Sunday, July 19, 2015

१८ जुलाई / संस्मरण
काका ; कहीं से  निकल आये जनमों के नाते
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० चंचल
           '.....बाबू मोशाय ! हमसब रंग मंच की कठपुतलिया हैं , हमारी डोर ऊपर वाले के हाथ में है .. कौन कब .....और आनद खामोश हो गया हमेशा के लिए ऋषी दा पर्देपर एक सन्नाटा बुनते हैं .अचानक आनंद ठहाका लगाता है हा हा हा कैमरा टेप रिकार्डर को मिडल शाट में लेता है और टेप टूट जाता है .जानीवाकर जिनकी मौजूद्गी ही दर्शक को हँसा देती रही ,वही जानी वाकर आज सब को रुला गया . फिल्म खत्म होती है दर्शक बाहर निकल रहे है हर एक की आँख गीली है . लोग चुप चाप निकल जाते . १८ जुलाई १२ को वही आनंद हमेशा के लिए विदा ले लेता है ,इसबार परदे पर नहीं असल जिंदगी से . जिसने जहां से सुना वहीं से भागा चला जा रहा है कार्टर रोड मुम्बई . उनका सुपर स्टार जा रहा . ऐसा प्यार और किसी को नहीं मिला इसके गवाह हैं लाखों वे लोग जिन्होंने काका को परदे पर देखा था . इस तरह फ़िल्मी दुनिया का एक अध्याय खत्म हुआ . एक दिन हम वसंत कुञ्ज के उनके आवास पर बैठे थे . बात गांधी पर चल निकली . हमने कहा -काका भाई आपने एटनबरो की गांधी देखी ? बड़े मासूमियत से बोले . पूरी फिल्म नहीं देख पाया हूँ साहिब .अचानक बच्चे की तरह कूदे अभी देखा जाय . साथ में बैठे जुनेजा जी और मामू थोड़ा दुखी लगे . - अच्छा अब आप लोग फिल्म देखिये ,हम लोग चले कुछ काम कर लें . और हम लोग फिल्म देखने बैठ गए . रात में दो बजे तक फिल्म चली . कई बार रोये . छुप कर . अंत में बोले वाकई कितना बड़ा आदमी था साहिब. क्यों मारा संघियों ने ? हमने कहा डर की वजह से . और बात खत्म हो गयी . दूसरे दिन फिर गांधी आ गए . साहिब ! आपको याद है इसी गांधी ने हम दोनों को मिलवाया . हमने एक टुकड़ा और जोड़ा - न मिले होते तो हम आपके नाम पर ब्लैक से टिकट खरीदते होते और आपको जय जय शिवशंकर गाते हुए मुमताज की बांहों में देख कर खुद को राजेश खन्ना समझ रहे होते और और आप दिल्ली की गलियों में वोट के लिए न भटक रहे होते . जो होना होता है वह होता है आज हम उसी काका के साथ बैठ कर गिलास भिडाये पड़े हैं . काका थोड़ी देर चुप रहे . फिर बोले - आप पहले क्यों नहीं मिले साहिब ? हमने हँसते हुए जवाब दिया - वक्त को यह नहीं मंजूर था की आप वक्त के पहले ही बिगड जाय . हम दोनों मिल कर पहली मुलाक़ात को साझा करते रहे . वह आप भी जान लीजिए .
        जिन्हें हम बार बार जुनेजा जी बोल रहे हैं वे बड़े कमाल के आदमी है . पहले फिल्म बितारक थे बाद में उसे छोड़ कर अपना नसिंग होम बनाया . बहुत अच्छा चलता है . उनकी शगल है खाना - खिलाना , दोस्ती और मस्ती . काका को जब राजीव गांधी राजनीति में लाये तो जुनेजा जी ही उनके संरक्षक बने . उनका मकां , उनकी गाड़ी , उनका ड्राइबर , उनका कुक सब कुछ जुनेजा ने दिया . एक दिन जुनेजा जी का फोन आया की आज शाम घर पर पार्टी है भाई साहब आ जाइयेगा . उनके घर पहुंचा तो देखाबहुत भीड़ है . विदेशी ज्यादा दिखे . तमाम दूतावासों के लोग .हम अंदर पहुंचे ही थे की हमे कहा गया आप बेड रूम में चले जाइए . बेड रूम भरा हुआ था . डाक्टर , फिल्म बितारक और कई फ़िल्मी लोग . सन्तर प्वाइंट बने हुए थे संतोषानंद जी . मनोज कुमार की फिल्मो के गाना लेखक . घोषित कांग्रेसी . बाद बाकी अधिक तर संघी ,और सब मिल कर गांधी के सवाल पर संतोषानंद को घेरे हुए थे . हमें देखते ही संतोषानंद ने कहा - आओ भाई अब तुम संभालो .