बात -बतकही /चंचल
पानी बरसे सदर में , औ छाता मछलीशहर में
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उत्तर प्रदेश की कई दिक्कतें हैं . !
जैसे ?
एक दो हो तो बताऊँ यहाँ तो दर्जनों हैं औ इसका इलाज भी गायब है .
किस्सा मत बुझाओ साफ़ साफ़ बताओ तो उसका इलाज बताऊँ
बैताली भूज अपनी परेशानी लेकर आये हैं चौराहे पर और लाल साहेब सिंह से समस्या का समाधान पूछ रहे है .लाल साहेब चाय की दूकान चलाते हैं इसके पहले बंबई में ऑटो चलाते थे .इसके और पहले देखना हो तो लाल साहेब मिडिल के विद्यार्थी रहे और तीन साल मुतवातिर एक ही दर्जे में पढ़ने का रिकार्ड और आगे ले जाना चाहते रहे ,लेकिन इनके पिता ने जब यह सुना कि चुन्नी लाल जो लाल साहेब से दो कलम पीछे था ,वह लाल साहेब से एक कलम आगे बढ़ गया है तो उन्होंने वही किया जो गाँव की रवायत में शामिल रहता है और खानदानी चला रहा है कि इस शुभ अवसर पर बाप जूता निकालता है और बेटे का इलाज करता है .लेकिन लाल साहेब अपने बाप को धता पढ़ा के बम्मई भाग गया और दर महीने मनी आर्डर भेजने लगा. इसके दो फायदे हुए . एक कि बाप के जूता न होने का रहस्य दबा रह गया और दूसरा पहले मनी आर्डर से ही उन्होंने निन्यानबे रूपये का गुदगुदा चप्पल खरीदा और लल्लन की बरात में उसी को पहन कर समधी के साथ बैठ कर भात खाए . और उस चप्पल झाड पूंछ कर झोले में लटका दिये . इतना सुनाने का मतलब यह नहीं कि हम आपको बहका रहे हैं और बैताली की समस्या को नजरअंदाज कर रहे हैं भाई ! यह गाँव की रवायत बट कहाँ से चलती है कहाँ तक पहुँच जाती है जानना हो तो आकर गाँव देखो . तो हम बता रहे थे कि -बैताली भूंज समस्या लेकर लाल साहेब के सामने खड़े हैं और लाल साहेब भट्ठी के नीचेवाले मुह में लोहे की छाड डाल कर हिला रहे हैं .भट्ठी कुछ काबू में आयी तो लाल साहेब खाली हुए और बैताली के सामने आकर खड़े हो गए - अब बोलो का माजरा है ? एक बात गाँठ बांध लो जो बम्मई में ऑटो चला ले और गाँव के चौराहे पर चाय की दूकान चला ले वह क्या नहीं चला सकता . ? प्राब्लम बोलो , एक 'किक' में कार्बोरेटर का मुह खुलेगा और समस्या खार में जा के सांस लेगी . बोलो टाइम नहीं है बैताली ने अगल बगल देखा और खीसे से लाल रंग की एक चीर निकाला . उसे देखते ही लाल साहेब भडक कर दो कदम पीछे हटे . - अरे बैतालिया ! तेरी माँ की ..... सुबहे सुबहे इ का देखाय रहा है फिर तेरी माँ की ... ( गाँव का रिश्ता पद से चलता है यहा धर्म जाति लिंग नहीं देखा जाता . लाल साहेब राजपूत है और बैताली भूंज गाँव के रिश्ते में बैताली लाल साहेब के बाप लगते हैं गाहे ब गाहे बैताली लाल साहेब की माँ को गरिआते हैं और पलटवार में बेटा बाप की माँ के साथ रिश्ता जोड़ लेता है रवायत है इसी रवायत पर गाँव अभी तक टिका है लड़ाई झगड़े होंगे लेकिन दंगा कब्भी नहीं कभी सुना है कि गाँव में दंगा हुआ है ? ) इ कहाँ से उठा लाये काका ? बैताली फिस्स से हंस दिये - बेटा लाल साहेब ! तैं जवान समझ रहे , इ ऊ ना है एका देख इ आज की समस्या है एका टाई बोला जात है झिनकू क लडिका पिंटू ससुरा एतना ऐबी है कि का बताएं रात में बिजली ना रही पहले तो टीबी के लिए बवाल किया कि टीबी देखेंगे बताया कि बिजली ना है तो किसी