Tuesday, September 15, 2015

चिखुरी / चंचल
बिहार खुदे एक जाति है भइये g
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                    '.....जब से इ मुआ आवा है, सब उलटा पुल्टा हो रहा बा .और त और अबकी बार मुह झौंसा बदरा भी दगा दे रहा हउ . भला बताओ सावन भादों में धूल उड़े औ दिन मे दुआरे दुआरे सियार फेकरै . ... बटुली में करछुल डाल कर जन्तुला ने उसे दो तीन बार खड खड़ाया और लगी महगाई को गरिआने .- दाल रोटी पे जिंदगी कटत रही , न उधो क लेना न माधो क देना कोइ बात की फिकर ना रहत रही . इहौ छिनार जा के आसमान पे बैठी है , भला बताओ कभी सोचा रहा कि डेढ़ सौ रुपिया में सेर भर दाल बिकी ? जारे जमाना ! तोर नास होय . पियाज देखो ... हरामी बिसुनाथ बनिया न गाँव देखत बा , न समाज ! सौदा -सुल्फी लेय गयी रही परबतिया क अंगुली छू के फंसावत रहा कि चल कोठरी में तुमका  सेर भर पियाज देब ... महगाई पर जन्तुला चालु रहती लेकिन चूल्हे ने रोक दिया . वह फूंक मार कर आग जलाने के लिए झुकी ही थी कि झबरा ने मौके का फायदा उठाया और थाली से एक रोटी खींच लिया .जन्तुला ने भांप लिया कि झबरे ने रोटी उठा लिया है . जन्तुला ने  अधजली लकड़ी का चैइला उठाया और झबरे पे दे मारा . रोटी वहीं जमीन पे गिर गयी और झबरा पों पों करते भागा .जन्तूला महगाई भूल गयी और लगी कुकुरों को कोसने - मुआ इ दुनो जब से आये हैं जीना हराम कर दिये हैं .. पूरे गाँव क नीद हराम किये बा ....एकरी दाढ़ी में ....उधर से खैय्नी मलते आ रहे नवल उपाधिया ने जन्तूला को सलाम करके खड़े हो गए . गाँव के रिश्ते में जन्तूला नवल उपाध्याय की बुआ लगती हैं ,इस रिश्ते दोनों में खुल कर मजाक होता है . शुरुआत नवल के दुअर्थी सवालों से होता है और जब जन्तुला सवालों से घिर जाती हैं तो सीधे सीधे नवल की माँ बहन अंग प्रति अंग की बनावट से लेकर वह सब कुछ शुरू कर देती हैं जो भारतीय समाज में गोपनीय कर्म मान लिया गया है . गरज यह कि जब जन्तूला शुरू होती हैं तो उसे नवल नहीं सुनते , वो कब के मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए होते हैं उसे सुनते है उमर दरजी ,रामलाल तेली .कनुयी भक्तिन चुन्नी लाल की बकरी नीम की फुनगी . आज फिर वही मौक़ा आ गया . नवल रुके - किसे गरिया रही हो बुआ ? जन्तुला ने फुकती को ठीक किया - इहै दुनो कुकुर एक करिअवा औ एक इ झबरा . इ दुनौ  हलाकान मचाये हैं . आग न देखें न पीछ .. जो भी दिखेगा , मार के  झपट्टा चलि देहें .... नवल और भी सुनते लेकिन आज उन्हें जल्दी है चौराहे पर सब उनका इन्तजार कर रहे होंगे - तो आज कौन रहा बुआ ? झबरा कि करिअवा ? औ कहाँ मारिस ह झपट्टा , आगे कि ...बस इतना काफी था जन्तुला नवल की माँ पर चढ़ बैठी . लगी बखान करने , लेकिन नवल तो जा चुके थे . नवल मुस्कुराते हुए बढे जा रहे थे कि अचानक उनकी टकराहट बहिर दुबे से हो गयी जो हबीब की दूकान पर खड़े चड्ढी सिलवा  रहे थे . बहिर दुबे सुनते कम हैं लेकिन देखने में कोइ कोताही नहीं करते . आधी बात वे सामनेवाले के हाव भाव से जान लेते हैं ,जो नहीं जान्पाते उसे पूछ लेते हैं . - नवल ! का हुआ उधर जन्तुला काहे उखाड़ी हाउ ? झबरा जन्तुला क रोटी लेके भाग्गयल . बहिर दुबे चौंके - कहाँ भोजपुर कहाँ भागलपुर ? इसकी ससुराल तो भोजपुर रही ,एक बार लड़ के आयी तब से यहीं है इसे का मालुम भागल पुर की बात ? नवल धीरे से बुदबुदाए - अब इ बहिर राम के के समुझावे . भाग गयल के भागलपुर समझ लिए हैं .
