Friday, June 26, 2015

चिखुरी / चंचल
ताला ,जंगला .लालटेन सब ठीक है . आइये !

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      ..... ' इमरजेंसी में हैं .
    निजामुद्दीन इमरजेंसी में हैं यह खबर आग की तरह पूरे गाँव में फ़ैल गयी . हस्बे जैल अर्ज कर दूँ कि गाँव में कोइ भी खबर सीधे सीधे नहीं फैलती वह जिस डगर से चलती है उस डगर की राख- पात , नमक मिर्च सब उस खबर में लिपटते चलते हैं . अब इसी खबर को देखिये निजामुद्दीन चले थे मेले में जाने के लिए गजर से निकले थे तो पूरी तैयारी के साथ जैसा कि कीन उपाधिया ने उन्हें समझाया था - सुनो मान्यवरो ! भाइयो और बहनों ... उमर दरजी ने टोका भी - बहनों एक भी नहीं है आगे बोलो . कीन ने उमर को घुडकी भीभी दी थी - उमर ! बर् बख्त मजाक मत किया करो यह जन हिट का मामला है और सरकार का फैसला है देश नहीं दुनिया इसे मना रही है .... यह एक तरह का स्वास्थ मेला है .रोग कोइ भी हो असाध्य हो मुला ठीक होने की गारंटी है दवा दारू से नहीं बस योगा से ... लाल साहेब ने टोका - योगा नहीं योग बोला जाय . कीन मुस्कुराए हू ब हू अटल जी की तरह - योग देसी चीज है , हमने इसे विदेश तक पहुचाने के लिए इसके आगे एक खड़ी पाई और लगा दी है समझे , आपको करना कुछ नहीं है बस चटाई ले लीजिए . चटाई न हो बोरा , चदरा कुछ भी लेते चलिए जिससे आपको तकलीफ न हो . नवल मुस्कुराए - साथ  में तेल भी ले चलना है कि सरकार देगी ?पब्लिक ने हंस दिया . कीन चुंकी आज मंच पर हैं इसलिए उन्हें इतना तो अख्तियार है ही कि कार्यक्रम में व्यवधान डालनेवाले को हिदायत देकर आगे बढ़ गए .इतनी सी बात हुयी थी और निजामुद्दीन अल सुबह अपनी दरी लेकर उस योग मेला में गए थे . दोपहर को खबर आयी कि निजामुद्दीन तो इमरजेंसी गए अलबता उनकी चटाई सही सलामत वापस आयी बताने वाले तो यह भी बताते हैं कि उनके इमरजेंसी जाने की खबर और चाई एक ही साठ गाँव आयी . लखन कहार का कहना है कि जब गुरु जी आये तो उन्होंने निजामुद्दें को बाहर खड़ा कर दिया और बोले कि आप तहमत पहन कर योग नहीं कर सकते क्यों कि कई आसान ऐसे हैं जिसमे तहमत नहीं चल पायेगा . और चुंकी साथ में एक साध्वी भी हैं इस लिए तो कत्तई नहीं . लेकिन निजामुद्दीन अड् गए और बोले कि -जनाब आप जो समझ रहे हैं उसे हम भी समझ रहे हैं हम तहमत को ऐसा गठिआयेंगे कि आपके हाफ पैंट से ज्यादा किलेबंद रहेगा . और समझौता हो गया . योग शुरू हुआ ही था कि तीसरे नंबर पर गुरूजी ने ऐलान किया कि योगियों अब हम पवन मुक्त करेंगे . और इसी पवन मुक्त पर तहमत ने जो धोखा दिया सो दिया ठीक पीछे चर्र की आवाज आयी लखन कहार ने अपने कान से सुना और पलट कर देखते इसके पहले ही निजामुद्दीन एक तरफ लुढक गए थे आँख बंद थी और जोर जोर से बोल रहे खींच रे नस फंस गयी है तुरते हस्पताल गए . पहले लोग हस्पताल जाते रहे अब इमरजेंसी जाते हैं यह बता कर लाल साहेब ने खुलते पानी में चाय की पट्टी डाल दी. इस तरह चौराहे की सांसद में इमरजेंसी ने प्रवेश लिया .
