जी हाँ ..मै कांग्रेस में हूँ...
मै तीन नामों के बहाने एक बात कहना चाहता हूँ . ये तीन है अर्चना राज , जिनका कहना है कि ' मै कांग्रेस से भावात्मक लगाव रखती रही हूँ लेकिन आज कांग्रेस जहां (?) है , मै भ्रमित हो रही हूँ . ' दूसरी है नीलाक्षी जी , जो अपनी पोस्ट पर अचानक ; गांधी पर हमलावर हो गयी है. तीसरे हैं - प्रभात चन्द्र जो स्थापित करना चाह रहें हैं कि जितना काम इस समाज के लिए डॉ अम्देकर ने किया उतना गांधी ने नहीं लेकिन मीडिया ने गांधी को राष्ट्र पिता बना दिया और अम्बेडकर के साथ बे मानी किया . येहां तीनो का अलग अलग मनोविज्ञान है . अर्चना राज को लग रहा है कि कांग्रेस फसती जा रही है , रोज रोज जो घोटाले खुल रहें हैं उससे अर्चना जी परेशान लग रही हैं . नीलाक्षी जी छेड़ने की गरज से अतीत में कूद कर गांधी को उठा रही हैं कि इनपर बहस चले . तीसरे सज्जन का सवाल मजेदार है किसने समाज के लिए ज्यादा काम किया ?
अर्चना जी मै कांग्रेस के बहुत पुराने इतिहास को नहीं खोलना चाहता वह बहुत विस्तार ले लेगा . आप खौफजदा हैं ' आर्थिक भ्रष्टाचार ' के खुलते आयाम पर . सत्ता कोइ भी होगी भ्रष्टाचार उसका एक अंग होता है . जनतंत्र अकेला तंत्र है जो इसपर रोक लगा सकता है . और यह जिम्मेवारी प्रतिपक्ष की बनती है . और मीडिया की . आज है क्या कि सत्ता से ज्यादा भ्रष्ट और बेईमान प्रतिपक्ष और मीडिया है . सत्ता तो फिर भी कम है . आजादी के बाद से इस सवाल पर कांग्रेस को देखाजाय तो नेहरू का कार्यकाल कत्तई भ्रष्टाचार से मुक्त रहा है . जहां कहीं भी कोइ मामला सामने आया है नेहरू ने बगैर देर किये तुरत कारवाही की . कृष्णमेनन रहें हों या पटेल . मंत्रिमडल से हटाये गए . प्रति पक्ष में डॉ लोहिया का प्रवेश हो चुका था . समाजवादी आंदोलन की सबसे बड़ी भूमिका रही है कि उसने कांग्रेस की नक्लेल पकडे रखा . इंदिरा गांधी के जमाने से फिसलन शुरू हुई लेकिन इसे संस्थागत होने से इंदिरागांधी बचाती रही इतना ही नहीं कांग्रेस को इस सवाल पर टूटना पड़ा . इंडीकेट और सिंडी केट . १९६९ नेकीराम कांग्रेस टर्निंग प्वाइंट है , कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया . नीलम संजीव रेड्डी , मोरारजी भाई . यस के पाटिल . चंद्रभानु गुप्त . अतुल्य्घोस , निजलिंग गप्पा . एक तरफ और पांच समाजवादियों के साथ इंदिरा गांधी एक तरफ . ७१ में इंदिरा गांधी दो तिहाई बहुमत से जीती . इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को समाजवाद से जोड़ दिया . दूसरी तरफ समाजवादी आंदोलन बिखर गया . साम्यवादियों ने अपने आपको इंदिरा के सामने घुटने टेक दिए . यहाँ तक आते आते भ्रष्टाचार को थोड़ी मोहलत मिली लेकिन वह कंट्रोल में रही . असल भ्रष्टाचार बेलगाम होता है ७७ के बाद जब संविद सरकारों का चलन शुरू हुआ . आज भी इसे देखा जा सकता है कि किस तरह वो लोग ज्यादा भ्रष्ट होते पाए जा रहें हैं जिनके समर्थन से सरकार चलती रहती है . इस लिहाज से कांग्रेस सबसे कम भ्रष्ट है .
लेकिन मीडिया का दिमागी दिवालियापन देखिये वह न तो प्रतिपक्ष पर बोल रहा है न अपने करतूतों पर . शुक्र है कि इस मीडिया की पहुँच दूर तक नहीं है . बाकी दो पर कल ....