुह खोल दिये . हम खिलाते रहे और काका खाते रहे . अचानक हमे पकड़ कर रोने लगे . रोते रहे . फिर हमने उनका मुह धुलाया और लेजाकर बिस्तर पर लिटा दिया . थोड़ी देर में सो गए .
         काका जो बाहर रहे , उसके बरक्स एक और जिंदगी अपने अंदर जीते रहे . यह उनकी अपनी बनायी हुयी तन्हाई थी . अब वह तन्हाई भी साथ छोड़ रही थी .उसे कब तक शराब से भरते . और आखिर १८ जुलाई को वे तमाम तन्हाइयों से बरी होकर नयी दुनिया के लिए प्रस्थान कर गए . अलबिदा बाबू मोशाय बहुत रुलाओगे .    
गिरोह और इस्लाम -१ (औरत के सवाल पर )
..... औरत के सवाल पर गिरोह और इसलाम  एक सोच रखता है .इन दोनों में एक समानता और है कि कि ये दोनों ही कमोबेश अतीत जीवी हैं और उसी अतीत से वर्तमान जीने की कोशिश करते हैं लिहाजा उनका भविष्य अन्धकार में जा कर खड़ा हो जाता है . औरत को दोनों ही इंसान नहीं मानते बल्कि उन्हें अपने बनाए हुए नियम क़ानून में रख कर तंग नजरिये से देखते हैं भारतीय उप महा द्वीप का  मुसलमान बहुत हद तक इन बेहुदिगियों को तोड़ कर आगे बढ़ा है . जब सारी दुनिया का मुसलमान दकियानूसी रवायत के चलते उसे बेवजह सजाएं दे रहा होता है तब भारतीय उपमहाद्वीप में रह रहा मुसलमान ,समाज में बह रहे समतामूलक बयार में अपने आपको ढालना शुरू कर देता है . एक तरफ इस्लाम यह प्रतिबन्ध लगाता है कि कोइ भी औरत गाड़ी नहीं चला सकती , किसी से मोहब्बत नहीं कर सकती , बुर्के से बाहर नहीं आ सकती , नृत्य संगीत या किसी भी तरह की कला को  नहीं अख्तियार कर सकती ,उसी समय भारतीय उपमहाद्वीप कीमहिलायें  अपने बल बूते पर निकल कर बाहर आती हैं और हुकूमत तक पहुँच जाती हैं इन्हें आगे ले जाने में पुरुष को गुरेज नहीं रहा बल्कि उन्होंने भरपूर सहयोग दिया . पाकिस्तान जिसने अपने आपको इस्लाम देश के तंग नजरिये में रख कर मुल्क का खांचा खींचा वहाँ  बेनजीर भुट्टो हुकूमत की अलम्बरदार बनी . पाकिस्तान से छिटक कर बना बँगला देश अपनी सियासत को दो महिलाओं के बीच ले जाकर खड़ा कर दिया . भारत में कांग्रेस की हुकूमत ने लगातार महिलाओं को आगे किया . यह उसकी रवायत रही . भारतीय उप महा द्वीप का मुसलमान देश , काल और परिस्थिति के अनुरूप अपने आपको बदल लिया और बदल रहा है ,लेकिन अभी और बदलना पड़ेगा पूरे इस्लाम समाज को . यह होगी मुख्य धारा से जुड़ने की नहीं बल्कि मुख्य धारा को गति देने की शुरुआत . अब उनकी सुनिए जो गिरोह हैं . औरत पर जितने फतवे इस्लाम ने जारी किये उसे दो गुनी गति से इस गिरोह ने उसे अपनाया . 'औरत परदे रहे नहीं तो उसके साथ बलात्कार होगा ही ' ' बलात्कार की जिम्मेवार औरत खुद है , उसका अंग प्रदर्शन ही बलात्कारी को उकसाता है ' यही औरत को परदे रहना चाहिए . वो बुर्का कहते हैं ये बुर्के का अनुवाद ' पर्दा ' करके उसे औरतों पर लादने की कोशिश में है . इस्लाम कहता है चार बीबी रख सकते हैं .यह उस वक्त की सामाजिक जरूरत रही जब समाज में जंग जारी था और महिलायें अनाथ हो रही थी, उस कालखंड पर तय किये गए निजाम वक्त के साथ बदलाव मागते हैं . भारतीय उप महाद्वीप का मुसलमान उस निजाम को मानता तो है लेकिन अमल करते समय ,एक औरत एक मर्द ; पर जाकर रुक जाता है . इस महाद्वीप का आंकडा देखा जाय तो समूची इस्लाम आबादी का एक भी फीसद मुसलमान चार बीविवों तक नहीं गया है . अब गिरोह की सुनिए - ' दो नहीं तीन नहीं , पूरे दर्जन दर्जन भर पैदा करो ' इस्लाम जिसे निजाम में बोलता है , गिरोह उसे अपनी भाषा में उतार कर लादना चाहता है . कि औरत परदे में रहे और अंडा दे . मजेदार बात कि पश्चिम की नकारा सोच इन दोनों के प्रति सचेत और सोची समझी साजिश रचता रहता है और वो बार बार ऐसे सवाल खड़ा करेगा  कि  इन दोनों को अपनाने वाले जलील भी होते रहे और उनके सामने झुके भी रहें .

Tuesday, July 14, 2015

मुकदमा यूँ है .
७८ का वाकया है . हम अपने बाजार महराज गंज में अपने प्रिय आत्मा राम की दूकान पर बैठे चाय पी रहे थे . इतने में हमारे  परिचित भारत यादव जो उन दिनों ब्लाक उप प्रमुख थे आ गए . उनका चेहरा उतरा  हुआ था . हने पूछा - कोइ बात हुयी है क्या ? वे चुपचाप डबडबाई आँख से जो किस्सा सुनाया वह वह बहुत ही खराब लगा . हुआ यूँ था कि उन दिनों सीमेंट के लिए सरकार से परमिट लेना पड़ता था और भारत जी उसी परमिट के लिए एडियम जौनपुर टी डी  गौड़ से मिले . गौड़ साहब उस दिन डी यम के चार्ज पर थे और ब्लाक का मुआयना करने आये थे . भारत जी ने बताया कि जैसे ही मैंने दरखास्त आगे की गौड़ साहब गर्म हो गए और जनता के सामने बहुत कुछ कहा इतनी बे इज्जती हमारी कभी नहीं हुयी थी . इस बात पर हमे भी गुस्सा आ गया .जो कि आना ही था क्यों कि उस जमाने हर छात्र नेता ऐसी बात पर गुस्सा कर लिया करता था , एवज में जेल जाना पड़ता था . अब शायद ऐसा नहीं होता . हम उठे और सीधे डी यम साहब के सामने जा पहुंचे जो बीडियो की कुर्सी पर बैठे थे . उनके अर्दली ने रोकना चाहा लेकिन हम अंदर पहुँच गए . हमने पहुँचते ही पूछा - आपने एक चुने हुए प्रतिनिधि को गाली दिया ? डी यम साब को गुस्सा आना जरूरी था . एक लफड़झंदूस की यह हिम्मत कि एक आफिसर से ऐसी बात करे ? और यहीं से तू तू मै मै शुरू हो गया . बाहर भीड़ लग गयी . पुलिस आयी और हमें थाने ले गयी . वही गौड़ साहब भी पहुंचे और थाने में भी भीड़ लग गयी . हम दोनों में समझौता हो गया . मौखिक . दरोगा को यह लगा कि भीड़ देख कर शायद  साहेब ने समझौता कर लिया और उन्होंने दो लोगों की जमानत लेकर हमें छोड़ दिया .लेकिन मुकदमा दर्ज हो गया . इस मुक़दमे में कई दिलचस्प मोड़ भी आये . ८२ म हम जब बनारस छोड़ कर दिल्ली आ गए तो सब भूल गए . एक बार हम गाँव गए तो तो पता चला हमारे दोनों जमानत दार राम आश्चर्य यादव और तेज बहादुर सिंह घर पर बैठे मिले . उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ अदालत ने गिरफ्तारी और कुर्की का फरमान जारी कर दिया है . अगर हम इसबार तारीख को नहीं पहुंचे तो हमारे दोनों जमानतदार जेल भेज दिये जांयगे और घर कुर्क हो जायगा . लिहाजा हम गए . अदालत पहुंचे . कई वकील जो हमारे दोस्त रहे ,हमारे साथ अदालत में खड़े हो गए . पेशकार ने हमारी फ़ाइल अदालत के सामने बढ़ा दी . अदालत ने पूछा मुजरिम ? हमारे वकील ने कहा हाजिर है सर . अदालत में मेरी तरफ देखा और बोले तारीख पर तो आना चाहिए . हमने कहा जी आउंगा . मुंसफ साहब मुस्कुराए . ठीक है कौन सी तारीख दे दूँ ? इसी बीच हमारे दोनों जमानतदार बोल उठे - हुजूर हमने मुजरिम हाजिर कर दिया है अब हमारी कुर्की और गिरफ्तारी तो रोक दी जाय और हम अब जमानत नहीं लेंगे . अदालत ने कहा अब आप दोनों बिलकुल बरी हैं जाइए .दोनों खिसक लिए . अदालत उठ गयी . पेशकार को उन्होंने कुछ कहा और हमसे बोले चैंबर में आइये . हम चैंबर में गए . मुंसफ साब हँसे - आपसे मिलना था ,हमे अच्छा लगा जब हमे यह पता चला कि आप का मुकदमा हमारी ही अदालत में है .हम आपके पुराने 'फैन ' हैं . आप इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव केसमय आये थे . आपने हालैंड  हाल में भाषण किया था , तब हम उसी हास्टल में रहते थे .तब उन्होंने सुझाव दिया जितनी जल्दी हो सके इसे खत्म कराइए . ऐसे मुकदमों में कुछ होता जाता नहीं लेकिन परेशानी तो होती ही है . इसके बाद वह मुकदमा जस का तस पड़ा रह गया और अब फिर हम अदालत बुलाये जा रहे हैं ,बतौर एक भगोड़ा ... 

