Saturday, November 14, 2015

चिखुरी / चंचल
लाजिम है कि हम देखेंगे
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      ' पटना देखने का मन है .
    - अचानक ... पटना कहाँ से आ गया .
-पटना देखे का मन इसलिए बना है कि बहुत दिनो बाद देश का जवान जनतंत्र बिहार में तन कर खड़ा हुआ है .
-जवान जनतंत्र ?
-तो ऐसा बोलो कि गांधी मैदान क जलसा देखने का मन है .?
- न्ना बरखुरदार बहुत जलसा देख चुका हूँ . जनता का मन देखने का मन है .
- तो आज है चौदह नवंबर
- क्या चौदह नवंबर ? सुनते ही कयूम मियाँ चौंके . मियाँ भले वक्त पर याद दिला दिया वरना बहुत बड़ा गुनाह हो जाता . आज पंडित जवाहर लाल नेहरु का जन्म दिन है . आप चलिए चौराहे पर  हम आते हैं . कयूम मियाँ ने अपने मझले लड़के सोहराब को आवाज दिया . सोहराब नमूदार हुए . नवल उपाधिया जाते जाते रुक गए क्यों कि साइकिल की चैन उतर गयी रही .नवल ने सोहराब से मदद माँगा कि भाई थोड़ी मदद करदो चेन चढ़ा दो लेकिन कयूम ने रोक दिया - कत्तई नहीं पहले जरूरी काम सुन लो और इसे फटा फट करो , बक्से में अचकन है वह ....पजामा .... खादीवाली गांधी टोपी ... ये निकाल लाओ और नहा के आते हैं . दालान में पंडित नेहरु की जो तस्वीर लगी है उसे उतार कर पोंछ डालो . और तहमत सम्हालते कयूम मियाँ मस्जिद की ओर निकल गए जहां सरकारी नल गड़ा है . इंडिया मार्का . नवल बगैर चैन चढाये पैडल ही साइकिल ठेलते चौराहे कि ओर बढ़ गए . थोड़ी देर बाद गाँव और गाँव के बाजार ने देखा कि लबे सड़क मौलाना  अबुल कलाम आजाद चले आ रहे हैं पीछे पीछे बच्चे भारत माता की जय बोल रहे हैं और बीच बीच में पंडित नेहरु की जय हो रही है . कयूम मियाँ जब इस सुराजी लिबास में उतरते हैं तो जनता उनके नाम को बदल कर मौलाना आजाद बना देती है और साल में कई बार कयूम मियाँ मौलाना हो जाते हैं . बड़े बूढ़े जवान सब कयूम मियाँ को आदाब , जय हिंद ,. बंदगी ,सलाम सब मिलता जा रहा है. नयी नवेली बहुए घूँघट की आड़ से कयूम के इस रूप को देखती जा रही हैं . और मियाँ लफार क़दमों से चौराहे तक आ ही गए . लाल साहब चाय की दूकान पर जमी मजलिस ने कयूम मियाँ का स्वागत किया .नीम के इकलौते पेड़ के नीचे जहां टुटही मेज पर ररा नाई का न्युबाम्बे सैलून चलता है ,आज बंद है क्यों कि आज शनीचर है और शनीचर को सैलून बंद करने का रिवाज है उस मेज पर चदार बिछाई गयी . पंडित नेहरु की तस्वीर तने से सटाकर लगा दी गयी . कयूम मियाँ ने सलामी दी . राष्ट्रगान हुआ और सब ने एक एक कर के तस्वीर पर फूल चढाया . अकेले चिखुरी थे जिन्होंने फूल नहीं चढाया बंदी के चोर खीसे में हाथ डाल कर एक घुंडी सूत निकाले और उसे फैला कर नेहरु की तस्वीर पर चढ़ा दिये . चिखुरी ने बच्चों के लिए बतासा मंगाया .`इस तरह देश के प्रथम प्रधानमंत्री को गाँव ने याद किया .
कयूम मियाँ ने सोहराब को बा बुलंद आवाज में बोला - बरखुरदार ! वो तहमत और बंडी हमें दे दो और ये कपडे सम्हाल कर बक्से में रख देना . इस तरह लबे महफ़िल कयूम मियाँ मौलाना आजाद से अपने मूल पर आकर कयूम मियाँ बने और चर्चा चली गयी पटना तक .
नवल ने डोर ढील दी- चचा कयूम का मन है पटना देखने का . उस जलसे को देखना चाहते हैं जिसमे नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जायगी .