हमने पूछा की क्या मामला है तो पता चला की गांधी महान है यह मुद्दा जेरे बहस है . हमने कहा आपको सियासत समझाने में वक्त लगेगा आइये एक और बात बाताते है - हमने जो बोला उसका लुब्बे लुबाब यह रहा की ' गांधी दुनिया का सबसे बड़ा पोस्टर डिजाइनर है . जिस पर कोइ भी सरकार प्रतिबन्ध लगा ही नहीं सकती , क्यों की वह उत्पादन का जरिया भी है . और वह पोस्टर है चरखा . एक सन्नाटा छा गया . इतने में पीछे से आवाज आयी - साहिब हम देर से आये हैं एक बार फिर इसे बटा देंगे ? सब लोग चौंक गए . यह आवाज थी राजेश खन्ना की . फिर हमे पकड़ कर दूसरे कमरे में लेकर चले गए . यह थी हमारी पहली मुलाक़ात . उसी पहली मुलाक़ात को हम दोनों मिल कर साझा करते रहे और हँसते रहे . काका नयी दल्ली संसदीय सीट से भाजपा उम्मेदवार शत्रुघ्न सिन्हा को हरा कर ससद में पहुचे नरसिंहा राव की सरकार थी और राव साहब काका को .बच्चे की तरश प्यार करते थे . एक रात हमसे बोले की यह जो आपकी अदालत का रजत शर्मा है हमे अदालत ले जाना चाहता है . हमने उन्हें सावधान किया - रजत से हमारे बहुत अच्छे रिश्ते हैं लेकिन वह एक संघी है और अपनी आदत से बाज नहीं आयेगा . खूब तैयारी के साथ आपको जाना चाहिए . काका का हर काम फिल्म के अनुशासन की तरह होता था .तय हुआ की तीन लोग बैठेंगे . दो हम एक बी आर इशारा जी . बी आर बंबई से आये और ठीक आठ बजे तैयारी शुरू हुयी . हमने कहा आप पर जो निगेटिव चीजे हैं उन पर क्या बोलना है उसे जान समझ लीजिए , तैयारी मुकम्मिल हो गयी . ' आपकी अदालत में यह पहला प्रिग्राम था जब रजत को पसीने आ गए थे . दो तीन सवाल सुनिए . रजत ने पूछा आप अद्वाने के खिलाफ चुनाव लड़े और अडवानी जी जीते .  काका ने रोका . - नहीं ! रजत जी इसे दुरुस्त कर लीजिए . अखबारों ने लिखा राजेश खान्ना चुनाव हारे . अडवानी जीते , किसी ने नहीं लिखा सब ने लिखा राजेश खन्ना चुनाव हारे . . आपको समझाता हूँ, वाटर लू की लड़ाई में नेपोलियन बोनापार्ट हारा . इसे सब जानते हैं जीता कौन था ? आप बता  दीजिए . रजत खामोश . अंततह रजत ने हामी भरी नहीं हमें नहीं मालुम  तब काका ने अपने अंदाज में कहा - हमे भी नहे मालुम . दर्शक दीर्घा में जो जनता बैठी थी  उसने जम कर ताली बजायी . रजत ने एक और विवादित सवाल पूछा - आप पर आरोप है की आप के सम्बन्ध कई महिलाओं से हैं .? काका मुस्कुराए बोले - किसी ने कोइ शिकायत की है ? नहीं न ? हाँ सम्बन्ध हैं . डॉ लोहिया ने कहा है ' वायदाखिलाफी और बलात्कार छोड़ कर औरत और मर्द के सारे रिश्ते जायज हैं . हम तो इसे मानते हैं साहिब . दर्शक दीर्घा से तालियाँ बजती रही . जज की कुर्सी पर बैठी मृणाल पांडे भी उसमे शामिल हो गयी .
      काका की जीवन शैली अपने आपमें कई स्क्रिप्ट है . १८ जुलाई १२ को उनकी मृत्यु के तीन हफ्ते पहले हमारी उनसे आख़िरी मुलाक़ात हुयी . हम बनारस से दिल्ली पहुंचे . अचानक जुनेजा जी का फोन आया . की भाई साहब हमतो अभी बंगलौर में हैं काका के सेक्रेटरी का फोन आया था की दो दिन से उन्होंने कुछ खाया नहीं है नौकरों को और सेक्रेटरी को मारपीट कर घर से बाहर निकाल दिया है . दो रात से सोये भी नहीं हैं ,लगातार पिए जा रहे है . आप दिल्ली में हैं तो जाकर संभाल लीजिए . जुनेजा जी ने काका को भी फोन करके बटा दिया की हम पहुँच रहे हैं . दिन के दो बजे हम जब घर पहुंचे तो दरवाजा खुला था आहत पाते ही बोले आ जाइए . अंदर गया तो उन्होंने उस कुर्सी की तरफ इशारा किया जो हमारे लिए आरक्षित थी . बैठ ही बोले चीयर्स . तब हमने बगल की टेबुल पर देखा गिलास बना कर पहले ही रख चुके थे . दो पेग हुआ तो हमने कहा काका भाई हमे तो भूख लगी हैं कुछ है किचेन में ? क्यों नहीं , आइये देखते हैं बड़ा सा टिफिन बाक्स खुला . हमने एक प्लेट में खाना निकाला और काका से बोला की इसे खाकर देखिये बहुत अच्छा बना है . बच्चे की तरह मुह खोल दिये . हम खिलाते रहे और काका खाते रहे . अचानक हमे पकड़ कर रोने लगे . रोते रहे . फिर हमने उनका मुह धुलाया और लेजाकर बिस्तर पर लिटा दिया . थोड़ी देर में सो गए .
         काका जो बाहर रहे , उसके बरक्स एक और जिंदगी अपने अंदर जीते रहे . यह उनकी अपनी बनायी हुयी तन्हाई थी . अब वह तन्हाई भी साथ छोड़ रही थी .उसे कब तक शराब से भरते . और आखिर १८ जुलाई को वे तमाम तन्हाइयों से बरी होकर नयी दुनिया के लिए प्रस्थान कर गए . अलबिदा बाबू मोशाय बहुत रुलाओगे .    