Wednesday, July 8, 2015

चंद्रशेखर ; इकला चलो
.... जानता तो पहले से था ,लेकिन मिला पहली बार ७७ में . हम गए थे दिल्ली ,काशी विश्वविद्यालय के लिए एक कुलपति तलाशने . जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी ,पार्टी बन रही थी . हम मधुलिमये से मिले . हमने प्रस्ताव रखा कि विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए हमारे पास दो नाम हैं. इन दो में से किसी एक को कुलपति बनवा दीजिए . एक अशोक मेहता या अच्य्त पटवर्धन . मधु जी चुप रहे फिर कुछ सोच कर बोले चलो पार्टी आफिस और चंद्रशेखर से बात कर लो . यह थी चंद्रशेखर से पहली मुलाक़ात . चंद्रशेखर जी से जब मधु जी ने मिलवाया तो मिलते ही चंद्रशेखर बोले -  हाँ जानता हूँ . फिर हमारी तरफ मुड़े और अपनी पुर्बहिया भाषा में बोले - त संघ के घसीट देह ल ? क्या क्या हुआ इस समय कैसा है विश्वविद्यालय आदि आदि पूछने के बाद बोले . एक गो रिपोर्ट विश्वविद्यालय चुनाव को लेकर लिख द ' यंग इंडिया ' के लिए . (चंद्रशेखर जी संपादक रहे. नेता और किसी पत्र का संपादन करना ,एक रवायत रही है . आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी के बाद तक यह परम्परा चलती रही . आज की राजनीति के लिए नेताओं को संपादन तो छोड़ दीजिए चिट्ठी तक लिखने की तमीज नहीं है ) चंद्रशेखर जी साथ थोड़ी देर बात हुयी और बोले हम कोशिश करेंगे ,लेकिन शायद वे दोनों ही न तैयार हों . एक बार मोरार जी भाई से मिल लो . और दूसरे ही दिन प्रधानमंत्री कार्यालय को बोल कर मिलने का समय तय करा दिये . मोरार जी भाई से जिस तरह की मुलाक़ात हुयी वह हैबतनाक रही और हम पांच जन जेल जाते जाते रह गए , गनीमत थी कि एन वक्त पर नेता जी ( राजनारायण ) आ गए . वहाँ क्या हुआ , कैसे हुआ , इसकी पूरी खबर ' दिनमान ' और 'रबिवार ' में विस्तार से छपी थी , जरूरी समझें तो उसे देख लीजियेगा . उसी दिन जनता पार्टी के टूटने की नीव पड गयी थी . क्यों कि उस झगडे में मोरारजी भाई ने बोल दिया था - लोहिया झूठ बोलते थे ' . बाद में मोरार जी भाई ने इस बात के लिए खेद व्यक्त किया और माफी मागे . बहरहाल वह अलग का किस्सा है . बात चन्द्र शेखर जी पर चल रही है . चंद्रशेखर जी से हमारे रिश्ते आखीर तक बने रहे . चंद्रशेखर जी पर गांधी , आचार्य नरेंद्र देव का बहुत प्रभाव था . हंसी मजाक का पुट उन्होंने इन्ही दोनों लोगों से लिया था . ८४ में चंद्रशेखर जी ने हमे तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्रा के खिलाफ चुनाव लड़ा दिया .नतीजा जो होना था वही हुआ हम इज्जत के साथ हारे . चुनाव के बाद हम फिर मिले . मिलते ही उन्होंने चुटकी काटा - कैसा रहा हो चुनाव ? हमने जवाब दिया - ठीक बलिया माफिक . खूब जोर का ठहाका लगा . ( चंद्रशेखर जी ८४ का चुनाव बलिया से हार गए थे ) आज वे हमारे बीच नहीं हैं लगता है हम किसी और माहौल में फंस गए हैं . बहुत याद आते हैं दाढ़ी . प्रणाम करता हूँ . आपके कृत्य याद किये जाते रहेंगे . 