तरह माना मुला ससुरे ने पता नहीं कब टाई की गाँठ खोल दिया अब कहि रहा है स्कूल ना जाबे बगैर टाई बांधे नहीं तो मास्स साहेब बड़ी मार मारेंगे . अब देखो हमारे सात पुश्त ने तो टाई बाधने को कौन कहे टाई क नाम तक नहीं सुना रहा अब अचानक इ टाई आ गयी यह कैसे गथिआयी जाती है हम्मे पूरे परिवार को किसी को नहीं मालुम . इ है समस्या . लाल साहेब की आँख गोल हो गयी - तो इ टाई है .. और इ है टाई के गाँठ की समस्या ? एक काम करो पिन्टुआ को स्कूल भेजो . टाई लेता जाय और मास्स साहेब से बंधवा ले . बैताली उदास गए - उनको भी नहीं आता भाई . कहते हैं जाओ उस दुकानदार से बदहवा कर आओ जिसने जिसने बच्चे के लिए ऊनीफार्म दिया है . एक गाँठ बढ़वाने के लिए दस मील जाय जाय ,दस मील आया जाय ? समस्या अटक गयी और सार्वजनिक भी हो गयी क्यों इसी बात चीत के दरमियान उमर दरजी और घोड़ी दूबे भी आ पहुंचे . उमर जनम क मुरहा है सु सुनेगा तो सुहुरपुर पहुँच जायगा . कोइ भी बात उससे पचती नहीं . औ एसी जगह ठीक नुक्कड़ पर उसकी दूकान है सिलाई की . मशीन कम चलाता है जुबान ज्यादा चलती है . गरज यह कि कोइ भी जो सौदा सुल्फी लेने बाजार जाएगा ,उसकी दूकान से ही जाएगा . बात को रफू करके उसमे नमक मिर्च लगा कर पूरे गाँव को बांटेगा यह उसका धंधा है . चुनांचे पिंटू की टाई जेरे बहस हो गयी . उमर ने नया टुकड़ा जोड़ा.- हुंह टाई की बात करते हो लखन कहार से दरियाफ्त करो ,उसे पूरे दिन स्कूल की सफाई करनी पडी थी उसका जुर्म इतना भर था कि उसका नाती जूता की जगह चप्पल पहन के गया रहा क्यों कि जूता कीचड़ में घुस गवा रहा .
- ऐसी पढाई काहे भाई ?
- जे इसलिए कि हर बाप चाहता है उसका बेटा पैसा बनाने की मशीन बने . और यह मशीन बनाने के लिए अंगरेजी जरूरी है . इस फार्मूले को कुछ चालाक लोंगों ने पकड़ लिया और अकल से एक मदरसा खोल कर उस पर बोर्ड लगा दिया कि यहाँ अंगरेजी माध्यम से पढाई होती है . बस यह है कथा . गाँव गाँव में ऐसे मदरसे खुल गए हैं . बच्चों का बचपना गायब है . किताबों के बोझ से कमर झुक गयी है और तो और बेहूदे इतने हैं कि बच्चे की गर्दन मरोड़ कर किताब में घुसेड दे रहे हैं वह न खेल पा रहा है न हंस पा रहा है . और तो और बच्चे को उठाने के लिए घर तक सवारी जाती है जो निहायत ही बेहूदी हरकत है . बच्चे खेलते कूदते स्कूल जाते थे जाने अनजाने बहुत सारा ज्ञान उसे रास्ते में मिल जातारहा . आज अंगरेजी माध्यम के बच्चो को अलसी का फूल दिखाओ तो पहचान नहीं पायेंगे .
- और सरकार ?
- सरकार क्या करे . इसका मंत्री ईमानदार है . रामगोविंद चैधरी . लेकिन उसको ढोनेवाले कौन हैं ,नौकरशाह . कमबख्त इन अंगरेजी परस्त नौकरों ने बताया कि हमारी पाठशालाएं निकम्मी हो रही है बच्चे वहाँ दाखिला लेना नहीं चाहते इसलिए उसका उपाय खोजना है . नौकरशाह जब भी कोइ उपाय बनाता है तो उसमे मुनाफ़ा पहले देखता है नतीजा कुछ भी निकले . इन उपायों में उसने मुफ्त की किताब , वर्दी भोजन पढ़े लिखे अध्यापक सब दिया लेकिन रिजल्ट ? शिफर ....
- तब ये मामला कैसे ठीक होगा .?
- ठीक होगा . बस जनता का मनोविज्ञान बदलो .
- ये मनोविज्ञान कैसे बदलेगा ?
- मुफत में थोड़े ही बताएँगे . अगली दफे कुछ नकद ले के आना वो भी बता दूंगा ...