गिरोह और इस्लाम -१ (औरत के सवाल पर )
..... औरत के सवाल पर गिरोह और इसलाम  एक सोच रखता है .इन दोनों में एक समानता और है कि कि ये दोनों ही कमोबेश अतीत जीवी हैं और उसी अतीत से वर्तमान जीने की कोशिश करते हैं लिहाजा उनका भविष्य अन्धकार में जा कर खड़ा हो जाता है . औरत को दोनों ही इंसान नहीं मानते बल्कि उन्हें अपने बनाए हुए नियम क़ानून में रख कर तंग नजरिये से देखते हैं भारतीय उप महा द्वीप का  मुसलमान बहुत हद तक इन बेहुदिगियों को तोड़ कर आगे बढ़ा है . जब सारी दुनिया का मुसलमान दकियानूसी रवायत के चलते उसे बेवजह सजाएं दे रहा होता है तब भारतीय उपमहाद्वीप में रह रहा मुसलमान ,समाज में बह रहे समतामूलक बयार में अपने आपको ढालना शुरू कर देता है . एक तरफ इस्लाम यह प्रतिबन्ध लगाता है कि कोइ भी औरत गाड़ी नहीं चला सकती , किसी से मोहब्बत नहीं कर सकती , बुर्के से बाहर नहीं आ सकती , नृत्य संगीत या किसी भी तरह की कला को  नहीं अख्तियार कर सकती ,उसी समय भारतीय उपमहाद्वीप कीमहिलायें  अपने बल बूते पर निकल कर बाहर आती हैं और हुकूमत तक पहुँच जाती हैं इन्हें आगे ले जाने में पुरुष को गुरेज नहीं रहा बल्कि उन्होंने भरपूर सहयोग दिया . पाकिस्तान जिसने अपने आपको इस्लाम देश के तंग नजरिये में रख कर मुल्क का खांचा खींचा वहाँ  बेनजीर भुट्टो हुकूमत की अलम्बरदार बनी . पाकिस्तान से छिटक कर बना बँगला देश अपनी सियासत को दो महिलाओं के बीच ले जाकर खड़ा कर दिया . भारत में कांग्रेस की हुकूमत ने लगातार महिलाओं को आगे किया . यह उसकी रवायत रही . भारतीय उप महा द्वीप का मुसलमान देश , काल और परिस्थिति के अनुरूप अपने आपको बदल लिया और बदल रहा है ,लेकिन अभी और बदलना पड़ेगा पूरे इस्लाम समाज को . यह होगी मुख्य धारा से जुड़ने की नहीं बल्कि मुख्य धारा को गति देने की शुरुआत . अब उनकी सुनिए जो गिरोह हैं . औरत पर जितने फतवे इस्लाम ने जारी किये उसे दो गुनी गति से इस गिरोह ने उसे अपनाया . 'औरत परदे रहे नहीं तो उसके साथ बलात्कार होगा ही ' ' बलात्कार की जिम्मेवार औरत खुद है , उसका अंग प्रदर्शन ही बलात्कारी को उकसाता है ' यही औरत को परदे रहना चाहिए . वो बुर्का कहते हैं ये बुर्के का अनुवाद ' पर्दा ' करके उसे औरतों पर लादने की कोशिश में है . इस्लाम कहता है चार बीबी रख सकते हैं .यह उस वक्त की सामाजिक जरूरत रही जब समाज में जंग जारी था और महिलायें अनाथ हो रही थी, उस कालखंड पर तय किये गए निजाम वक्त के साथ बदलाव मागते हैं . भारतीय उप महाद्वीप का मुसलमान उस निजाम को मानता तो है लेकिन अमल करते समय ,एक औरत एक मर्द ; पर जाकर रुक जाता है . इस महाद्वीप का आंकडा देखा जाय तो समूची इस्लाम आबादी का एक भी फीसद मुसलमान चार बीविवों तक नहीं गया है . अब गिरोह की सुनिए - ' दो नहीं तीन नहीं , पूरे दर्जन दर्जन भर पैदा करो ' इस्लाम जिसे निजाम में बोलता है , गिरोह उसे अपनी भाषा में उतार कर लादना चाहता है . कि औरत परदे में रहे और अंडा दे . मजेदार बात कि पश्चिम की नकारा सोच इन दोनों के प्रति सचेत और सोची समझी साजिश रचता रहता है और वो बार बार ऐसे सवाल खड़ा करेगा  कि  इन दोनों को अपनाने वाले जलील भी होते रहे और उनके सामने झुके भी रहें .

Tuesday, July 14, 2015

मुकदमा यूँ है .
७८ का वाकया है . हम अपने बाजार महराज गंज में अपने प्रिय आत्मा राम की दूकान पर बैठे चाय पी रहे थे . इतने में हमारे  परिचित भारत यादव जो उन दिनों ब्लाक उप प्रमुख थे आ गए . उनका चेहरा उतरा  हुआ था . हने पूछा - कोइ बात हुयी है क्या ? वे चुपचाप डबडबाई आँख से जो किस्सा सुनाया वह वह बहुत ही खराब लगा . हुआ यूँ था कि उन दिनों सीमेंट के लिए सरकार से परमिट लेना पड़ता था और भारत जी उसी परमिट के लिए एडियम जौनपुर टी डी  गौड़ से मिले . गौड़ साहब उस दिन डी यम के चार्ज पर थे और ब्लाक का मुआयना करने आये थे . भारत जी ने बताया कि जैसे ही मैंने दरखास्त आगे की गौड़ साहब गर्म हो गए और जनता के सामने बहुत कुछ कहा इतनी बे इज्जती हमारी कभी नहीं हुयी थी . इस बात पर हमे भी गुस्सा आ गया .जो कि आना ही था क्यों कि उस जमाने हर छात्र नेता ऐसी बात पर गुस्सा कर लिया करता था , एवज में जेल जाना पड़ता था . अब शायद ऐसा नहीं होता . हम उठे और सीधे डी यम साहब के सामने जा पहुंचे जो बीडियो की कुर्सी पर बैठे थे . उनके अर्दली ने रोकना चाहा लेकिन हम अंदर पहुँच गए . हमने पहुँचते ही पूछा - आपने एक चुने हुए प्रतिनिधि को गाली दिया ? डी यम साब को गुस्सा आना जरूरी था . एक लफड़झंदूस की यह हिम्मत कि एक आफिसर से ऐसी बात करे ? और यहीं से तू तू मै मै शुरू हो गया . बाहर भीड़ लग गयी . पुलिस आयी और हमें थाने ले गयी . वही गौड़ साहब भी पहुंचे और थाने में भी भीड़ लग गयी . हम दोनों में समझौता हो गया . मौखिक . दरोगा को यह लगा कि भीड़ देख कर शायद  साहेब ने समझौता कर लिया और उन्होंने दो लोगों की जमानत लेकर हमें छोड़ दिया .