Monday, July 6, 2015

बात -बतकही /चंचल
पानी बरसे सदर में , औ छाता मछलीशहर में
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उत्तर प्रदेश की कई दिक्कतें हैं . !
जैसे ?
एक दो हो तो बताऊँ यहाँ तो दर्जनों हैं औ इसका इलाज भी गायब है .
किस्सा मत बुझाओ साफ़ साफ़ बताओ तो उसका इलाज बताऊँ
बैताली भूज  अपनी परेशानी लेकर आये हैं चौराहे पर और लाल साहेब सिंह से समस्या का समाधान पूछ रहे है .लाल साहेब चाय की दूकान चलाते हैं इसके पहले बंबई में ऑटो चलाते थे .इसके और पहले देखना हो तो लाल साहेब मिडिल के विद्यार्थी रहे और तीन साल मुतवातिर एक ही दर्जे में पढ़ने का रिकार्ड  और आगे ले जाना चाहते रहे ,लेकिन इनके पिता ने जब यह सुना कि चुन्नी लाल जो लाल साहेब से दो कलम पीछे था ,वह लाल साहेब से एक कलम आगे बढ़ गया है तो उन्होंने वही किया जो गाँव की रवायत में शामिल रहता है और खानदानी चला रहा है कि इस शुभ अवसर पर बाप जूता निकालता है और बेटे का इलाज करता है .लेकिन लाल साहेब अपने बाप को धता पढ़ा के बम्मई भाग गया और दर महीने मनी आर्डर भेजने लगा. इसके दो फायदे हुए . एक कि बाप के  जूता  न होने का रहस्य दबा रह गया और दूसरा पहले मनी आर्डर से ही उन्होंने निन्यानबे रूपये का गुदगुदा चप्पल खरीदा और लल्लन की बरात में उसी को पहन कर समधी के साथ बैठ कर भात खाए . और उस चप्पल झाड पूंछ कर झोले में लटका दिये . इतना सुनाने का मतलब यह नहीं कि हम आपको बहका रहे हैं और बैताली की समस्या को नजरअंदाज कर रहे हैं भाई ! यह गाँव की रवायत बट कहाँ से चलती है कहाँ तक पहुँच जाती है जानना हो तो आकर गाँव देखो . तो हम बता  रहे थे कि -बैताली भूंज समस्या लेकर लाल साहेब के सामने खड़े हैं और लाल साहेब भट्ठी के नीचेवाले मुह में लोहे की छाड डाल कर हिला रहे हैं .भट्ठी कुछ काबू में आयी तो लाल साहेब खाली हुए और बैताली के सामने आकर खड़े हो गए - अब बोलो का माजरा है ? एक बात गाँठ बांध लो   जो बम्मई में ऑटो चला ले और गाँव के चौराहे पर चाय की दूकान चला ले वह क्या नहीं चला सकता . ? प्राब्लम बोलो , एक 'किक' में कार्बोरेटर का मुह खुलेगा और समस्या खार में जा के सांस लेगी . बोलो टाइम नहीं है बैताली ने अगल बगल देखा और खीसे से लाल रंग की एक चीर निकाला . उसे देखते ही लाल साहेब भडक कर दो कदम पीछे हटे . - अरे बैतालिया ! तेरी माँ की ..... सुबहे सुबहे इ का देखाय रहा है फिर तेरी माँ की ... ( गाँव का रिश्ता पद से चलता है यहा धर्म जाति लिंग नहीं देखा जाता . लाल साहेब राजपूत है और बैताली भूंज गाँव के रिश्ते में बैताली लाल साहेब के बाप लगते हैं गाहे ब गाहे बैताली लाल साहेब की माँ को गरिआते हैं और पलटवार में बेटा बाप की माँ के साथ रिश्ता जोड़ लेता है रवायत है इसी रवायत पर गाँव अभी तक टिका है लड़ाई झगड़े होंगे लेकिन दंगा कब्भी नहीं कभी सुना है कि गाँव में दंगा हुआ है ? ) इ कहाँ से उठा लाये काका ? बैताली फिस्स से हंस दिये - बेटा लाल साहेब ! तैं जवान समझ रहे , इ ऊ ना है एका देख इ आज की समस्या है एका टाई बोला जात है झिनकू क लडिका पिंटू ससुरा एतना ऐबी है कि का बताएं रात में बिजली ना रही पहले तो टीबी के लिए बवाल किया कि टीबी देखेंगे बताया कि बिजली ना है तो किसी तरह माना मुला ससुरे ने पता नहीं कब टाई की गाँठ खोल दिया अब कहि रहा है स्कूल ना जाबे बगैर टाई बांधे नहीं तो मास्स साहेब बड़ी मार मारेंगे . अब देखो हमारे सात पुश्त ने तो टाई बाधने को कौन कहे टाई क नाम तक नहीं सुना रहा अब अचानक इ टाई आ गयी यह कैसे गथिआयी जाती है हम्मे पूरे परिवार को किसी को नहीं मालुम . इ है समस्या . लाल साहेब की आँख गोल हो गयी - तो इ टाई है .. और इ है टाई के गाँठ की समस्या ? एक काम करो पिन्टुआ को स्कूल भेजो . टाई लेता जाय और मास्स साहेब से बंधवा ले . बैताली उदास गए - उनको भी नहीं आता भाई . कहते हैं जाओ उस दुकानदार से बदहवा कर आओ जिसने जिसने बच्चे के लिए ऊनीफार्म दिया है . एक गाँठ बढ़वाने के लिए दस मील जाय जाय ,दस मील आया जाय ? समस्या अटक गयी और सार्वजनिक भी हो गयी क्यों इसी बात चीत के दरमियान उमर दरजी और घोड़ी दूबे भी आ पहुंचे . उमर जनम क मुरहा है सु सुनेगा तो सुहुरपुर पहुँच जायगा . कोइ भी बात उससे पचती नहीं . औ एसी जगह ठीक नुक्कड़ पर उसकी दूकान है सिलाई की . मशीन कम चलाता है जुबान ज्यादा चलती है . गरज यह कि कोइ भी जो सौदा सुल्फी लेने बाजार जाएगा ,उसकी दूकान से ही जाएगा . बात को रफू करके उसमे नमक मिर्च लगा कर पूरे गाँव को बांटेगा यह उसका धंधा है . चुनांचे पिंटू की टाई जेरे बहस हो गयी . उमर ने नया टुकड़ा जोड़ा.- हुंह टाई की बात करते हो लखन कहार से दरियाफ्त करो ,उसे पूरे दिन स्कूल की सफाई करनी पडी थी उसका जुर्म इतना भर था कि उसका नाती जूता की जगह चप्पल पहन के गया रहा क्यों कि जूता कीचड़ में घुस गवा रहा .
- ऐसी पढाई काहे भाई ?
- जे इसलिए कि हर बाप चाहता है उसका बेटा पैसा बनाने की मशीन बने . और यह मशीन बनाने के लिए अंगरेजी जरूरी है . इस फार्मूले को कुछ चालाक लोंगों ने पकड़ लिया और अकल से एक मदरसा खोल कर उस पर बोर्ड लगा दिया कि यहाँ अंगरेजी माध्यम से पढाई होती है . बस यह है कथा . गाँव गाँव में ऐसे मदरसे खुल गए हैं . बच्चों का बचपना गायब है . किताबों के बोझ से कमर झुक गयी है और तो और बेहूदे इतने हैं कि बच्चे की गर्दन मरोड़ कर किताब में घुसेड दे रहे हैं वह न खेल पा रहा है न हंस पा रहा है . और तो और बच्चे को उठाने के लिए घर तक सवारी जाती है जो निहायत ही बेहूदी हरकत है . बच्चे खेलते कूदते स्कूल जाते थे जाने अनजाने बहुत सारा ज्ञान उसे रास्ते में मिल जातारहा . आज अंगरेजी माध्यम के बच्चो को अलसी का फूल दिखाओ तो पहचान नहीं पायेंगे .
- और सरकार ?
- सरकार क्या करे . इसका मंत्री ईमानदार है . रामगोविंद चैधरी . लेकिन उसको ढोनेवाले कौन हैं ,नौकरशाह . कमबख्त इन अंगरेजी परस्त नौकरों ने बताया कि हमारी पाठशालाएं निकम्मी हो रही है बच्चे वहाँ दाखिला लेना नहीं चाहते इसलिए उसका उपाय खोजना है . नौकरशाह जब भी कोइ उपाय बनाता है तो उसमे मुनाफ़ा पहले देखता है नतीजा कुछ भी निकले . इन उपायों में उसने मुफ्त की किताब , वर्दी भोजन पढ़े लिखे अध्यापक सब दिया लेकिन रिजल्ट ? शिफर ....
- तब ये मामला कैसे ठीक होगा .?
- ठीक होगा . बस जनता का मनोविज्ञान बदलो .
- ये मनोविज्ञान कैसे बदलेगा ?
- मुफत में थोड़े ही बताएँगे . अगली दफे कुछ नकद ले के आना वो भी बता  दूंगा ...
      समता ज्ञान केन्द्र
गाँव -पूरालाल , पोस्ट धेमा (बदलापुर ) जिला - जौनपुर .उ.प्र.222125
फोन - 91 9935149867 email- samtaghar@gmail.com
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आवश्यक सूचना
माँ बाप और अभिभावक के लिए - हर परिवार की इच्छा रहती है कि उसके बच्चे अच्छी शिक्षा पायें , लेकिन देखने में आया है कि बहुत सारे अभिभावक या माता -पिता यह नहीं जानते कि अच्छी शिक्षा क्या होती है ? इस जानकारी के अभाव में समूचा हिन्दी सूबा अपने बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहा है . उसे एक ललक रहती है कि उसका बच्चा अंग्रजी सीखे ,बोले और समझे . बस इतना ही उसके सोचने का पैमाना है . और इस ललक का फायदा उठा कर अनेको अपढ़ लोग जनता को बेवकूफ बनाने के धंधे में लग गए हैं और जोर शोर  से प्रचारित करते हैं कि हम बच्चे को अंगरेजी माध्यम से पढायेंगे . यह अंगरेजी माधम की भूख सीधे सादे गंवई लोगों को लूट रहा है . जब उस स्कूल के किसी भी मास्टर को अंगरेजी क्या होती है तक की जानकारी नहीं है . अंगरेजी एक भाषा है उससे किसी को गुरेज नहीं है . बतौर एक भाषा के अंगरेजी हर स्कूल में पढाई जाती है . ठीक उसी तरह जैसे हिंदी , संस्कृत , उर्दू और अंग्रेजी . यह भ्रम माता पिता को निकाल देना चाहिए . अंग्रजी माध्यम को समझ लीजिए . माध्यम मतलब भूगोल , इतिहास . गणित , साइंस सब कुछ अंग्रजी में पढ़ाया जाना . लेकिन येसा नहीं होता . दूसरा धोखा -बच्चे के लिए वर्दी . वर्दी मतलब पहनावा . कितनी सीधी सी बात है कि लोग क्या पहनते हैं और क्यों पहनते हैं ? अंग्रेज जहां बसा हुआ है वहाँ का मौसम ठंढ है . बारहों महीने ठंढ पड़ती है इसके लिए वे अपने आपको उन कपड़ों से ढंकते हैं जो उन्हें गर्मी पहुचाए . कोट पैंट टाई जूता वगैरह . आप ज़रा सोचिये आप यहाँ जिस मौसम में रहते हैं वहाँ क्या पहना जाता है . यहाँ कुल तीन मौसम होते हैं और उस मौसम के लिहाज से ही बच्चों को भी कपड़ा पहनने की आदत डालनी चाहिए ,लेकिन आप कर क्या रहे हैं बारहों महीना बच्चा टाई , मोजा , जूता . चुश्त कपड़े पहन रहा है उस बच्चे के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा ? कभी आपने इस पर भी गौर किया कि अगर एक टाई उस अंगरेजी माध्यम के किसी अध्यापक को दे दी जाय तो वह उसे सलीके से बिलकुल नहीं  बांध पायेगा.  या भयंकर गर्मी और उमस में बच्चे की गर्दन टाई से कसी रहती है .यह आपको या आपके बच्चे को पसंद आएगा क्या ? कभी आपने जानने की कोशिश की कि दुनिया में सबसे अच्छा कौन सा कपड़ा होता है ? जो सेहत के लिए और स्वच्छता के लिए, सारी दुनिया उसकी तारीफ़ करती है ? वह कपड़ा है खादी . हर मौसम में यह आपको तारो ताजा रखती है गर्मी में ठंढ और ठंढ में गर्मी देता है खादी . दूसरी बात बच्चों को सादगी और स्वाभिमान से भरता है . तीसरी बात बच्चे फुलवारी के फूल की तरह होते हैं  उन्हें एक तरह के कपड़े पहना कर आप फ़ौज में भेज रहे हैं को विद्यामंदिर में ?

