यस.पी. : खबर बनाओ ....
यस पी पत्रकार नहीं थे ,पत्रकारिता के कारखाना थे और ऐसा कारखाना जिसके उपयोगी उत्पादन से अधिक कचड़ा निकला .उन कचडों का कमाल कि आज वो खबरों से बेखबर हैं और बाकी से बाखबर .यह उस शख्स का कमाल और जमाल दोनों रहा .इस अखबार बाज से मेरी पहली मुलाक़ात १९७७ में हुई . हमने पहले भी कही कहा है कि ७७ भारतीय समाज का टर्निंग प्वाइंट है राजनीति .पत्रकारिता ,कला साहित्य हर मैदान में उठा पटक जारी है, इमरजेंसी हटा ली गयी है ,चुनाव की घोषणा हो चुकी है . बनारस से हमारे नेता ,बनारस विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष देव ब्रत मजुमदार चुवाव मैदान में हैं और हम सब उनके साथ हैं .दोसाल की जेल काट कर हम बाहर आये हैं अपने आपको तोप से कम नहीं समझ रहें हैं .जनता पार्टी बन चुकी है लेकिन जनता पार्टी ने मजुमदार को टिकट देना मुनासिब नहीं समझा .चुनाव में मेरे बनाए चित्र ( जेल में बनाए गए ) जगह जगह सड़कों पर लग रहें थे .चर्चा दो जगहों की ज्यादा हुई .एक मुजफ्फरपुर जहां से जार्ज (जेल में रहते हुए ) चुनाव लड़ रहें थे और दूसरा बनारस .यस .पी से मेरी मुलाक़ात बनारस में हुई .'यस पी ..'ताप से ताए हुए' थे ( कवि त्रिलोचन जी से उनको उधार ले रहा हूँ ) इमरजेंसी की ज्यादती ,पत्रकारिता की लचर चाल ,समाज में गूँज रहा गुस्सा .यस .पी . को एक मोड़ तक पहुचा दिया .'रविवार' गुस्से का तेवर लेकर मैदान में उतरा .यह पहला प्रयोग था कि आपके पास अगर खबर है तो आओ ,हमें भाषा और व्याकरण नहीं चाहिए इसके लिए हमारे पास अलग का मोहकमा है .रविवार में अशोक सेकसरिया का जो योगदान है वह अविष्मर्णीय है .पत्रकारिता के बंधे -बंधाए खांचे को तोड़ कर 'रविवार ' ने एक नया मुकाम बनाया और बड़ों बड़ों को पीछे ढकेल कर स्वं स्थापित हो गया .
७७ में मै बनारस विश्वविद्यालय छात्र संघ का अधक्ष बन गया .संघी घराना ने इस हार को संजीदगी के साथ लिया और उसकी पूरी कोशिश रहती थी कि किस तरह समाजवादियों को घेरा जाय .यह. पी .के लिए यह अच्छा मौक़ा था .'रविवार ' का एक अंक ही हमारे ऊपर आगया .छद्म नाम से स्टोरी छपी .अच्छी बिक्री हुई .हमारे ऊपर कई आरोप लगे .'असामाजिक तत्वों का ठेकेदार ' लड्कीबाज ,वगैरह वगैरह .( बहुत दिनों तक रविवार का भूत लड़कियों के ऊपर चढ़ा रहा .बाद में उसकी सफाई भी यस पी ने ही दिया .उनमे कई तो अच्छी खासी पत्रकार ,जहीन और बोल्ड भी रही नाम बता दूँ -दरियाफ्त कर लीजियेगा .आप इन्हें जानते भी होंगे ..अलका सक्सेना और अर्चना झा ....जब इन्हें सच्चाई मालुम हुई तो जम कर ठहाके लगे .यस पी ने कहा हमें तो समाचार बेचना था ..मैंने कहा था 'कसाई !'