मद्दू पत्रकार ने बीच में टोक दिया - क्या कयूम मियाँ अब ज़माना कहाँ से कहाँ जा पहुंचा है , घर बैठे रहिये टीवी खोल लीजिए और देखिये पटना नीतीस्साब आपके सामने .
कयूम ने लंबी सांस ली - नहीं भाई !हम नेता को देखने की ललक नहीं रखते , हम तो बिहार की जनता और उस जनता के चेहरे को देखना चाहते हैं कि वह क्या चाहती है इस सरकार से , जिसे उसने बहुत जद्दोजेहद के बीच बनायी है . इस सरकार से वह क्या चाहेगी ? गाँव के इस सदन में सन्नाटा छा गया . चिखुरी मुस्कुराए .हम बताते हैं गौर से सुनो .बिहार में यह पहला प्रयोग हुआ है कि गांधी का समूचा बिखरा हुआ परिवार अडतालीस के बाद एक हुआ है . नीतीश , लालू , शिवानंद तिवारी समेत तमाम समाजवादी अपने पुराने घर को जोड़ने में सफल हुए हैं .जिस काम को पंडित नेहरु नहीं कर सके कि समाजवादी जो कांग्रेस छोड़ कर अलग हुए थे वापस अपने घर आ जांय , सरकार और संगठन दोनों की जिम्मेवारी लें लेकिन वे सफल नहीं हो पाए
दूसरी पीढ़ी तक आते आते बिहार ने वह काम कर दिखाया है . आँख बंद करके देखिये तो जब सोनिया गांधी ,लालू और नितीश एक मंच पर थे तो लग रहा था पंडित नेहरु ,जेपी और डॉ लोहिया का मंच लगा है . यह तो हुयी काया की बात . अब इसकी आत्मा को जगाना है . तीनो मिल कर तय करें .तीन बिंदु . ये तीनो पंडित नहरू और डॉ लोहिया के बीच हुए सहमती के बिंदु हैं . एक -बिहार देश को डगर दिखाए कि अब सरकार और संगठन दो अलहदा संस्थान हैं . जो सरकार में होंगें वे संगठन में कोइ ओहदा नहीं रखेंगे . संगठन को पूरा अधिकार होगा कि वह सरकार की आलोचना कर सके और उसके गलत नीति के खिलाफ आवाज उठा सके . संगठन का जनता से सीधे संवाद होगा और उसकी समस्या को सरकार और संगठन मिल कर हल करेंगे . .... लेकिन भिखई मास्टर ने लेकिन लगाया - बिहार में बेरोजगारी , पिछडापन , खस्ताहाल सड़कें , महगाई इस पर क्या होगा ? चिखुरी संजीदा हो गए - सब का इलाज है बस जोखिम लेना होगा . बेरोजगारी इस लिए है कि बिहार में रोजगार नहीं है , रोजगार के लिए बिहार की सरकार और जनता मिल कर लड़े. यह काम क़ानून से नहीं सड़क से शुरू करो . जो उत्पाद छोटी जगहों से , छोटी पूंजी से शुरू हो सकते हैं लेकिन उस पर बड़े घरानों का कब्जा है जनता उसका बहिस्कार करे बिहार की जनता को नौजवानों को प्रोत्साहित किया जाय खुले गाँव गाँव लाधूद्योग . महगाई का इलाज आपके पास है . 'धाम बाँधो ' . पूरा देश देख रहा है बदले हुए चेहरों को नहीं , उन नीतियों को जो कल बिहार शुरू करेगा . महफ़िल संजीदा न हो इसलिए नवल ने मुह खोल दिया . असल हकदार तो महिलायें हैं जिन्होंने बढचढ कर हिस्सा लिया और जमूरों को रास्ता दिखाया . .... मन्नाडे को सुना जाय ... काशी हीले , पटना हीले .....
नहीं बूझोगे तो गच्चा खा जाओगे पासवान और माझी माफिक . देश में हुए अब तक के सारे चुनावों से यह एक अलहदा चुनाव रहा जिसे जनता ने लड़ कर लिया है . 

Wednesday, November 11, 2015

चिखुरी / चंचल
राजनीति इतनी बदजुबान हो गयी ?