बच्चे को क्या , कितना और कैसे पढ़ाया जाय .

-------------------------------------------स्कूल का मतलब होता है कि किसी अभिवावक या माता पिता को बच्चे को स्कूल भेजने के लिए ,जोर जबर दस्ती न करनी पड़े . बल्कि बच्चा स्वयं स्कूल जाने के लिए लालायित रहे . इसके लिए बच्चे को उचित माहौल , खेल की सामग्री और पाठ्य सामग्री प्रचुर मेरा में होनी चाहिए . बच्चों को अपने लिए खेलने की सामग्री खुद बनाना सिखया जाना चाहिए . साथ ही साथ बच्चे के लिए कला बहुत जरूरी है . अध्यापक को चाहिए कि वह बच्चे पर कभी भी धौंस न जमाये या उन्हें किसी भी बात के लिए प्रताडित करे . अध्यापक को चाहिए कि वह बच्चे में प्रश्न पूछने की आदत डाले और अध्यापक उसका उत्तर दे . इससे अध्यापक और बच्चे के बीच दोस्ती का रिश्ता बनता है . इन सब बातों को ध्यान में रख कर समता ज्ञान केन्द्र की स्थापना की गयी है . ... आप से अपील है कि आप अपने बच्चे का दाखिला समता ज्ञान केन्द्र में कराएं .
                                                      खुला दाखिला , सस्ती शिक्षा .
                                                      लोकतंत्र की यही परिक्षा / 

Friday, July 3, 2015

खादी का खाता तो खोलो .
चंचल
         खादी की यात्रा भारत की आजादी की लड़ाई से शुरू होती है और उसी के साथ साथ चलती है . आजादी के बाद खादी उसी तरह स्थापित होती जैसे सरकार . खादी उसी तरह उतरती है जैसे सत्ता का मोह उतरता है . खादी के प्रति लोग उसी तरह आशंकित होते हैं जैसे सत्ता के प्रति . खादी के बारे में उसी तरह कुप्रचार होता है जैसे सत्ता के बारे में . भारत में सत्ता के केन्द्र में कांग्रेस ही रही है बात चाहे पक्ष की हो या उसके प्रतिपक्ष की . एक बार अपने एक मित्र के घर चल रही पार्टी में , जसमे तमाम देशों के प्रतिनिधि , हर दल के जाने माने लोग उपस्थित रहे ,उसमे मनोज कुमार की फिल्मो के लिए गीत लिखनेवाले संतोषानंद भी रहे और दिल्ली के हिसाब से संघियों के बीच घिरे पड़े रहे और गांधी जेरे बहस थे . संतोषानंद ने हमारी तरफ देखा और बोले - अब तुम संभालो भाई . और हमने एक बात कही . गांधी दुनिया का सबसे बड़ा पोस्टर डिजाइनर है .यह वहाँ जुटे फ़िल्मी लोंगों के लिए कत्तई अजूबा बात थी . एक फिल्म वितरक ने निहायत ही व्यंग्य भरे लहजे में पूछा - इसका खुलासा भी हो सकता है ? हमने कहा जी , हुआ पड़ा है , दिखाई न दे यह दीगर बात है . उन्हों ने फिर फिकरा कसा - तो आप दिखा दीजिए . हमने कहा अब आप पीछे चलिए , हिन्दुस्तान गुलाम है कांग्रेस आजादी की लड़ाई लड़ रही है गांधी ने एक पोस्टर दिया ' चरखा ' उसे चलानेवाले , उसके उत्पाद को पहननेवाले मान लिए जाते रहे कि यह कांग्रेस है . तुर्रा यह कि कांग्रेस पर प्रतिबन्ध लग सकता था और कई बार लगा भी लेकिन कांग्रेस का पोस्टर " चरखा ' कभी भी प्रतिबंधित नहीं हुआ क्यों कि यह आजादी की लड़ाई का प्रतीक ही नहीं रहा बल्कि उत्पादन और रोजी का एक जरिया भी रहा . इससे निकला हुआ सूत एक दिन विचार बन गया . किसी भी तरह की गुलामी के खिलाफ एक सार्थक हथियार . इसी चर्चा में हम पहली बार काका ( राजेश खन्ना ) से मिले थे जो दिल्ली से चुनाव लड़ने आये थे . और हम दोस्त बन गए . अब खादी की यात्रा देखिये कांग्रस के साथ साथ चलती है . गांधी तक खादी 'स्वावलंबन ' और स्वरोजगार के साथ साथ स्वाभिमान को स्थापित करती रही हर कांग्रेसी नित्यप्रति चरखा चला रहा और अपने लिए खादी तैयार करता रहा . आहिस्ता अहिस्ता ज्यों ज्यों कांग्रेस आरामतलबी की तरफ बढ़ी और खादी खुद बनाने के बजाय बाजार से आने लगी , इसका भी   चरित्र बदलने लगा . ज्यों ज्यों सत्ता में चमक दमक आने लगी, खादी भी चमकाई जाने लगी . नील टीनोपाल स्टार्च जिसके खिलाफ खादी लड़ कर खड़ी हो रही थी , अन्य सेंथेटिक उत्पादों की गुलाम हो गयी . और अब यह कहा जाने लगा कि खादी बहुत महगा लिबास है . इसको संभालने और अन्य लिबास की तुलना में इसे खड़ा करना बहुत महगा धंधा है . एक नजर में यह सच भी लगता है विशेषकर उनको जो खादी का अर्थशास्त्र नहीं समझ पाए हैं . जब कि खादी अपने मूल रूप में आये तो यह निहायत ही सस्ता और स्वास्थ्य के लिए लाभ दायक उत्पाद है . आइये खादी का अर्थ शास्त्र देखें -
         खादी उत्पाद का कच्चा माल किसान देता है . कपास उसके खेत में पैदा होता है . अगर किसी को वाकई खादी पहनने है और उसे इसकी महत्ता जाननी है तो उसे कम से कम एक अदद चरखा रखना पड़ेगा . एक परिवार में एक चरखा ही काफी होगा उसके पूरे परिवार को कपड़े की मांग पूरी करने के लिए . घर का प्रतिव्यक्ति यदि चरखे पर आधे घंटे भी बैठता है तो उसके पास किसी भी तरह की कपड़ों की पूर्ति आसानी होती रहेगी . खादी से यदि आप रूई खरीदते हैं तो वह आपको सस्ते में मिलेगी क्यों कि सरकार की तरफ से उसे सब्सीडी मिलती है . इस रूई से बने सूत को अगर आप खादी आश्रम को बेच कर एवज में कपड़ा खरीदेंगे तो उस कपड़े पर इतनी छूट मिलेगी कि आपको वह कपड़ा आपके आधे घंटे के श्रम के बराबर तक हो जाता है . एक तरह से मुफ्त . अब सूत कातने की प्रक्रिया देखिये . सूत कातते समय बैठने की मुद्रा और सूत टूटने न पाए को देखने की एकाग्रता जाने अनजाने आपको पातंजलि के योग के करीब पहुचा देती है . मन सात्विक होता है और आप हिंसक हिस्से से बाहर निकल कर सतो गुण की तरफ बढ़ जाते हैं . दूसरा - यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है .हर मौसम में यह शरीर के तापमान को संतुलित रखता है . गर्मी में ठंढक, ठंढ में गर्मी और बारिश में समानुपाती गुण रखता है . खादी में किसी भी चरम रोग से बचने की अपार क्षमता है . दूसरा कुप्रचार जो खादी को लेकर चलता है कि इसका रखरखाव महगा पड़ता है . यह खुद के ऊपर थोपी गयी एक भ्रान्ति है . खादी को किसी भी सेंथेटिक पदार्थ से बचाया जाना चाहिए इसमें नील टिनोपाल या स्टार्च इसके मूल गुण को खत्म कर देते हैं .खादी में इसके रोयें इस्तरी करने से जल जाते हैं . इसे इस्तरी से कत्तई  बचाना चाहिए . आज सारी दुनिया यह मान चुकी है कि खादी से बेहतर कोए दूसरा वस्त्र नहीं है . लिहाजा आज भारत जितना खादी निर्यात कर रहा है और विदेशी पूंजी अर्जित कर रहा है उसके आंकड़े बहुत दिलचस्प हैं . व्यक्तित्व विकास के लिए खादी से बेहत कोइ दूसरी चीज अब तक नहीं बनी है जो किसी भी तरह की गुलामी से बाहर खींच कर आपको स्वराज में ला खड़ा करें . 