   भिखईमास्टर ने धोती संभालते हुए पहला सवाल उठाया - आज की क्या खबर है भाई ? मद्दू पत्रकार ने गोलार्ध को बदला . बाएं पर टिके बैठे थे दाहिने पर आ गए . - वही इमरजेंसी . उमर की आँख गोल हो गयी . - इमरजेंसी ? घंटा भर ना भावा कि खबर दिल्ली तक जा पहुँची ? मद्दू ने घुडकी दी - अबे ! ऊ इमरजेंसी नहीं , इ दूसरी इमरजेंसी की बात होय रही बा . इमार जेंसी कई होती है का उमर का दूसरा सवाल था . लाल साहब ने बताना शुरू किया - एक दो की बात करते हो ? जब हम बंबई रहे कई इमरजेंसी देखे रहे . हर हस्पताल में एक इमरजेंसी होती है ... मद्दू मुस्कुराए - लाल्साहेब चाय बनाइये , हम जिस इमरजेंसी की बात कर रहे हैं वह राजनीति की इमरजेंसी है . हस्पताल की नहीं . राजनीति में भी इमरजेंसी होती है यह इस चुराहे के लिए नयी बात रही . और जो नयी बात होती है उस पर लोग चौकते ही हैं - लखन कहार ने कयूम मियाँ को ठोंका - सुन रहे हैं मियाँ राजनीति में भी इमरजेंसी होती है ,आप ततो सुराजी हैं खुदा न खास्ता जदी कभी कुछ हुआ तो आपको इमरजेंसी में जल्दी जगह मिल जायगी . बहस लंबी चली उसे कार्यवाही में नहीं दर्ज कर रहा हूँ जहा से काम की चीज निकली उसे सुना जाय 
राज बब्बर दोस्त बहुत अच्छा है /चंचल

साठ के बाद की बात है . हिंदी पट्टी में भाषा आंदोलन जोर पकड़ने लगा था . उस जमाने में सयु स (समाजवादी युवजन सभा ) चर्चा में आ चुकी थी . उत्तर प्रदेश के सचिव थे मुख्तार अनीस लखनऊ के पानदरीबा में जहां समाजवादी पार्टी का दफ्तर था ,वही बैठक चल रही थी . पीछे कहीं दूर हम बैठे थे . देवब्रत मजुमदार , मोहन सिंह , सत्यदेव त्रिपाठी हर्ष वर्धन . राजनाथ शर्मा वगैरह को पहली बार देख रहे थे . हमारे बगल में हमसे भी ज्यादा सिकुड़ा हुआ एक दुबला -पतला युवजन सभाई और भी था . सकुचाते हुए हम दोनों के बीच बात चीत शुरू हुयी . उसने बताया वह टूंडला से है ,और हमने बताया हम जौनपुर से है . वह टूंडला वाला राजबब्बर निकला और जौनपुर वाला यह खादिम जो राज के जन्मदिन के  बहाने समाजवादी आंदोलन को याद कर रहा है . बात आयी गयी हो गयी . हम काशी विश्वविद्यालय चले गए ,राज घुमते -घामते राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय . तब भी मुलाक़ात नहीं हुयी . हम भाषा आंदोलन में फिर मिले . और मिलते रहे . एक दिन विवेक उपाध्याय जो कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के ही छात्र रहे और बाद में चल कर बहुत बड़े एक्टर बने ( मुख्यमंत्री , महाभोज आदि में दमदार चरित्र , फिल्मों में - जोनूं में मलंग , लगान में वह गंवई जो बाल को फेकने के लियी हाथ को चकर घिन्नी की तरह घुमाता है ) जौनपुर आये हुए थे ,उन्होंने सूचना दी कि राज ने अपने ही निदेशक नादिरा जी से पहले प्यार किया ,फिर बिआह कर लिया . हमने बधाई सन्देश भेजा जिसका जवाब अभी तक नहीं आया ,गो कि  इन दोनों ने मिल कर दो बच्चे भी पैदा किये . जूही और गोर्की . और दोनों ही राज से ज्यादा समझदार और प्यारे . बहर हाल . एक दिन बंबई में था तो पता चला राज ने स्मिता पाटिल से शादी कर ली है . बाकी जो हुआ वह सब को मालुम है . स्मिता की वजह से राज को जो सदमा पहुंचा .