बसंत ,शिवरात्रि ,खजुराहों और कालिदास
चंचल
फाल्गुन बदी चतुर्दसी जब बसंत अपने सम्पूर्ण वेग के साथ उफान पर होता है वातावरण मेमंज्री की मादक खुशबू हवा के झोंके के साथ मन को सहला रही होती है ,बागों में कोयल की कू चतुर्दिक गूंजती है ,नदी के किनारे बैठा पपीहा , उसपर बैठी अपनी प्रियतमा को आवाज दे रहा होता है और बन में मोर पिहंकता है तब शिव का योग उनकी साधना ,समाधि भंग होती है . ...नेत्र खुलते ही शिव स्व से निकल समष्टि में विचरण करने लगते हैं . कोमल लताएँ ठूठ दरख्तों का आलिंगन कर रही हैं ,बगैर किसी परिधान के . नयी कोपलें निकल आती हैं ठूंठ गांठो से . मदार के फूल उर्ध्गामी हुए नीले आसमान में सफ़ेद छीट का बिम्ब बनाए बैठे हैं . कचनार की अधखिली कली खुलने को आतुर है . पोखरे के शांत जल को बस्वारी के बांस आहिस्ता आहिस्ता सक्लाते हैं .पोखर में कंपन उठता है . मीन मुह खोले मेहदी के झरे फूल को लील लेना चाहती है . शिव चकित हैं प्रकृति के इस बदलाव पर . त्रिनेत्र से देखते हैं . किसने किया यह सब जो उद्वेलित कर रहा है समूचे ब्रह्माण्ड को ? उत्तर मिलता है - 'काम ' आये हैं शिव को जगाने . काम प्रवेश लें इसकी सूचना लेकर बसंत आया है माघ पंचमी को ही . शिव को काम पर गुस्सा आता है और उसे भष्म कर देते हैं . काम की पत्नी रति विलाप करती है . विरह की पीड़ा बहुत दुःख दाई होती है . रति के विलाप से शिव भी हिल जाते हैं .और काम को अमरत्व देते हैं . यह अनंग होगा लेकिन सब में समान तीब्रता से ज़िंदा रहेगा . यह प्रकृति का स्थायी भाव होगा रति . विलाप मत करो . रति काम की पत्नी है . सौंदर्य की पराकाष्टा . दक्ष की पुत्री है . गौरी की सगी बहन . गौरी शिव की ब्य्ह्ता . कथा बहुत लंबी है . आज ही के दिन शिव और पार्वती का मिलन होता है . आज की रात को शिव और पार्वती रतिदान करते हैं . प्रकृति और पुरुष का मेल . श्रृष्टि की संरचना . प्रथम आलिंगन होता है . कालिदास कावर्णन देखिये 'कुमार संभवंम में . कभी वक्त मिले तो सुधी पाठक जन इस प्रथममिलन की यात्रा को जरूर देखें . और अगर सजीव चित्रण देखना हो तो खजुराहों देखें . रतिबंध की अनोखी प्रस्तुति . मूर्तिशिल्प का अदभुत प्रस्तुतीकरण . आज सब याद आ रहे हैं . हम पाखंडी लोग फूल लिए घूम रहे हैं. शिव बनो ... जहां तक बंन सके उतना तो बनो . पार्वती तुम्हारे पास है . आलिंगन दो . आज दोनों के मिलन का दिन है . अस्तु
चंचल
फाल्गुन बदी चतुर्दसी जब बसंत अपने सम्पूर्ण वेग के साथ उफान पर होता है वातावरण मेमंज्री की मादक खुशबू हवा के झोंके के साथ मन को सहला रही होती है ,बागों में कोयल की कू चतुर्दिक गूंजती है ,नदी के किनारे बैठा पपीहा , उसपर बैठी अपनी प्रियतमा को आवाज दे रहा होता है और बन में मोर पिहंकता है तब शिव का योग उनकी साधना ,समाधि भंग होती है . ...नेत्र खुलते ही शिव स्व से निकल समष्टि में विचरण करने लगते हैं . कोमल लताएँ ठूठ दरख्तों का आलिंगन कर रही हैं ,बगैर किसी परिधान के . नयी कोपलें निकल आती हैं ठूंठ गांठो से . मदार के फूल उर्ध्गामी हुए नीले आसमान में सफ़ेद छीट का बिम्ब बनाए बैठे हैं . कचनार की अधखिली कली खुलने को आतुर है . पोखरे के शांत जल को बस्वारी के बांस आहिस्ता आहिस्ता सक्लाते हैं .पोखर में कंपन उठता है . मीन मुह खोले मेहदी के झरे फूल को लील लेना चाहती है . शिव चकित हैं प्रकृति के इस बदलाव पर . त्रिनेत्र से देखते हैं . किसने किया यह सब जो उद्वेलित कर रहा है समूचे ब्रह्माण्ड को ? उत्तर मिलता है - 'काम ' आये हैं शिव को जगाने . काम प्रवेश लें इसकी सूचना लेकर बसंत आया है माघ पंचमी को ही . शिव को काम पर गुस्सा आता है और उसे भष्म कर देते हैं . काम की पत्नी रति विलाप करती है . विरह की पीड़ा बहुत दुःख दाई होती है . रति के विलाप से शिव भी हिल जाते हैं .और काम को अमरत्व देते हैं . यह अनंग होगा लेकिन सब में समान तीब्रता से ज़िंदा रहेगा . यह प्रकृति का स्थायी भाव होगा रति . विलाप मत करो . रति काम की पत्नी है . सौंदर्य की पराकाष्टा . दक्ष की पुत्री है . गौरी की सगी बहन . गौरी शिव की ब्य्ह्ता . कथा बहुत लंबी है . आज ही के दिन शिव और पार्वती का मिलन होता है . आज की रात को शिव और पार्वती रतिदान करते हैं . प्रकृति और पुरुष का मेल . श्रृष्टि की संरचना . प्रथम आलिंगन होता है . कालिदास कावर्णन देखिये 'कुमार संभवंम में . कभी वक्त मिले तो सुधी पाठक जन इस प्रथममिलन की यात्रा को जरूर देखें . और अगर सजीव चित्रण देखना हो तो खजुराहों देखें . रतिबंध की अनोखी प्रस्तुति . मूर्तिशिल्प का अदभुत प्रस्तुतीकरण . आज सब याद आ रहे हैं . हम पाखंडी लोग फूल लिए घूम रहे हैं. शिव बनो ... जहां तक बंन सके उतना तो बनो . पार्वती तुम्हारे पास है . आलिंगन दो . आज दोनों के मिलन का दिन है . अस्तु