Wednesday, July 1, 2015

मोहल्ला अस्सी पर इतना बवाल क्यों ?
हिंदी के चर्चित उपन्यासकार ,कहानीकार भाई काशी नाथ सिंह के 'रेखा चित्र ' काशी की अस्सी पर एक फिल्म बनी .उसके रिलीज होने के पहले ही उस पर बवाल शुरू हो गया .और मामला अदालत तक गया . सुना जा रहा है कि अदालत ने उस पर रोक लगा दिया . अदालत और बवालियों से कहना चाहता हूँ कि भाई यह किताब तीन साल से भी ज्यादा हो गयी है बाजार में बिक रही है . उस समय इस पर बवाल क्यों नहीं हुआ ? अदालत ने उसे उस समय क्यों नहीं प्रतिबंधित किया ? ये कला की दो अलग अलग विधाएं हैं उनकी अंतर्धारा एक है . तर्क दिया जा रहा है कि उसमे गालियाँ हैं . तो इनको गालियों से परहेज है ? और जब गालियों से परहेज रहा तो पढ़े क्यों ? और अगर नहीं पढ़े हो तो कैसे मालुम कि इसमें गाली है ? किस समाज में गाली नहीं है ? जिस समाज में गाली नहीं होता वो सदा हुआ समाज होता है , सवाल यह होता है कि वो गालिया जबरदस्ती ठूंसी गयी हैं कि वे सहज रूप से बह रही है. और गाली है क्या ? अगर कोइ कह दे तुम संघी हो ,तो यह हमारे लिए बहुत बड़ी गाली है क्यों कि हमने यह मान लिया है . कुछ नाम गिना दे रहा हूँ बवाल करनेवाले गिरोहियों को - कालीदास ,राही मासूम रजा , यशपाल और भी बहुत नाम हैं . 'आधा गाँव ' गालियों का खजाना है लेकिन अखरता एक भी जगह नहीं . राज कमल प्रकाशन की तत्कालीन मालकिन शीला संधू ने डॉ राही मासूम रजा को खत लिखा कि डॉ साहब अगर आधा गाँव में गालियाँ न होती तो तो इसे साहित्य अकादमी का पुरष्कार मिल जाता . उसका बहुत ही माकूल जवाब दिया है राही जी ने - पुरष्कार के लिए हम अपने पात्र से संस्कृत का श्लोक तो बुलवा नहीं सकते , ..... य्ह्पाल ने तो अपने उपन्यास में लिखा - ये कांग्रेसी झांट के बाल के बराबर भी नहीं ' .कालिदास का कुमार संभवं पढ़ लो . शिव पार्वती के साथ समभोग का वर्णन है . मिटाओ उसे . खाहुराहो के मूर्तिशिल्प कनपुरिया गाली को भी शर्मिन्दा करते खड़े हैं . लगा दो तोप . चिहुंक रहे हो ' भोसडोके ' बहन चोद.. एकरी बहिन क .. बनारस की गलिया , सड़क , दूकान कहाँ जाओगे गाली हर जगह है . उसका रस लो . स्वाद देखो . चीखो मत यह क्योटो जाएगा . 

Friday, June 26, 2015

चिखुरी / चंचल
ताला ,जंगला .लालटेन सब ठीक है . आइये !

