Monday, September 11, 2017

chanchal:  श्रद्धांजली / चंचल११ सितम्बर महादेवी वर्मा  की प...

chanchal:  श्रद्धांजली / चंचल
११ सितम्बर महादेवी वर्मा  की प...
:  श्रद्धांजली / चंचल ११ सितम्बर महादेवी वर्मा  की पुण्यतिथि थी --------------------------------------------  ७८ का वाकया है . हम काशी विश...
 श्रद्धांजली / चंचल
११ सितम्बर महादेवी वर्मा  की पुण्यतिथि थी
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 ७८ का वाकया है . हम काशी विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष थे , हमारे साथ भाई महेंद्र नाथ पांडे महामंत्री थे (इस समय उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं ) एक दिन अल सुबह हम
अखबार पढ़ रहे थे .अचानक एक खबर ने चौका दिया , खबर थी मुंशी प्रेमचंद पर एक सेमीनार का आयोजन साहित्य अकादमी ने किया है और यह आयोजन बनारस के एक्पांच सितारा
होटल में है जिसे महादेवीवर्मा जी संबोधित करेंगी .अजीब कशमकश के बीच मन उलझ गया . कहाँ  मुंशी प्रेमचंद , कहाँ उनका गाँव , होरी , घीसू ,पूस की रात , कफन , सद्गति ठाकुर का कुंवा , कहाँ पांच सितारा होटल . महेंद्र नाथ पांडे के लिए एकछोटा सा नोट लिख कर राधे चपरासी को दे दिया किजब पांडे जी आवे उन्हें यह कागद दे देना . और हम दो चार दोस्तों को लेकर होटल की तरफ निकल लिए . होटल के मुख्यद्वार पर हम खड़े होकर महादेवी जी का इन्तजार करने लगे . इतने में एक गाडी रुकी और महादेवीजी नीचे उतरी.प्रणाम नमस्कार हुआ
उन्होंने हमसे पूछा - कार्यक्रम   में चल रहे हो ?
हमने कहा - नही ! हम बुआ का अपहरण करने आये हैं . ( हम लोग महादेवी जी बुआ कहते थे )
जोर से हंसी - हाँ रे , सही किया , बड़ा पाप लगता .भैया ( मुंशी प्रेमचंद को वे भैया बोलती थी ) की आत्मा हमे कभी नही माफ़ करती . महादेवी जी हमारी गाडी में बैठ गयी , बाकी जो साथ गये थे सब नीचे रह गये . महादेवी जी ने पूछा वे बच्चे कैसे आयेंगे ? हमने बताया सब आ रहे हैं , जिस होटल की गाडी से महादेवी जी आयी थी , वह अब उन बच्चों के कब्जे में और वह गाडी पीछे पीछे आ रही थी . जब हम विश्व  विद्यालय पहुंचे तब तक भाई महेंद्र नाथ पांडे ने कला संकाय का प्रेक्षा गृह खुलवा कर लॉस स्पीकरवगैरह का  इंतजाम कर के कहीं दुसरे कार्यक्रम में जा चुके थे .