लेकिन मुकदमा दर्ज हो गया . इस मुक़दमे में कई दिलचस्प मोड़ भी आये . ८२ म हम जब बनारस छोड़ कर दिल्ली आ गए तो सब भूल गए . एक बार हम गाँव गए तो तो पता चला हमारे दोनों जमानत दार राम आश्चर्य यादव और तेज बहादुर सिंह घर पर बैठे मिले . उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ अदालत ने गिरफ्तारी और कुर्की का फरमान जारी कर दिया है . अगर हम इसबार तारीख को नहीं पहुंचे तो हमारे दोनों जमानतदार जेल भेज दिये जांयगे और घर कुर्क हो जायगा . लिहाजा हम गए . अदालत पहुंचे . कई वकील जो हमारे दोस्त रहे ,हमारे साथ अदालत में खड़े हो गए . पेशकार ने हमारी फ़ाइल अदालत के सामने बढ़ा दी . अदालत ने पूछा मुजरिम ? हमारे वकील ने कहा हाजिर है सर . अदालत में मेरी तरफ देखा और बोले तारीख पर तो आना चाहिए . हमने कहा जी आउंगा . मुंसफ साहब मुस्कुराए . ठीक है कौन सी तारीख दे दूँ ? इसी बीच हमारे दोनों जमानतदार बोल उठे - हुजूर हमने मुजरिम हाजिर कर दिया है अब हमारी कुर्की और गिरफ्तारी तो रोक दी जाय और हम अब जमानत नहीं लेंगे . अदालत ने कहा अब आप दोनों बिलकुल बरी हैं जाइए .दोनों खिसक लिए . अदालत उठ गयी . पेशकार को उन्होंने कुछ कहा और हमसे बोले चैंबर में आइये . हम चैंबर में गए . मुंसफ साब हँसे - आपसे मिलना था ,हमे अच्छा लगा जब हमे यह पता चला कि आप का मुकदमा हमारी ही अदालत में है .हम आपके पुराने 'फैन ' हैं . आप इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव केसमय आये थे . आपने हालैंड  हाल में भाषण किया था , तब हम उसी हास्टल में रहते थे .तब उन्होंने सुझाव दिया जितनी जल्दी हो सके इसे खत्म कराइए . ऐसे मुकदमों में कुछ होता जाता नहीं लेकिन परेशानी तो होती ही है . इसके बाद वह मुकदमा जस का तस पड़ा रह गया और अब फिर हम अदालत बुलाये जा रहे हैं ,बतौर एक भगोड़ा ... 

Wednesday, July 8, 2015

चंद्रशेखर ; इकला चलो
.... जानता तो पहले से था ,लेकिन मिला पहली बार ७७ में . हम गए थे दिल्ली ,काशी विश्वविद्यालय के लिए एक कुलपति तलाशने . जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी ,पार्टी बन रही थी . हम मधुलिमये से मिले . हमने प्रस्ताव रखा कि विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए हमारे पास दो नाम हैं. इन दो में से किसी एक को कुलपति बनवा दीजिए . एक अशोक मेहता या अच्य्त पटवर्धन . मधु जी चुप रहे फिर कुछ सोच कर बोले चलो पार्टी आफिस और चंद्रशेखर से बात कर लो . यह थी चंद्रशेखर से पहली मुलाक़ात . चंद्रशेखर जी से जब मधु जी ने मिलवाया तो मिलते ही चंद्रशेखर बोले -  हाँ जानता हूँ . फिर हमारी तरफ मुड़े और अपनी पुर्बहिया भाषा में बोले - त संघ के घसीट देह ल ? क्या क्या हुआ इस समय कैसा है विश्वविद्यालय आदि आदि पूछने के बाद बोले . एक गो रिपोर्ट विश्वविद्यालय चुनाव को लेकर लिख द ' यंग इंडिया ' के लिए . (चंद्रशेखर जी संपादक रहे. नेता और किसी पत्र का संपादन करना ,एक रवायत रही है . आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी के बाद तक यह परम्परा चलती रही . आज की राजनीति के लिए नेताओं को संपादन तो छोड़ दीजिए चिट्ठी तक लिखने की तमीज नहीं है ) चंद्रशेखर जी साथ थोड़ी देर बात हुयी और बोले हम कोशिश करेंगे ,लेकिन शायद वे दोनों ही न तैयार हों . एक बार मोरार जी भाई से मिल लो . और दूसरे ही दिन प्रधानमंत्री कार्यालय को बोल कर मिलने का समय तय करा दिये . मोरार जी भाई से जिस तरह की मुलाक़ात हुयी वह हैबतनाक रही और हम पांच जन जेल जाते जाते रह गए , गनीमत थी कि एन वक्त पर नेता जी ( राजनारायण ) आ गए . वहाँ क्या हुआ , कैसे हुआ , इसकी पूरी खबर ' दिनमान ' और 'रबिवार ' में विस्तार से छपी थी , जरूरी समझें तो उसे देख लीजियेगा . उसी दिन जनता पार्टी के टूटने की नीव पड गयी थी . क्यों कि उस झगडे में मोरारजी भाई ने बोल दिया था - लोहिया झूठ बोलते थे ' . बाद में मोरार जी भाई ने इस बात के लिए खेद व्यक्त किया और माफी मागे . बहरहाल वह अलग का किस्सा है . बात चन्द्र शेखर जी पर चल रही है . चंद्रशेखर जी से हमारे रिश्ते आखीर तक बने रहे . चंद्रशेखर जी पर गांधी , आचार्य नरेंद्र देव का बहुत प्रभाव था . हंसी मजाक का पुट उन्होंने इन्ही दोनों लोगों से लिया था . ८४ में चंद्रशेखर जी ने हमे तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्रा के खिलाफ चुनाव लड़ा दिया .नतीजा जो होना था वही हुआ हम इज्जत के साथ हारे . चुनाव के बाद हम फिर मिले . मिलते ही उन्होंने चुटकी काटा - कैसा रहा हो चुनाव ? हमने जवाब दिया - ठीक बलिया माफिक . खूब जोर का ठहाका लगा . ( चंद्रशेखर जी ८४ का चुनाव बलिया से हार गए थे ) आज वे हमारे बीच नहीं हैं लगता है हम किसी और माहौल में फंस गए हैं . बहुत याद आते हैं दाढ़ी . प्रणाम करता हूँ . आपके कृत्य याद किये जाते रहेंगे . 

Monday, July 6, 2015

बात -बतकही /चंचल
पानी बरसे सदर में , औ छाता मछलीशहर में
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उत्तर प्रदेश की कई दिक्कतें हैं . !
जैसे ?