पानी बरसे सदर में , औ छाता मछलीशहर में
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उत्तर प्रदेश की कई दिक्कतें हैं . !
जैसे ?
एक दो हो तो बताऊँ यहाँ तो दर्जनों हैं औ इसका इलाज भी गायब है .
किस्सा मत बुझाओ साफ़ साफ़ बताओ तो उसका इलाज बताऊँ
बैताली भूज अपनी परेशानी लेकर आये हैं चौराहे पर और लाल साहेब सिंह से समस्या का समाधान पूछ रहे है .लाल साहेब चाय की दूकान चलाते हैं इसके पहले बंबई में ऑटो चलाते थे .इसके और पहले देखना हो तो लाल साहेब मिडिल के विद्यार्थी रहे और तीन साल मुतवातिर एक ही दर्जे में पढ़ने का रिकार्ड और आगे ले जाना चाहते रहे ,लेकिन इनके पिता ने जब यह सुना कि चुन्नी लाल जो लाल साहेब से दो कलम पीछे था ,वह लाल साहेब से एक कलम आगे बढ़ गया है तो उन्होंने वही किया जो गाँव की रवायत में शामिल रहता है और खानदानी चला रहा है कि इस शुभ अवसर पर बाप जूता निकालता है और बेटे का इलाज करता है .लेकिन लाल साहेब अपने बाप को धता पढ़ा के बम्मई भाग गया और दर महीने मनी आर्डर भेजने लगा. इसके दो फायदे हुए . एक कि बाप के जूता न होने का रहस्य दबा रह गया और दूसरा पहले मनी आर्डर से ही उन्होंने निन्यानबे रूपये का गुदगुदा चप्पल खरीदा और लल्लन की बरात में उसी को पहन कर समधी के साथ बैठ कर भात खाए . और उस चप्पल झाड पूंछ कर झोले में लटका दिये . इतना सुनाने का मतलब यह नहीं कि हम आपको बहका रहे हैं और बैताली की समस्या को नजरअंदाज कर रहे हैं भाई ! यह गाँव की रवायत बट कहाँ से चलती है कहाँ तक पहुँच जाती है जानना हो तो आकर गाँव देखो . तो हम बता रहे थे कि -बैताली भूंज समस्या लेकर लाल साहेब के सामने खड़े हैं और लाल साहेब भट्ठी के नीचेवाले मुह में लोहे की छाड डाल कर हिला रहे हैं .भट्ठी कुछ काबू में आयी तो लाल साहेब खाली हुए और बैताली के सामने आकर खड़े हो गए - अब बोलो का माजरा है ? एक बात गाँठ बांध लो जो बम्मई में ऑटो चला ले और गाँव के चौराहे पर चाय की दूकान चला ले वह क्या नहीं चला सकता . ? प्राब्लम बोलो , एक 'किक' में कार्बोरेटर का मुह खुलेगा और समस्या खार में जा के सांस लेगी . बोलो टाइम नहीं है बैताली ने अगल बगल देखा और खीसे से लाल रंग की एक चीर निकाला . उसे देखते ही लाल साहेब भडक कर दो कदम पीछे हटे . - अरे बैतालिया ! तेरी माँ की ..... सुबहे सुबहे इ का देखाय रहा है फिर तेरी माँ की ... ( गाँव का रिश्ता पद से चलता है यहा धर्म जाति लिंग नहीं देखा जाता . लाल साहेब राजपूत है और बैताली भूंज गाँव के रिश्ते में बैताली लाल साहेब के बाप लगते हैं गाहे ब गाहे बैताली लाल साहेब की माँ को गरिआते हैं और पलटवार में बेटा बाप की माँ के साथ रिश्ता जोड़ लेता है रवायत है इसी रवायत पर गाँव अभी तक टिका है लड़ाई झगड़े होंगे लेकिन दंगा कब्भी नहीं कभी सुना है कि गाँव में दंगा हुआ है ? ) इ कहाँ से उठा लाये काका ? बैताली फिस्स से हंस दिये - बेटा लाल साहेब ! तैं जवान समझ रहे , इ ऊ ना है एका देख इ आज की समस्या है एका टाई बोला जात है झिनकू क लडिका पिंटू ससुरा एतना ऐबी है कि का बताएं रात में बिजली ना रही पहले तो टीबी के लिए बवाल किया कि टीबी देखेंगे बताया कि बिजली ना है तो किसी तरह माना मुला ससुरे ने पता नहीं कब