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      ..... ' इमरजेंसी में हैं .
    निजामुद्दीन इमरजेंसी में हैं यह खबर आग की तरह पूरे गाँव में फ़ैल गयी . हस्बे जैल अर्ज कर दूँ कि गाँव में कोइ भी खबर सीधे सीधे नहीं फैलती वह जिस डगर से चलती है उस डगर की राख- पात , नमक मिर्च सब उस खबर में लिपटते चलते हैं . अब इसी खबर को देखिये निजामुद्दीन चले थे मेले में जाने के लिए गजर से निकले थे तो पूरी तैयारी के साथ जैसा कि कीन उपाधिया ने उन्हें समझाया था - सुनो मान्यवरो ! भाइयो और बहनों ... उमर दरजी ने टोका भी - बहनों एक भी नहीं है आगे बोलो . कीन ने उमर को घुडकी भीभी दी थी - उमर ! बर् बख्त मजाक मत किया करो यह जन हिट का मामला है और सरकार का फैसला है देश नहीं दुनिया इसे मना रही है .... यह एक तरह का स्वास्थ मेला है .रोग कोइ भी हो असाध्य हो मुला ठीक होने की गारंटी है दवा दारू से नहीं बस योगा से ... लाल साहेब ने टोका - योगा नहीं योग बोला जाय . कीन मुस्कुराए हू ब हू अटल जी की तरह - योग देसी चीज है , हमने इसे विदेश तक पहुचाने के लिए इसके आगे एक खड़ी पाई और लगा दी है समझे , आपको करना कुछ नहीं है बस चटाई ले लीजिए . चटाई न हो बोरा , चदरा कुछ भी लेते चलिए जिससे आपको तकलीफ न हो . नवल मुस्कुराए - साथ  में तेल भी ले चलना है कि सरकार देगी ?पब्लिक ने हंस दिया . कीन चुंकी आज मंच पर हैं इसलिए उन्हें इतना तो अख्तियार है ही कि कार्यक्रम में व्यवधान डालनेवाले को हिदायत देकर आगे बढ़ गए .इतनी सी बात हुयी थी और निजामुद्दीन अल सुबह अपनी दरी लेकर उस योग मेला में गए थे . दोपहर को खबर आयी कि निजामुद्दीन तो इमरजेंसी गए अलबता उनकी चटाई सही सलामत वापस आयी बताने वाले तो यह भी बताते हैं कि उनके इमरजेंसी जाने की खबर और चाई एक ही साठ गाँव आयी . लखन कहार का कहना है कि जब गुरु जी आये तो उन्होंने निजामुद्दें को बाहर खड़ा कर दिया और बोले कि आप तहमत पहन कर योग नहीं कर सकते क्यों कि कई आसान ऐसे हैं जिसमे तहमत नहीं चल पायेगा . और चुंकी साथ में एक साध्वी भी हैं इस लिए तो कत्तई नहीं . लेकिन निजामुद्दीन अड् गए और बोले कि -जनाब आप जो समझ रहे हैं उसे हम भी समझ रहे हैं हम तहमत को ऐसा गठिआयेंगे कि आपके हाफ पैंट से ज्यादा किलेबंद रहेगा . और समझौता हो गया . योग शुरू हुआ ही था कि तीसरे नंबर पर गुरूजी ने ऐलान किया कि योगियों अब हम पवन मुक्त करेंगे . और इसी पवन मुक्त पर तहमत ने जो धोखा दिया सो दिया ठीक पीछे चर्र की आवाज आयी लखन कहार ने अपने कान से सुना और पलट कर देखते इसके पहले ही निजामुद्दीन एक तरफ लुढक गए थे आँख बंद थी और जोर जोर से बोल रहे खींच रे नस फंस गयी है तुरते हस्पताल गए . पहले लोग हस्पताल जाते रहे अब इमरजेंसी जाते हैं यह बता कर लाल साहेब ने खुलते पानी में चाय की पट्टी डाल दी. इस तरह चौराहे की सांसद में इमरजेंसी ने प्रवेश लिया .
   भिखईमास्टर ने धोती संभालते हुए पहला सवाल उठाया - आज की क्या खबर है भाई ? मद्दू पत्रकार ने गोलार्ध को बदला . बाएं पर टिके बैठे थे दाहिने पर आ गए . - वही इमरजेंसी . उमर की आँख गोल हो गयी . - इमरजेंसी ? घंटा भर ना भावा कि खबर दिल्ली तक जा पहुँची ? मद्दू ने घुडकी दी - अबे ! ऊ इमरजेंसी नहीं , इ दूसरी इमरजेंसी की बात होय रही बा . इमार जेंसी कई होती है का उमर का दूसरा सवाल था . लाल साहब ने बताना शुरू किया - एक दो की बात करते हो ? जब हम बंबई रहे कई इमरजेंसी देखे रहे . हर हस्पताल में एक इमरजेंसी होती है ... मद्दू मुस्कुराए - लाल्साहेब चाय बनाइये , हम जिस इमरजेंसी की बात कर रहे हैं वह राजनीति की इमरजेंसी है . हस्पताल की नहीं . राजनीति में भी इमरजेंसी होती है यह इस चुराहे के लिए नयी बात रही . और जो नयी बात होती है उस पर लोग चौकते ही हैं - लखन कहार ने कयूम मियाँ को ठोंका - सुन रहे हैं मियाँ राजनीति में भी इमरजेंसी होती है ,आप ततो सुराजी हैं खुदा न खास्ता जदी कभी कुछ हुआ तो आपको इमरजेंसी में जल्दी जगह मिल जायगी . बहस लंबी चली उसे कार्यवाही में नहीं दर्ज कर रहा हूँ जहा से काम की चीज निकली उसे सुना जाय 
राज बब्बर दोस्त बहुत अच्छा है /चंचल