हमने कुलपतिजी कोपुरिकथा सूना कर कहाकि आप आ जाँय , महादेवी जी का स्वागत करके  चले जाइए . महादेवी जी को सुनने के लिए जो भीड़ इकट्ठा हुयी हमे स्थान बदलना पडा . तो मधुवन  के मुक्ताकाश में घास पर महादेवी जी बैठ गयी और वहीँ से मुंशी प्रेमचंद जोजो संस्मरण सुनाये वे मील के पत्थर हैं . एक हिस्सा आप भी सुन लीजिये .
     मुंशी प्रेमचंद और महादेवी वर्मा में, मुह बोले  भाई बहन का रिश्ता था . गर्मियों के दिन थे . एक दिन अचानक मुंशी प्रेमचंद महादेवी से मिलने उनके घर इलाहाबाद पहुँच गये . पहुचने की कोइ पूर्व सुचना महादेवी जी को नही थी . दोपहर को भोजन के बाद महादेवी जी  सोने चली गयी थी तब मुंशीजी पहुंचे .उनके बगीचे में एक माली काम करता दिख गया जिसने मुंशी जीको बताया की महादेवी जी अब तोतीं बजे सो कर उठेंगी . मुंशी प्रेमचंद ने कहा -कोइ बात नही , हम तीन बजे ही मिल लेंगे .पूरी दोपहरी मुंशी जी और वह माली एक दुसरे से बतिआते रहे . मुन्शिजिको उसने गुड खिला कर पानी पिलाया .दोपहर बाद जब महादेवी जी उठी तो  उन्हें हैरानी हुयी . सहजता की शख्सियत थे मुंशी प्रेमचंद .महादेवी जी धारा प्रवाह बोल रही थी , विश्वविद्यालय घेरे खड़ा उन्हें सुनता रहा . दिल्ली से साहित्य अकादमी के साहित्यकार आये थे वे सब होटल की एक बस लेकर महादेवी के इस कार्य क्रम में भाग लिए . इसी आर्य्क्रम ने हमे साहित्य में कई आचे दोस्त भी दिए . विष्णु खरे , गुलशेर खान  शानी , गिरधर राठी वगैरह .
        इससे भी ज्यादा दिलचस्प वाकया यूँ हुआ .
अपने छात्र जीवन में महादेवी वर्मा जी चाहती थी उनकी पढाई  काशी विश्व विद्यालय से हो . उन्होंने प्रवेश फ़ार्म भरा .लेकिन विश्व विद्यालय ने उस फ़ार्म को रिजेक्ट कर दिया सो महादेवी जी दाखिला नही ले पायी .एकदिन वह भी आया जब विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा जलसा दीक्षांत समारोह किमुख्य अतिथि बन कर विश्वविद्यालय आयी .
आज भारत का साहित्य समाज अपनी इस  महान रचनाकार महादेवी वर्मा को सादर श्रद्धांजली दे रहा है .
( बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का हिंदी नाम है काशी विश्व विद्यालय )