बहरहाल यह राज हमारा दोस्त है . कुछ मायने यह हमे लांघ जाता है मसलन अकल में शक्ल में . काम की गंभीरता , लगन और रिश्तों का निर्वहन . राज में जो खूबिया हैं ,हम उसके बरक्स हैं , इस वजह से कई बार राज से चिढता भी हूँ . आज जब राज का फोन आया कि क्या हुआ . ? हुआ यह था कि हमने कईबार फोन मिलाया मिल नहीं रहा था तो छोड़ दिया . फिर उधर से फोन आया कि क्या हुआ ? हमने कहा एक बच्चा पैदा हुआ है उसका जन्मदिन है फिर हम दोनों काफी देर तक गपियाते रहे . सियासत में राज के साठ थोड़ी गडबडी हुयी . यह कमबख्त हिंदी पट्टी में न पैदा हुआ होता ,और अगर कही दक्षिण में होता तो कम से कम सूबे का मुख्यमंत्री तो हुआ ही होता . राजनीति वालों की दिक्कत क्या है कि वे एक्टर पसंद तो करते हैं लेकिन मौक़ा नहीं देना चाहते .राज के साठ यह कई बार हुआ है . एक घटना सुनाऊं .वीपी सिंह जब कांग्रस से छटके तो उन्हें कंधे पर बैठाने वाले राज ही रहे. और जब वी पी सिंह एलाहाबाद से चुनाव लड़ने आये तो उन्कामं कत्तई नहीं था कि उनका प्रचार एक ऐक्टर करे .
कल २५ जून को वीपी सिंह का जन्म दिन है .भाई संदीप वर्मा ने लखनऊ प्रेस क्लब में कार्यक्रम रखा है . समय रहता तो जरूर भाग लेता और डंके की चोट पर कहता कि वीपी सिंह को वीपी बनाने में हम भी शामिल रहे . यकीन न हो तो भाई विभूति नारायण राय ( बड़े पुलिस अधिकारी , और उस समय इलाहाबाद में ही तैनात रहे ) संतोष भारती , डीपी त्रिपाठी या भाई रमेश दीक्षित से दरियाफ्त कर लीजिए . इतनी सफाई इस लिए दे रहा हूँ कि अब समाजवादी भी हमसे चिहुंकने लगा है कहेगा - झूठ पकड़ा गया ' . वीपी से हम चिढते रहे . क्यों कि वे कांग्रेसी थे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे . और हम समाजवादी थे . एक दिन वीपी देश के वित्त मंत्री बने प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी . किसी बात पर दोनों में अनबन हो गयी और वे सरकार से बाहर कर दिये गए . अचानक वीपी को याद आया कि गुमनामी में  मरने से अच्छा है कोइ खेल किया जाय और वह एक पन्ना खीसे में डाल कर निकल पड़े कि बोफोर्स तोप में दलाली हुयी उसका सबूत हमारे पास है बस विरोधी दलों को एक मसाला मिल गया . और वीपी सिंह एलाहाबाद के चुनाव में उतर गए . संतोष भारती उनके साठ लग लिए . संतोष जी की चौथी दुनिया वीपी सिंह का मुखपत्र बन गया . एक दिन संतोष भारती ने हमे उठाया और लेजाकर वी पी के घर गिरा दिया . यह हमारी पहली मुलाक़ात थी . और हम सीधे किचेन में पहुँच गए , जहां संजय सिंह , संतोष भारती ,योगेश मिश्रा पहले से गिरे पड़े थे . उसमे एक हम भी शामिल हो गए . सबसे पहले हमने यह काम किया कि उनके पुश्तैनी नाचघर जिसका नाम था ऐश महल जहां वी पी सिंह विश्राम करते थे उसपर कागद चिपकवा कर नाम को ढंका . क्यों कि तब तक बाहर नारा लगने लगा था - राजा नहीं फ़कीर है , देश की तकदीर है . सीता जी उनकी धरमपत्नी और उनकी बहन राजा प्रतापगढ़ की पत्नी निहायत ही जीवंत और हंसमुख रही कभी कोइ बोर नहीं होने पाया . जिस दिन नाम करण था उसके दो दिन पहले संजय सिंह ने कहा यार किसी तरह जार्ज साहेब को बुलाओ उनका रहना जरूरी है . जार्ज से बात हुयी किसी तरह आने को राजी हुए गो कि देश के तमाम  गैर कांग्रेसी नेता प्रयाग में कुम्भ लगाए बैठे थे . जार्ज ने जाते समय हमारी चप्पल भी लेते गए , इस पर लिख चुका हूँ .  शाम तक ऐश महल में इन्तजार होता रहा कि अमिताभ बच्चन ने पर्चा भरा कि नहीं . और जब यह तय हो गया कि अमिताभ नहीं आ रहा है उसकी जगह पर शास्त्री के लड़के को कांग्रेस उतार रही है तो ऐश महल में एक नया बखेड़ा शुरू हो गया . वीपी फ़ैल गए कि हम चुनाव ही नहीं लड़ेंगे . यह कैसे सालता इसे कल 
कल बड़ी बक बक हुयी . इमरजेंसी को लेकर . एक चैनल ने फोन किया - आप इमरजेंसी में जेल गए थे ?