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....नवल उपाधिया हडबड़ी में आये , नीम के नीचे जहां ररा नाई का न्यू बाम्बे  सैलून लगता है , साइकिल टिका कर दोनों हाथ कमर पर रख कर खड़े हो गए . अचानक जोर से चीखे - अबे उमर के बच्चे जहां कहीं भी हो तुरत सामने आओ , तुम्हारे जैसे बहुत से लफड़ झंडूस देखे हैं .सुनो हो पंचो ! कीन कह रहे थे कि कल तुम रामलाल के दूकान से पटाखा खरीद रहे थे ? ये हिम्मत . एक एक कर के देश निकाला कर देंगे . सुना है तुम भी पटाखा दगाओगे ? जानते नहीं हो , कीन उपाध्याय को ... लाल साहब की दूकान पर चाय के इन्तजार में जमी संसद नवल को देख रही है . लखन कहार ने धीरे से जवाब दिया - को नहीं जानत है जग में ... ' लेकिन कीन समझ गए कि लखन क्या कह रहा है .अपने चिचुके मुह और खोपड़ी के पीछे लटक रही मोटी चोटी पर कई लोग बानर तक कह चुके हैं .लेकिन लखन ने हनुमान चालीसा उठा लिया ,अब इसका विरोध तो हो नहीं सकता . कीन अंदर ही अंदर मसोस कर रह गए .उस समय  कीन एक पैर पर खड़े थे एक पैर मोड़ कर पीछे खड़ी दीवार पर टिकाये अखबार बांच रहे हैं गो कि अभी आज का ताजा अखबार आया नहीं है . कीन पुराने से ही काम चला रहे हैं . यहाँ इस चौराहे का अलिखित नियम है कि अखबार उम्र , पद और गरिमा के हिसाब से पढ़ने को मिलता है ,और कीन का नंबर जब तक आता है सांझ हो जाती है यह नहीं कि लोग दिन भर वहीं बैठे रहते हैं , लेकिन आखिर चाय की दूकान है न , लोग केवल चाय पीने ही थोड़े आते हैं ... अखबार देखेंगे , आबो हवा बदलेंगे वरना उनको घर पर चाय नहीं मिलेगी क्या ? दुकानदार का पहला फर्ज है कि वह अपने ग्राहक का ख़याल रखे समझे कीन ? वहीं अपनी दूकान से झाँक लिया करो , जब यहाँ कोइ न रहे तो आकर पढ़ लिया करो . कीन जानते हैं लाल साहेब पुराण मुरहा है ,औ गाहक ? तो ससुरे दिन भर आते ही रहते हैं . तब से कीन एक दिन . कभी तो तारीख भी नहीं देखते पुराना अखबार बांचने लगे हैं .उमर दरजी ने कीन को उकसाया का लिखा है कीन गुरु ? आज के अखबार में . कीन मुस्कुराए - वही लिखा है जो नवल उपाधिया बोल रहे थे , बुलाय के पूछि लो . तब तक नवल हाजिर हो गए . उमर ने नवल को घुड़का - का बोल रहे थे हमरे बारे में . देखो नवल ! रहना हो तो तमीज से रहो वरना इतनी मार खाओगे कि मुह औ जूते में फर्क गायब हो जायगा समझे . नवल उमर को सुन रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं - और बोल . जितना बोलते बने बोल ले फिर बताते हैं . उमर एक कदम आगे बढ़ के नवल के नजदीक आ गया - सुन पंडित हीरामन उपाध्याय के सुपुत्र !तू अगर अपने आपको न सुधारा तो
- तो कर लेबे ?
- कनपटी पे दो कंतास देंगे और चले जायंगे अपनी दूकान पर .
नवल कीन की तरफ मुड़े - नवल भाय ! इसको पाकिस्तान भेज देते तो गाँव सुधर जाता . उमर मुस्कुराया - पाकिस्तान तोरे बाप बसाए रहे कि कीन के बाप ? और चाय के हांका लगते ही संबाद रुक गया . चुंकी नवल उस समय खैनी मल रहे थे चुनांचे उमर दरजी ने नवल की चाय भी दूसरे  हाथ में पकड़ कर नवल के बगल खड़े रहे . गाँव में यह यह रोज मर्रा की जिंदगी है . पता नहीं कब से चला आ रहा है . इस रवायत की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं इनको उखाडना अब आसान नहीं है . अखबार आ गया . चिखुरी के सामने . चिखुरी ने अखबार उठा कर मद्दू पत्रकार की तरफ बढ़ा दिया - देखिये आज कौन सा बवाल है ? मद्दू नेअख्बार उठाया - बिहार में अगर हम हारे तो .