चिखुरी / चंचल
लाजिम है कि हम देखेंगे
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' पटना देखने का मन है .
- अचानक ... पटना कहाँ से आ गया .
-पटना देखे का मन इसलिए बना है कि बहुत दिनो बाद देश का जवान जनतंत्र बिहार में तन कर खड़ा हुआ है .
-जवान जनतंत्र ?
-तो ऐसा बोलो कि गांधी मैदान क जलसा देखने का मन है .?
- न्ना बरखुरदार बहुत जलसा देख चुका हूँ . जनता का मन देखने का मन है .
- तो आज है चौदह नवंबर
- क्या चौदह नवंबर ? सुनते ही कयूम मियाँ चौंके . मियाँ भले वक्त पर याद दिला दिया वरना बहुत बड़ा गुनाह हो जाता . आज पंडित जवाहर लाल नेहरु का जन्म दिन है . आप चलिए चौराहे पर हम आते हैं . कयूम मियाँ ने अपने मझले लड़के सोहराब को आवाज दिया . सोहराब नमूदार हुए . नवल उपाधिया जाते जाते रुक गए क्यों कि साइकिल की चैन उतर गयी रही .नवल ने सोहराब से मदद माँगा कि भाई थोड़ी मदद करदो चेन चढ़ा दो लेकिन कयूम ने रोक दिया - कत्तई नहीं पहले जरूरी काम सुन लो और इसे फटा फट करो , बक्से में अचकन है वह ....पजामा .... खादीवाली गांधी टोपी ... ये निकाल लाओ और नहा के आते हैं . दालान में पंडित नेहरु की जो तस्वीर लगी है उसे उतार कर पोंछ डालो . और तहमत सम्हालते कयूम मियाँ मस्जिद की ओर निकल गए जहां सरकारी नल गड़ा है . इंडिया मार्का . नवल बगैर चैन चढाये पैडल ही साइकिल ठेलते चौराहे कि ओर बढ़ गए . थोड़ी देर बाद गाँव और गाँव के बाजार ने देखा कि लबे सड़क मौलाना अबुल कलाम आजाद चले आ रहे हैं पीछे पीछे बच्चे भारत माता की जय बोल रहे हैं और बीच बीच में पंडित नेहरु की जय हो रही है . कयूम मियाँ जब इस सुराजी लिबास में उतरते हैं तो जनता उनके नाम को बदल कर मौलाना आजाद बना देती है और साल में कई बार कयूम मियाँ मौलाना हो जाते हैं . बड़े बूढ़े जवान सब कयूम मियाँ को आदाब , जय हिंद ,. बंदगी ,सलाम सब मिलता जा रहा है. नयी नवेली बहुए घूँघट की आड़ से कयूम के इस रूप को देखती जा रही हैं . और मियाँ लफार क़दमों से चौराहे तक आ ही गए . लाल साहब चाय की दूकान पर जमी मजलिस ने कयूम मियाँ का स्वागत किया .नीम के इकलौते पेड़ के नीचे जहां टुटही मेज पर ररा नाई का न्युबाम्बे सैलून चलता है ,आज बंद है क्यों कि आज शनीचर है और शनीचर को सैलून बंद करने का रिवाज है उस मेज पर चदार बिछाई गयी . पंडित नेहरु की तस्वीर तने से सटाकर लगा दी गयी . कयूम मियाँ ने सलामी दी . राष्ट्रगान हुआ और सब ने एक एक कर के तस्वीर पर फूल चढाया . अकेले चिखुरी थे जिन्होंने फूल नहीं चढाया बंदी के चोर खीसे में हाथ डाल कर एक घुंडी सूत निकाले और उसे फैला कर नेहरु की तस्वीर पर चढ़ा दिये . चिखुरी ने बच्चों के लिए बतासा मंगाया .`इस तरह देश के प्रथम प्रधानमंत्री को गाँव ने याद किया .
कयूम मियाँ ने सोहराब को बा बुलंद आवाज में बोला - बरखुरदार ! वो तहमत और बंडी हमें दे दो और ये कपडे सम्हाल कर बक्से में रख देना . इस तरह लबे महफ़िल कयूम मियाँ मौलाना आजाद से अपने मूल पर आकर कयूम मियाँ बने और चर्चा चली गयी पटना तक .