- जी गया नहीं था , ले जाया गया था .
- कैसी रही जेल यात्रा ?
- सुखद रही
- यातना दी गयी थी ?
- जी नहीं .
- क्या हुआ था ?
- सेवा हुयी थी बिलकुल दामाद की तरह
- क्या बात कर रहे हैं , सब जानते हैं सारे नागरिक अधिकार बंद थे प्रेस पर प्रतिबन्ध था . लोग बधिया किये जा रहे थे ..
- यह सब कहाँ हुआ था भाई ?
- इसी देश में .
- हम इस देश में कहाँ थे ? हम तो जेल देश में थे . वहाँ कोइ नागरिक अधिकार नहीं बंद था . गरियाते हुए गए थे ,दिन भर अपना नागरिक अधिकार भोगते ,कोइ रोक टोक नहीं थी , अंडा से सुबह का जलपान करते शाका हारी मंशा हारी भोजन उठाते दंड बैठक करते बैडमिन्टन खेलते संघी जब रोता तो उसे दिलासा देते . और भी बहुत कुछ . ताला जंगला लालटेन सब ठीक रहा . चौवन किलो में गए थे अट्ठावन में बाहर निकले भाई तुमने गलत जगह नंबर मिला लिया है इमरजेंसी पर कार्यक्रम देना है तो उनसे पूछो जिन्होंने इमरजेंसी देखा था , जिया था .यह वो लोग हैं जो बाहर थे ,धूमिल को सुनिए -
      लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो , उस घोड़े से पूछो
     जिसके मुह में लगाम है
लेकिन एक बात बताओ ये चालीस साल बाद क्यों चीख रहे हो इमरजेंसी ?
- नयी पीढ़ी को बताने के लिए .
- परले दर्जे के मूर्ख हो . जिस पीढ़ी ने नागरिक अधिकार को लंगडाते हुए तक न देखा हो , जिसने बधिया होना जाना ही न हो , जिसे  बात करने पर पाबंदी तक की जानकारी न हो उसे क्या बताओगे ? वह चैनल बदल कर बिद्याबालन के पास चला जायगा .पत्रकारिता की पूंछ उखाडोगे तो पिछवाड़ा खंडहड हो जायगा . बात माफी नामा पर करो कि वक्त आता है तो किस तरह झुक कर सलाम किया जाता है .