पाकिस्तान में पटाखे छूटेंगे . अमित शाह ने रक्सौल में बोला है . चिखुरी ने गर्दन ऊपर उठाया . - कहाँ कहाँ से पकड़ कर लाया है ... बेतुकी बात . बदजुबानी . न कोइ मर्यादा न तमीज ... बिहार ने तो इन्हें नंगा कर दिया एक एक कर के इनकी असलियत जनता के सामने खुलती जा रही है . चुनाव इतनी गिरी जुबान में कभी नहीं हुआ . दुर्भाग्य देखो कि जिनके हाथ में मुल्क की बागडोर है वह इतना नीचे जा चुका है . कल उसी बिहार में एक लड़की मीसा के बारे में जो बोला गयावह सड़क छाप लफंगे भी बोलने के पहले अगल बगल जहां लेते हैं कि कोइ बुजुर्ग तो नहीं सुन रहा है , और इधर ये मुखिया महोदय हैं कि सरे आम महफ़िल में लाउड स्पीकर से चीख चीख कर बोल रहे हैं . बिहार में ही नहीं देश में और दुनिया के हर कोने में हमारी तुक्का फजीहत हो रही है . यह हमारा मुल्क है ? यहीं पर गांधी , लोहिया , जे पी , कर्पूरी ठाकुर , किस किस ने राजनीति नहीं किया . एक दूसरे के विरोध में रहे लेकिन दुश्मन नहीं थे . मत भेद और मन भेद का मर्म जानते थे . इसी मुल्क में पंडित नेहरु ने राजनीति की उनकी दिली  मंशा थी कि संसद में डॉ लोहिया और कृपलानी जैसे लोग आयें . सैधांतिक बहस चले . वही मुल्क आज सियासत को संदुक्चियों और बन्दुक्चियो के हाथ सौंप दिया है . लेकिन जो रपट बिहार से आ रही है , लगता है शुभ होगा और बिहार देशग को नयी डगर दिखायेगा . ... एक चाय और ? लाल साहेब ने बीच में ही टोक दिया . बात रुक गयी और चाय हाथों में . तब तक ररा नाई चीखा - भाई सैलून में साइकिल किसने दाल दिया ...जोर का ठहाका लगा . करि  अवा कुकुर दूसरे कुत्ते को देख कर गुर्राया . नवल ने साइकिल उठाया और जगाते हुए आगे बढ़ गए मोरा सैंया गवन लिए जायं हो करौना की छैयां छैयां ......

Sunday, November 1, 2015

चिखुरी / चंचल
राजनीति इतनी बदजुबान हो गयी ?
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....नवल उपाधिया हडबड़ी में आये , नीम के नीचे जहां ररा नाई का न्यू बाम्बे  सैलून लगता है , साइकिल टिका कर दोनों हाथ कमर पर रख कर खड़े हो गए . अचानक जोर से चीखे - अबे उमर के बच्चे जहां कहीं भी हो तुरत सामने आओ , तुम्हारे जैसे बहुत से लफड़ झंडूस देखे हैं .सुनो हो पंचो ! कीन कह रहे थे कि कल तुम रामलाल के दूकान से पटाखा खरीद रहे थे ? ये हिम्मत . एक एक कर के देश निकाला कर देंगे . सुना है तुम भी पटाखा दगाओगे ? जानते नहीं हो , कीन उपाध्याय को ... लाल साहब की दूकान पर चाय के इन्तजार में जमी संसद नवल को देख रही है . लखन कहार ने धीरे से जवाब दिया - को नहीं जानत है जग में ... ' लेकिन कीन समझ गए कि लखन क्या कह रहा है .अपने चिचुके मुह और खोपड़ी के पीछे लटक रही मोटी चोटी पर कई लोग बानर तक कह चुके हैं .लेकिन लखन ने हनुमान चालीसा उठा लिया ,अब इसका विरोध तो हो नहीं सकता . कीन अंदर ही अंदर मसोस कर रह गए .उस समय  कीन एक पैर पर खड़े थे एक पैर मोड़ कर पीछे खड़ी दीवार पर टिकाये अखबार बांच रहे हैं गो कि अभी आज का ताजा अखबार आया नहीं है . कीन पुराने से ही काम चला रहे हैं . यहाँ इस चौराहे का अलिखित नियम है कि अखबार उम्र , पद और गरिमा के हिसाब से पढ़ने को मिलता है ,और कीन का नंबर जब तक आता है सांझ हो जाती है यह नहीं कि लोग दिन भर वहीं बैठे रहते हैं , लेकिन आखिर चाय की दूकान है न , लोग केवल चाय पीने ही थोड़े आते हैं ... अखबार देखेंगे , आबो हवा बदलेंगे वरना उनको घर पर चाय नहीं मिलेगी क्या ? दुकानदार का पहला फर्ज है कि वह अपने ग्राहक का ख़याल रखे समझे कीन ? वहीं अपनी दूकान से झाँक लिया करो , जब यहाँ कोइ न रहे तो आकर पढ़ लिया करो . कीन जानते हैं लाल साहेब पुराण मुरहा है ,औ गाहक ? तो ससुरे दिन भर आते ही रहते हैं . तब से कीन एक दिन . कभी तो तारीख भी नहीं देखते पुराना अखबार बांचने लगे हैं .उमर दरजी ने कीन को उकसाया का लिखा है कीन गुरु ? आज के अखबार में . कीन मुस्कुराए - वही लिखा है जो नवल उपाधिया बोल रहे थे , बुलाय के पूछि लो . तब तक नवल हाजिर हो गए . उमर ने नवल को घुड़का - का बोल रहे थे हमरे बारे में . देखो नवल ! रहना हो तो तमीज से रहो वरना इतनी मार खाओगे कि मुह औ जूते में फर्क गायब हो जायगा समझे . नवल उमर को सुन रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं - और बोल . जितना बोलते बने बोल ले फिर बताते हैं . उमर एक कदम आगे बढ़ के नवल के नजदीक आ गया - सुन पंडित हीरामन उपाध्याय के सुपुत्र !तू अगर अपने आपको न सुधारा तो
- तो कर लेबे ?