chanchal: चिखुरी / चंचलराजनीति - राजनीति = सब कुछ--------...

chanchal: चिखुरी / चंचल

राजनीति - राजनीति = सब कुछ
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: चिखुरी / चंचल राजनीति - राजनीति = सब कुछ -----------------------------------------------------------------------------------------------...
चिखुरी / चंचल

राजनीति - राजनीति = सब कुछ
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राजनीति की सीधी और सरल परिभाषा है - एक सोच जो आख़िरी इंसान तकको बेहतर जीवन दे .ऋग्वेद की एक ऋचा है जानाति इछति अथ करोति .इच्छा , ज्ञान और शक्ति .
कुछ भी करने के लिए ये तीन तत्व जरूरी होते हैं . राजनीति  इन्ही तीन तत्वों से स्थापित होती है . इसमें साध्य अगर पवित्र है तो साधन भी उतने ही पाक साफ़ होने चाहिए .आजादी की लड़ाई में हमने यही रास्ता अख्तियार किया और गांधी जी के नेतृत्व में आजादी हासिल किया .यहाँ एक छोटा सा सवाल उठाया जा सकता है जो अक्सर नही उठाया जाता . जिस समय कांग्रेस अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर ले रही थी एनी दल क्या कर रहे थे ? और कौन  कौन दल सक्रीय रहे . कई संघन ऐसे रहे जिनका मानना था की सत्ता हथियार से बदली जा सकती है .इसमें कई नाम हैं शहीद भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद , सुभाष चन्द्र बोस , वगैरह . दूसरा बड़ा दल था कांग्रेस .जो बापू के सत्य और अहिंसा को सामने  रख कर सिविलनाफ़रमानी के हथियार से अंग्रेजी निजाम को टक्कर दे रहा था . सोवियत रूस के उदय के बाद भारत में साम्यवादी दल भी बन चुके थे लेकिन उनकी नीतियाँ भारतीय न होकर अंतर्राष्ट्रीय रही और वह दल उसी के अनुसार अपनी नीतिया बना रहे थे .उदाहरण के लिए जब ४७ का कांग्रेस ने  अंग्रेजो भारत छोडो का आन्दोलन चलाया तो साम्यवादियों ने न्ग्रेजों का साथ दिया . क्यों की उस समय सोवियत सरकार हिटलर के खिलाफ अंग्रेजों के साथ हो चुका था . १९२५ में बना रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ उससे भी जलील हरकत पर उतर कर अंग्रेजों का साथ दे रहे थे .दिक्कत क्या है की हम इस पीढ़ी को इतिहास नही दे पाए .हमने अनेक रास्तों से नई पीधिको काँवरिया और डी जे तो दे दिए लेकिन उसे यह नही बता पाए कि बाचा खान जिन्हें लोग सरहदी गांधी के नाम से जानते हैं , ने इस मुल्क में लाल कुर्ती नाम से खुदाई खिदमदगार नाम की संस्था बना कर हिन्दू और मुसलमान दोनों का विशवास अर्जित किया .लेकिन आज ?
     सत्ता के मद में चूर सरकारी दल के लोग अपनी आलोचना तक सुनने को तैयार नही हैं . अभी क्ल५ सितम्बर को कर्नाटक की एक जांबाज पत्रकार गौरी लंकेश कोगोलिमार कर हत्या कर दी गयी . हम हिंदी पट्टी के लोग अपने कुंए में बैठ कर देश  दुनिया खबर पर वक्त जाया करेंगे लेकिन अपने पड़ोस की बड़ी घटना सेकत्तई दूर रहते आये हैं .कर्नाटक दक्षिण भारत का प्रसिद्द सूबा है . अब तक यह  साम्प्र्दैक आग की लत से बहुत दूर रहा है लेकिन विगत कुछ वर्षों से यहाँ भी साम्प्रदायिक सौहार्द्य बिगड़ा है .इस सौहार्द्य को बनाये रखने के लिए यहाँ समाजवादी लोहियावादी लोंगो का एक बड़ा जमावड़ा रहा जिसमे केवल राजनीतिक लोग ही नही रहे बल्कि कला और पत्रकारिता के भिलोग रहे हैं .इनमे ग्गिरिश कर्नाड , यु आर अनंत मूर्ति .बी व् कारंत , पी लंकेश , जैसे बहुत नाम हैं . कल जिसकी ह्त्या की गयी वह प्रसिद्द समाजवादी , लेखक , पत्रकार , फिल्म निर्माता पी लंकेश की बेटी गौरी लंकेश है .गौरी का गुनाह इतना भर रहा की वह हिन्दू साम्प्रदायिकता और उसकी हिंसक राजनीति की खुली मुखालफत करती रही . आज पत्रकारिता के इतिहास का का यह काला दिन है जब एक पत्रकार को उसे मौत के घात इस लिए उतार दिया गया कईं की उसकी जुबान में ताकत थी . सच बोलने का जज्बा था . पत्रकारिता की दुनिया में लंकेश पत्रिका बगैर किसी विज्ञापन के छपती रही .अपने आखिरी सम्पादकीय में गौरी ने संघ के अफवाह उड़ाने की कला पर विस्तार से लिखा था . गणेश चतुर्दशी के अवसर पर संघ ने पूरे कर्नाटक में वशिला माहौल बनाया लेकिन उसे सरकार ने उघार कर दिया .
       अब वक्त है किलोग सही रास्ते को चुने और अपनी बेहतरीन दुनिया बनाएं
गौरी लमेश का बलिदान अकारथ नही जायगा .
सादर श्रद्धांजली गौरी लंकेश को .