Wednesday, June 24, 2015

कल २५ जून को वीपी सिंह का जन्म दिन है .भाई संदीप वर्मा ने लखनऊ प्रेस क्लब में कार्यक्रम रखा है . समय रहता तो जरूर भाग लेता और डंके की चोट पर कहता कि वीपी सिंह को वीपी बनाने में हम भी शामिल रहे . यकीन न हो तो भाई विभूति नारायण राय ( बड़े पुलिस अधिकारी , और उस समय इलाहाबाद में ही तैनात रहे ) संतोष भारती , डीपी त्रिपाठी या भाई रमेश दीक्षित से दरियाफ्त कर लीजिए . इतनी सफाई इस लिए दे रहा हूँ कि अब समाजवादी भी हमसे चिहुंकने लगा है कहेगा - झूठ पकड़ा गया ' . वीपी से हम चिढते रहे . क्यों कि वे कांग्रेसी थे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे . और हम समाजवादी थे . एक दिन वीपी देश के वित्त मंत्री बने प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी . किसी बात पर दोनों में अनबन हो गयी और वे सरकार से बाहर कर दिये गए . अचानक वीपी को याद आया कि गुमनामी में  मरने से अच्छा है कोइ खेल किया जाय और वह एक पन्ना खीसे में डाल कर निकल पड़े कि बोफोर्स तोप में दलाली हुयी उसका सबूत हमारे पास है बस विरोधी दलों को एक मसाला मिल गया . और वीपी सिंह एलाहाबाद के चुनाव में उतर गए . संतोष भारती उनके साठ लग लिए . संतोष जी की चौथी दुनिया वीपी सिंह का मुखपत्र बन गया . एक दिन संतोष भारती ने हमे उठाया और लेजाकर वी पी के घर गिरा दिया . यह हमारी पहली मुलाक़ात थी . और हम सीधे किचेन में पहुँच गए , जहां संजय सिंह , संतोष भारती ,योगेश मिश्रा पहले से गिरे पड़े थे . उसमे एक हम भी शामिल हो गए . सबसे पहले हमने यह काम किया कि उनके पुश्तैनी नाचघर जिसका नाम था ऐश महल जहां वी पी सिंह विश्राम करते थे उसपर कागद चिपकवा कर नाम को ढंका . क्यों कि तब तक बाहर नारा लगने लगा था - राजा नहीं फ़कीर है , देश की तकदीर है . सीता जी उनकी धरमपत्नी और उनकी बहन राजा प्रतापगढ़ की पत्नी निहायत ही जीवंत और हंसमुख रही कभी कोइ बोर नहीं होने पाया . जिस दिन नाम करण था उसके दो दिन पहले संजय सिंह ने कहा यार किसी तरह जार्ज साहेब को बुलाओ उनका रहना जरूरी है . जार्ज से बात हुयी किसी तरह आने को राजी हुए गो कि देश के तमाम  गैर कांग्रेसी नेता प्रयाग में कुम्भ लगाए बैठे थे . जार्ज ने जाते समय हमारी चप्पल भी लेते गए , इस पर लिख चुका हूँ .  शाम तक ऐश महल में इन्तजार होता रहा कि अमिताभ बच्चन ने पर्चा भरा कि नहीं . और जब यह तय हो गया कि अमिताभ नहीं आ रहा है उसकी जगह पर शास्त्री के लड़के को कांग्रेस उतार रही है तो ऐश महल में एक नया बखेड़ा शुरू हो गया . वीपी फ़ैल गए कि हम चुनाव ही नहीं लड़ेंगे . यह कैसे सालता इसे कल 

Tuesday, June 23, 2015

 बात बतकही
भाजपा सियाह खाने का ऊंट है /चंचल
     '........ अगर आप शतरंज के खेल  से वाकिफ नहीं हैं तो सियासत में मत आइये , जनहित के और भी कई काम हैं वहीं कहीं अपने आपको फंसा लीजिए . मसलन मिट्टी ,गिट्टी,लोहा या कोयला  और बालू की खदान में जुट जाइए और फिर आइये सियासत में . एक दिन हम सूबों की सियासत देख रहे थे . जनाब लोग जो हमारी रहबरी करते है ,मोटी रकम उठाते हैं और हमारे सवालों को सूबे की पंचाईत  में उठाने के जिम्मेवारी लेते हैं वो अतिरिक्त समय में और विकास के लिए ठेकेदारी भी करते हैं .