- कनपटी पे दो कंतास देंगे और चले जायंगे अपनी दूकान पर .
नवल कीन की तरफ मुड़े - नवल भाय ! इसको पाकिस्तान भेज देते तो गाँव सुधर जाता . उमर मुस्कुराया - पाकिस्तान तोरे बाप बसाए रहे कि कीन के बाप ? और चाय के हांका लगते ही संबाद रुक गया . चुंकी नवल उस समय खैनी मल रहे थे चुनांचे उमर दरजी ने नवल की चाय भी दूसरे  हाथ में पकड़ कर नवल के बगल खड़े रहे . गाँव में यह यह रोज मर्रा की जिंदगी है . पता नहीं कब से चला आ रहा है . इस रवायत की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं इनको उखाडना अब आसान नहीं है . अखबार आ गया . चिखुरी के सामने . चिखुरी ने अखबार उठा कर मद्दू पत्रकार की तरफ बढ़ा दिया - देखिये आज कौन सा बवाल है ? मद्दू नेअख्बार उठाया - बिहार में अगर हम हारे तो .पाकिस्तान में पटाखे छूटेंगे . अमित शाह ने रक्सौल में बोला है . चिखुरी ने गर्दन ऊपर उठाया . - कहाँ कहाँ से पकड़ कर लाया है ... बेतुकी बात . बदजुबानी . न कोइ मर्यादा न तमीज ... बिहार ने तो इन्हें नंगा कर दिया एक एक कर के इनकी असलियत जनता के सामने खुलती जा रही है . चुनाव इतनी गिरी जुबान में कभी नहीं हुआ . दुर्भाग्य देखो कि जिनके हाथ में मुल्क की बागडोर है वह इतना नीचे जा चुका है . कल उसी बिहार में एक लड़की मीसा के बारे में जो बोला गयावह सड़क छाप लफंगे भी बोलने के पहले अगल बगल जहां लेते हैं कि कोइ बुजुर्ग तो नहीं सुन रहा है , और इधर ये मुखिया महोदय हैं कि सरे आम महफ़िल में लाउड स्पीकर से चीख चीख कर बोल रहे हैं . बिहार में ही नहीं देश में और दुनिया के हर कोने में हमारी तुक्का फजीहत हो रही है . यह हमारा मुल्क है ? यहीं पर गांधी , लोहिया , जे पी , कर्पूरी ठाकुर , किस किस ने राजनीति नहीं किया . एक दूसरे के विरोध में रहे लेकिन दुश्मन नहीं थे . मत भेद और मन भेद का मर्म जानते थे . इसी मुल्क में पंडित नेहरु ने राजनीति की उनकी दिली  मंशा थी कि संसद में डॉ लोहिया और कृपलानी जैसे लोग आयें . सैधांतिक बहस चले . वही मुल्क आज सियासत को संदुक्चियों और बन्दुक्चियो के हाथ सौंप दिया है . लेकिन जो रपट बिहार से आ रही है , लगता है शुभ होगा और बिहार देशग को नयी डगर दिखायेगा . ... एक चाय और ? लाल साहेब ने बीच में ही टोक दिया . बात रुक गयी और चाय हाथों में . तब तक ररा नाई चीखा - भाई सैलून में साइकिल किसने दाल दिया ...जोर का ठहाका लगा . करि  अवा कुकुर दूसरे कुत्ते को देख कर गुर्राया . नवल ने साइकिल उठाया और जगाते हुए आगे बढ़ गए मोरा सैंया गवन लिए जायं हो करौना की छैयां छैयां ......