एक दो हो तो बताऊँ यहाँ तो दर्जनों हैं औ इसका इलाज भी गायब है .
किस्सा मत बुझाओ साफ़ साफ़ बताओ तो उसका इलाज बताऊँ
बैताली भूज  अपनी परेशानी लेकर आये हैं चौराहे पर और लाल साहेब सिंह से समस्या का समाधान पूछ रहे है .लाल साहेब चाय की दूकान चलाते हैं इसके पहले बंबई में ऑटो चलाते थे .इसके और पहले देखना हो तो लाल साहेब मिडिल के विद्यार्थी रहे और तीन साल मुतवातिर एक ही दर्जे में पढ़ने का रिकार्ड  और आगे ले जाना चाहते रहे ,लेकिन इनके पिता ने जब यह सुना कि चुन्नी लाल जो लाल साहेब से दो कलम पीछे था ,वह लाल साहेब से एक कलम आगे बढ़ गया है तो उन्होंने वही किया जो गाँव की रवायत में शामिल रहता है और खानदानी चला रहा है कि इस शुभ अवसर पर बाप जूता निकालता है और बेटे का इलाज करता है .लेकिन लाल साहेब अपने बाप को धता पढ़ा के बम्मई भाग गया और दर महीने मनी आर्डर भेजने लगा. इसके दो फायदे हुए . एक कि बाप के  जूता  न होने का रहस्य दबा रह गया और दूसरा पहले मनी आर्डर से ही उन्होंने निन्यानबे रूपये का गुदगुदा चप्पल खरीदा और लल्लन की बरात में उसी को पहन कर समधी के साथ बैठ कर भात खाए . और उस चप्पल झाड पूंछ कर झोले में लटका दिये . इतना सुनाने का मतलब यह नहीं कि हम आपको बहका रहे हैं और बैताली की समस्या को नजरअंदाज कर रहे हैं भाई ! यह गाँव की रवायत बट कहाँ से चलती है कहाँ तक पहुँच जाती है जानना हो तो आकर गाँव देखो . तो हम बता  रहे थे कि -बैताली भूंज समस्या लेकर लाल साहेब के सामने खड़े हैं और लाल साहेब भट्ठी के नीचेवाले मुह में लोहे की छाड डाल कर हिला रहे हैं .भट्ठी कुछ काबू में आयी तो लाल साहेब खाली हुए और बैताली के सामने आकर खड़े हो गए - अब बोलो का माजरा है ? एक बात गाँठ बांध लो   जो बम्मई में ऑटो चला ले और गाँव के चौराहे पर चाय की दूकान चला ले वह क्या नहीं चला सकता . ? प्राब्लम बोलो , एक 'किक' में कार्बोरेटर का मुह खुलेगा और समस्या खार में जा के सांस लेगी . बोलो टाइम नहीं है बैताली ने अगल बगल देखा और खीसे से लाल रंग की एक चीर निकाला . उसे देखते ही लाल साहेब भडक कर दो कदम पीछे हटे . - अरे बैतालिया ! तेरी माँ की ..... सुबहे सुबहे इ का देखाय रहा है फिर तेरी माँ की ... ( गाँव का रिश्ता पद से चलता है यहा धर्म जाति लिंग नहीं देखा जाता . लाल साहेब राजपूत है और बैताली भूंज गाँव के रिश्ते में बैताली लाल साहेब के बाप लगते हैं गाहे ब गाहे बैताली लाल साहेब की माँ को गरिआते हैं और पलटवार में बेटा बाप की माँ के साथ रिश्ता जोड़ लेता है रवायत है इसी रवायत पर गाँव अभी तक टिका है लड़ाई झगड़े होंगे लेकिन दंगा कब्भी नहीं कभी सुना है कि गाँव में दंगा हुआ है ? ) इ कहाँ से उठा लाये काका ? बैताली फिस्स से हंस दिये - बेटा लाल साहेब ! तैं जवान समझ रहे , इ ऊ ना है एका देख इ आज की समस्या है एका टाई बोला जात है झिनकू क लडिका पिंटू ससुरा एतना ऐबी है कि का बताएं रात में बिजली ना रही पहले तो टीबी के लिए बवाल किया कि टीबी देखेंगे बताया कि बिजली ना है तो किसी तरह माना मुला ससुरे ने पता नहीं कब टाई की गाँठ खोल दिया अब कहि रहा है स्कूल ना जाबे बगैर टाई बांधे नहीं तो मास्स साहेब बड़ी मार मारेंगे . अब देखो हमारे सात पुश्त ने तो टाई बाधने को कौन कहे टाई क नाम तक नहीं सुना रहा अब अचानक इ टाई आ गयी यह कैसे गथिआयी जाती है हम्मे पूरे परिवार को किसी को नहीं मालुम . इ है समस्या . लाल साहेब की आँख गोल हो गयी - तो इ टाई है .. और इ है टाई के गाँठ की समस्या ? एक काम करो पिन्टुआ को स्कूल भेजो . टाई लेता जाय और मास्स साहेब से बंधवा ले . बैताली उदास गए - उनको भी नहीं आता भाई . कहते हैं जाओ उस दुकानदार से बदहवा कर आओ जिसने जिसने बच्चे के लिए ऊनीफार्म दिया है . एक गाँठ बढ़वाने के लिए दस मील जाय जाय ,दस मील आया जाय ? समस्या अटक गयी और सार्वजनिक भी हो गयी क्यों इसी बात चीत के दरमियान उमर दरजी और घोड़ी दूबे भी आ पहुंचे . उमर जनम क मुरहा है सु सुनेगा तो सुहुरपुर पहुँच जायगा . कोइ भी बात उससे पचती नहीं . औ एसी जगह ठीक नुक्कड़ पर उसकी दूकान है सिलाई की . मशीन कम चलाता है जुबान ज्यादा चलती है . गरज यह कि कोइ भी जो सौदा सुल्फी लेने बाजार जाएगा ,उसकी दूकान से ही जाएगा . बात को रफू करके उसमे नमक मिर्च लगा कर पूरे गाँव को बांटेगा यह उसका धंधा है . चुनांचे पिंटू की टाई जेरे बहस हो गयी . उमर ने नया टुकड़ा जोड़ा.- हुंह टाई की बात करते हो लखन कहार से दरियाफ्त करो ,उसे पूरे दिन स्कूल की सफाई करनी पडी थी उसका जुर्म इतना भर था कि उसका नाती जूता की जगह चप्पल पहन के गया रहा क्यों कि जूता कीचड़ में घुस गवा रहा .
