Wednesday, February 26, 2014

बसंत ,शिवरात्रि ,खजुराहों और कालिदास 
चंचल 
       फाल्गुन बदी चतुर्दसी जब बसंत अपने सम्पूर्ण वेग के साथ उफान पर होता है वातावरण मेमंज्री की  मादक खुशबू हवा के झोंके के साथ मन को सहला रही होती है ,बागों में कोयल की कू चतुर्दिक गूंजती है ,नदी के किनारे बैठा पपीहा , उसपर बैठी अपनी प्रियतमा को आवाज दे रहा होता है और बन में मोर पिहंकता है तब शिव का योग उनकी साधना ,समाधि भंग होती है .  ...नेत्र खुलते ही शिव स्व से निकल समष्टि में विचरण करने लगते हैं . कोमल लताएँ ठूठ दरख्तों का आलिंगन कर रही हैं ,बगैर किसी परिधान के . नयी कोपलें निकल आती हैं ठूंठ गांठो से . मदार के फूल उर्ध्गामी हुए नीले आसमान में सफ़ेद छीट का बिम्ब बनाए बैठे हैं . कचनार की अधखिली कली खुलने को आतुर है . पोखरे के शांत जल को बस्वारी के बांस आहिस्ता आहिस्ता सक्लाते हैं .पोखर में कंपन उठता है . मीन मुह खोले मेहदी के झरे फूल को लील लेना चाहती है . शिव चकित हैं प्रकृति के इस बदलाव पर . त्रिनेत्र से देखते हैं . किसने किया यह सब जो उद्वेलित कर रहा है समूचे ब्रह्माण्ड को ? उत्तर मिलता है - 'काम ' आये हैं शिव को जगाने . काम प्रवेश लें इसकी सूचना लेकर बसंत आया है माघ पंचमी को ही . शिव को काम पर गुस्सा आता है और उसे भष्म कर देते हैं . काम की पत्नी रति विलाप करती है . विरह की पीड़ा बहुत दुःख दाई होती है . रति के विलाप से शिव भी हिल जाते हैं .और काम को अमरत्व देते हैं . यह अनंग होगा लेकिन सब में समान तीब्रता से ज़िंदा रहेगा . यह प्रकृति का स्थायी भाव होगा रति . विलाप मत करो . रति काम की पत्नी है . सौंदर्य की पराकाष्टा . दक्ष की पुत्री है . गौरी की सगी बहन . गौरी शिव की ब्य्ह्ता . कथा बहुत लंबी है . आज ही के दिन शिव और पार्वती का मिलन होता है . आज की रात को शिव और पार्वती रतिदान करते हैं .  प्रकृति और पुरुष का मेल . श्रृष्टि की संरचना . प्रथम आलिंगन होता है . कालिदास कावर्णन देखिये 'कुमार संभवंम में . कभी वक्त मिले तो सुधी पाठक जन इस प्रथममिलन की यात्रा को जरूर देखें . और अगर सजीव चित्रण देखना हो तो खजुराहों देखें . रतिबंध की अनोखी प्रस्तुति . मूर्तिशिल्प का अदभुत प्रस्तुतीकरण . आज सब याद आ रहे हैं . हम पाखंडी लोग फूल लिए घूम रहे हैं. शिव बनो ... जहां तक बंन सके उतना तो बनो . पार्वती तुम्हारे पास है . आलिंगन दो . आज दोनों के मिलन का दिन है . अस्तु 

Sunday, February 9, 2014

बंबई ....बरोबर 
चंचल 
      बम्बई से न्योता रहा .की यम कालेज के व्यवस्थापक मुन्ना  पांडे का . जाने का मन नहीं था . इसकी दो वजहें हैं .एक- सामान ढोने का मन नहीं करता .दो -शहर से खौफ लगता है ,इसलिए टाल मटोल करता रहा लेकिन मुन्ना भी तो वही जिद पर अड़े रहे और मनीष जी ने मजबूर कर दिया कि 'चलना ही है ' ..भारतीय की एक पुश्तैनी सोच रही है जो बदस्तूर चली जा रही है एक पंथ दो काज वाली . सोचा लगे हाथ 'बहुधंधी ' 'किस्बत '(किस्बत कहे तो पुराने जमाने में नाइयों के पास टिन का एक डिब्बा हुआ करता था जिसमे मूड़ने के लिए अस्तूरा ,नह काटने के लिए नहन्नी और जुल्फ सवारने के लिए कंघी हुआ करती थी . भिगोने के लिए कटोरी भी .आज इस नए जमाने में जब कि हर समझदार संभ्रांत शहरी नाईगिरी करने पर आमादा है उसके पास भी एक किस्बत है जिसे नयी भाषा में लैप-टाप कहते हैं . इसमें भी सारे औजार हैं . इसे भी जो देखता है उसकी हजामत बढ़ जाती है ) भी ठीक करा लूंगा . चुनांचे हमने राजू (राणा सिंह ) को इसकी सूचना दे दी और चला मुरारी हीरो बनने . कम से कमतर कपड़ों में रहने की आदत पड  गयी है .खादी सिद्धांतः पहनता हूँ . खादी पहनने के पीछे सादगी और स्वच्छता का मर्म छिपा होता है . इसे नील टीनोपाल , कलफ और इस्तरी अपवित्र करते हैं इस लिए जो जैसा मिला उसे पहनता हूँ . डंके  की  की चोट पर . झोला उठाया और चल दिये ......
        लाल बहादुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे बनारस को देख कर कोफ़्त होती है . वहाँ न ही शास्त्री की सादगी है ,न ही काशी की ठसक . नकली न्यूयार्क की भोंडी नक़ल की इमारत है .कम से कमतर देसी उपस्थिति . खानपान में वही खराब खाद्य प्लास्टिक लपेटे ,एक का तीन में बिकता धंधा . इन 'हरामखोर ' ठेकोदारों और 'रिश्वत बाज ' नौकरशाहों को इतनी भी अकल नहीं है कि जिन विदेशियों को लुभाने के लिए तुम सुविधा दे रहे हो और उन्हें बुला रहे हो वो तुम्हारी इन इमारतों को देखने नहीं आते . वो तो पहले से ही डिब्बा बंद खाना ' से अघाए और ऊबे लोग हैं . उन्हें हिन्दुस्तान में तो हिन्दुस्तान दिखाओ . इंडियन एयर लाइन की उड़ान भरा तो उसमे राहत मिली . भारतीय परिवेश में साडियों में लिपटी महिलाओं की मुस्कुराती छवि से मन खिला . और इसी खिले मन से मुम्बई पहुचा .
  हर शहर की अपनी खुशबू होती है . उसका मिजाज होता है और उसके हवा और पानी की अलग तासीर होती है . हवाई अड्डे के बाहर निकलते ही बम्बई हमसे लिपट गयी . यह उसकी अदा है . धूप में ताप है पर छाँव में खुनक . लगता है कोइ आँचल से बना हिला रहा है आहिस्ता आहिस्ता . क्यों राजू ?....बरोबर ! वह मुस्कुरा दिया . और हम बरोबर हो गए . मुन्ना तिवारी कल शहर में मिलेंगे ,बोल कर विदा हो लिए और हम मुन्ना पांडे के साथ राजू के घर सातवें माले पर मराठी नाश्ते के बाद कल्याण की तरफ रवाना हो गए . कल्याण बम्मई में नहीं है . एक जिला है . बाएं भिमंदी है दायें कल्याण . और हम कल्याण में हैं .