साठ के बाद की बात है . हिंदी पट्टी में भाषा आंदोलन जोर पकड़ने लगा था . उस जमाने में सयु स (समाजवादी युवजन सभा ) चर्चा में आ चुकी थी . उत्तर प्रदेश के सचिव थे मुख्तार अनीस लखनऊ के पानदरीबा में जहां समाजवादी पार्टी का दफ्तर था ,वही बैठक चल रही थी . पीछे कहीं दूर हम बैठे थे . देवब्रत मजुमदार , मोहन सिंह , सत्यदेव त्रिपाठी हर्ष वर्धन . राजनाथ शर्मा वगैरह को पहली बार देख रहे थे . हमारे बगल में हमसे भी ज्यादा सिकुड़ा हुआ एक दुबला -पतला युवजन सभाई और भी था . सकुचाते हुए हम दोनों के बीच बात चीत शुरू हुयी . उसने बताया वह टूंडला से है ,और हमने बताया हम जौनपुर से है . वह टूंडला वाला राजबब्बर निकला और जौनपुर वाला यह खादिम जो राज के जन्मदिन के  बहाने समाजवादी आंदोलन को याद कर रहा है . बात आयी गयी हो गयी . हम काशी विश्वविद्यालय चले गए ,राज घुमते -घामते राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय . तब भी मुलाक़ात नहीं हुयी . हम भाषा आंदोलन में फिर मिले . और मिलते रहे . एक दिन विवेक उपाध्याय जो कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के ही छात्र रहे और बाद में चल कर बहुत बड़े एक्टर बने ( मुख्यमंत्री , महाभोज आदि में दमदार चरित्र , फिल्मों में - जोनूं में मलंग , लगान में वह गंवई जो बाल को फेकने के लियी हाथ को चकर घिन्नी की तरह घुमाता है ) जौनपुर आये हुए थे ,उन्होंने सूचना दी कि राज ने अपने ही निदेशक नादिरा जी से पहले प्यार किया ,फिर बिआह कर लिया . हमने बधाई सन्देश भेजा जिसका जवाब अभी तक नहीं आया ,गो कि  इन दोनों ने मिल कर दो बच्चे भी पैदा किये . जूही और गोर्की . और दोनों ही राज से ज्यादा समझदार और प्यारे . बहर हाल . एक दिन बंबई में था तो पता चला राज ने स्मिता पाटिल से शादी कर ली है . बाकी जो हुआ वह सब को मालुम है . स्मिता की वजह से राज को जो सदमा पहुंचा .बहरहाल यह राज हमारा दोस्त है . कुछ मायने यह हमे लांघ जाता है मसलन अकल में शक्ल में . काम की गंभीरता , लगन और रिश्तों का निर्वहन . राज में जो खूबिया हैं ,हम उसके बरक्स हैं , इस वजह से कई बार राज से चिढता भी हूँ . आज जब राज का फोन आया कि क्या हुआ . ? हुआ यह था कि हमने कईबार फोन मिलाया मिल नहीं रहा था तो छोड़ दिया . फिर उधर से फोन आया कि क्या हुआ ? हमने कहा एक बच्चा पैदा हुआ है उसका जन्मदिन है फिर हम दोनों काफी देर तक गपियाते रहे . सियासत में राज के साठ थोड़ी गडबडी हुयी . यह कमबख्त हिंदी पट्टी में न पैदा हुआ होता ,और अगर कही दक्षिण में होता तो कम से कम सूबे का मुख्यमंत्री तो हुआ ही होता . राजनीति वालों की दिक्कत क्या है कि वे एक्टर पसंद तो करते हैं लेकिन मौक़ा नहीं देना चाहते .राज के साठ यह कई बार हुआ है . एक घटना सुनाऊं .वीपी सिंह जब कांग्रस से छटके तो उन्हें कंधे पर बैठाने वाले राज ही रहे. और जब वी पी सिंह एलाहाबाद से चुनाव लड़ने आये तो उन्कामं कत्तई नहीं था कि उनका प्रचार एक ऐक्टर करे .
कल २५ जून को वीपी सिंह का जन्म दिन है .भाई संदीप वर्मा ने लखनऊ प्रेस क्लब में कार्यक्रम रखा है . समय रहता तो जरूर भाग लेता और डंके की चोट पर कहता कि वीपी सिंह को वीपी बनाने में हम भी शामिल रहे . यकीन न हो तो भाई विभूति नारायण राय ( बड़े पुलिस अधिकारी , और उस समय इलाहाबाद में ही तैनात रहे ) संतोष भारती , डीपी त्रिपाठी या भाई रमेश दीक्षित से दरियाफ्त कर लीजिए . इतनी सफाई इस लिए दे रहा हूँ कि अब समाजवादी भी हमसे चिहुंकने लगा है कहेगा - झूठ पकड़ा गया ' . वीपी से हम चिढते रहे . क्यों कि वे कांग्रेसी थे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे . और हम समाजवादी थे . एक दिन वीपी देश के वित्त मंत्री बने प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी . किसी बात पर दोनों में अनबन हो गयी और वे सरकार से बाहर कर दिये गए . अचानक वीपी को याद आया कि गुमनामी में  मरने से अच्छा है कोइ खेल किया जाय और वह एक पन्ना खीसे में डाल कर निकल पड़े कि बोफोर्स तोप में दलाली हुयी उसका सबूत हमारे पास है बस विरोधी दलों को एक मसाला मिल गया . और वीपी सिंह एलाहाबाद के चुनाव में उतर गए . संतोष भारती उनके साठ लग लिए . संतोष जी की चौथी दुनिया वीपी सिंह का मुखपत्र बन गया . एक दिन संतोष भारती ने हमे उठाया और लेजाकर वी पी के घर गिरा दिया . यह हमारी पहली मुलाक़ात थी . और हम सीधे किचेन में पहुँच गए , जहां संजय सिंह , संतोष भारती ,योगेश मिश्रा पहले से गिरे पड़े थे . उसमे एक हम भी शामिल हो गए . सबसे पहले हमने यह काम किया कि उनके पुश्तैनी नाचघर जिसका नाम था ऐश महल जहां वी पी सिंह विश्राम करते थे उसपर कागद चिपकवा कर नाम को ढंका . क्यों कि तब तक बाहर नारा लगने लगा था - राजा नहीं फ़कीर है , देश की तकदीर है . सीता जी उनकी धरमपत्नी और उनकी बहन राजा प्रतापगढ़ की पत्नी निहायत ही जीवंत और हंसमुख रही कभी कोइ बोर नहीं होने पाया . जिस दिन नाम करण था उसके दो दिन पहले संजय सिंह ने कहा यार किसी तरह जार्ज साहेब को बुलाओ उनका रहना जरूरी है . जार्ज से बात हुयी किसी तरह आने को राजी हुए गो कि देश के तमाम  गैर कांग्रेसी नेता प्रयाग में कुम्भ लगाए बैठे थे . जार्ज ने जाते समय हमारी चप्पल भी लेते गए , इस पर लिख चुका हूँ .  शाम तक ऐश महल में इन्तजार होता रहा कि अमिताभ बच्चन ने पर्चा भरा कि नहीं . और जब यह तय हो गया कि अमिताभ नहीं आ रहा है उसकी जगह पर शास्त्री के लड़के को कांग्रेस उतार रही है तो ऐश महल में एक नया बखेड़ा शुरू हो गया . वीपी फ़ैल गए कि हम चुनाव ही नहीं लड़ेंगे . यह कैसे सालता इसे कल 
कल बड़ी बक बक हुयी . इमरजेंसी को लेकर . एक चैनल ने फोन किया - आप इमरजेंसी में जेल गए थे ?
- जी गया नहीं था , ले जाया गया था .
- कैसी रही जेल यात्रा ?
- सुखद रही
- यातना दी गयी थी ?
- जी नहीं .
- क्या हुआ था ?
- सेवा हुयी थी बिलकुल दामाद की तरह
- क्या बात कर रहे हैं , सब जानते हैं सारे नागरिक अधिकार बंद थे प्रेस पर प्रतिबन्ध था . लोग बधिया किये जा रहे थे ..
- यह सब कहाँ हुआ था भाई ?
- इसी देश में .
- हम इस देश में कहाँ थे ? हम तो जेल देश में थे . वहाँ कोइ नागरिक अधिकार नहीं बंद था . गरियाते हुए गए थे ,दिन भर अपना नागरिक अधिकार भोगते ,कोइ रोक टोक नहीं थी , अंडा से सुबह का जलपान करते शाका हारी मंशा हारी भोजन उठाते दंड बैठक करते बैडमिन्टन खेलते संघी जब रोता तो उसे दिलासा देते . और भी बहुत कुछ . ताला जंगला लालटेन सब ठीक रहा . चौवन किलो में गए थे अट्ठावन में बाहर निकले भाई तुमने गलत जगह नंबर मिला लिया है इमरजेंसी पर कार्यक्रम देना है तो उनसे पूछो जिन्होंने इमरजेंसी देखा था , जिया था .यह वो लोग हैं जो बाहर थे ,धूमिल को सुनिए -
      लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो , उस घोड़े से पूछो
     जिसके मुह में लगाम है
लेकिन एक बात बताओ ये चालीस साल बाद क्यों चीख रहे हो इमरजेंसी ?
- नयी पीढ़ी को बताने के लिए .
- परले दर्जे के मूर्ख हो . जिस पीढ़ी ने नागरिक अधिकार को लंगडाते हुए तक न देखा हो , जिसने बधिया होना जाना ही न हो , जिसे  बात करने पर पाबंदी तक की जानकारी न हो उसे क्या बताओगे ? वह चैनल बदल कर बिद्याबालन के पास चला जायगा .पत्रकारिता की पूंछ उखाडोगे तो पिछवाड़ा खंडहड हो जायगा . बात माफी नामा पर करो कि वक्त आता है तो किस तरह झुक कर सलाम किया जाता है .

Wednesday, June 24, 2015

कल २५ जून को वीपी सिंह का जन्म दिन है .भाई संदीप वर्मा ने लखनऊ प्रेस क्लब में कार्यक्रम रखा है . समय रहता तो जरूर भाग लेता और डंके की चोट पर कहता कि वीपी सिंह को वीपी बनाने में हम भी शामिल रहे . यकीन न हो तो भाई विभूति नारायण राय ( बड़े पुलिस अधिकारी , और उस समय इलाहाबाद में ही तैनात रहे ) संतोष भारती , डीपी त्रिपाठी या भाई रमेश दीक्षित से दरियाफ्त कर लीजिए . इतनी सफाई इस लिए दे रहा हूँ कि अब समाजवादी भी हमसे चिहुंकने लगा है कहेगा - झूठ पकड़ा गया ' . वीपी से हम चिढते रहे . क्यों कि वे कांग्रेसी थे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे . और हम समाजवादी थे . एक दिन वीपी देश के वित्त मंत्री बने प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी . किसी बात पर दोनों में अनबन हो गयी और वे सरकार से बाहर कर दिये गए . अचानक वीपी को याद आया कि गुमनामी में  मरने से अच्छा है कोइ खेल किया जाय और वह एक पन्ना खीसे में डाल कर निकल पड़े कि बोफोर्स तोप में दलाली हुयी उसका सबूत हमारे पास है बस विरोधी दलों को एक मसाला मिल गया . और वीपी सिंह एलाहाबाद के चुनाव में उतर गए . संतोष भारती उनके साठ लग लिए . संतोष जी की चौथी दुनिया वीपी सिंह का मुखपत्र बन गया . एक दिन संतोष भारती ने हमे उठाया और लेजाकर वी पी के घर गिरा दिया . यह हमारी पहली मुलाक़ात थी . और हम सीधे किचेन में पहुँच गए , जहां संजय सिंह , संतोष भारती ,योगेश मिश्रा पहले से गिरे पड़े थे . उसमे एक हम भी शामिल हो गए . सबसे पहले हमने यह काम किया कि उनके पुश्तैनी नाचघर जिसका नाम था ऐश महल जहां वी पी सिंह विश्राम करते थे उसपर कागद चिपकवा कर नाम को ढंका . क्यों कि तब तक बाहर नारा लगने लगा था - राजा नहीं फ़कीर है , देश की तकदीर है . सीता जी उनकी धरमपत्नी और उनकी बहन राजा प्रतापगढ़ की पत्नी निहायत ही जीवंत और हंसमुख रही कभी कोइ बोर नहीं होने पाया . जिस दिन नाम करण था उसके दो दिन पहले संजय सिंह ने कहा यार किसी तरह जार्ज साहेब को बुलाओ उनका रहना जरूरी है . जार्ज से बात हुयी किसी तरह आने को राजी हुए गो कि देश के तमाम  गैर कांग्रेसी नेता प्रयाग में कुम्भ लगाए बैठे थे . जार्ज ने जाते समय हमारी चप्पल भी लेते गए , इस पर लिख चुका हूँ .  शाम तक ऐश महल में इन्तजार होता रहा कि अमिताभ बच्चन ने पर्चा भरा कि नहीं . और जब यह तय हो गया कि अमिताभ नहीं आ रहा है उसकी जगह पर शास्त्री के लड़के को कांग्रेस उतार रही है तो ऐश महल में एक नया बखेड़ा शुरू हो गया . वीपी फ़ैल गए कि हम चुनाव ही नहीं लड़ेंगे . यह कैसे सालता इसे कल 

