चिखुरी /चंचल
कुर्सी दौड़ चालो है .......
तीनो जन ...इकट्ठे ? कीन उपाधिया, लखन कहार और उमर दरजी . तीनो सजे सवरें हैं . तेलफुलेल , से चकाचक . लोगों ने देखा तीनो मुह लटकाए चले आ रहे हैं .न कोइ बात चीत ,न हंसी मजाक , बस सरपट बढे आ रहे हैं चौराहे की तरफ . जहां आसरे की दूकान पर मजमा पहले से ही लगा बैठा है . दो चार कदम रह गया होगा तभी लाल्साहेब ने सवाल दागा -ये तीनो ....किधर से भाई ? तीनो ने कुछ नहीं बोला . बस गंभीर बने रहे . वक्त की नजाकत देखते हुए कयूम मिया ने सहलाया -अरे भाई पहले बैठने तो दो , बेचारे पता नहीं कहाँ से थके-मांदे चले आ रहे हैं ,पता नहीं इन पर क्या गुजरा है , ... आओ कीन .. हियाँ आओ .. कहाँ से लौटे हो बेटवा ? कीन कुछ जवाब देते उसके पहले ही उमर दरजी ने जवाब दिया -गए रहे टोनामेंट देखने ...
-टोनामेंट नहीं ,टूर्नामेंट ..
जो भी हो वही देखने गए रहे ,
तो हुआ क्या ?
एक से बढ़कर एक खेल हुआ . महीनों से तो चल रहा था . 'जलेबी दौड़ 'देखा . मजा आ गया गुरू , क्या खेल है ? दोनों हाथ पीछे बंधे रहे , एक दो के नहीं ,पूरे झुण्ड के झुण्ड . जलेबी ससुरी धागे में लटकी .. कभी इधर ,कभी उधर , बाकी खेल्नेव्वाले मुह बाए कूद लगाते रहे . पर मिला उन्ही को जिनका मुह चौड़ा रहा ...
और का हुआ . ?
-तिनटंगी दौड़ . इसमें अकेले नहीं दौड़ा जाता . ...दो को मिल कर दौडना होता है . एक का बांया पैर दूसरे के दाहिने पैर से कस कर बांध दिया जा है ,फिर रेस होती है . .. एक हुआ 'बोरा दौड़ ' यह और मजेदार दोनों पैर बोरे में डाल दिया जाता है और बोरे को कमर के पास बांध देते हैं ,फिर उनका रेस देखो . ..अभी बात पूरी भी न हो पायी थी कि मद्द् पत्रकार की मोटर साइकिल आकर रुकी . लोग बताते हैं कि जब मद्दू की मोटर साइकिल रुकती है तब उनकी पत्रकारिता चलती है . चुनांचे आते ही आते मदु चालू हो गए - क्या राजनीति हो रही है भाई ? जवाब दिया कीन उपाधिया ने - राजनेति नहीं गुरू , टूनामेंट की बात हो रही है . मद्दू ने समझाया - कीन ! दोनों एक ही है . लखन कहार चकराये 'दोनों एक ही है ? जलेबी , बोरा , तीन टंगी ....? लेकिन चुप रह गए . कोइ न कोइ तो पूछेगा ही . वह क्यों फसने जाय . बहर हाल मद्दू आये और चिखुरी के बक्गल में बैठ गए .
आज की क्या खबर है चिखुरी काका ? चिखुरी ने अखबार बगर रख दिया . चश्मा उतार ही रहे थे कि उमर ने बयान देना शुरू कर दिया - आज की खबर ? कुर्सी दौड़ चल रही है ,हम तो ऊब कर भाग आये . हमारा कंडीडेट तो पहले ही राउंड में गिर गया . .....' लाल्साहेब को मौक़ा मिल गया -ओमर मिया ! पूरा बताओ न , कैसे क्या हुआ ?
उमर ने ,बीड़ी सुलगाया . बीड़ी उलट कर जोर से धुँआ निकाला . आँखे लाल की . फिर बताना शुरू किया .