       नवल जब चौराहे पर पहुचे तो सदन शुरू हो चुका था .चाय की केटली भट्ठी पर , और भट्ठी काले धुएं से घिरी पडी है लाल साहेब बेना हौंक रहे हैं . नवल का स्वागत लखन कहार ने किया - आओ हो नवल भाय कौनो खबर ? काहे नहीं बा , हम कहत रहे झबरा रोटी लेके भाग गयल औ बहिर दुबे लगे भागल पुर पे प्रबचन देने ,किसी तरह से निकल पाए . नवल यह जानते थे कि वे भागलपुर से निकले नहीं हैं ,अब भागलपुर जा रहे हैं . और हुआ वही भागलपुर जेरे बहस हो गया . कीन उपाधिया ब कलम खुद 'पदैसी संघी हूँ ' भागल पुर सुनते ही उछले - भीड़ देखा ? इसे कहते हैं रैली . आया समझ में . उमर ने चिढाया - पटना देखा , इसे कहते हैं रेला . सुनते ही जोर जोर का ठहाका लगा . मद्दू पत्रकार ने संजीदगी से बोलना शुरू किया . इस बार बिहार की लड़ाई आर पार की है . साम्प्रदायिकता और समाजवादियों के बीच . फैसला बिहार को करना है . ... कें ने सवाल उठाया - और कांग्रेस भी तो है . दूसरी बात नीतिश और लालू तो जातिवादी पार्टी चलाते हैं ? चिखुरी जो अब तक चुप थे कीन को घुडकी दी - कुछ जानते भी हो कि बकवास ही करोगे ?कांग्रेस सबदा कौन समाजवादी है . उसकी रसीद देखो सबसे पहले उसमे यही लिखा है समाजवादी समाज के प्रति प्रतिबद्धता .जे पी . डॉ लोहिया . आचार्य कृपलानी , आचार्य नरेंद्र देव बगैर इनके कांग्रेस का इतिहास ही नहीं पूरा होगा . और सुन कीन अपना यह भ्रामक प्रचार बंद कर कि बिजार में जातिबादी राजनीति होती है . यहाँ अगर जातिबादी राजनीति होती तो इसी बिहार से कृपलानी , जार्ज , मधुलिमये यहीं से जीतते रहे हैं यह प्रचार वही करते हैं जो खुद सिकुड़े हुए मन के हैं . दिल्लीमे पूर्वोत्तर राज्यों के बच्चे पर हमला करेंगे . बंबई में बिहारी मारे जांएगे , उन्ही के साथ मिल कर राजनीति करने वाले बिहार पर आरोप लगाएंगे ? बिहार किसी भ्रम में नहीं है . देश का जनतंत्र ज़िंदा रहे यह उसकी कामना है . देखा नहीं उस दिन पटना का रेला ? छल कपट बंद करो समझे कीन .? कीन समझें या न समझे लेकिन नवल समझ गए और गाते हुए निकले मोसो छल किये जाय .... सैयां बेईमान ...

Wednesday, September 9, 2015

बतकही / चंचल
अपन त मंसूबे में ही कंगाल हैं .