- ऐसी पढाई काहे भाई ?
- जे इसलिए कि हर बाप चाहता है उसका बेटा पैसा बनाने की मशीन बने . और यह मशीन बनाने के लिए अंगरेजी जरूरी है . इस फार्मूले को कुछ चालाक लोंगों ने पकड़ लिया और अकल से एक मदरसा खोल कर उस पर बोर्ड लगा दिया कि यहाँ अंगरेजी माध्यम से पढाई होती है . बस यह है कथा . गाँव गाँव में ऐसे मदरसे खुल गए हैं . बच्चों का बचपना गायब है . किताबों के बोझ से कमर झुक गयी है और तो और बेहूदे इतने हैं कि बच्चे की गर्दन मरोड़ कर किताब में घुसेड दे रहे हैं वह न खेल पा रहा है न हंस पा रहा है . और तो और बच्चे को उठाने के लिए घर तक सवारी जाती है जो निहायत ही बेहूदी हरकत है . बच्चे खेलते कूदते स्कूल जाते थे जाने अनजाने बहुत सारा ज्ञान उसे रास्ते में मिल जातारहा . आज अंगरेजी माध्यम के बच्चो को अलसी का फूल दिखाओ तो पहचान नहीं पायेंगे .
- और सरकार ?
- सरकार क्या करे . इसका मंत्री ईमानदार है . रामगोविंद चैधरी . लेकिन उसको ढोनेवाले कौन हैं ,नौकरशाह . कमबख्त इन अंगरेजी परस्त नौकरों ने बताया कि हमारी पाठशालाएं निकम्मी हो रही है बच्चे वहाँ दाखिला लेना नहीं चाहते इसलिए उसका उपाय खोजना है . नौकरशाह जब भी कोइ उपाय बनाता है तो उसमे मुनाफ़ा पहले देखता है नतीजा कुछ भी निकले . इन उपायों में उसने मुफ्त की किताब , वर्दी भोजन पढ़े लिखे अध्यापक सब दिया लेकिन रिजल्ट ? शिफर ....
- तब ये मामला कैसे ठीक होगा .?
- ठीक होगा . बस जनता का मनोविज्ञान बदलो .
- ये मनोविज्ञान कैसे बदलेगा ?
- मुफत में थोड़े ही बताएँगे . अगली दफे कुछ नकद ले के आना वो भी बता  दूंगा ...
      समता ज्ञान केन्द्र
गाँव -पूरालाल , पोस्ट धेमा (बदलापुर ) जिला - जौनपुर .उ.प्र.222125
फोन - 91 9935149867 email- samtaghar@gmail.com
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आवश्यक सूचना
माँ बाप और अभिभावक के लिए - हर परिवार की इच्छा रहती है कि उसके बच्चे अच्छी शिक्षा पायें , लेकिन देखने में आया है कि बहुत सारे अभिभावक या माता -पिता यह नहीं जानते कि अच्छी शिक्षा क्या होती है ? इस जानकारी के अभाव में समूचा हिन्दी सूबा अपने बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहा है . उसे एक ललक रहती है कि उसका बच्चा अंग्रजी सीखे ,बोले और समझे . बस इतना ही उसके सोचने का पैमाना है . और इस ललक का फायदा उठा कर अनेको अपढ़ लोग जनता को बेवकूफ बनाने के धंधे में लग गए हैं और जोर शोर  से प्रचारित करते हैं कि हम बच्चे को अंगरेजी माध्यम से पढायेंगे . यह अंगरेजी माधम की भूख सीधे सादे गंवई लोगों को लूट रहा है . जब उस स्कूल के किसी भी मास्टर को अंगरेजी क्या होती है तक की जानकारी नहीं है . अंगरेजी एक भाषा है उससे किसी को गुरेज नहीं है . बतौर एक भाषा के अंगरेजी हर स्कूल में पढाई जाती है . ठीक उसी तरह जैसे हिंदी , संस्कृत , उर्दू और अंग्रेजी . यह भ्रम माता पिता को निकाल देना चाहिए . अंग्रजी माध्यम को समझ लीजिए . माध्यम मतलब भूगोल , इतिहास . गणित , साइंस सब कुछ अंग्रजी में पढ़ाया जाना . लेकिन येसा नहीं होता . दूसरा धोखा -बच्चे के लिए वर्दी . वर्दी मतलब पहनावा . कितनी सीधी सी बात है कि लोग क्या पहनते हैं और क्यों पहनते हैं ? अंग्रेज जहां बसा हुआ है वहाँ का मौसम ठंढ है . बारहों महीने ठंढ पड़ती है इसके लिए वे अपने आपको उन कपड़ों से ढंकते हैं जो उन्हें गर्मी पहुचाए . कोट पैंट टाई जूता वगैरह . आप ज़रा सोचिये आप यहाँ जिस मौसम में रहते हैं वहाँ क्या पहना जाता है . यहाँ कुल तीन मौसम होते हैं और उस मौसम के लिहाज से ही बच्चों को भी कपड़ा पहनने की आदत डालनी चाहिए ,लेकिन आप कर क्या रहे हैं बारहों महीना बच्चा टाई , मोजा , जूता . चुश्त कपड़े पहन रहा है उस बच्चे के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा ? कभी आपने इस पर भी गौर किया कि अगर एक टाई उस अंगरेजी माध्यम के किसी अध्यापक को दे दी जाय तो वह उसे सलीके से बिलकुल नहीं  बांध पायेगा.  या भयंकर गर्मी और उमस में बच्चे की गर्दन टाई से कसी रहती है .यह आपको या आपके बच्चे को पसंद आएगा क्या ? कभी आपने जानने की कोशिश की कि दुनिया में सबसे अच्छा कौन सा कपड़ा होता है ? जो सेहत के लिए और स्वच्छता के लिए, सारी दुनिया उसकी तारीफ़ करती है ? वह कपड़ा है खादी . हर मौसम में यह आपको तारो ताजा रखती है गर्मी में ठंढ और ठंढ में गर्मी देता है खादी . दूसरी बात बच्चों को सादगी और स्वाभिमान से भरता है . तीसरी बात बच्चे फुलवारी के फूल की तरह होते हैं  उन्हें एक तरह के कपड़े पहना कर आप फ़ौज में भेज रहे हैं को विद्यामंदिर में ?