नवल ने डोर ढील दी- चचा कयूम का मन है पटना देखने का . उस जलसे को देखना चाहते हैं जिसमे नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जायगी .
मद्दू पत्रकार ने बीच में टोक दिया - क्या कयूम मियाँ अब ज़माना कहाँ से कहाँ जा पहुंचा है , घर बैठे रहिये टीवी खोल लीजिए और देखिये पटना नीतीस्साब आपके सामने .
कयूम ने लंबी सांस ली - नहीं भाई !हम नेता को देखने की ललक नहीं रखते , हम तो बिहार की जनता और उस जनता के चेहरे को देखना चाहते हैं कि वह क्या चाहती है इस सरकार से , जिसे उसने बहुत जद्दोजेहद के बीच बनायी है . इस सरकार से वह क्या चाहेगी ? गाँव के इस सदन में सन्नाटा छा गया . चिखुरी मुस्कुराए .हम बताते हैं गौर से सुनो .बिहार में यह पहला प्रयोग हुआ है कि गांधी का समूचा बिखरा हुआ परिवार अडतालीस के बाद एक हुआ है . नीतीश , लालू , शिवानंद तिवारी समेत तमाम समाजवादी अपने पुराने घर को जोड़ने में सफल हुए हैं .जिस काम को पंडित नेहरु नहीं कर सके कि समाजवादी जो कांग्रेस छोड़ कर अलग हुए थे वापस अपने घर आ जांय , सरकार और संगठन दोनों की जिम्मेवारी लें लेकिन वे सफल नहीं हो पाए
दूसरी पीढ़ी तक आते आते बिहार ने वह काम कर दिखाया है . आँख बंद करके देखिये तो जब सोनिया गांधी ,लालू और नितीश एक मंच पर थे तो लग रहा था पंडित नेहरु ,जेपी और डॉ लोहिया का मंच लगा है . यह तो हुयी काया की बात . अब इसकी आत्मा को जगाना है . तीनो मिल कर तय करें .तीन बिंदु . ये तीनो पंडित नहरू और डॉ लोहिया के बीच हुए सहमती के बिंदु हैं . एक -बिहार देश को डगर दिखाए कि अब सरकार और संगठन दो अलहदा संस्थान हैं . जो सरकार में होंगें वे संगठन में कोइ ओहदा नहीं रखेंगे . संगठन को पूरा अधिकार होगा कि वह सरकार की आलोचना कर सके और उसके गलत नीति के खिलाफ आवाज उठा सके . संगठन का जनता से सीधे संवाद होगा और उसकी समस्या को सरकार और संगठन मिल कर हल करेंगे . .... लेकिन भिखई मास्टर ने लेकिन लगाया - बिहार में बेरोजगारी , पिछडापन , खस्ताहाल सड़कें , महगाई इस पर क्या होगा ? चिखुरी संजीदा हो गए - सब का इलाज है बस जोखिम लेना होगा . बेरोजगारी इस लिए है कि बिहार में रोजगार नहीं है , रोजगार के लिए बिहार की सरकार और जनता मिल कर लड़े. यह काम क़ानून से नहीं सड़क से शुरू करो . जो उत्पाद छोटी जगहों से , छोटी पूंजी से शुरू हो सकते हैं लेकिन उस पर बड़े घरानों का कब्जा है जनता उसका बहिस्कार करे बिहार की जनता को नौजवानों को प्रोत्साहित किया जाय खुले गाँव गाँव लाधूद्योग . महगाई का इलाज आपके पास है . 'धाम बाँधो ' . पूरा देश देख रहा है बदले हुए चेहरों को नहीं , उन नीतियों को जो कल बिहार शुरू करेगा . महफ़िल संजीदा न हो इसलिए नवल ने मुह खोल दिया . असल हकदार तो महिलायें हैं जिन्होंने बढचढ कर हिस्सा लिया और जमूरों को रास्ता दिखाया . .... मन्नाडे को सुना जाय ... काशी हीले , पटना हीले .....
नहीं बूझोगे तो गच्चा खा जाओगे पासवान और माझी माफिक . देश में हुए अब तक के सारे चुनावों से यह एक अलहदा चुनाव रहा जिसे जनता ने लड़ कर लिया है .