Tuesday, June 23, 2015

 बात बतकही
भाजपा सियाह खाने का ऊंट है /चंचल
     '........ अगर आप शतरंज के खेल  से वाकिफ नहीं हैं तो सियासत में मत आइये , जनहित के और भी कई काम हैं वहीं कहीं अपने आपको फंसा लीजिए . मसलन मिट्टी ,गिट्टी,लोहा या कोयला  और बालू की खदान में जुट जाइए और फिर आइये सियासत में . एक दिन हम सूबों की सियासत देख रहे थे . जनाब लोग जो हमारी रहबरी करते है ,मोटी रकम उठाते हैं और हमारे सवालों को सूबे की पंचाईत  में उठाने के जिम्मेवारी लेते हैं वो अतिरिक्त समय में और विकास के लिए ठेकेदारी भी करते हैं .कहते हुए भीखइ मास्टर ने चुप्पी साध ली क्यों कि इस मौजू विषय पर बोलनेवाले कई और मुह रहे जो खुले पड़े है बस मौक़ा चाहिए . यह न सांसद है विधान सभा यह गाँव की सांसद है जो सलीके से चलती है और किसी को अपनी वाजिब बात्काहने का मौक़ा देती है यह बात दीगर है कि यह बहस तभी तक जारी रहती है जब तक के लाल साहेब चाय न परोस दें . बाज दफे तो लाल साहेब जान बूझ कर चाय छानने में देर करते हैं कि चाय पीनेवालों का कोरम तो पूरा हो जाय . आज भी ऐसा ही रहा सो लाल साहेब को खुद सवाल उठाना पड़ा - ये बताओ पंचो ! यह राजनीति क्या होती है ? इस एक सवाल ने सब को घेर लिया . लेकिन मद्दू पत्रकार ( पूरा नाम है महंथ दुबे पुराने जमाने के है . उन दिनों 'दिनमान ' सीधे सवालों की कठिन पत्रिका मानी जाती थी और उसको पढ़नेवाले पत्रकार लोग ज्यादा होते थे एक दिन उन्होंने देखा कि पत्रकार चाहे तो अपना नाम सिकोड़ ले और विषय को भरपूर जगह दे दे इसी में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपना नाम स द स लिखा तो महंथ दुबे भी मदू हो गए जो कालान्तर में मद्दू के नाम से जाने गए ) को कुछ न कुछ तो समझाना ही था - राजनीति ,राजनीति होती है . इसमें लोंगो का होना जरूरी होता है यह बगैर आदमी के नहीं चल सकती चुंकी इसे चलना पड़ता हैतो लंबे समय तक यह पैदल चली . इस राजनीति को गांधी , नेहरु , डॉ लोहिया , अच्युत पटवर्धन , आचार्य नरेंद्र देव जैसे लोग पैडल चले या सरकार की गाड़ी से चले ,टिकस लेकर . बाद के लोगों ने रवायत बदली और अपनी गाड़ी से अपनी सेना के साथ चलने लगे .आज के जमाने राजनीति संदूक और बन्दूक के साथ चलती है . इसे कहते हैं राजनीति . समझे . ? लम्मरदार ने टोका - एकबार हमने डॉ लोहिया को सुना था जब वे पंडित नेहरु के खिलाफ फूलपुर से चुनाव लड़ रहे थे बोले थे राजनीति लोगों को बेहतर जिंदगी बसर करने का सलीका है . मद्दू को राहत मिली - चलिए इसे भी मान लेतेहैं . तो यह हुआ राजनीति . यह राजनीति तीन तरह की होती है .  एक - राजनीतिक .दो - गैर राजनीतिक .तीन राजनीति विरोधी . इन तीनो में एक बात साफ़ होती है कि एक तरह की सोच रखनेवाले लोग एक गिरोह बनाते हैं . यह गिरोह अपने काम काज की वजह से तीन खांचे खड़ा होता है . आज हम इस तीसरे गिरोह जिसे हम संघ के नाम से जानते आये है की बात करेंगे . और चर्चा इस गिरोह पर चल पडी . - सुनो पंचो ! एक होते हैं जो आगे देखू होते हैं ,असल में ये ही राजनीतिक होते है . जैसे कांग्रस और उस घर से अलगौझी करके बाहर निकले समाजवादी . दूसरे - अगल बगल देखू . चीं में क्या हो रहा है रूस में क्या हो रहा है उसके मुताबिक़ चलते फिरते हैं इसमें साम्यवादी आते है . और तीसरे हैं जो पीछे देखते है . इन्हें देखो तो ये बहुत मजेदार गिरोह है . अतीत जीवी हैं . बाप घी खाए रहा पहुंचा सूँघो के तर्ज पर चलता है . देश में दूध और घी की नदिया बहती थी , हम नदियों में घी बनाने की तरकीब बताएँगे . पहले जमींदारी वापस लाओ . मंदिर बनाओ . घर तो बनते रहेंगे . यह एक गोत्र का देश रहा ,इसे उसी गोत्र के पास भेजो . एक गोत्र , एक झंडा , एक नेता . बस एक और एक . इसके अलावा सब लफ्फाजी . और अगर लफ्फाजी ही करनी है तो उतरो मैदान में . हम साबित करदेंगे कि  दुनिया में हमसे बड़ा कोइ लफ्फाज नहीं . तक्षशिला पाकिस्तान में नहीं नालंदा के बगल बिहार में सुशील मोदी के घर में है . देखने के लिए आँख चाहिए . तालियों की गडगडाहट बता रही है हम कितने बलवान थे और फिर होंगे . भूख , महगाई , काला धन ? कौन चीख रहा है ? बंद रखो जुबान . हम बताते हैं . भूख लगे तो योगा करो . किसने टोंका ?  योग पुरानी चीज है , उसमे 'आ ' लगाकर चलाओ पश्चिम में में खूब चलेगा . तुम पवनमुक्त आसान करो पूरे जोर से . हम अपने पड़ोसी को बताएँगे कि आँख मत दिखाओ जब इस आसन में इतनी आवाज है तो ज़रा तोप के बारे में अंदाज लगाओ . काला धन ? इसका जवाब ऐसे वक्त पर देने के लिए ब कायदे कई रफूगर होते है मसलन जेटली साब ! आप बोलिए हमे देश में बोलने की मोहलत नहीं है . और वो एलान रफू हो गया - किस सरकार ने कहा था हम काला धन लायेंगे ? वाकई वो बयां तो सरकार बनाने के लिए था , बनने कके बाद थोड़े ही .इसे कहते हैं जुमला . भारतीय जुमला पार्टी . समझे कि नहीं ? नवल उपधिया जो इस सांसद के स्थायी सदस्य है ऐसे सुन रहे थे ,जैसे सत्नारायण  की कथा . आखीर में बोले - हे देवता !इ सब कब तक झेलना पड़ेगा ? यह तुम्हारी अपनी खाल की मोटाई पर है ,, वरना तुम चाहो तो कल बदल सकता है . डॉ लोहिया को सुना है न ? एक बार फिर सुन लो - ज़िंदा कौम पांच साल तक इन्तजार नहीं करती .