कहते हुए भीखइ मास्टर ने चुप्पी साध ली क्यों कि इस मौजू विषय पर बोलनेवाले कई और मुह रहे जो खुले पड़े है बस मौक़ा चाहिए . यह न सांसद है विधान सभा यह गाँव की सांसद है जो सलीके से चलती है और किसी को अपनी वाजिब बात्काहने का मौक़ा देती है यह बात दीगर है कि यह बहस तभी तक जारी रहती है जब तक के लाल साहेब चाय न परोस दें . बाज दफे तो लाल साहेब जान बूझ कर चाय छानने में देर करते हैं कि चाय पीनेवालों का कोरम तो पूरा हो जाय . आज भी ऐसा ही रहा सो लाल साहेब को खुद सवाल उठाना पड़ा - ये बताओ पंचो ! यह राजनीति क्या होती है ? इस एक सवाल ने सब को घेर लिया . लेकिन मद्दू पत्रकार ( पूरा नाम है महंथ दुबे पुराने जमाने के है . उन दिनों 'दिनमान ' सीधे सवालों की कठिन पत्रिका मानी जाती थी और उसको पढ़नेवाले पत्रकार लोग ज्यादा होते थे एक दिन उन्होंने देखा कि पत्रकार चाहे तो अपना नाम सिकोड़ ले और विषय को भरपूर जगह दे दे इसी में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपना नाम स द स लिखा तो महंथ दुबे भी मदू हो गए जो कालान्तर में मद्दू के नाम से जाने गए ) को कुछ न कुछ तो समझाना ही था - राजनीति ,राजनीति होती है . इसमें लोंगो का होना जरूरी होता है यह बगैर आदमी के नहीं चल सकती चुंकी इसे चलना पड़ता हैतो लंबे समय तक यह पैदल चली . इस राजनीति को गांधी , नेहरु , डॉ लोहिया , अच्युत पटवर्धन , आचार्य नरेंद्र देव जैसे लोग पैडल चले या सरकार की गाड़ी से चले ,टिकस लेकर . बाद के लोगों ने रवायत बदली और अपनी गाड़ी से अपनी सेना के साथ चलने लगे .आज के जमाने राजनीति संदूक और बन्दूक के साथ चलती है . इसे कहते हैं राजनीति . समझे . ? लम्मरदार ने टोका - एकबार हमने डॉ लोहिया को सुना था जब वे पंडित नेहरु के खिलाफ फूलपुर से चुनाव लड़ रहे थे बोले थे राजनीति लोगों को बेहतर जिंदगी बसर करने का सलीका है . मद्दू को राहत मिली - चलिए इसे भी मान लेतेहैं . तो यह हुआ राजनीति . यह राजनीति तीन तरह की होती है .  एक - राजनीतिक .दो - गैर राजनीतिक .तीन राजनीति विरोधी . इन तीनो में एक बात साफ़ होती है कि एक तरह की सोच रखनेवाले लोग एक गिरोह बनाते हैं . यह गिरोह अपने काम काज की वजह से तीन खांचे खड़ा होता है . आज हम इस तीसरे गिरोह जिसे हम संघ के नाम से जानते आये है की बात करेंगे . और चर्चा इस गिरोह पर चल पडी . - सुनो पंचो ! एक होते हैं जो आगे देखू होते हैं ,असल में ये ही राजनीतिक होते है . जैसे कांग्रस और उस घर से अलगौझी करके बाहर निकले समाजवादी . दूसरे - अगल बगल देखू . चीं में क्या हो रहा है रूस में क्या हो रहा है उसके मुताबिक़ चलते फिरते हैं इसमें साम्यवादी आते है . और तीसरे हैं जो पीछे देखते है . इन्हें देखो तो ये बहुत मजेदार गिरोह है . अतीत जीवी हैं . बाप घी खाए रहा पहुंचा सूँघो के तर्ज पर चलता है . देश में दूध और घी की नदिया बहती थी , हम नदियों में घी बनाने की तरकीब बताएँगे . पहले जमींदारी वापस लाओ . मंदिर बनाओ . घर तो बनते रहेंगे . यह एक गोत्र का देश रहा ,इसे उसी गोत्र के पास भेजो . एक गोत्र , एक झंडा , एक नेता . बस एक और एक . इसके अलावा सब लफ्फाजी . और अगर लफ्फाजी ही करनी है तो उतरो मैदान में . हम साबित करदेंगे कि  दुनिया में हमसे बड़ा कोइ लफ्फाज नहीं . तक्षशिला पाकिस्तान में नहीं नालंदा के बगल बिहार में सुशील मोदी के घर में है . देखने के लिए आँख चाहिए . तालियों की गडगडाहट बता रही है हम कितने बलवान थे और फिर होंगे . भूख , महगाई , काला धन ? कौन चीख रहा है ? बंद रखो जुबान . हम बताते हैं . भूख लगे तो योगा करो . किसने टोंका ?  योग पुरानी चीज है , उसमे 'आ ' लगाकर चलाओ पश्चिम में में खूब चलेगा . तुम पवनमुक्त आसान करो पूरे जोर से . हम अपने पड़ोसी को बताएँगे कि आँख मत दिखाओ जब इस आसन में इतनी आवाज है तो ज़रा तोप के बारे में अंदाज लगाओ . काला धन ? इसका जवाब ऐसे वक्त पर देने के लिए ब कायदे कई रफूगर होते है मसलन जेटली साब ! आप बोलिए हमे देश में बोलने की मोहलत नहीं है . और वो एलान रफू हो गया - किस सरकार ने कहा था हम काला धन लायेंगे ? वाकई वो बयां तो सरकार बनाने के लिए था , बनने कके बाद थोड़े ही .