लाजिम है कि हम देखेंगे
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' पटना देखने का मन है .
- अचानक ... पटना कहाँ से आ गया .
-पटना देखे का मन इसलिए बना है कि बहुत दिनो बाद देश का जवान जनतंत्र बिहार में तन कर खड़ा हुआ है .
-जवान जनतंत्र ?
-तो ऐसा बोलो कि गांधी मैदान क जलसा देखने का मन है .?
- न्ना बरखुरदार बहुत जलसा देख चुका हूँ . जनता का मन देखने का मन है .
- तो आज है चौदह नवंबर
- क्या चौदह नवंबर ? सुनते ही कयूम मियाँ चौंके . मियाँ भले वक्त पर याद दिला दिया वरना बहुत बड़ा गुनाह हो जाता . आज पंडित जवाहर लाल नेहरु का जन्म दिन है . आप चलिए चौराहे पर हम आते हैं . कयूम मियाँ ने अपने मझले लड़के सोहराब को आवाज दिया . सोहराब नमूदार हुए . नवल उपाधिया जाते जाते रुक गए क्यों कि साइकिल की चैन उतर गयी रही .नवल ने सोहराब से मदद माँगा कि भाई थोड़ी मदद करदो चेन चढ़ा दो लेकिन कयूम ने रोक दिया - कत्तई नहीं पहले जरूरी काम सुन लो और इसे फटा फट करो , बक्से में अचकन है वह ....पजामा .... खादीवाली गांधी टोपी ... ये निकाल लाओ और नहा के आते हैं . दालान में पंडित नेहरु की जो तस्वीर लगी है उसे उतार कर पोंछ डालो . और तहमत सम्हालते कयूम मियाँ मस्जिद की ओर निकल गए जहां सरकारी नल गड़ा है . इंडिया मार्का . नवल बगैर चैन चढाये पैडल ही साइकिल ठेलते चौराहे कि ओर बढ़ गए . थोड़ी देर बाद गाँव और गाँव के बाजार ने देखा कि लबे सड़क मौलाना अबुल कलाम आजाद चले आ रहे हैं पीछे पीछे बच्चे भारत माता की जय बोल रहे हैं और बीच बीच में पंडित नेहरु की जय हो रही है . कयूम मियाँ जब इस सुराजी लिबास में उतरते हैं तो जनता उनके नाम को बदल कर मौलाना आजाद बना देती है और साल में कई बार कयूम मियाँ मौलाना हो जाते हैं . बड़े बूढ़े जवान सब कयूम मियाँ को आदाब , जय हिंद ,. बंदगी ,सलाम सब मिलता जा रहा है. नयी नवेली बहुए घूँघट की आड़ से कयूम के इस रूप को देखती जा रही हैं . और मियाँ लफार क़दमों से चौराहे तक आ ही गए . लाल साहब चाय की दूकान पर जमी मजलिस ने कयूम मियाँ का स्वागत किया .नीम के इकलौते पेड़ के नीचे जहां टुटही मेज पर ररा नाई का न्युबाम्बे सैलून चलता है ,आज बंद है क्यों कि आज शनीचर है और शनीचर को सैलून बंद करने का रिवाज है उस मेज पर चदार बिछाई गयी . पंडित नेहरु की तस्वीर तने से सटाकर लगा दी गयी . कयूम मियाँ ने सलामी दी . राष्ट्रगान हुआ और सब ने एक एक कर के तस्वीर पर फूल चढाया . अकेले चिखुरी थे जिन्होंने फूल नहीं चढाया बंदी के चोर खीसे में हाथ डाल कर एक घुंडी सूत निकाले और उसे फैला कर नेहरु की तस्वीर पर चढ़ा दिये . चिखुरी ने बच्चों के लिए बतासा मंगाया .`इस तरह देश के प्रथम प्रधानमंत्री को गाँव ने याद किया .
कयूम मियाँ ने सोहराब को बा बुलंद आवाज में बोला - बरखुरदार ! वो तहमत और बंडी हमें दे दो और ये कपडे सम्हाल कर बक्से में रख देना . इस तरह लबे महफ़िल कयूम मियाँ मौलाना आजाद से अपने मूल पर आकर कयूम मियाँ बने और चर्चा चली गयी पटना तक .