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 होत भिनसार    लम्मरदार के दरवाजे पर ,बाप बेटे में बतकही चालू हो गयी और बढते बढते कबाहट तक पहुँच गयी .चूंकी लखन कहार का सदर मोहारा उत्तर तरफ है और उत्तर लम्मरदार क दुआर बिलकुल सामने है इस वजह से लम्मरदार के दरवाजे पर जो कुछ भी होता है उसमे लखन कहार बतौर प्रेक्षक शामिल हो जाते हैं . हूँ हाँ करते कराते सारी खबर लखन को मुफ्त में मिल जाती है . अब उनकी दिक्कत हैं कि उन्हें दो चीज नहीं पचती एक बात और दूसरी बतासा .गरज यह कि ये दोनों ही लखन के प्रिय पदार्थ हैं . होत भिनसार जब सो के उठते हैं तो दो ठो बतासा खायेंगे और लोटा भर पानी पीकर ,लोटा भर पानी लेकर  'मैदान ' चल देते हैं . और गाँव गिराँव की कोइ खबर हो उसे लखन अपने ढंग से पचाते हैं और अपने ढंग से निकालते हैं . आज लम्मरदार के घर की खबर लेकर लखन चौराहे पहुंचे हैं .चौराहे पर बनी लाल साहेब की चाय की दूकान गाँव  की संसद है .कोइ कहीं से भी ,किसी भी जुबान में , कुछ भी बोलने की आजादी रखता है . यहाँ कोइ निष्कासन नहीं है . उमर दरजी ने लखन कहार को उकसाया - आज किस बात पे लम्मरदार उखड़े रहे ? यही तो चाह रहे थे लखन . चालू हो गए .- लम्मरदार को किसी से लोहे की कमानी मिल गयी है . लम्मरदार ने अपने बेटे बोग्गा को कहा कि यह कमानी ले लो और लोहराने ले जाकर एक  कुदाल और दो खुरपी बनवा लो . बम्मई कमा के लौटा बोग्गा बहस पे उतर गया . - दस किलो की कमानी ... कंधा कट जायगा . .. फिर गाँव में इतना हल्बा हथियार कहाँ से मिलेगा कि दो इंच मोटा लोहा कट जाएगा ? बनी बनायी कुदाल ले लो हम पैसा दे देंगे . इसी बात पे कबाहत हो रही है . लम्मरदार का कहना है कि सवाल पैसे का नहीं है पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही रवायत का है . और उससे बड़ा सवाल है जब गाँव के लोहार से किसी किसान का वास्ता ही नहीं रह जायगा तो कृपाल लोहार इस उम्र में कहाँ  जांयगे ?  लखन अभी अपनी रौ में थे कि एक एक करके लोग आना शुरू हो गए . यथोचित अपने अपनी जगह पर बैठ गए और सदन की कार्यवाही राम कृपाल लोहार और उनके उद्यम पर चल पडी . मद्दू पत्रकार ने लम्बी सांस ली . और बोलना शुरू कर दिये . - बहुत बड़ा सवाल है पता नहीं यह मुल्क स्साला कैसे इतने दिन तक ज़िंदा रहता जा रहा है जिस मुल्क के निजाम में उत्पादन करनेवाली जातियों की उपेक्षा हो , अन्हे अछूत तक मान लिया जाय वह देश वह कौम वह उनका अर्थशास्त्र जाहिर है गर्त में जायगा . और पहुच गया है . बाबू साहेब , पंडित जी , सबसे नाकारा बिरादरी लेकिन ये सबसे ऊपर हैं . पंडित जी जूते की दूकान खोलेंगे रीबाक ,उड्लैंड बेचेंगे लेकिन सीताराम मोची का छुआ पानी नहीं पियेंगे . इसी क्रम में लोहार , सुनार , धोबी , कुम्हार , नाई , मुसहर , धरिकार वगैरह आते हैं . लेकिन सब फेल , क्यों कि सरकार की नजर इधर नहीं है . क्यों  कि सरकार आँख नौकरशाही है और आधी  नौकरशाही रतौंधी में है और बाद बाकी दिन अंधरा के मरीज हैं . यहाँ जो जन प्रतिनिधी हैं उन्हें चाहिए कि नौकरशाही के सामने सीधी सदी बात सामने रख कर कहें कि यह करना है , उदाहरण के लिए इससमय एक जुमला बाहर फेंका गया है - स्मार्ट सिटी .सरकार जानती है कि क्या होती है इस्मार्ट सिटी ? नहीं मालुम . नौकरशाही को भी नहीं मालू,म .लेकिन वह कलाम में लग जायगा . दूसरी बात देखो - इस्मार्ट सिटी किसके लिए ? धनपशुओं के लिए , भ्रष्ट नेता के लिए , लुटेरे नौकर के लिए . उस स्मार्ट सिटी में गरीबों का प्रवेस वर्जित रहेगा . वहाँ ठेले नहीं चलेंगे , रिक्से नहीं चलेगे , सब कुछ बना बनाया . बैगन से लेकर बच्चा तक .