इसे कहते हैं जुमला . भारतीय जुमला पार्टी . समझे कि नहीं ? नवल उपधिया जो इस सांसद के स्थायी सदस्य है ऐसे सुन रहे थे ,जैसे सत्नारायण  की कथा . आखीर में बोले - हे देवता !इ सब कब तक झेलना पड़ेगा ? यह तुम्हारी अपनी खाल की मोटाई पर है ,, वरना तुम चाहो तो कल बदल सकता है . डॉ लोहिया को सुना है न ? एक बार फिर सुन लो - ज़िंदा कौम पांच साल तक इन्तजार नहीं करती .

 आपातकाल ,आफतकाल
चंचल
       आपातकाल लगा  २५ जून १९७५ को और हम गिरफ्तार हो गए .ठीक उसी तरह जैसे जे पी . चंद्रशेखर , मोहन धरिया , मधुलिमये समेत वे तमाम नेता जो श्रीमती  इंदिरा गांधी का ' तख्ता पलट ' रहे थे . इनमे समाजवादी , संघी , अकाली दल वगैरह शामिल रहे . १८ जनवरी १९७७ को श्रीमती इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि छठी लोक सभा का चुनाव मार्च में होगा . और हम लोग मार्च में जेल से छूट गए . इतनी सी बात है इसे कहते हैं आपातकाल . इमरजेंसी . क्यों लगा आपातकाल ? इसे एक सूत्र में कहा जाय तो देश की आजादी के बाद यह पहली लड़ाई थी जो सत्ता शक्ति और जनशक्ति के बीच हो रही थी .जनतंत्र की खूबी है कि वह इन दोनों ,सत्ताशक्ति और जन शक्ति के तनाव पर ज़िंदा रहती है . अगर जनशक्ति जीतती है तो अराजकता आती है और अगर सत्ताशक्ति जीतती है तो तानाशाही आती है . यहाँ दोनों जीते हैं . पहले जन जीता , फिर सत्ता जीती . इस जन शक्ति की शुरुआत की कहानी बहुत मजेदार है . इसके लिए एक विषयान्तर ले रहा हूँ .
      .७७ में जेल से छूट  कर आया था , उन दिनों एक पत्रिका निकलती थी 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान ' मनोहर श्याम जोशी इसके संपादक थे . उनके कमरे में गया तो वहा हमारे मित्र रमेश दीक्षित पहले से ही मौजूद थे . देखते ही जोशी जी ने सवाल पूछा - कैसी रही जेल यात्रा ? हमने कहा सुखद . दूसरा सवाल था - आपातकाल से लड़ कर आये हो क्या अनुभव् रहा ? हम आपातकाल से कहाँ लड़े ? हम तो समोसा की लड़ाई में लगे रहे .जोशी जी चौंके . - समोसा ?हमने कहा जी हाँ . आपातकाल तो २५ जून को लगा और सारे नेता उसी रात पकड़ लिए गए तो लड़ा कौन ? अकेले  जार्ज फर्नांडीस और उनके २५ साथी थे जो आपातकाल से लड़े हैं बाद बाकी सब समोसावाले हैं . फिर पूरी बात हुयी . उन्होंने कहा इसे लिख दो . हमने हामी भर ली और अक्सर जो हम जैसे कई अन्य उनके साथ करते आये रहे वही किया - पहले कुछ नगद दे दीजिए . ( जोशी जी के साथ हम लोगों के ऐसे ही रिश्ते रहे . जब भी हम और हमारे जैसे उनके दफ्तर में पहुँचते जोशी जी जान जाते कि क्यों आया है . कई बार तो बगैर कुछ बात हुए या बगैर मागे जेब में हाथ दाल कर नोट निकालते और बढ़ा देते - लो और जाओ अभी लिखना है . जोशी जी मुस्कुराए -जिंदगी भर समाजवादी ही बने रहोगे ?बात वही खत्म नहीं हुयी . यह बात हमने मधुजी को बता दिया कल जेल पर लिखने जा रहा हूँ.मधुजी से दो बातों के लिए डाट खाया एक - बोले अभी पार्टी बनी नहीं और लगे तोड़ने का उपक्रम करने ? (उन्ही मालुम था जेल में बंद संघी किस तरह रहे हैं ) दूसरा - तुम किस कांग्रेसी के सामने क्रांतिकारी बनोगे ? सब के सब जेल काटे हुए हैं उसी में इनका परिवार तक बर्बाद हो गया .और लिखना बंद हो गया . इसकी जगह पर हमने जोशी जी को ' .... और  टिकट बंट गया ' दिया और छपा . जो उसवक्त नहे लिख पाया था , आज उसी को याद कर रहाहूँ .