एक दिन यस पी. दिल्ली आगये .दिल्ली में उनका घर 'लफंगों' का अड्डा बनगया .चंचल .रामकृपाल .नकवी ,अजय सिंह .नरेंद्र सिंह .पंकज सिंह ..बहुत नाम हैं भाई .यह उस जमाने की बात है जब दिल्ली की सांझ महफ़िल में कटती थी .मेहमान नवाजी के लिए उदायांशार्मा .संतोष भारतीय ,गौतम नौलखा .मल्लिक साहब आदि व्यवस्थित ढंग से इंतजाम करते रहें ...(आप जिसके बारे में सुनना चाहते हैं वह उन दिनों बैरा की जिम्मेवारी निभाता था ) दिल्ली की हर सांझ यस पी के साथ कटी है ,उनकी शादी के बाद तबदीली आयी ...बहुत से किस्से हैं ..अजित अंजुम ने याद दिला कर गडबड किया है .अम्बरीश जी संदीप् भाई अब कोइ सवाल नहीं .. सांझ होने को है ...काफी हाउस जेरे बहस रहें ..बस
यस पी पत्रकार नहीं थे ,पत्रकारिता के कारखाना थे और ऐसा कारखाना जिसके उपयोगी उत्पादन से अधिक कचड़ा निकला .उन कचडों का कमाल कि आज वो खबरों से बेखबर हैं और बाकी से बाखबर .यह उस शख्स का कमाल और जमाल दोनों रहा .इस अखबार बाज से मेरी पहली मुलाक़ात १९७७ में हुई . हमने पहले भी कही कहा है कि ७७ भारतीय समाज का टर्निंग प्वाइंट है राजनीति .पत्रकारिता ,कला साहित्य हर मैदान में उठा पटक जारी है, इमरजेंसी हटा ली गयी है ,चुनाव की घोषणा हो चुकी है . बनारस से हमारे नेता ,बनारस विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष देव ब्रत मजुमदार चुवाव मैदान में हैं और हम सब उनके साथ हैं .दोसाल की जेल काट कर हम बाहर आये हैं अपने आपको तोप से कम नहीं समझ रहें हैं .जनता पार्टी बन चुकी है लेकिन जनता पार्टी ने मजुमदार को टिकट देना मुनासिब नहीं समझा .चुनाव में मेरे बनाए चित्र ( जेल में बनाए गए ) जगह जगह सड़कों पर लग रहें थे .चर्चा दो जगहों की ज्यादा हुई .एक मुजफ्फरपुर जहां से जार्ज (जेल में रहते हुए ) चुनाव लड़ रहें थे और दूसरा बनारस .यस .पी से मेरी मुलाक़ात बनारस में हुई .'यस पी ..'ताप से ताए हुए' थे ( कवि त्रिलोचन जी से उनको उधार ले रहा हूँ ) इमरजेंसी की ज्यादती ,पत्रकारिता की लचर चाल ,समाज में गूँज रहा गुस्सा .यस .पी . को एक मोड़ तक पहुचा दिया .'रविवार' गुस्से का तेवर लेकर मैदान में उतरा .यह पहला प्रयोग था कि आपके पास अगर खबर है तो आओ ,हमें भाषा और व्याकरण नहीं चाहिए इसके लिए हमारे पास अलग का मोहकमा है .रविवार में अशोक सेकसरिया का जो योगदान है वह अविष्मर्णीय है .पत्रकारिता के बंधे -बंधाए खांचे को तोड़ कर 'रविवार ' ने एक नया मुकाम बनाया और बड़ों बड़ों को पीछे ढकेल कर स्वं स्थापित हो गया .
७७ में मै बनारस विश्वविद्यालय छात्र संघ का अधक्ष बन गया .संघी घराना ने इस हार को संजीदगी के साथ लिया और उसकी पूरी कोशिश रहती थी कि किस तरह समाजवादियों को घेरा जाय .यह. पी .के लिए यह अच्छा मौक़ा था .'रविवार ' का एक अंक ही हमारे ऊपर आगया .छद्म नाम से स्टोरी छपी .अच्छी बिक्री हुई .हमारे ऊपर कई आरोप लगे .'असामाजिक तत्वों का ठेकेदार ' लड्कीबाज ,वगैरह वगैरह .( बहुत दिनों तक रविवार का भूत लड़कियों के ऊपर चढ़ा रहा .बाद में उसकी सफाई भी यस पी ने ही दिया .उनमे कई तो अच्छी खासी पत्रकार ,जहीन और बोल्ड भी रही नाम बता दूँ -दरियाफ्त कर लीजियेगा .आप इन्हें जानते भी होंगे ..अलका सक्सेना और अर्चना झा ....जब इन्हें सच्चाई मालुम हुई तो जम कर ठहाके लगे .यस पी ने कहा हमें तो समाचार बेचना था ..मैंने कहा था 'कसाई !'
एक दिन यस पी. दिल्ली आगये .दिल्ली में उनका घर 'लफंगों' का अड्डा बनगया .चंचल .रामकृपाल .नकवी ,अजय सिंह .नरेंद्र सिंह .पंकज सिंह ..बहुत नाम हैं भाई .यह उस जमाने की बात है जब दिल्ली की सांझ महफ़िल में कटती थी .मेहमान नवाजी के लिए उदायांशार्मा .संतोष भारतीय ,गौतम नौलखा .मल्लिक साहब आदि व्यवस्थित ढंग से इंतजाम करते रहें ...(आप जिसके बारे में सुनना चाहते हैं वह उन दिनों बैरा की जिम्मेवारी निभाता था ) दिल्ली की हर सांझ यस पी के साथ कटी है ,उनकी शादी के बाद तबदीली आयी ...बहुत से किस्से हैं ..अजित अंजुम ने याद दिला कर गडबड किया है .अम्बरीश जी संदीप् भाई अब कोइ सवाल नहीं .. सांझ होने को है ...काफी हाउस जेरे बहस रहें ..बस