हम तीनो जन यहाँ से होत भिनसार पाठशाला पे पहुच गए जहा टूनामेंट होत रहा . खेलय वाले कम देखय वाले ज्यादा . तिल रखने की भी जगह नहीं . कोइ कुर्सी पर कोइ पेड़ पर कोइ साइकिल पे इसी में हम भी तीन जन .लखन कहार मजे में रहे गमछा रहा उस पर बैठ गए . हमने ईंट खोज निकाला , कीन उपाधिया को कुछ नहीं मिला तो 'पनही ' पर ही जम गए . इतने में क्या हुआ कि पहले सीटी बजी . एकदम सन्नाटा . फिर लोड स्पीकर का भोम्पा बोला ..दिल्ली मेरी दिल्ली .. दिली .. दिल्ली .. दिल्ली ... ' रेकाट' की सूई दिली पे फस गयी . सीटी वाले साहेब ने जोर से आवाज दी -जे नहीं चलेगा कोइ धार्मिक बजाओ ... रेकाड बोला - आरा हीले ,बलिया हीले , छपरा .. रोको जल्दी रोको ... नौटंकी समझे हो का . यह टूनामेंट है . कोइ दमदार गाना लगाओ . दो पढ़े लिखे लोग उसकी मदद के लिए भेजे गए . तब कहीं जा कर देशप्रेम मिला . इन्साफ की डगर पे . बच्चो दिखाओ चल के .. यह देश है तुमारा .. तुम्हारा .. तुम्हारा .. 'और देश फंस गया . खेल रोक दिया गया . अब तय हुआ कि कि एक कुर्सी बीच में रहेगी .उसके घेर कर दौडने वाले दो होंगे . और जब सीटी बजे तो एक को उस कुर्सी पर बैठ जाना है . जो बैठ जायगा वह जीत जायगा . कई बार सीटी बजी लेकिन कोइ भी बैठने को तैयार नहीं . तब से यही चल रहा है .सीटी बजती है दोनों एक दूसरे को देखते हैं पर बैठे को राजी नहीं हैं .
-सो क्यों ?
सच्चाई का है ये तो 'ऊपरवाला ' जाने लेकिन मुहा मुही यही हो रही है कि किसी ने कुर्सी के उस असल मुकाम पर 'केंवाच ' रगड़ दिया है . जिस पर तशरीफ रखी जाती है .जो भी बैठेगा तशरीफ खुजलाते हुए भागेगा पर खुजलाना कम नहीं होगा .राम भरोस बनिया तो आप बीती बताता रहा कि एक बार वो भी फंस चुका है , ऐसी खुजली शुरू हुई कि पूछो मत बताने में शर्म आती है .
-लेकिन यह केवांच का होता है ?
चिखुरी मुस्कुराए .-यह एक दरख्त का फूल है जो देखने में तो बहुत खूबसूरत होता है लेकिन इनके रोंये में एक अजीब सी फितरत होती है खुजली की .. तो सुन लो पंचो केवांच से बचना चाहिए .
और दिल्ली की खबर क्या है भाई ?
अब सुनो ... इनका सवाल देखो ....
कुर्सी दौड़ चालो है .......
तीनो जन ...इकट्ठे ? कीन उपाधिया, लखन कहार और उमर दरजी . तीनो सजे सवरें हैं . तेलफुलेल , से चकाचक . लोगों ने देखा तीनो मुह लटकाए चले आ रहे हैं .न कोइ बात चीत ,न हंसी मजाक , बस सरपट बढे आ रहे हैं चौराहे की तरफ . जहां आसरे की दूकान पर मजमा पहले से ही लगा बैठा है . दो चार कदम रह गया होगा तभी लाल्साहेब ने सवाल दागा -ये तीनो ....किधर से भाई ? तीनो ने कुछ नहीं बोला . बस गंभीर बने रहे . वक्त की नजाकत देखते हुए कयूम मिया ने सहलाया -अरे भाई पहले बैठने तो दो , बेचारे पता नहीं कहाँ से थके-मांदे चले आ रहे हैं ,पता नहीं इन पर क्या गुजरा है , ... आओ कीन .. हियाँ आओ .. कहाँ से लौटे हो बेटवा ? कीन कुछ जवाब देते उसके पहले ही उमर दरजी ने जवाब दिया -गए रहे टोनामेंट देखने ...
-टोनामेंट नहीं ,टूर्नामेंट ..
जो भी हो वही देखने गए रहे ,
तो हुआ क्या ?
एक से बढ़कर एक खेल हुआ . महीनों से तो चल रहा था . 'जलेबी दौड़ 'देखा . मजा आ गया गुरू , क्या खेल है ? दोनों हाथ पीछे बंधे रहे , एक दो के नहीं ,पूरे झुण्ड के झुण्ड . जलेबी ससुरी धागे में लटकी .. कभी इधर ,कभी उधर , बाकी खेल्नेव्वाले मुह बाए कूद लगाते रहे . पर मिला उन्ही को जिनका मुह चौड़ा रहा ...
और का हुआ . ?