     ७३ में अहमदाबाद के छात्रावासों में मिलनेवाला समोसा व अन्य खाद्य सामग्री अचानक महगी हो गयी वजह थी कि मूंगफली का तेल अचानक महगा हो गया था . इसके खिलाफ छात्रों ने आंदोलन शुरू किया . मुख्यमंत्री थे चिमन भाई पटेल और छात्र आदोलन का नेतृत्व कर रहे थे हमारे मित्र उमाकांत माकड और मनीषी जानी . आंदोलन बढ़ता गया . छात्रों ने विधायको से इस्तीफे लिए . उनके घरों को घेर कर इस्तीफे दिल्वाये . नतीजा हुआ कि विधान सभा में कोरम के अभाव में स्पीकर ने विधान सभा भंग कर चुनाव कराये जाने की माग की जिसे राज्यपाल ने स्वीकार कर लिया . जून ७५ में गुजरात का चुनाव हुआ और कांग्रेस पराजित हुयी . बाबू भाई पटेल मुख्यमंत्री बने . कांग्रेस को दूसरा झटका लगा १२ जून को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दिया और छ साल तक चुनाव से वंचित रहने का फैसला सुनाया . इसी बीच रेल हड़ताल हुयी जिसने कांग्रेस सरकार की चूलें हिला दी . जार्ज फर्नांडिस इसके हीरो थे . अन्तः आंतरिक सुरक्षा का हवाला देते हुए इंदिरा सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी .और आंदोलन से जुड़े तमाम नेताओं को रात में ही गिरफ्तार कर लिया गया .इस में कांग्रस के वे लोग भी शामिल रहे समाजवादी भूमि से आये थे और जिन्होंने १९६९ ,नेकीराम नगर कांग्रस में जब श्रीमती इंदिरा गांधी कांग्रस से निकाली गयी तोयही समाजवादी लोग थे .इनमे चन्द्र शेखर . मोहन धारिया , कृष्णकांत . अर्जुन अरोड़ा और रामधन प्रमुख थे .
      जेल यात्रा का विस्तार बहुत जगह लेगा लेकिन संक्षेप में - जेल को समाजवादियों और अकालियों ने हँसते हँसते काटा क्यों कि ये आदी रहे . संघ के लिए दिक्कत हुयी क्यों कि उनका वर्गीय चरित्र जेल काटने का नहीं है लिहाजा उन्होंने माफी नामा लिखा कि संघ को जेल के बाहर किया जाय और संघ के गण लोग इंदिरा गांधी के बीस सूत्रीय और संजय के छाए सूत्रीय कार्यक्रम को आगे बढायेंगे . लेकिन श्रीमती गांधी ने उनके माफीनामे पर कोइ प्रतिक्रया भी भी दी . सच कहा जाय तो महज दो लोग आपात से लड़े है. एक जार्ज फर्नांडिस जिसे इतिहास में बडौदा डायनामाईट के नाम से जाना जाता है और दूसरे अकाली दल के लोग . जत्थे में निकलते थे और आपातकाल के विरोध में नारा लगाते थे , गिरफ्तारी देते थे .