-बच्चा ? यह भी स्मार्ट सिटी में बिकेगा . ? लाल साहेब की आँख गोल हो गयी . मद्दू पत्रकार ने ज्ञान आगे बढ़ा दिया - इसे टेस्ट ट्यूब बेबी बोलते हैं . हिंदी में लोटे में गर्भाधान से गुजरे बच्चे की आमद होने लगी है . तुम जिस रूप , रंग , दिमाग ,चाल चलन , चरित्र वाले बच्चे को पसंद करो दूकान पर भी जाने की जरूरत नहीं है सब आन लाइन . लखन कहार ने लंबी सांस खीची - ज्जा रे ज़माना . उस शहर में कुकुर भी होंगे ? सवाल टेढ़ा लगा . मद्दू ने यह कह कर सवाल को बगल कर दिया कि पूछ के बताते हैं . तब तो हम हिंदी पट्टी वाले बहुत पीछे हो जांयगे ? उमर दरजी का सवाल चाय के साथ आ गया . सुराजी कयूम मियाँ से यह सब बर्दास नहीं हुआ तो वे सामने आ गए - इस्मार्ट सिटी के नाजायज नालायक औलादों ! हम देश की आजादी की लड़ाई लड़ते समय यह कहे रहे कि अब मुल्क के साथ गाँव आजाद होगा . यह गांधी का सपना था , कांग्रेस का सपना था . नेहरु, डॉ लोहिया , आचार्य नरेंद्र देव और जे पी का सपना था लेकिन कमबख्त नौकरशाही ने सब बराबाद कर दिया . अभी भी वक्त है उत्तर प्रदेश सरकार इस स्मार्ट सिटी का जवाब दे कि हम सूबे में स्वावलंबी गाँव बनाएंगे . आओ देखो इसे मुल्क कहते हैं . इस गाँव की परिकल्पना नौकरशाही नहीं करेगी . राजनीति तय करके नौकरशाही को कहेगी अब इसेचला कर दिखाओ . हर ब्लाक में एक माडल बनाओ गाँव में जितनी भी पुश्तैनी पेशे से जुड़ी जातिया हैं सब को मुफ्त का आवास , उनके पेशे से जुड़े औजार और सुविधांए . गाँव की जरूरी जरूरियात की चीजे उनके घर में पैदा हों . वही उत्पादक हो और वही विक्रेता और वही खरीद दार . गाँव की मजबूती वहाँ है . देश नहीं दुनिया आयेगी उसे देखने . करना कुछ नहीं है बस पर्यटन , खादी . लघु उद्योग , और सड़क मंत्री बैठ कर सब फैसला कर लें . एक सूबा है राजस्थान उसकी आमदनी बस दो पर टिकी है पर्यटन पर और गाँव पर . याता यात को मुख्य सड़क से थोड़ा कम करके उसे गाँव से शुरू कर दो . यह जवाब होगा इस्मार्ट सिटी का .. नाम लखन देयिया ,मुह कुकुरी का ? अकल से गायब इस्मार्ट सिटी बना रहे हैं ? नवल उपाधिया आँख बंद करके घोखते रहे फिर बुदबुदाए - अह्ने यहाँ विकास की परिभाषा ही गलत चलाई गयी है , कहो मद्दू ? बिलकुल सही .. इस पर कल .