टाई की गाँठ खोल दिया अब कहि रहा है स्कूल ना जाबे बगैर टाई बांधे नहीं तो मास्स साहेब बड़ी मार मारेंगे . अब देखो हमारे सात पुश्त ने तो टाई बाधने को कौन कहे टाई क नाम तक नहीं सुना रहा अब अचानक इ टाई आ गयी यह कैसे गथिआयी जाती है हम्मे पूरे परिवार को किसी को नहीं मालुम . इ है समस्या . लाल साहेब की आँख गोल हो गयी - तो इ टाई है .. और इ है टाई के गाँठ की समस्या ? एक काम करो पिन्टुआ को स्कूल भेजो . टाई लेता जाय और मास्स साहेब से बंधवा ले . बैताली उदास गए - उनको भी नहीं आता भाई . कहते हैं जाओ उस दुकानदार से बदहवा कर आओ जिसने जिसने बच्चे के लिए ऊनीफार्म दिया है . एक गाँठ बढ़वाने के लिए दस मील जाय जाय ,दस मील आया जाय ? समस्या अटक गयी और सार्वजनिक भी हो गयी क्यों इसी बात चीत के दरमियान उमर दरजी और घोड़ी दूबे भी आ पहुंचे . उमर जनम क मुरहा है सु सुनेगा तो सुहुरपुर पहुँच जायगा . कोइ भी बात उससे पचती नहीं . औ एसी जगह ठीक नुक्कड़ पर उसकी दूकान है सिलाई की . मशीन कम चलाता है जुबान ज्यादा चलती है . गरज यह कि कोइ भी जो सौदा सुल्फी लेने बाजार जाएगा ,उसकी दूकान से ही जाएगा . बात को रफू करके उसमे नमक मिर्च लगा कर पूरे गाँव को बांटेगा यह उसका धंधा है . चुनांचे पिंटू की टाई जेरे बहस हो गयी . उमर ने नया टुकड़ा जोड़ा.- हुंह टाई की बात करते हो लखन कहार से दरियाफ्त करो ,उसे पूरे दिन स्कूल की सफाई करनी पडी थी उसका जुर्म इतना भर था कि उसका नाती जूता की जगह चप्पल पहन के गया रहा क्यों कि जूता कीचड़ में घुस गवा रहा .
- ऐसी पढाई काहे भाई ?
- जे इसलिए कि हर बाप चाहता है उसका बेटा पैसा बनाने की मशीन बने . और यह मशीन बनाने के लिए अंगरेजी जरूरी है . इस फार्मूले को कुछ चालाक लोंगों ने पकड़ लिया और अकल से एक मदरसा खोल कर उस पर बोर्ड लगा दिया कि यहाँ अंगरेजी माध्यम से पढाई होती है . बस यह है कथा . गाँव गाँव में ऐसे मदरसे खुल गए हैं . बच्चों का बचपना गायब है . किताबों के बोझ से कमर झुक गयी है और तो और बेहूदे इतने हैं कि बच्चे की गर्दन मरोड़ कर किताब में घुसेड दे रहे हैं वह न खेल पा रहा है न हंस पा रहा है . और तो और बच्चे को उठाने के लिए घर तक सवारी जाती है जो निहायत ही बेहूदी हरकत है . बच्चे खेलते कूदते स्कूल जाते थे जाने अनजाने बहुत सारा ज्ञान उसे रास्ते में मिल जातारहा . आज अंगरेजी माध्यम के बच्चो को अलसी का फूल दिखाओ तो पहचान नहीं पायेंगे .
- और सरकार ?
- सरकार क्या करे . इसका मंत्री ईमानदार है . रामगोविंद चैधरी . लेकिन उसको ढोनेवाले कौन हैं ,नौकरशाह . कमबख्त इन अंगरेजी परस्त नौकरों ने बताया कि हमारी पाठशालाएं निकम्मी हो रही है बच्चे वहाँ दाखिला लेना नहीं चाहते इसलिए उसका उपाय खोजना है . नौकरशाह जब भी कोइ उपाय बनाता है तो उसमे मुनाफ़ा पहले देखता है नतीजा कुछ भी निकले . इन उपायों में उसने मुफ्त की किताब , वर्दी भोजन पढ़े लिखे अध्यापक सब दिया लेकिन रिजल्ट ? शिफर ....
- तब ये मामला कैसे ठीक होगा .?
- ठीक होगा . बस जनता का मनोविज्ञान बदलो .
- ये मनोविज्ञान कैसे बदलेगा ?
- मुफत में थोड़े ही बताएँगे . अगली दफे कुछ नकद ले के आना वो भी बता दूंगा ...
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