नवल ने डोर ढील दी- चचा कयूम का मन है पटना देखने का . उस जलसे को देखना चाहते हैं जिसमे नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जायगी .
मद्दू पत्रकार ने बीच में टोक दिया - क्या कयूम मियाँ अब ज़माना कहाँ से कहाँ जा पहुंचा है , घर बैठे रहिये टीवी खोल लीजिए और देखिये पटना नीतीस्साब आपके सामने .
कयूम ने लंबी सांस ली - नहीं भाई !हम नेता को देखने की ललक नहीं रखते , हम तो बिहार की जनता और उस जनता के चेहरे को देखना चाहते हैं कि वह क्या चाहती है इस सरकार से , जिसे उसने बहुत जद्दोजेहद के बीच बनायी है . इस सरकार से वह क्या चाहेगी ? गाँव के इस सदन में सन्नाटा छा गया . चिखुरी मुस्कुराए .हम बताते हैं गौर से सुनो .बिहार में यह पहला प्रयोग हुआ है कि गांधी का समूचा बिखरा हुआ परिवार अडतालीस के बाद एक हुआ है . नीतीश , लालू , शिवानंद तिवारी समेत तमाम समाजवादी अपने पुराने घर को जोड़ने में सफल हुए हैं .जिस काम को पंडित नेहरु नहीं कर सके कि समाजवादी जो कांग्रेस छोड़ कर अलग हुए थे वापस अपने घर आ जांय , सरकार और संगठन दोनों की जिम्मेवारी लें लेकिन वे सफल नहीं हो पाए
दूसरी पीढ़ी तक आते आते बिहार ने वह काम कर दिखाया है . आँख बंद करके देखिये तो जब सोनिया गांधी ,लालू और नितीश एक मंच पर थे तो लग रहा था पंडित नेहरु ,जेपी और डॉ लोहिया का मंच लगा है . यह तो हुयी काया की बात . अब इसकी आत्मा को जगाना है . तीनो मिल कर तय करें .तीन बिंदु . ये तीनो पंडित नहरू और डॉ लोहिया के बीच हुए सहमती के बिंदु हैं . एक -बिहार देश को डगर दिखाए कि अब सरकार और संगठन दो अलहदा संस्थान हैं . जो सरकार में होंगें वे संगठन में कोइ ओहदा नहीं रखेंगे . संगठन को पूरा अधिकार होगा कि वह सरकार की आलोचना कर सके और उसके गलत नीति के खिलाफ आवाज उठा सके . संगठन का जनता से सीधे संवाद होगा और उसकी समस्या को सरकार और संगठन मिल कर हल करेंगे . .... लेकिन भिखई मास्टर ने लेकिन लगाया - बिहार में बेरोजगारी , पिछडापन , खस्ताहाल सड़कें , महगाई इस पर क्या होगा ? चिखुरी संजीदा हो गए - सब का इलाज है बस जोखिम लेना होगा . बेरोजगारी इस लिए है कि बिहार में रोजगार नहीं है , रोजगार के लिए बिहार की सरकार और जनता मिल कर लड़े. यह काम क़ानून से नहीं सड़क से शुरू करो . जो उत्पाद छोटी जगहों से , छोटी पूंजी से शुरू हो सकते हैं लेकिन उस पर बड़े घरानों का कब्जा है जनता उसका बहिस्कार करे बिहार की जनता को नौजवानों को प्रोत्साहित किया जाय खुले गाँव गाँव लाधूद्योग . महगाई का इलाज आपके पास है . 'धाम बाँधो ' . पूरा देश देख रहा है बदले हुए चेहरों को नहीं , उन नीतियों को जो कल बिहार शुरू करेगा . महफ़िल संजीदा न हो इसलिए नवल ने मुह खोल दिया . असल हकदार तो महिलायें हैं जिन्होंने बढचढ कर हिस्सा लिया और जमूरों को रास्ता दिखाया . .... मन्नाडे को सुना जाय ... काशी हीले , पटना हीले .....
नहीं बूझोगे तो गच्चा खा जाओगे पासवान और माझी माफिक . देश में हुए अब तक के सारे चुनावों से यह एक अलहदा चुनाव रहा जिसे जनता ने लड़ कर लिया है .