बच्चे को क्या , कितना और कैसे पढ़ाया जाय .

-------------------------------------------स्कूल का मतलब होता है कि किसी अभिवावक या माता पिता को बच्चे को स्कूल भेजने के लिए ,जोर जबर दस्ती न करनी पड़े . बल्कि बच्चा स्वयं स्कूल जाने के लिए लालायित रहे . इसके लिए बच्चे को उचित माहौल , खेल की सामग्री और पाठ्य सामग्री प्रचुर मेरा में होनी चाहिए . बच्चों को अपने लिए खेलने की सामग्री खुद बनाना सिखया जाना चाहिए . साथ ही साथ बच्चे के लिए कला बहुत जरूरी है . अध्यापक को चाहिए कि वह बच्चे पर कभी भी धौंस न जमाये या उन्हें किसी भी बात के लिए प्रताडित करे . अध्यापक को चाहिए कि वह बच्चे में प्रश्न पूछने की आदत डाले और अध्यापक उसका उत्तर दे . इससे अध्यापक और बच्चे के बीच दोस्ती का रिश्ता बनता है . इन सब बातों को ध्यान में रख कर समता ज्ञान केन्द्र की स्थापना की गयी है . ... आप से अपील है कि आप अपने बच्चे का दाखिला समता ज्ञान केन्द्र में कराएं .
                                                      खुला दाखिला , सस्ती शिक्षा .
                                                      लोकतंत्र की यही परिक्षा / 

Friday, July 3, 2015

खादी का खाता तो खोलो .
चंचल
         खादी की यात्रा भारत की आजादी की लड़ाई से शुरू होती है और उसी के साथ साथ चलती है . आजादी के बाद खादी उसी तरह स्थापित होती जैसे सरकार . खादी उसी तरह उतरती है जैसे सत्ता का मोह उतरता है . खादी के प्रति लोग उसी तरह आशंकित होते हैं जैसे सत्ता के प्रति . खादी के बारे में उसी तरह कुप्रचार होता है जैसे सत्ता के बारे में . भारत में सत्ता के केन्द्र में कांग्रेस ही रही है बात चाहे पक्ष की हो या उसके प्रतिपक्ष की . एक बार अपने एक मित्र के घर चल रही पार्टी में , जसमे तमाम देशों के प्रतिनिधि , हर दल के जाने माने लोग उपस्थित रहे ,उसमे मनोज कुमार की फिल्मो के लिए गीत लिखनेवाले संतोषानंद भी रहे और दिल्ली के हिसाब से संघियों के बीच घिरे पड़े रहे और गांधी जेरे बहस थे . संतोषानंद ने हमारी तरफ देखा और बोले - अब तुम संभालो भाई . और हमने एक बात कही . गांधी दुनिया का सबसे बड़ा पोस्टर डिजाइनर है .यह वहाँ जुटे फ़िल्मी लोंगों के लिए कत्तई अजूबा बात थी . एक फिल्म वितरक ने निहायत ही व्यंग्य भरे लहजे में पूछा - इसका खुलासा भी हो सकता है ? हमने कहा जी , हुआ पड़ा है , दिखाई न दे यह दीगर बात है . उन्हों ने फिर फिकरा कसा - तो आप दिखा दीजिए . हमने कहा अब आप पीछे चलिए , हिन्दुस्तान गुलाम है कांग्रेस आजादी की लड़ाई लड़ रही है गांधी ने एक पोस्टर दिया ' चरखा ' उसे चलानेवाले , उसके उत्पाद को पहननेवाले मान लिए जाते रहे कि यह कांग्रेस है . तुर्रा यह कि कांग्रेस पर प्रतिबन्ध लग सकता था और कई बार लगा भी लेकिन कांग्रेस का पोस्टर " चरखा ' कभी भी प्रतिबंधित नहीं हुआ क्यों कि यह आजादी की लड़ाई का प्रतीक ही नहीं रहा बल्कि उत्पादन और रोजी का एक जरिया भी रहा . इससे निकला हुआ सूत एक दिन विचार बन गया . किसी भी तरह की गुलामी के खिलाफ एक सार्थक हथियार . इसी चर्चा में हम पहली बार काका ( राजेश खन्ना ) से मिले थे जो दिल्ली से चुनाव लड़ने आये थे . और हम दोस्त बन गए . अब खादी की यात्रा देखिये कांग्रस के साथ साथ चलती है . गांधी तक खादी 'स्वावलंबन ' और स्वरोजगार के साथ साथ स्वाभिमान को स्थापित करती रही हर कांग्रेसी नित्यप्रति चरखा चला रहा और अपने लिए खादी तैयार करता रहा . आहिस्ता अहिस्ता ज्यों ज्यों कांग्रेस आरामतलबी की तरफ बढ़ी और खादी खुद बनाने के बजाय बाजार से आने लगी , इसका भी   चरित्र बदलने लगा . ज्यों ज्यों सत्ता में चमक दमक आने लगी, खादी भी चमकाई जाने लगी . नील टीनोपाल स्टार्च जिसके खिलाफ खादी लड़ कर खड़ी हो रही थी , अन्य सेंथेटिक उत्पादों की गुलाम हो गयी . और अब यह कहा जाने लगा कि खादी बहुत महगा लिबास है . इसको संभालने और अन्य लिबास की तुलना में इसे खड़ा करना बहुत महगा धंधा है . एक नजर में यह सच भी लगता है विशेषकर उनको जो खादी का अर्थशास्त्र नहीं समझ पाए हैं . जब कि खादी अपने मूल रूप में आये तो यह निहायत ही सस्ता और स्वास्थ्य के लिए लाभ दायक उत्पाद है . आइये खादी का अर्थ शास्त्र देखें -