-तिनटंगी दौड़ . इसमें अकेले नहीं दौड़ा जाता . ...दो को मिल कर दौडना होता है . एक का बांया पैर दूसरे के दाहिने पैर से कस कर बांध दिया जा है ,फिर रेस होती है . .. एक हुआ 'बोरा दौड़ ' यह और मजेदार दोनों पैर बोरे में डाल दिया जाता है और बोरे को कमर के पास बांध देते हैं ,फिर उनका रेस देखो . ..अभी बात पूरी भी न हो पायी थी कि मद्द् पत्रकार की मोटर साइकिल आकर रुकी . लोग बताते हैं कि जब मद्दू की मोटर साइकिल रुकती है तब उनकी पत्रकारिता चलती है . चुनांचे आते ही आते मदु चालू हो गए - क्या राजनीति हो रही है भाई ? जवाब दिया कीन उपाधिया ने - राजनेति नहीं गुरू , टूनामेंट की बात हो रही है . मद्दू ने समझाया - कीन ! दोनों एक ही है . लखन कहार चकराये 'दोनों एक ही है ? जलेबी , बोरा , तीन टंगी ....? लेकिन चुप रह गए . कोइ न कोइ तो पूछेगा ही . वह क्यों फसने जाय . बहर हाल मद्दू आये और चिखुरी के बक्गल में बैठ गए .
आज की क्या खबर है चिखुरी काका ? चिखुरी ने अखबार बगर रख दिया . चश्मा उतार ही रहे थे कि उमर ने बयान देना शुरू कर दिया - आज की खबर ? कुर्सी दौड़ चल रही है ,हम तो ऊब कर भाग आये . हमारा कंडीडेट तो पहले ही राउंड में गिर गया . .....' लाल्साहेब को मौक़ा मिल गया -ओमर मिया ! पूरा बताओ न , कैसे क्या हुआ ?
उमर ने ,बीड़ी सुलगाया . बीड़ी उलट कर जोर से धुँआ निकाला . आँखे लाल की . फिर बताना शुरू किया .
हम तीनो जन यहाँ से होत भिनसार पाठशाला पे पहुच गए जहा टूनामेंट होत रहा . खेलय वाले कम देखय वाले ज्यादा . तिल रखने की भी जगह नहीं . कोइ कुर्सी पर कोइ पेड़ पर कोइ साइकिल पे इसी में हम भी तीन जन .लखन कहार मजे में रहे गमछा रहा उस पर बैठ गए . हमने ईंट खोज निकाला , कीन उपाधिया को कुछ नहीं मिला तो 'पनही ' पर ही जम गए . इतने में क्या हुआ कि पहले सीटी बजी . एकदम सन्नाटा . फिर लोड स्पीकर का भोम्पा बोला ..दिल्ली मेरी दिल्ली .. दिली .. दिल्ली .. दिल्ली ... ' रेकाट' की सूई दिली पे फस गयी . सीटी वाले साहेब ने जोर से आवाज दी -जे नहीं चलेगा कोइ धार्मिक बजाओ ... रेकाड बोला - आरा हीले ,बलिया हीले , छपरा .. रोको जल्दी रोको ... नौटंकी समझे हो का . यह टूनामेंट है . कोइ दमदार गाना लगाओ . दो पढ़े लिखे लोग उसकी मदद के लिए भेजे गए . तब कहीं जा कर देशप्रेम मिला . इन्साफ की डगर पे . बच्चो दिखाओ चल के .. यह देश है तुमारा .. तुम्हारा .. तुम्हारा .. 'और देश फंस गया . खेल रोक दिया गया . अब तय हुआ कि कि एक कुर्सी बीच में रहेगी .उसके घेर कर दौडने वाले दो होंगे . और जब सीटी बजे तो एक को उस कुर्सी पर बैठ जाना है . जो बैठ जायगा वह जीत जायगा . कई बार सीटी बजी लेकिन कोइ भी बैठने को तैयार नहीं . तब से यही चल रहा है .सीटी बजती है दोनों एक दूसरे को देखते हैं पर बैठे को राजी नहीं हैं .
-सो क्यों ?
सच्चाई का है ये तो 'ऊपरवाला ' जाने लेकिन मुहा मुही यही हो रही है कि किसी ने कुर्सी के उस असल मुकाम पर 'केंवाच ' रगड़ दिया है . जिस पर तशरीफ रखी जाती है .जो भी बैठेगा तशरीफ खुजलाते हुए भागेगा पर खुजलाना कम नहीं होगा .राम भरोस बनिया तो आप बीती बताता रहा कि एक बार वो भी फंस चुका है , ऐसी खुजली शुरू हुई कि पूछो मत बताने में शर्म आती है .
-लेकिन यह केवांच का होता है ?
चिखुरी मुस्कुराए .-यह एक दरख्त का फूल है जो देखने में तो बहुत खूबसूरत होता है लेकिन इनके रोंये में एक अजीब सी फितरत होती है खुजली की .. तो सुन लो पंचो केवांच से बचना चाहिए .
और दिल्ली की खबर क्या है भाई ?
अब सुनो ... इनका सवाल देखो ....