Friday, January 6, 2017

अनुपम अब नही लौटेंगे

अनुपम अब नही लौटेंगे
चंचल
     हममे रत्ती भर वो कुछ होता , जो मिल मिला कर अनुपम को गढ़ता है तो निश्चित  रूप से हम ऐलानिया कहते कि हम अनुपम के दोस्त रहे हैं . लेकिन अनुपम भाई की एक और बड़ी खूबी रही है उन्होंने ने अपने सामने वाले को कभीभी अपने पैमाने से कभी किसी को  नहीं मापा , बल्कि  उसे राग के अनुपात से अपने पास आने को सम्मोहित किया .गाँधी का यह सलीका बहुत सारे गांधीवादी भी नही समझ सके ,लेकिन अनुपम भाई इस सलीकोको इस  तरह अपना रखा था जैसे खादी को अपनाया था . चुनांचे उनके दोस्तों , प्रशंसकों , उनके  कार्य कलाप में रूचि रखने वालों यहाँ तक कि उनके पाठकों को एक सहज और सरल दोस्त मिलता रहा . अनगिनत तादात है .और सबसे बड़ी बात की वे जिस काल खंड पर खड़े थे उसके बर अक्स पुरानी , तार्किक और स्थायी समाधान देने के लिए , न कभी उत्तेजना व्यक्त किये न ही उत्तेजक भाषा या आचरण को स्वीकारा . खामोश ,सटीक और सार्थक विचार और कर्म देते रहे . आजीवन . गांधीवादी परिवार की परवरिश  का नतीजा रहा की जब देश का युवा वर्ग बदलाव की भूख लिए सडक पर लड़ रहा था , वर्धा में पैदा हुआ एक नौजवान पहाड़ पर चंडी प्रसाद भट्ट के साथ पेड़ से चिपक कर खडा हो गया . यह समय की बात है जब देश पर्यावरण के टूटते और भासकते बवंडर से वाकिफ ही नही रहा . यह ७० का कालखंड है . चिपको आन्दोलन की शुरुआत में जो गिने चुने नाम आते हैं उसमे सबसे कम उम्र के जिस नौजवान कोलोग आदर से गोहराते हैं , वह है अनुपम मिश्र .
 अनुपम मिश्र में कौन अनुपम बड़ा है , खोजना दिक्कत देता रहेगा . पत्रकार ,लेखक , सम्पादक , जल और जंगल का सजग पहरुआ , यहाँ तक की एक इंसान ? गांधी शान्ति प्रतिष्ठान के ठीक पीछे महावत खान रोड पर हम रहते थे , घर से निकल कर दरियागंज जाने के लिए हमे गांधी शान्ति प्रतिष्ठान की दीवार से होकर जाना पड़ता था . अनुपम भाई से अक्सर वहीं मुलाक़ात होती रहती थी . एक दिन बातचीत के दौरान अचानक अनुपम भाई ने कहा -  हम हरित क्रान्ति के नाम पर फिसल गये हैं . इसकी भरपाई होने में बहुत मेहनत और उससे ज्यादा वक्त लगेगा . वक्त के पहले कहा गया उनका आकलन अब तो सामान्य बात हो गयी है ,लेकिन उस समय हम समझने  से चूक गये . अनुपम भाई का पत्रकार और अध्यापकी मुद्रा बगैर लाग लपेट के सीधे सपाट भाषा में मिली . आज तक गाँठ बाँध कर रखा हूँ . पहली बार किसान की सहज और सटीक  परिभाषा सुन रहा था . किसान सीधा होता है , सहनशक्ति अपार है , भविष्य के बारे में धनात्मक सोच रखता है , निराश नही होता . जमीन और जल उसकी पूंजी है , हरित क्रान्ति ने अधिक अन्न उपजाओ के नारे और कृतिम उपायों से किसान को बर्बाद कर दिया . हुकुमत किसी की रही हो लेकिन वह गुलाम नही था . उसके पास जमीन थी , अपनी खाद थी , जो जानवरों से मिलती थी , उसके पास अपने संसाधन थे . खेत की सिंचाई के अपने संसाधन थे , आपस में सामूहिकता का जीवन दर्शन था सब बिखर गया . किसान को कर्जदार बनाया गया , खेती के उपकरण खरीदने के लिए , सिंचाई के लिए . हवा रोशनी और पानी पर सब का बराबर अधिकार था , आज सब बिक रहा है , किसान कर्जदार हो गया . बात समझ में आनेवाली थी . आ गयी . वक्त के पहले जमीन जंगल और जल की कीमत और कूबत आंकने वाले भाई अनुपम  एक आन्दोलन छोड़ कर गये हैं , आ अब लौट चलें . शुरुआत आज नही तो कल करनी ही होगी और उस दस्तावेज पर पहली दस्खत दिखेगी - अनुपम मिश्र की .
जल श्रोत के हमारे जितने भी पारंपरिक संसाधन थे , एक एक के विलुप्त हो रहे हैं इसका असर क्या हो रहा है सर्व विदित है . हम कब तक दैविक आपदा बोल कर मुह छुपाते रहेंगे . कभी तो सचेत होकर सगुण डगर पर चलना पडेगा . पोखरा , कुंवा , नदी नाला , हल बैल की जोताई , बगैर अंग्रेजी खाद का अन्न आज का बड़ा सवाल है . अनुपम भाई उन सवालों का हल दे चुके हैं , बस  उसे स्वीकारने की जरूरत है . अभी इसी संस्थान से एक अद्भुत किताब छपी है ,- जल थल मल . अद्भुत पुस्तक .
वक्त जितना खराब होगा , अनुपम भाई आपकी उतनी ही जरूरत बढ़ेगी .
सादर नमन , अनुपम भाई . 

1 comment:

  1. अनुपम भाई के जैसा दृष्टिकोण मुश्किल से ही मिलता है।

    ReplyDelete