         खादी उत्पाद का कच्चा माल किसान देता है . कपास उसके खेत में पैदा होता है . अगर किसी को वाकई खादी पहनने है और उसे इसकी महत्ता जाननी है तो उसे कम से कम एक अदद चरखा रखना पड़ेगा . एक परिवार में एक चरखा ही काफी होगा उसके पूरे परिवार को कपड़े की मांग पूरी करने के लिए . घर का प्रतिव्यक्ति यदि चरखे पर आधे घंटे भी बैठता है तो उसके पास किसी भी तरह की कपड़ों की पूर्ति आसानी होती रहेगी . खादी से यदि आप रूई खरीदते हैं तो वह आपको सस्ते में मिलेगी क्यों कि सरकार की तरफ से उसे सब्सीडी मिलती है . इस रूई से बने सूत को अगर आप खादी आश्रम को बेच कर एवज में कपड़ा खरीदेंगे तो उस कपड़े पर इतनी छूट मिलेगी कि आपको वह कपड़ा आपके आधे घंटे के श्रम के बराबर तक हो जाता है . एक तरह से मुफ्त . अब सूत कातने की प्रक्रिया देखिये . सूत कातते समय बैठने की मुद्रा और सूत टूटने न पाए को देखने की एकाग्रता जाने अनजाने आपको पातंजलि के योग के करीब पहुचा देती है . मन सात्विक होता है और आप हिंसक हिस्से से बाहर निकल कर सतो गुण की तरफ बढ़ जाते हैं . दूसरा - यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है .हर मौसम में यह शरीर के तापमान को संतुलित रखता है . गर्मी में ठंढक, ठंढ में गर्मी और बारिश में समानुपाती गुण रखता है . खादी में किसी भी चरम रोग से बचने की अपार क्षमता है . दूसरा कुप्रचार जो खादी को लेकर चलता है कि इसका रखरखाव महगा पड़ता है . यह खुद के ऊपर थोपी गयी एक भ्रान्ति है . खादी को किसी भी सेंथेटिक पदार्थ से बचाया जाना चाहिए इसमें नील टिनोपाल या स्टार्च इसके मूल गुण को खत्म कर देते हैं .खादी में इसके रोयें इस्तरी करने से जल जाते हैं . इसे इस्तरी से कत्तई  बचाना चाहिए . आज सारी दुनिया यह मान चुकी है कि खादी से बेहतर कोए दूसरा वस्त्र नहीं है . लिहाजा आज भारत जितना खादी निर्यात कर रहा है और विदेशी पूंजी अर्जित कर रहा है उसके आंकड़े बहुत दिलचस्प हैं . व्यक्तित्व विकास के लिए खादी से बेहत कोइ दूसरी चीज अब तक नहीं बनी है जो किसी भी तरह की गुलामी से बाहर खींच कर आपको स्वराज में ला खड़ा करें . 

Wednesday, July 1, 2015

मोहल्ला अस्सी पर इतना बवाल क्यों ?
हिंदी के चर्चित उपन्यासकार ,कहानीकार भाई काशी नाथ सिंह के 'रेखा चित्र ' काशी की अस्सी पर एक फिल्म बनी .उसके रिलीज होने के पहले ही उस पर बवाल शुरू हो गया .और मामला अदालत तक गया . सुना जा रहा है कि अदालत ने उस पर रोक लगा दिया . अदालत और बवालियों से कहना चाहता हूँ कि भाई यह किताब तीन साल से भी ज्यादा हो गयी है बाजार में बिक रही है . उस समय इस पर बवाल क्यों नहीं हुआ ? अदालत ने उसे उस समय क्यों नहीं प्रतिबंधित किया ? ये कला की दो अलग अलग विधाएं हैं उनकी अंतर्धारा एक है . तर्क दिया जा रहा है कि उसमे गालियाँ हैं . तो इनको गालियों से परहेज है ? और जब गालियों से परहेज रहा तो पढ़े क्यों ? और अगर नहीं पढ़े हो तो कैसे मालुम कि इसमें गाली है ? किस समाज में गाली नहीं है ? जिस समाज में गाली नहीं होता वो सदा हुआ समाज होता है , सवाल यह होता है कि वो गालिया जबरदस्ती ठूंसी गयी हैं कि वे सहज रूप से बह रही है. और गाली है क्या ? अगर कोइ कह दे तुम संघी हो ,तो यह हमारे लिए बहुत बड़ी गाली है क्यों कि हमने यह मान लिया है . कुछ नाम गिना दे रहा हूँ बवाल करनेवाले गिरोहियों को - कालीदास ,राही मासूम रजा , यशपाल और भी बहुत नाम हैं . 'आधा गाँव ' गालियों का खजाना है लेकिन अखरता एक भी जगह नहीं . राज कमल प्रकाशन की तत्कालीन मालकिन शीला संधू ने डॉ राही मासूम रजा को खत लिखा कि डॉ साहब अगर आधा गाँव में गालियाँ न होती तो तो इसे साहित्य अकादमी का पुरष्कार मिल जाता . उसका बहुत ही माकूल जवाब दिया है राही जी ने - पुरष्कार के लिए हम अपने पात्र से संस्कृत का श्लोक तो बुलवा नहीं सकते , ..... य्ह्पाल ने तो अपने उपन्यास में लिखा - ये कांग्रेसी झांट के बाल के बराबर भी नहीं ' .कालिदास का कुमार संभवं पढ़ लो . शिव पार्वती के साथ समभोग का वर्णन है . मिटाओ उसे . खाहुराहो के मूर्तिशिल्प कनपुरिया गाली को भी शर्मिन्दा करते खड़े हैं . लगा दो तोप . चिहुंक रहे हो ' भोसडोके ' बहन चोद.. एकरी बहिन क .. बनारस की गलिया , सड़क , दूकान कहाँ जाओगे गाली हर जगह है . उसका रस लो . स्वाद देखो . चीखो मत यह क्योटो जाएगा .